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महावीर जयंती कब है, जानिए पूजा करने का मुहूर्त और तरीका

Mahavir Jayanti 2025: Panchang के अनुसार, प्रतिवर्ष Chaitra Month के 13वें दिन अर्थात Chaitra Shukla Trayodashi Tithi पर Bhagwan Mahavir Jayanti मनाई जाती है। Jain Calendar के अनुसार 2025 में Mahavir Jayanti गुरुवार, 10 अप्रैल को मनाई जाएगी। यह festival Lord Mahavir Birth Anniversary की याद में मनाया जाता है।
Jain Mythology के अनुसार Bhagwan Mahavir Jain Dharma के 24वें Tirthankar हैं। बता दें कि इस साल Lord Mahavir Swami 2623rd Anniversary मनाई जाएगी। Worldwide, यह दिन Jain Devotees द्वारा prayers, fasting, events, donation activities आदि के साथ मनाया जाता है।
Trayodashi Tithi Start - 09 अप्रैल 2025 को शाम 10:55 बजे से।
Trayodashi Tithi End - 11 अप्रैल 2025 को रात 01:00 बजे।
According to Tithi, Mahavir Jayanti Thursday, 10 April 2025 को मनाई जाएगी।
Mahavir Swami Puja Vidhi (Lord Mahavir Worship Method)
Shri Mahavir Jin Puja को Shri Vardhman Jin Puja भी कहते हैं। Puja Start करने के पूर्व इसे एक बार जरूर पढ़ लें जिससे कि worship के दौरान त्रुटि न हो।
।। श्री महावीर जिन-पूजा ।।
छन्द मत्तगयन्द:
श्रीमत वीर हरें भवपीर, भरें सुखसीर अनाकुलताई।
केहरि अंक अरीकरदंक, नए हरि पंकति मौलि सुआई॥
मैं तुमको इत भापत हों प्रभु, भक्ति समेत हिये हरषाई।
हे करुणा-धन-धारक देव, इहां अब तिष्ठहु शीघ्रहि आई॥
ओं ह्रीं श्री वर्द्धमान जिनेन्द्र! अत्र अवतर अवतर। संवीषट्।
ओं ह्रीं श्री वर्द्धमान जिनेन्द्र! अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठः ठः। स्थापनम्‌।
ॐ ह्रीं श्री वर्द्धमान जिनेन्द्र! अत्र मम सन्निहितो भव भव। वषट्।
छन्द अष्टपदी:
क्षीरोदधिसम शुचि नीर, कंचन भृंग भरों।
प्रभु वेग हरो भवपीर, यातें धार करों॥
श्रीवीर महा अतिवीर, सन्मति नायक हो।
जय वर्द्धमान गुणधीर, सन्मतिदायक हो॥1॥
ॐ ह्रीं श्री महावीर जिनेन्द्राय जन्मजरामृत्यु विनाशनाय जलं निर्वपामीति स्वाहा।
मलयागिर चन्दनसार, केसर संग घसों।
प्रभु भवआताप निवार, पूजत हिय हुलसों। श्रीवीर...
ॐ ह्रीं श्री महावीर जिनेन्द्राय भवातापविनाशनाय चंदनं निर्वपामीति स्वाहा॥2॥
तंदुलसित शशिसम शुद्ध, लीनो थार भरी।
तसु पुंज धरों अविरुद्ध, पावों शिवनगरी। श्रीवीर...
ॐ ह्रीं श्री महावीरजिनेन्द्राय अक्षयपद प्राप्तये अक्षतान्‌ निर्वपामीति स्वाहा॥3॥
सुरतरु के सुमन समेत, सुमन सुमन प्यारे।
सो मनमथ भंजन हेत, पूजों पद थारे॥ श्रीवीर...
ॐ ह्रीं श्री महावीरजिनेन्द्राय कामबाण विध्वंसनाय पुष्पं निर्वपामीति स्वाहा॥4॥
रसरज्जत सज्जत सद्य, मज्जत थार भरी।
पद जज्जत रज्जत अद्य, भज्जत भूख अरी॥ श्रीवीर...
