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श्रीसूक्त का पाठ करने का क्या है सही तरीका? शुक्रवार को करें पाठ, दरिद्रता होगी दूर

श्री सूक्त (Shri Sukt) ऋग्वेद Rigveda से लिया गया है। शास्त्रों के अनुसार नित्य Shri Sukt का पाठ करने वाले जातक को इस संसार में समस्त सुखों happiness and prosperity की प्राप्ति होती है। उसे money और fame की कोई भी कमी नहीं होती है। नित्य नहीं कर सकते हैं तो प्रति Friday के दिन Shri Sukt पाठ करना चाहिए।
कैसे करें श्री सूक्त का पाठ:
1. स्नानादि से निवृत्त होकर स्वच्छ white या pink clothes धारण करें।
2. फिर एक पाट पर Goddess Lakshmi की तस्वीर या मूर्ति रखें।
3. उनके पास ही Shri Yantra की स्थापना करें।
4. इसके बाद incense sticks और diya प्रज्वलित करें।
5. फिर lotus flower मां लक्ष्मी को अर्पित करें।
6. इसके बाद Shri Yantra एवं Goddess Lakshmi के चित्र के सामने खड़े होकर Shri Sukt का पाठ करें।
यंत्र पूजा:
Shri Yantra, Mahalakshmi Yantra, Dhan Varsha Yantra, Vyapar Vriddhi Yantra, Navagraha Yantra, Laxmi Kuber Yantra में से कोई एक यंत्र बनाएं और उसकी नित्य पूजा करें। घर के North-East corner में Shri Yantra को copper plate, silver plate या Bhojpatra पर बनवाकर रखें। फिर उनमें Pran Pratishtha करने के बाद उसकी पूजा करें।
Shri Sukt की ऋचाओं से नियमित havan करने से विभिन्न कष्ट दूर होकर luxury and wealth की प्राप्ति होती है। Alakshmi की अकृपा प्राप्त होने से एक ओर जहाँ debts, illness, और poverty से मुक्ति मिलती है, वहीं दूसरी ओर Lakshmi blessings से success and prosperity की प्राप्ति होती है। इस मंत्र में Shri Sukt के पंद्रह छंदों में words vibration और sound energy से अधिष्ठात्री देवी लक्ष्मी के ध्वनि शरीर का निर्माण किया जाता है।
मंत्र:
माता लक्ष्मी के मंत्र - ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं कमले कमलालये प्रसीद प्रसीद। श्रीं ह्रीं श्रीं ॐ महालक्ष्मी नमः॥... इस मंत्र की Lotus seed mala से प्रतिदिन जप करने से लाभ होगा। इसके अलावा Daridrata Nashak Lakshmi Mantra या Daridrata Nashak Hanuman Mantra का जप भी कर सकते हैं।
माता का भोग:
Friday के दिन Goddess Lakshmi के मंदिर जाकर conch shell (shankh), kaudi (cowrie shells), lotus, makhana (fox nuts), sugarcane, और batasha अर्पित करें। ये सब Mahalakshmi को बहुत प्रिय हैं।

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Sarawati Suktam (सरस्वती सूक्तम्)

