No festivals today or in the next 14 days. 🎉

भगवान शिवजी को ‘पशुपति’ और ‘त्रिपुरारि’ क्यों कहा जाता है?

जब शिवनंदन श्री कार्तिकेय स्वामी जिन्हें स्कन्द भी कहा जाता है ने तारकासुर का वध कर दिया तो उसके तीनों पुत्र तारकाक्ष, विद्युनमालि और कमलाकाक्ष ने उत्तम भोगों का परित्याग करके मेरूपर्वत की कन्दराओं में ब्रह्मा जी को प्रसन्न करने के लिए परम उग्र तपस्या आरम्भ की। तप से प्रसन्न होकर ब्रह्मा जी उनको वर देने के लिए प्रकट हुए।
ब्रह्म जी को साक्षात देखकर उन तीनों ने ब्रह्मा जी की स्तुति के पश्चात उनसे अजर अमर होने का वरदान माँगा। ब्रह्मा जी ने कहा की अमरत्व सबको नहीं मिल सकता, इस भूतल पर जो भी प्राणी जन्मा है अथवा जन्म लेगा वह अजर अमर नहीं हो सकता परंतु मैं तुम्हारी तपस्या से अत्यंत प्रसन्न हूँ , तुम अपने बल का आश्रय ले कर अपने मरण में किसी हेतु को माँग लो जिससे तुम्हारी मृत्यु से रक्षा हो जाए।
ऐसा सुन कर उन तीनों ने ब्रह्मा जी से कहा की अत्यंत बलशाली होने पर भी हमारे पास कोई ऐसा नगर या घर नहीं है, जहाँ हम शत्रुओं से सुरक्षित रह कर सुख पूर्वक निवास कर सकें, इसलिए आप हमारे लिए ऐसे तीन नगरों या ‘पुरों’ का निर्माण करवा दीजिए जो अत्यंत अद्भुत वैभव से सम्पन्न हो और देवता भी जिसका भेदन ना कर सकें। तारकाक्ष ने अपने लिए स्वर्णमय पुर को माँगा विद्युनमालि ने चाँदी के बने हुए पुर की इच्छा की और कमलाकक्ष ने अपने लिए कठोर लोहे बना हुआ बड़ा पुर माँगा।
उन तीनों के ऐसे वचन सुन कर ब्रह्मा जी ने महामायावी मय को तारकाक्ष, विद्युनमालि और कमलकाक्ष के लिए क्रमशः सोने, चाँदी और लोहे के उत्तम दुर्ग तैयार किए और इन तीनों को उनके हवाले करके स्वयं भी उन्ही में प्रवेश कर गया।
असुरों के हित में तत्पर रहने वाले मय ने अत्यंत सुंदर वैभव से परिपूर्ण नगरों का निर्माण किया और उनमे सिद्धरस रूपी अमृत के कुओं की भी स्थापना कर दी। उन तीनों पुरों मे प्रवेश करके वो तीनों तारकासुर पुत्र तीनों लोकों को बाधित करने लगे। उन्होंने इंद्र सही सभी देवताओं को परास्त कर दिया और तीनों लोकों और मुनिश्वरों को अपने अधीन कर सारे जगत को उत्पीडित करने लगे।
तारक पुत्रों के ताप से दग्ध हुए इंद्र सहित सभी देवता महादेव की शरण में आए और उनसे त्रिपुरा निवासी दैत्यों से जगत की सुरक्षा करने की प्रार्थना की । महादेव ने सभी देवताओं से कहा कि त्रिपुराधीष और त्रिपुरा निवासी पूजा, तप आदि से महान पुण्य कार्यों में लगे हुए हैं और ऐसा नियम है की पुण्यात्माओं पर विद्वानो को प्रहार नहीं करना चाहिए, मैं देवताओं के कष्ट को जानता हूँ परन्तु वो दैत्य भी पुण्यकर्मों से अत्यंत बलशाली हैं। जब तक तारक पुत्र वेदिक धर्म के आश्रित हैं, सब देवता मिलकर भी उनका वध नहीं कर सकते इसलिए तुम सब विष्णु की शरण में जाओ।
श्री विष्णु भगवान की माया से समस्त दैत्य वेदिक धर्म से विमुख हो गए, सम्पूर्ण स्त्री-पुरुष धर्म का विनाश होने के साथ ही तीनों पुरों में दुराचार और अधर्म का विस्तार हो गया। तारकाक्ष, विद्युनमालि और कमलकाक्ष ने भी समस्त धर्मों का परित्याग कर दिया।
तत्पश्चात, भगवान शिव ने अपने धनुष पर बाण चढ़ा कर उन तीनों पुरों पर छोड़ दिया। उनके उस बाण से सूर्यमंडल से निकलने वाली किरणो के समान अन्य बहुत से बाण निकले जिनसे उन पुरों का दिखना बंद हो गया और समस्त पुरवासी और पुराधीष भी निशप्राण हो कर गिर गए। सभी पुर वासियों और तारकक्ष, विद्युनमालि और कमलाकक्ष को मृत देख कर मय ने उन सब दैत्यों को उठा कर अमृत के कुओं में डाल दिया। अमृत स्पर्श होते ही सभी असुरों का शरीर अत्यंत तेजस्वी और वज्र के समान सुदृढ़ हो गया और महादेव और असुरों में पुनः भयंकर युद्ध छिड़ गया।
यह देख कर भगवान विष्णु ने गौ का रूप धारण किया, ब्रह्मा जी बछड़ा बने और अन्य देवताओं ने पशुओं का रूप बना कर महादेव जी की उपासना करके उनको नमस्कार किया तथा तीनों पुरों में जाकर उस सिद्धरस के कुएँ का सारा अमृत पी गए। इसके बाद श्री विष्णु भगवान ने अपनी समस्त शक्तियों द्वारा भगवान शंकर के युद्ध की सामग्री तैयार की।
धर्म से रथ, ज्ञान से सारथी, वैराग्य से ध्वजा, तपस्या से धनुष, विद्या से कवच, क्रिया से बाण और अपनी समस्त शक्तियों से अन्य वस्तुओं का निर्माण किया। भगवान शंकर ने उस दिव्य रथ पर सवार हो कर धनुष बाण धारण किया तथा अभिजीत मुहूर्त में बाण चला कर उन तीनों दुर्भेध पुरों को भस्म कर दिया। उन तीनों पुरों के भस्म होते ही स्वर्ग में दुंदुभियाँ बजने लगी और देवता, ऋषि, पितर और सिध्देश्वर आनंद से जय जय कार करते हुए पुष्पों की वर्षा करने लगे।
क्योंकि पशु रूप में समस्त देवताओं ने अपने अधिपति के रूप में शिवजी की उपासना की इसलिए महादेव को ‘पशुपति’ भी कहा जाता है और उन तीनों पुरों को भस्म करने के कारण स्वरूप भगवान शंकर ‘त्रिपुरारि’ भी कहलाये।
“ब्रह्मा मुरारी त्रिपुरांतकारी
भानु शशि भूमि सुतो बुधश्च
गुरुश्च शुक्रः शनि राहु केतवः
सर्वे ग्रहाः शान्ति करा भवन्तु।”
।। ॐ नमो भगवते वसुदेवाय:।।
(संदर्भ – शिवपुराण तथा श्री मदभागवत महापुराण)