ॐ ह्रीं श्री महावीरजिनेन्द्राय क्षुधारोग विनाशनाय नैवेद्यं निर्वपामीति स्वाहा॥5॥
तमखंडित मंडित नेह, दीपक जोवत हों।
तुम पदतर हे सुखगेह, भ्रमतम खोवत हों॥ श्रीवीर...
ॐ ह्रीं श्री महावीरजिनेन्द्राय मोहांधकार विनाशनाय दीपं निर्वपामीति स्वाहा॥6॥
हरिचंदन अगर कपूर, चूर सुगंध करा।
तुम पदतर खेवत भूरि, आठौं कर्म जरा॥ श्रीवीर...
ॐ ह्रीं श्री महावीरजिनेन्द्राय अष्टकर्म दहनाय धूपं निर्वपामीति स्वाहा॥7॥
रितुफल कल-वर्जित लाय, कंचन थार भरों।
शिव फलहित हे जिनराय, तुम ढिंग भेंट धरों।
श्री वीर महा अतिवीर, सन्मति नायक हो।
जय वर्द्धमान गुणधीर, सन्मति दायक हो॥
ॐ ह्रीं श्री महावीरजिनेन्द्रायमोक्षफल प्राप्तये फलं निर्वपामीति स्वाहा॥8॥
जल फल वसु सजि हिम थार, तन मन मोद धरों।
गुणगाऊँ भवदधितार, पूजत पाप हरों॥ श्रीवीर...
ओं ह्रीं श्री महावीरजिनेन्द्राय अनर्ध्यपद प्राप्तये अर्घ निर्वपामीति स्वाहा॥9॥
पंचकल्याणक
राग टप्पा:
मोहि राखो हो सरना, श्री वर्द्धमान जिनरायजी, मोहि राखो.॥
गरभ साढ़सित छट्ट लियो थित, त्रिशला उर अघ हरना।
सुर सुरपति तित सेव करौ नित, मैं पूजूं भवतरना॥ मोहि...
ॐ ह्रीं आषाढ़ शुक्ल षष्टयां गर्भमंगल मंडिताय श्री महावीर जिनेन्द्राय अर्घ निर्वपामीति स्वाहा॥1॥
जनम चैत सित तेरस के दिन, कुण्डलपुर कनवरना।
सुरगिरि सुरगुरु पूज रचायो, मैं पूजों भवहरना॥
मोहि राखो हो...॥
ॐ ह्रीं चैत्रशुक्ला त्रयोदश्यां जन्ममंगलप्राप्तया श्री महावीर जिनेन्द्राय अर्घ निर्वपामीति स्वाहा॥2॥
मंगसिर असितमनोहर दशमी, ता दिन तप आचरना।
नृप कुमार घर पारन कीनों, मैं पूजों तुम चरना॥ मोहि।
राखो हो...॥
ॐ ह्रीं मार्गशीर्षकृष्णदशम्यां तपोमंगलमंडिताय श्री महावीर जिनेन्द्राय अर्घ निर्वपामोति स्वाहा॥3॥
शुक्लदशै वैसाख दिवस अरि, घात चतुक क्षय करना।
केवललहि भवि भवसर तारे, जजो चरन सुख भरना॥
मोहि राखो हो...॥
ॐ ह्रीं वैशाखशुक्ल-दशम्यां केवलज्ञानमंडिताय श्री महावीर जिनेन्द्राय अर्घ निर्वपामीति स्वाहा॥4॥
कातिक श्याम अमावस शिवतिय, पावापुरतैं वरना।
गणफनिवृन्द जजें तित बहुविध, मैं पूजों भयहरना॥
मोहि राखो हो...॥
ॐ ह्रीं कार्तिककृष्णअमावस्यायां मोक्षमंगलप्राप्ताय श्री महावीरजिनेन्द्राय अर्घ निर्वपामीति स्वाहा॥5॥
जयमाला
छंद हरिगीता (28 मात्रा) :
गणधर अशनिधर, चक्रधर हलधर, गदाधर वरवदा।
अरुं चापधर, विद्यासुधर तिरशूलधर सेवहिं सदा॥