सरस्वती सूक्तम् (Sarawati Suktam) (ऋ.वे. 6.61) इयम् ददाद्रभसमृणच्युतं दिवोदासं वँद्र्यश्वाय दाशुषे । या शश्वंतमाचखशदावसं पणिं ता ते दात्राणि तविषा सरस्वति ॥ 1 ॥ इयं शुष्मेभिर्बिसखा इवारुजत्सानु गिरीणां तविषेभिरूर्मिभिः । पारावतघ्नीमवसे सुवृक्तिभिस्सरस्वती मा विवासेम धीतिेभिः ॥ 2 ॥ सरस्वति देवनिदो नि बर्हय प्रजां-विंश्यस्य बृसयस्य मायिनः । उत क्षितिभ्योऽवनीरविंदो विषमेभ्यो अस्रवो वाजिनीवति ॥ 3 ॥ प्रणो देवी सरस्वती वाजेभिर्वाजिनीवती । धीनामवित्र्यवतु ॥ 4 ॥ यस्त्वा देवी सरस्वत्युपब्रूते धने हिते । इंद्रं न वृत्रतूर्ये ॥ 5 ॥ त्वं देवी सरस्वत्यवा वाजेषु वाजिनि । रदा पूषेव नः सनिम् ॥ 6 ॥ उत स्या नः सरस्वती घोरा हिरण्यवर्तनिः । वृत्रघ्नी वष्टि सुष्टुतिम् ॥ 7 ॥ यस्या अनंतो अह्रुतस्त्वेषश्चरिष्णुरर्णवः । अमश्चरति रोरुवत् ॥ 8 ॥ सा नो विश्वा अति द्विषः स्वसृरन्या ऋतावरी । अतन्नहेव सूर्यः ॥ 9 ॥ उत नः प्रिया प्रियासु सप्तस्वसा सुजुष्टा । सरस्वती स्तोम्या भूत् ॥ 10 ॥ आपप्रुषी पार्थिवान्युरु रजो अंतरिक्षम् । सरस्वती निदस्पातु ॥ 11 ॥ त्रिषधस्था सप्तधातुः पंच जाता वर्धयंती । वाजेवाजे हव्या भूत् ॥ 12 ॥ प्र या महिम्ना महिनासु चेकिते द्युम्नेभिरन्या अपसामपस्तमा । रथ इव बृहती विभ्वने कृतोपस्तुत्या चिकितुषा सरस्वती ॥ 13 ॥ सरस्वत्यभि नो नेषि वस्यो माप स्फरीः पयसा मा न आ धक् । जुषस्व नः सख्या वेश्या च मा त्वत क्षेत्राण्यारणानि गन्म ॥ 14 ॥ **(ऋ.वे. 7.95)** प्र क्षोदसा धायसा सस्र एषा सरस्वती धरुणमायसी पूः । प्रबाबधाना रथ्येव याति विश्वा अपो महिना सिंधुरन्याः ॥ 15 ॥ एकाचेतत्सरस्वती नदीनां शुचिर्यती गिरिभ्य आ समुद्रात् । रायश्चेतंती भुवनस्य भूरेर्घृतं पयो दुदुहे नाहुषाय ॥ 16 ॥ स वावृधे नर्यो योषणासु वृषा शिशुर्वृषभो यज्ञियासु । स वाजिनं मघवद्भ्यो दधाति वि सातये तन्वं मामृजीत ॥ 17 ॥ उत स्या नः सरस्वती जुषाणोप श्रवत्सुभगा यज्ञे अस्मिन्न् । मितज्ञुभिर्नमस्यैरियाना राय युजा चिदुत्तरा सखिभ्यः ॥ 18 ॥ इमा जुह्वाना युष्मदा नमोभिः प्रति स्तोमं सरस्वति जुषस्व । तव शर्मन्प्रियतमे दधानाः उप स्थेयाम शरणं न वृक्षम् ॥ 19 ॥ अयमु ते सरस्वति वसिष्ठो द्वारावृतस्य सुभगे व्यावः । वर्ध शुभ्रे स्तुवते रासि वाजान्यूयं पात स्वस्तिभिः सदा नः ॥ 20 ॥ **(ऋ.वे. 