No festivals today or in the next 14 days. 🎉

पोंगल 2025: पोंगल उत्सव का महत्व, अनुष्ठान, तिथि और मुहूर्त

पोंगल 2025 तिथि और मुहूर्त

पोंगल - मंगलवार, 14 जनवरी, 2025
थाई पोंगल संक्रांति क्षण - 09:03 पूर्वाह्न

पोंगल 2025

पोंगल दक्षिण भारत के राज्यों में मनाया जाने वाला एक अहम हिंदू पर्व है। उत्तर भारत में जब सूर्य देव उत्तरायण होते हैं तो मकर संक्रांति पर्व मनाया जाता है ठीक उसी प्रकार तमिलनाडु में पोंगल का त्यौहार धूमधाम से मनाया जाता है। पोंगल पर्व से ही तमिलनाडु में नव वर्ष का शुभारंभ होता है। पोंगल पर्व का इतिहास करीब एक हजार साल पुराना है। तमिलनाडु के अलावा श्रीलंका, कनाडा और अमेरिका समेत दुनिया के कई देशों में रहने वाले तमिल भाषी लोग इस पर्व को उत्साह के साथ मनाते हैं।

पोंगल का महत्व

पोंगल पर्व का मूल कृषि है। सौर पंचांग के अनुसार यह त्यौहार तमिल माह की पहली तारीख यानि 14 या 15 जनवरी को आता है। जनवरी तक तमिलनाडु में गन्ना और धान की फसल पक कर तैयार हो जाती। प्रकृति की असीम कृपा से खेतों में लहलहाती फसलों को देखकर किसान खुश हो जाते हैं और प्रकृति का आभार प्रकट करने के लिए इंद्र, सूर्य देव और पशु धन यानि गाय व बैल की पूजा करते हैं। पोंगल उत्सव करीब 3 से 4 दिन तक चलता है। इस दौरान घरों की साफ-सफाई और लिपाई-पुताई शुरू हो जाती है। मान्यता है कि तमिल भाषी लोग पोंगल के अवसर पर बुरी आदतों को त्याग करते हैं। इस परंपरा को पोही कहा जाता है।

पोंगल पर होने वाले धार्मिक कर्म कांड और अन्य आयोजन

1. पोंगल पर्व का पहला दिन देवराज इंद को समर्पित होता है इसे भोगी पोंगल कहते हैं। देवराज इंद वर्षा के लिए उत्तरदायी होते हैं इसलिए अच्छी बारिश के लिए उनकी पूजा की जाती है और खेतों में हरियाली व जीवन में समृद्धता की कामना की जाती है। इस दिन लोग घरों में पुराने हो चुके सामानों की होली जलाते हैं। इस दौरान महिलाएं और लड़कियां अग्नि के चारों ओर लोक गीत पर नृत्य करती हैं। इस परंपरा को भोगी मंटालू कहते हैं।
2. सूर्य के उत्तरायण होने के बाद दूसरे दिन सूर्य पोंगल पर्व मनाया जाता है। इस दिन पोंगल नाम की विशेष खीर बनाई जाती है। इस मौके पर लोग खुले आंगन में हल्दी की गांठ को पीले धागे में पिरोकर पीतल या मिट्टी की हांडी के ऊपर बांधकर उसमें चावल और दाल की खिचड़ी पकाते हैं। खिचड़ी में उबाल आने पर दूध और घी डाला जाता है। खिचड़ी में उबाल या उफान आना सुख और समृद्धि का प्रतीक है। पोंगल तैयार होने के बाद सूर्य देव की पूजा की जाती है। इस मौके पर लोग गाते-बजाते हुए एक-दूसरे की सुख-समृद्धि की कामना करते हैं।
3. पोंगल पर्व के तीसरे दिन यानि मात्तु पोंगल पर कृषि पशुओं जैसे गाय, बैल और सांड की पूजा की जाती है। इस मौके पर गाय और बैलों को सजाया जाता है और उनके सींगों को रंगकर उनकी पूजा की जाती है। इस दिन बैलों की रेस यानि जली कट्टू का आयोजन भी होता है। मात्तु पोंगल को केनू पोंगल के नाम से भी जाना जाता है। जिसमें बहनें अपने भाइयों की खुशहाली के लिए पूजा करती हैं।
4. चार दिवसीय पोंगल त्यौहार के आखिरी दिन कन्या पोंगल मनाया जाता है, इसे तिरुवल्लूर के नाम से भी जाना जाता है। इस दिन घर को फूलों से सजाया जाता है। दरवाजे पर आम और नारियल के पत्तों से तोरण बनाया जाता है। इस मौके पर महिलाएं आंगन में रंगोली बनाती हैं। चूंकि इस दिन पोंगल पर्व का समापन होता है इसलिए लोग एक-दूसरे को बधाई और मिठाई देते हैं।
यह त्यौहार मुख्य रूप से तमिलनाडु में मनाया जाता है लेकिन इस पर्व का आध्यात्मिक और धार्मिक महत्व मानव समुदाय के लिए बेहद अहम है। इस त्योहार पर गाय के दूध में उफान या उबाल को महत्व दिया जाता है । मान्यता है कि जिस तरह दूध का उबलना शुभ है ठीक उसी तरह हर मनुष्य का मन भी शुद्ध संस्कारों से उज्ज्वल होना चाहिए।

