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3 वर्षों बाद रामनवमी पर बनेगा दुर्लभ 'रविपुष्य योग' का महासंयोग

Ram Navami 2025 Date & Rare Ravi Pushya Yoga
हमारे Sanatan Dharma (सनातन धर्म) में कुछ पर्व एवं Hindu Festivals अत्यंत महत्वपूर्ण होते हैं, जैसे Maha Shivratri, Shri Krishna Janmashtami, Shri Ram Navami, Durga Ashtami आदि। यदि इन महत्वपूर्ण पर्वों पर कोई Shubh Yoga (Auspicious Yoga) बन जाए, तो यह संयोग और भी Rare & Highly Auspicious हो जाता है।
इस वर्ष, Shri Ram Navami पर एक Rare Planetary Alignment बनने जा रहा है, जो 13 Years After (13 वर्षों बाद) आया है। Ram Navami 2025 का शुभ पर्व Chaitra Shukla Navami (06 April 2025) को मनाया जाएगा।
जैसा कि विदित है, Lord Ram Birth Anniversary के शुभ अवसर पर, Shri Ram Avatar (प्रभु श्रीराम का प्राकट्य) हुआ था। Pushya Nakshatra (Pusya Star) को Jyotish Shastra (Vedic Astrology) में अत्यंत शुभ माना गया है, और Lord Ram का जन्म इसी नक्षत्र में हुआ था।
जब Pushya Nakshatra Thursday (गुरुवार) या Sunday (रविवार) को आता है, तो यह Guru Pushya & Ravi Pushya Yoga बनाता है, जो Highly Sacred & Powerful Yogas माने जाते हैं।
इस वर्ष 13 वर्षों बाद, Ram Navami 2025 पर Ravi Pushya Nakshatra का शुभ संयोग 12:00 PM (अपरान्ह 12 बजे) रहेगा। यह Highly Auspicious Yog (शुभ योग), Ram Navami’s Spiritual Energy को Infinitely Multiplied कर देगा।
इस Rare Ravi Pushya Nakshatra Yoga की शुरुआत 06 April 2025 को Morning 05:33 AM से होगी और पूरे दिन प्रभावी रहेगा। इससे पहले यह Auspicious Alignment वर्ष 2012 में बना था। हालांकि, वर्ष 2019 में भी Ravi Pushya Yoga था, लेकिन वह मात्र 07:40 AM तक था, और Lord Ram’s Birth Time (12:00 PM) तक उपस्थित नहीं था। इसलिए, यह सिद्ध होता है कि यह Rare & Sacred Conjunction 13 Years Later पुनः बन रहा है।

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घंटामंडितपादपद्मयुगलां नागेंद्रकुंभस्तनीम् । इंद्राक्षीं परिचिंतयामि मनसा कल्पोक्तसिद्धिप्रदाम् ॥ 1 ॥ इंद्राक्षीं द्विभुजां देवीं पीतवस्त्रद्वयान्विताम् । वामहस्ते वज्रधरां दक्षिणेन वरप्रदाम् ॥ इंद्राक्षीं सहयुवतीं नानालंकारभूषिताम् । प्रसन्नवदनांभोजामप्सरोगणसेविताम् ॥ 2 ॥ द्विभुजां सौम्यवदानां पाशांकुशधरां पराम् । त्रैलोक्यमोहिनीं देवीं इंद्राक्षी नाम कीर्तिताम् ॥ 3 ॥ पीतांबरां वज्रधरैकहस्तां नानाविधालंकरणां प्रसन्नाम् । त्वामप्सरस्सेवितपादपद्मां इंद्राक्षीं वंदे शिवधर्मपत्नीम् ॥ 4 ॥ पंचपूजा लं पृथिव्यात्मिकायै गंधं समर्पयामि । हं आकाशात्मिकायै पुष्पैः पूजयामि । यं वाय्वात्मिकायै धूपमाघ्रापयामि । रं अग्न्यात्मिकायै दीपं दर्शयामि । वं अमृतात्मिकायै अमृतं महानैवेद्यं निवेदयामि । सं सर्वात्मिकायै सर्वोपचारपूजां समर्पयामि ॥ दिग्देवता रक्ष इंद्र उवाच । इंद्राक्षी पूर्वतः पातु पात्वाग्नेय्यां तथेश्वरी । कौमारी दक्षिणे पातु नैरृत्यां पातु पार्वती ॥ 1 ॥ वाराही पश्चिमे पातु वायव्ये नारसिंह्यपि । उदीच्यां कालरात्री मां ऐशान्यां सर्वशक्तयः ॥ 2 ॥ भैरव्योर्ध्वं सदा पातु पात्वधो वैष्णवी तथा । एवं दशदिशो रक्षेत्सर्वदा भुवनेश्वरी ॥ 3 ॥ ॐ ह्रीं श्रीं इंद्राक्ष्यै नमः । स्तोत्रं इंद्राक्षी नाम सा देवी देवतैस्समुदाहृता । गौरी शाकंभरी देवी दुर्गानाम्नीति विश्रुता ॥ 1 ॥ नित्यानंदी निराहारी निष्कलायै नमोऽस्तु ते । कात्यायनी महादेवी चंद्रघंटा महातपाः ॥ 2 ॥ सावित्री सा च गायत्री ब्रह्माणी ब्रह्मवादिनी । नारायणी भद्रकाली रुद्राणी कृष्णपिंगला ॥ 3 ॥ अग्निज्वाला रौद्रमुखी कालरात्री तपस्विनी । मेघस्वना सहस्राक्षी विकटांगी (विकारांगी) जडोदरी ॥ 4 ॥ महोदरी मुक्तकेशी घोररूपा महाबला । अजिता भद्रदाऽनंता रोगहंत्री शिवप्रिया ॥ 5 ॥ शिवदूती कराली च प्रत्यक्षपरमेश्वरी । इंद्राणी इंद्ररूपा च इंद्रशक्तिःपरायणी ॥ 6 ॥ सदा सम्मोहिनी देवी सुंदरी भुवनेश्वरी । एकाक्षरी परा ब्राह्मी स्थूलसूक्ष्मप्रवर्धनी ॥ 7 ॥ रक्षाकरी रक्तदंता रक्तमाल्यांबरा परा । महिषासुरसंहर्त्री चामुंडा सप्तमातृका ॥ 8 ॥ वाराही नारसिंही च भीमा भैरववादिनी । श्रुतिस्स्मृतिर्धृतिर्मेधा विद्यालक्ष्मीस्सरस्वती ॥ 9 ॥ अनंता विजयाऽपर्णा मानसोक्तापराजिता । भवानी पार्वती दुर्गा हैमवत्यंबिका शिवा ॥ 10 ॥ शिवा भवानी रुद्राणी शंकरार्धशरीरिणी । ऐरावतगजारूढा 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कामिनी स्तंभिनी मोहिनी वशंकरी कुक्षिरोग शिरोरोग नेत्ररोग क्षयापस्मार कुष्ठादि महारोगनिवारिणी मम सर्वरोगं नाशय नाशय ह्रां ह्रीं ह्रूं ह्रैं ह्रौं ह्रः हुं फट् स्वाहा ॥ 24 ॥ ॐ नमो भगवती माहेश्वरी महाचिंतामणी दुर्गे सकलसिद्धेश्वरी सकलजनमनोहारिणी कालकालरात्री महाघोररूपे प्रतिहतविश्वरूपिणी मधुसूदनी महाविष्णुस्वरूपिणी शिरश्शूल कटिशूल अंगशूल पार्श्वशूल नेत्रशूल कर्णशूल पक्षशूल पांडुरोग कामारादीन् संहर संहर नाशय नाशय वैष्णवी ब्रह्मास्त्रेण विष्णुचक्रेण रुद्रशूलेन यमदंडेन वरुणपाशेन वासववज्रेण सर्वानरीं भंजय भंजय राजयक्ष्म क्षयरोग तापज्वरनिवारिणी मम सर्वज्वरं नाशय नाशय य र ल व श ष स ह सर्वग्रहान् तापय तापय संहर संहर छेदय छेदय उच्चाटय उच्चाटय ह्रां ह्रीं ह्रूं फट् स्वाहा ॥ 25 ॥ उत्तरन्यासः करन्यासः इंद्राक्ष्यै अंगुष्ठाभ्यां नमः । महालक्ष्म्यै तर्जनीभ्यां नमः । महेश्वर्यै मध्यमाभ्यां नमः । अंबुजाक्ष्यै अनामिकाभ्यां नमः । कात्यायन्यै कनिष्ठिकाभ्यां नमः । कौमार्यै करतलकरपृष्ठाभ्यां नमः । अंगन्यासः इंद्राक्ष्यै हृदयाय नमः । महालक्ष्म्यै शिरसे स्वाहा । महेश्वर्यै शिखायै वषट् । अंबुजाक्ष्यै कवचाय हुम् । कात्यायन्यै नेत्रत्रयाय वौषट् । कौमार्यै अस्त्राय फट् । भूर्भुवस्सुवरोमिति दिग्विमोकः ॥ समर्पणं गुह्यादि गुह्य गोप्त्री त्वं गृहाणास्मत्कृतं जपम् । सिद्धिर्भवतु मे देवी त्वत्प्रसादान्मयि स्थिरान् ॥ 26 फलश्रुतिः नारायण उवाच । एतैर्नामशतैर्दिव्यैः स्तुता शक्रेण धीमता । आयुरारोग्यमैश्वर्यं अपमृत्युभयापहम् ॥ 27 ॥ क्षयापस्मारकुष्ठादि तापज्वरनिवारणम् । चोरव्याघ्रभयं तत्र शीतज्वरनिवारणम् ॥ 28 ॥ माहेश्वरमहामारी सर्वज्वरनिवारणम् । शीतपैत्तकवातादि सर्वरोगनिवारणम् ॥ 29 ॥ सन्निज्वरनिवारणं सर्वज्वरनिवारणम् । सर्वरोगनिवारणं सर्वमंगलवर्धनम् ॥ 30 ॥ शतमावर्तयेद्यस्तु मुच्यते व्याधिबंधनात् । आवर्तयन्सहस्रात्तु लभते वांछितं फलम् ॥ 31 ॥ एतत् स्तोत्रं महापुण्यं जपेदायुष्यवर्धनम् । विनाशाय च रोगाणामपमृत्युहराय च ॥ 32 ॥ द्विजैर्नित्यमिदं जप्यं भाग्यारोग्याभीप्सुभिः । नाभिमात्रजलेस्थित्वा सहस्रपरिसंख्यया ॥ 33 ॥ जपेत्स्तोत्रमिमं मंत्रं वाचां सिद्धिर्भवेत्ततः । अनेनविधिना भक्त्या मंत्रसिद्धिश्च जायते ॥ 34 ॥ संतुष्टा च भवेद्देवी प्रत्यक्षा संप्रजायते । सायं शतं पठेन्नित्यं षण्मासात्सिद्धिरुच्यते ॥ 35 ॥ 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