7.96)** बृहदु गायिषे वचोऽसुर्या नदीनाम् । सरस्वतीमिन्महया सुवृक्तिभिस्स्तोमैरवसिष्ठ रोदसी ॥ 21 ॥ उभे यत्ते महिना शुभ्रे अंधसी अधिक्षियांति पूरवः । सा नो बोध्यवित्री मरुत्सखा चोद राधो मघोनाम् ॥ 22 ॥ भद्रमिद्भद्रा कृणवत्सरस्वत्यकवारी चेतति वाजिनीवती । गृणााना जमदग्निवत्स्तुवाना च वसिष्ठवत् ॥ 23 ॥ जनीयंतो न्वग्रवः पुत्रीयंतः सुदानवः । सरस्वंतं हवामहे ॥ 24 ॥ ये ते सरस्व ऊर्मयो मधुमंतो घृतश्चुतः । तेभिर्नोऽविता भव ॥ 25 ॥ पीपिवांसं सरस्वतः स्तनं-योँ विश्वदर्शतः । भक्षीमहि प्रजामिषम् ॥ 26 ॥ **(ऋ.वे. 2.41.16)** अंबितमे नदीतमे देवितमे सरस्वति । अप्रशस्ता इव स्मसि प्रशस्तिमंब नस्कृधि ॥ 27 ॥ त्वे विश्वा सरस्वति श्रितायूंषि देव्यम् । शुनहोत्रेषु मत्स्व प्रजां देवि दिदिड्ढि नः ॥ 28 ॥ इमा ब्रह्म सरस्वति जुशस्व वाजिनीवति । या ते मन्म गृत्समदा ऋतावरी प्रिया देवेषु जुह्वति ॥ 29 ॥ **(ऋ.वे. 1.3.10)** पावका नः सरस्वती वाजेभिर्वाजिनीवती । यज्ञं-वष्टु धियावसुः ॥ 30 ॥ चोदयित्री सूनृतानां चेतंती सुमतीनाम् । यज्ञं दधे सरस्वती ॥ 31 ॥ महो अर्णः सरस्वती प्र चेतयति केतुना । धियो विश्वा वि राजति ॥ 32 ॥ **(ऋ.वे. 10.17.7)** सरस्वतीं देवयंतो हवंते सरस्वतीमध्वरे तायमाने । सरस्वतीं सुकृतो अह्वयंत सरस्वती दाशुषे वार्यं दात् ॥ 33 ॥ सरस्वति या सरथं-यँयाथ स्वधाभिर्देवि पितृभिर्मदंती । आसद्यास्मिन्बर्हिषि मादयस्वानमीवा इष आ धेह्यस्मे ॥ 34 ॥ सरस्वतीं-यां पितरो हवंते दक्षिणा यज्ञमभिनक्षमाणाः । सहस्रार्घमिलो अत्र भागं रायस्पोषं-यँजमानेषु धेहि ॥ 35 ॥ **(ऋ.वे. 5.43.11)** आ नो दिवो बृहतः पर्वतादा सरस्वती यजता गंतु यज्ञम् । हवं देवी जुजुषाणा घृताची शग्मां नो वाचमुशती शृणोतु ॥ 36 ॥ **(ऋ.वे. 2.32.4)** राकामहं सुहवां सुष्टुती हुवे शृणोतु नः सुभगा बोधतु त्मना । सीव्यत्वपः सूच्याच्छिद्यमानया ददातु वीरं शतदायमुक्थ्यम् ॥ 37 ॥ यास्ते राके सुमतयः सुपेशसो याभिर्ददासि दाशुषे वसूनि । ताभिर्नो अद्य सुमनाः उपागहि सहस्रपोषं सुभगे रराणा ॥ 38 ॥ सिनीवाली पृथु्ष्टुके या देवानामसि स्वसा । जुषस्व हव्य माहुतं प्रजां देवि दिदिड्ढि नः ॥ 39 ॥ या सुबाहुः स्वंगुरिः सुषूमा बहुसूवरी । तस्यै विश्पत्न्यै हविः सिनीवाल्यै जुहोतन ॥ 40 ॥ या गुंगूर्या सिनीवाली या राका या सरस्वती । इंद्राणीमह्व ऊतये वरुणानीं स्वस्तये ॥ 41 ॥ ॐ शांति: शांति: शांति:
Sukt