पोंगल के क्षेत्रीय नाम

कृषि प्रधान अर्थव्यवस्था होने के कारण पोंगल का त्यौहार भारत के विभिन्न भागों में अलग-अलग नामों से मनाया जाता है। फसल उत्सव को विभिन्न क्षेत्रों में निम्नलिखित नामों से मनाया जाता है:
उत्तर भारत में मकर संक्रांति
पंजाब में लोहड़ी
असम में भुगाली बिहू
महाराष्ट्र में हडगा उत्सव
बंगाल में पौष संक्रांति
गुजरात में उत्तरायण
अलग-अलग नामों से इस दिन से जुड़े उत्सवों के पीछे का अर्थ नहीं बदलता। यह त्यौहार बहुत उत्साह के साथ मनाया जाता है क्योंकि परिवार जीवन की कई आशीषों के लिए आभार व्यक्त करने के लिए एक साथ आते हैं।

पोंगल मनाने का ज्योतिषीय महत्व

ज्योतिष विज्ञान के अनुसार, यह त्यौहार शीतकालीन संक्रांति के अंत का संकेत देता है जिसका अर्थ है कि इस दिन से दिन लंबे होने लगते हैं। शीतकालीन संक्रांति के दौरान, सूर्य कम अवधि के लिए आकाश में रहता है जबकि रातें लंबी होती हैं। यह त्यौहार दिन के उजाले के लंबे घंटों की शुरुआत का प्रतीक है। इस प्रकार यह त्यौहार सूर्य की गर्मी का जश्न मनाता है जो बर्फ को पिघलाएगा और खिलते हुए वसंत का संकेत देगा।
इसके अलावा, इस दिन से सूर्य अपनी छह महीने लंबी उत्तर दिशा की यात्रा शुरू करता है, जिसे उत्तरायण भी कहा जाता है। यह तब होता है जब सूर्य मकर राशि में प्रवेश करता है। मकर राशि राशि चक्र प्रणाली में 10वां घर है और फसल उत्सव पर, सूर्य धनु राशि से 10वें घर में प्रवेश करता है।

Related Blogs

Narayaniyam Dashaka 75 (नारायणीयं दशक 75)

नारायणीयं दशक 75 भगवान नारायण की महिमा का वर्णन करता है और उनके आशीर्वाद की प्रार्थना करता है।
Narayaniyam-Dashaka

Bhagavad Gita seventh chapter (भगवद गीता सातवाँ अध्याय)