दुखहरन आनंदभरन तारन, तरन चरन रसाल हैं।
सुकुमाल गुण मनिमाल उन्नत भालकी जयमाल है॥1॥
छंद घत्तानन्द :
जय त्रिशलानंदन, हरिकृतवंदन, जगदानंदन चंदवरं।
भवतापनिकंदन, तनकनमंदन, रहित सपंदन नयन धरं॥2॥
छंद त्रोटक :
जय केवलभानु-कला-सदनं। भवि-कोक-विकाशन कंदवनं।
जगजीत महारिपु मोहहरं। रजज्ञान-दृंगावर चूर करं॥1॥
गर्भादिक-मंगलमंडित हो। दुखदारिदको नितखंडित हो।
जगमाहिं तुम्हीं सतपंडित हो। तुमही भवभाव-विहंडित हो॥2॥
हरिवंश सरोजनको रवि हो। बलवंत महंत तुम्हीं कवि हो।
लहि केवलधर्म प्रकाश कियो। अबलों सोइमारग राजतियो॥3॥
पुनि आप तने गुण माहिं सही। सुरमग्न रहैं जितने सबही।
तिनकी वनिता गुनगावत हैं। लय माननिसों मनभावत हैं॥4॥
पुनि नाचत रंग उमंग-भरी। तुअ भक्ति विषै पग एम धरी।
झननं झननं झननं झननं। सुर लेत तहां तननं तननं॥5॥
घननं घननं घनघंट बजै॥ दृमदं दृमदं मिरदंग सजै।
गगनांगन-गर्भगता सुगता। ततता ततता अतता बितता॥6॥
धृगतां धृगतां गति बाजत है। सुरताल रसालजु छाजत है।
सननं सननं सननं नभ में। इकरूप अनेक जु धारि भ्रमें॥7॥
कई नारि सुबीन बजावत हैं। तुमरो जस उज्ज्वल गावत हैं।
करताल विषै करताल धरैं। सुरताल विशाल जुनाद करैं॥8॥
इन आदि अनेक उछाह भरी। सुरभक्ति करें प्रभुजी तुमरी।
तुमही जग जीवन के पितु हो। तुमही बिन कारनते हितु हो॥9॥
तुमही सब विघ्न विनाशन हो। तुमही निज आनंदभासन हो।
तुमही चितचिंतितदायक हो। जगमाहिं तुम्हीं सबलायक हो॥10॥
तुमरे पन मंगल माहिं सही। जिय उत्तम पुन्य लियो सबही।
हमको तुमरी शरणागत है। तुमरे गुन में मन पागल है॥11॥
प्रभु मोहिय आप सदा बसिये। जबलों वसु कर्म नहीं नसिये।
तबलों तुम ध्यान हिये वरतो। तबलों श्रुतचिंतन चित्त रतो॥12॥
तबलों व्रत चारित चाहतु हों। तबलों शुभभाव सुगाहतु हों।
तबलों सतसंगति नित्त रहो। तबलों मम संजम चित्त गहो॥13॥
जबलों नहिं नाश करों अरिको, शिव नारि वरों समता धरिको।
यह द्यो तबलों हमको जिनजी। हम जाचतु हैं इतनी सुनजो॥14॥
घत्तानंद :
श्रीवीर जिनेशा नमित सुरेशा, नाग नरेशा भगति भरा।
'वृंदावन' ध्यावै विघन नशावै बाँछित पावै शर्म वरा॥15॥
ॐ ह्रीं श्री वर्द्धमान जिनेन्द्राय महार्घं निर्वपामीति स्वाहा।
दोहा :
श्री सन्मति के जुगल पद, जो पूजैं धरि प्रीति।
वृंदावन सो चतुर नर, लहैं मुक्ति नवनीत॥
पुष्पांजलिं क्षिपामि ॥

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