Shri Mrityunjaya Stotram (श्री मृत्युञ्जय स्तोत्रम्)

Shri Mrityunjaya Stotram (श्री मृत्युंजय स्तोत्रम्): श्री मृत्युंजय स्तोत्र (Shri Mrityunjay Stotra) को सबसे प्राचीन वेदों (Vedas) में से एक माना जाता है। महा मृत्युंजय मंत्र (Maha Mrityunjaya Mantra) गंभीर बीमारियों (serious ailments) से छुटकारा दिलाने में सहायक माना जाता है। यह मंत्र ऋग्वेद (Rig Veda) से लिया गया है और भगवान शिव (Lord Shiva) के रुद्र अवतार (Rudra Avatar) को संबोधित करता है। इस मंत्र का नियमित जप (regular chanting) न केवल आयु (longevity) बढ़ाने में मदद करता है, बल्कि पारिवारिक कलह (familial discord), संपत्ति विवाद (property disputes), और वैवाहिक तनाव (marital stress) को भी सुलझाने में सहायक होता है। श्री मृत्युंजय स्तोत्र में अद्भुत उपचारात्मक शक्तियां (healing powers) हैं। यह हिंदुओं की सबसे आध्यात्मिक साधना (spiritual pursuit) मानी जाती है। भगवान शिव को सत्य (truth) और परमात्मा (Transcendent Lord) माना गया है। शिव के अनुयायियों का विश्वास है कि वे स्वयंभू (Swayambho) हैं। ऐसा माना जाता है कि भगवान शिव को प्रसन्न करना सरल है और वे अपने भक्तों (devotees) को आसानी से वरदान (boons) प्रदान करते हैं। धन (wealth), स्वास्थ्य (health), सुख (happiness), या समृद्धि (prosperity) से संबंधित कोई भी इच्छा, शिव पूरी करते हैं और भक्तों को कष्टों (sufferings) से मुक्त करते हैं। इसका उल्लेख शिव पुराण (Shiva Purana) में दो कहानियों के रूप में मिलता है। पहली कहानी के अनुसार, यह मंत्र केवल ऋषि मार्कंडेय (Rishi Markandeya) को ज्ञात था, जिन्हें स्वयं भगवान शिव ने यह मंत्र प्रदान किया था। आज के युग में शिव की पूजा (worship) का सही तरीका क्या है? सतयुग (Satyug) में मूर्ति पूजा (idol worship) प्रभावी थी, लेकिन कलयुग (Kalyug) में केवल मूर्ति के सामने प्रार्थना करना पर्याप्त नहीं है। भविषय पुराणों (Bhavishya Puranas) में भी इस बात का उल्लेख है कि सुख (happiness) और मन की शांति (peace of mind) के लिए मंत्र जप (chanting) का महत्व है। महा मृत्युंजय मंत्र का दैनिक जप (daily chanting) व्यक्ति को उत्तम स्वास्थ्य (good health), धन (wealth), समृद्धि (prosperity) और दीर्घायु (long life) प्रदान करता है। यह सकारात्मक ऊर्जा (positive vibes) उत्पन्न करता है और विपत्तियों (calamities) से रक्षा करता है।
Stotra

Shri Yamunashtakam Stotra (श्री यमुनाष्टकम् स्तोत्र)

पौराणिक अनुश्रुतियों के अनुसार, भुवनभास्कर सूर्य देवी यमुना के पिता, मृत्यु के देवता यम भाई और भगवान श्री कृष्ण देवी के परि स्वीकार्य किये गए हैं। जहां भगवान श्री कृष्ण ब्रज संस्कृति के जनक कहे जाते है, वहां देवी यमुना इसकी जननी मानी जाती हैं। इस प्रकार यह सच्चे अर्थों में ब्रजवासियों की माता है। देवी यमुना को प्रसन्न करने व उनका आशीर्वाद पाने के लिए यमुना नदी में स्नान करने के बाद श्री यमुनाष्टक स्तोत्र का पाठ किया जाता है। मान्यता है कि स्तोत्र का का पाठ करने से देवी यमुना जल्द प्रसन्न होती हैं, मनुष्य को आशीर्वाद प्राप्त होता है। श्री यमुनाष्टक स्तोत्र में 8 श्लोक हैं, जिनमें देवी यमुना की सुंदरता, उनकी शक्तियों के बारे में बताया गया है। स्तोत्र में देवी यमुना और श्रीकृष्ण के संबंध का भी वर्णन किया गया है।
Devi-Stotra