भगवद गीता सातवां अध्याय "ज्ञान-विज्ञान योग" के नाम से जाना जाता है। इसमें भगवान श्रीकृष्ण ज्ञान (सिद्धांत) और विज्ञान (व्यावहारिक अनुभव) के महत्व को समझाते हैं। वे कहते हैं कि सभी प्रकृति और जीव उनके ही अंश हैं। यह अध्याय "भक्ति", "ज्ञान", और "प्रकृति और पुरुष" के संबंध को विस्तार से समझाता है।
Bhagwat-Gita

Ekakshara Ganapati Kavacham (एकाक्षर गणपति कवचम्)

एकाक्षर गणपति कवचम्: एकाक्षर गणपति कवचम् भगवान गणेश की दिव्य उपस्थिति और सुरक्षा को बुलाने वाला एक शक्तिशाली कवच है। यह कवच एक अक्षर की शक्ति के साथ गणपति की महिमा को समाहित करता है, जो उनकी कृपा और संरक्षण प्रदान करता है। गणेश पूजा और एकाक्षर गणपति कवचम् का संगम: गणेश पूजा में एकाक्षर गणपति कवचम् का समावेश एक दिव्य संगति उत्पन्न करता है। यह पूजा में गणपति के आशीर्वाद और सुरक्षा ऊर्जा को आमंत्रित करने का प्रभावशाली माध्यम बनता है। इस कवच का पाठ गणपति की कृपा को प्राप्त करने का एक शक्तिशाली तरीका है, जिससे पूजा अधिक शुभ और फलदायक हो जाती है।
Kavacha

Shiv Stuti (शिव स्तुति)

Shiv Stuti (शिव स्तोत्र Shiva Stotra)Shiv Stuti, भगवान Shiva को समर्पित एक भक्तिमय hymn है, जो उनकी supreme power, grace, और destruction of evil के लिए गाया जाता है। हिंदू धर्म में भगवान शिव को Mahadev के रूप में जाना जाता है, जो creator और destroyer दोनों के रूप में कार्य करते हैं। Shiv Stotra में भगवान शिव के अनंत गुणों का वर्णन किया गया है, जो भक्तों को आध्यात्मिक शक्ति प्रदान करता है और जीवन में peace, prosperity और enlightenment लाने में सहायक होता है। यह स्तुति devotees के मन को शांत कर उनकी spiritual journey को सरल बनाती है। भगवान शिव की इस divine stotra का recitation करने से व्यक्ति के karmic obstacles दूर होते हैं और उसे divine blessings की प्राप्ति होती है।
Stuti

Kali Stuti (काली स्तुति)