Related Blogs

Shri Hari Sharanashtakam (श्री हरि शरणाष्टकम् )

Hari Sharan Ashtakam (हरि शरण अष्टकम): हरी शरण अष्टकम Lord Hari या Mahavishnu को समर्पित एक Ashtakam है। Mahabharata के Vishnu Sahasranama Stotra में "Hari" नाम Vishnu का 650वां नाम है। संस्कृत शब्द 'Sharanam' का अर्थ है Shelter। यह मंत्र हमें Hari's Shelter में लाने की प्रार्थना करता है, जो Place of Refuge है। Hari's Protection का आशीर्वाद सभी Anxieties को दूर कर देता है। Hari Sharan Ashtakam Stotra Prahlad द्वारा Lord Hari की Praise में रचित और गाया गया था। यह प्रार्थना Vishnu को Hari के रूप में समर्पित है। Hari का अर्थ है वह जो आपको True Path दिखाते हैं और उस Illusion (Maya) को दूर करते हैं जिसमें आप जी रहे हैं। यदि इस Stotra का सच्चे मन और Devotion के साथ पाठ किया जाए, तो यह व्यक्ति को Moksha (Ultimate Liberation) के मार्ग पर स्थापित कर सकता है। Hari Vedas, Guru Granth Sahib, और South Asian Sacred Texts में Supreme Absolute का एक नाम है। Rigveda's Purusha Suktam (जो Supreme Cosmic Being की Praise करता है), में Hari God (Brahman) का पहला और सबसे महत्वपूर्ण नाम है। Yajurveda's Narayan Suktam के अनुसार, Hari और Purusha के बाद Supreme Being का वैकल्पिक नाम Narayan है। Hindu Tradition में, Hari और Vishnu को एक-दूसरे के समान माना जाता है। Vedas में, किसी भी Recitation के पहले "Hari Om" Mantra का उच्चारण करने का नियम है, ताकि यह घोषित किया जा सके कि हर Ritual उस Supreme Divine को समर्पित है, भले ही वह किसी भी Demi-God की Praise क्यों न हो। Hinduism में, किसी भी God's Praise Song को "Hari Kirtan" कहा जाता है और Storytelling को "Hari Katha" के रूप में जाना जाता है।
Ashtakam