Shri Shiva Ashtakam (श्री शिव अष्टकम्)

प्रस्तुत है परम कल्याणकारी शिवाष्टक स्तोत्र। प्रभुम प्राणनाथम विभुम भगवान शिव के सबसे प्रसिद्ध अष्टकम में से एक है । यह प्रसिद्ध अष्टकम भगवान शिव से संबंधित अधिकांश अवसरों पर सुनाया जाता है। तस्मै नमः परमंकारकरणाय भगवान शिव का एक और प्रसिद्ध अष्टकम है जो आदि शंकराचार्य द्वारा रचित है ।
Ashtakam

Shri Ramdev Chalisa (श्री रामदेव चालीसा)

श्री रामदेव चालीसा एक भक्ति गीत है जो श्री रामदेव पर आधारित है। श्री रामदेव को, बाबा रामदेव, रामदेवजी, रामदेव पीर, और रामशा पीर के नाम से भी जाना जाता है। Ramdev Baba Chalisa benefits भक्तों को spiritual guidance, protection, और positivity प्रदान करती है। Ramdev Baba mantra जैसे "ॐ रामदेवाय नमः" का जाप करना भक्तों की समस्याओं को दूर करता है और मनोकामना पूर्ण करता है।
Chalisa

Brahmasukti (ब्रह्मसूक्ति )

ब्रह्मसुक्ति एक दिव्य ग्रंथ है जो ब्रह्मा (Creator God) की सृष्टि की शक्ति (Creative Power) और ज्ञान का वर्णन करता है। इसमें ब्रह्मा की भूमिका को सृष्टि के रचनाकार (Cosmic Creator) के रूप में प्रस्तुत किया गया है, जो वेदों (Vedas) और ज्ञान के स्रोत (Source of Wisdom) के प्रतीक हैं। यह ग्रंथ व्यक्ति को आध्यात्मिक जागृति (Spiritual Awakening) और जीवन के मूल उद्देश्य (Purpose of Life) को समझने की प्रेरणा देता है। ब्रह्मसुक्ति में ब्रह्मा के मंत्रों (Mantras), उनकी कृपा (Divine Grace), और सत्कर्मों (Righteous Deeds) के महत्व को बताया गया है, जो व्यक्ति को सफलता (Success) और आत्मिक संतुलन (Inner Balance) की ओर ले जाते हैं।
Sukti

Hanuman Stuti (हनुमान स्तुति)

हनुमान स्तुति में भगवान हनुमान (Hanuman), जिन्हें "Lord of Strength" और "symbol of devotion" कहा जाता है, की महिमा का वर्णन है। यह स्तुति उन्हें "protector from evil," "remover of obstacles," और "divine messenger of Lord Rama" के रूप में प्रस्तुत करती है। हनुमान जी को उनकी "immense power," "courage," और "unwavering loyalty" के लिए पूजा जाता है। इस स्तुति का पाठ करने से "spiritual strength," "peace of mind," और "divine blessings" प्राप्त होते हैं।
Stuti

Maa Tara yantra Mantra (माँ तारा यंत्र मंत्र)

माँ तारा यंत्र मंत्र देवी तारा की पूजा और आराधना के लिए एक शक्तिशाली यंत्र और मंत्र है, जो भक्तों को संकटों से मुक्ति, मानसिक शांति, और दिव्य आशीर्वाद प्राप्त करने में सहायक होता है। यह यंत्र और मंत्र नकारात्मक ऊर्जा को नष्ट करने, सुरक्षा और आध्यात्मिक उन्नति प्रदान करने के लिए उपयोग किए जाते हैं।
Yantra-Mantra

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