Kali Stuti (काली स्तुति):काली स्तुति माँ काली को समर्पित है। माँ काली को माता के सभी रूपों में सबसे शक्तिशाली रूप माना जाता है। नियमित रूप से काली स्तुति का पाठ करने से भय दूर होता है, बुद्धिमत्ता प्राप्त होती है, शत्रुओं का नाश होता है, और सभी प्रकार के कष्ट अपने आप समाप्त हो जाते हैं। माँ काली केवल प्रधान ही नहीं, बल्कि महाविद्याओं में सबसे महत्वपूर्ण हैं। माँ काली महाविद्याओं का प्रतीक हैं। सभी नौ महाविद्याएँ माँ काली से उत्पन्न होती हैं और उनके गुणों व शक्तियों को विभिन्न रूपों में साझा करती हैं। माँ काली विनाश और संहार की प्रतीक हैं। वे अज्ञान को नष्ट करती हैं, संसार के नियमों को बनाए रखती हैं और जो भगवान के ज्ञान की खोज करते हैं, उन्हें आशीर्वाद देकर मुक्त करती हैं। माँ काली देवी दुर्गा के उग्र रूपों में से एक हैं और भगवान शिव की अर्धांगिनी हैं, जो हिंदू त्रिमूर्ति में संहारक हैं। माँ काली की विशिष्ट छवि में उनकी बाहर निकली हुई जीभ, खोपड़ियों की माला, और घातक हथियार होते हैं, जो दुष्ट और पापी लोगों में भय उत्पन्न करते हैं। हालांकि, माँ काली अपने भक्तों के प्रति अत्यंत दयालु और करुणामयी हैं। वे अपने भक्तों को सभी संकटों से बचाती हैं और उन्हें समृद्धि व सफलता प्रदान करती हैं। काली स्तुति का नियमित पाठ करने से साधक को भोग और मोक्ष की प्राप्ति होती है, आकर्षण शक्ति मिलती है, पाप नष्ट होते हैं, शत्रु समाप्त होते हैं, और साधक के भीतर एक विशेष ऊर्जा उत्पन्न होती है। वेदों में माँ काली को अग्नि देव से जोड़ा गया है। देवी को सात झिलमिलाती अग्नि की जीभों के रूप में वर्णित किया गया है, जिनमें से काली काली और भयानक जीभ थीं। उनका स्वरूप भयावह है: डरावनी आँखें, लाल उभरी हुई जीभ, और चार भुजाएँ – जिनमें से दो में खून से सनी तलवार और राक्षस का कटा हुआ सिर है, और बाकी दो भय निवारण और वरदान देने की मुद्रा में हैं। उनके गले में मानव खोपड़ियों की माला और कमर पर कटी हुई भुजाओं की कमरबंध है। माँ काली की स्तुति उनके भक्तों के लिए अत्यंत प्रिय है।
Stuti

Mahamrityunjaya Mantra (संपूर्ण महामृत्युंजय मंत्र)

महामृत्युंजय मंत्र का उल्लेख Rigveda से लेकर Yajurveda तक में मिलता है। वहीं Shiv Puran सहित अन्य scriptures में भी इसका importance बताया गया है। संस्कृत में महामृत्युंजय उस व्यक्ति को कहते हैं जो death को जीतने वाला हो। इसलिए Lord Shiva की स्तुति के लिए महामृत्युंजय मंत्र का chanting किया जाता है। इसके chanting से संसार के सभी sufferings से liberation मिलती है। ये मंत्र life-giving है। इससे vitality तो बढ़ती ही है साथ ही positivity बढ़ती है। महामृत्युंजय मंत्र के effect से हर तरह का fear और tension खत्म हो जाती है। Shiv Puran में उल्लेख किए गए इस मंत्र के chanting से आदि शंकराचार्य को भी life की प्राप्ति हुई थी।
Mantra

Tara Kavacha Mantra (तारा-कवच मंत्र )

तारा कवच मंत्र देवी तारा की दिव्य सुरक्षा प्राप्त करने के लिए एक शक्तिशाली मंत्र है। यह मंत्र भक्तों को नकारात्मक शक्तियों से बचाता है, मानसिक शांति प्रदान करता है और आध्यात्मिक उन्नति की ओर मार्गदर्शन करता है। तारा कवच मंत्र का जाप संकटों से मुक्ति और देवी तारा के आशीर्वाद की प्राप्ति के लिए किया जाता है।
Kavacha

Durga saptashati(दुर्गा सप्तशती) 10 Chapter (दसवाँ अध्याय)

दुर्गा सप्तशती एक हिन्दु धार्मिक ग्रन्थ है जिसमें राक्षस महिषासुर पर देवी दुर्गा की विजय का वर्णन है। दुर्गा सप्तशती को देवी महात्म्य, चण्डी पाठ के नाम से भी जाना जाता है। इसमें 700 श्लोक हैं, जिन्हें 13 अध्यायों में बाँटा गया है। दुर्गा सप्तशती का दशम अध्याय "शुम्भ वध" पर आधारित है।
Durga-Saptashati

Today Panchang

22 September 2025 (Monday)

Sunrise07:15 AM
Sunset05:43 PM
Moonrise03:00 PM
Moonset05:52 AM, Jan 12
Shaka Samvat1946 Krodhi
Vikram Samvat2081 Pingala