Ganesha Mahima Stotram (गणेश महिम्ना स्तोत्रम्)

गणेश महिम्ना स्तोत्रम्: यह स्तोत्र भगवान गणेश की महिमा का गुणगान करता है।
Stotra

Surya Stuti (सूर्य स्तुति)

Surya Stuti भगवान Surya (Sun God) की महिमा का वर्णन है, जो "Giver of Life" और "Source of Energy" के रूप में पूजित हैं। इस स्तुति का पाठ स्वास्थ्य, ऊर्जा और सकारात्मकता प्राप्त करने के लिए किया जाता है। भगवान सूर्य को "Lord of Light" और "Healer of Diseases" के रूप में मान्यता दी गई है, जो अज्ञानता और अंधकार को दूर करते हैं। यह स्तुति "Solar Energy Prayer" और "Health and Vitality Hymn" के रूप में प्रसिद्ध है। इसके नियमित पाठ से मानसिक शांति, शक्ति और आत्मविश्वास प्राप्त होता है। Surya Stuti को "Sun God Devotional Chant" और "Morning Prayer for Energy" के रूप में पढ़ने से जीवन में सफलता और सकारात्मक ऊर्जा का प्रवाह होता है।
Stuti

Uma Maheshwar Stotram (उमा महेश्वर स्तोत्रम्)

उमा महेश्वर स्तोत्रम् भगवान शिव और माता पार्वती की संयुक्त महिमा का वर्णन करता है। इसमें उमा (पार्वती) और महेश्वर (शिव) के दिव्य स्वरूप, उनकी करूणा, और उनकी शक्ति की स्तुति की गई है। यह स्तोत्र दर्शाता है कि शिव और शक्ति का मिलन सृष्टि के संतुलन और हर जीव के कल्याण का आधार है। कैलाश पर्वत पर निवास करने वाले इस दिव्य युगल का स्मरण जीवन के संकटों को दूर करता है और भक्तों को सुख, शांति, और समृद्धि प्रदान करता है। यह स्तोत्र कृष्णपक्ष और शुक्लपक्ष की पूजाओं में विशेष रूप से फलदायी माना जाता है। शिव और पार्वती के इस अद्वितीय स्वरूप की आराधना से जीवन में आध्यात्मिक संतुलन और सांसारिक सफलता का आशीर्वाद प्राप्त होता है।
Stotra

Gita Govindam dvitiyah sargah - Aklesh Keshavah (गीतगोविन्दं द्वितीयः सर्गः - अक्लेश केशवः)

गीतगोविन्दं के द्वितीय सर्ग में अक्लेश केशव का वर्णन किया गया है। यह खंड राधा और कृष्ण के बीच की दूरी और उनकी पुनर्मिलन की कहानी को दर्शाता है।
Gita-Govindam

Narayaniyam Dashaka 63 (नारायणीयं दशक 63)

नारायणीयं दशक 63 भगवान नारायण की अनंत महिमा और उनके दिव्य गुणों का गुणगान करता है।
Narayaniyam-Dashaka

Shri Venkateswara Prapatti (श्री वेङ्कटेश्वर प्रपत्ति)

श्री वेङ्कटेश्वर प्रपत्ति भगवान वेंकटेश्वर को समर्पित एक प्रार्थना है, जो भक्तों को शरणागति और भक्ति का अनुभव कराती है।
MahaMantra

Sudarshan Shatkam (सुदर्शन षट्कम्)

सुदर्शन षट्कम् भगवान विष्णु के सुदर्शन चक्र की महिमा और उसकी शक्तियों का वर्णन करता है।
Shatakam

Today Panchang

22 September 2025 (Monday)

Sunrise07:15 AM
Sunset05:43 PM
Moonrise03:00 PM
Moonset05:52 AM, Jan 12
Shaka Samvat1946 Krodhi
Vikram Samvat2081 Pingala