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आधुनिक विज्ञान और सनातनधर्म

आधुनिक विज्ञान और सनातनधर्म
लेख के प्रारम्भ में हम स्पष्ट करना चाहते है हैं कि लेख का उद्देश्य किसी व्यक्ति विशेष अथवा समुदाय की भावनाओं को आहत करना नाही है। ना ही हमारा उद्देश्य सनातन धर्म शास्त्रों के अतिरिक्त किसी भी ज्ञान का अनुमोदन करना है परंतु क्योंकि प्रश्न धर्म की आस्था और सिद्धांतों पर उठाया गया है, हम सनातन धर्म और विज्ञान के सम्बंध को उजागर कर रहे हैं।
वर्तमान समय में समस्त संसार में विज्ञान का प्रभाव है । प्रकृति के अनेक चमत्कारों को विज्ञान के सिद्धांतों के रूप में स्थापित करने के कारण मनुष्यों का विश्वास विज्ञान के सिद्धांतों पर अत्यधिक बढ़ गया है। यहाँ तक कि आस्था तथा धर्म द्वारा स्थापित धारणाओं को भी विज्ञान के सिद्धांतों पर परखने की कोशिश की जाती है । परंतु विज्ञान के सिद्धांतों पर कोई सवाल नही उठाया जाता क्योंकि पाठ्यक्रम में यही पढ़ाया जाता है और यही सब पढ़ कर धर्म की धारणाओं पर सवाल उठाना आधुनिकता का प्रतीक माना जाता है।
परंतु विज्ञान की भी अपनी सीमाएँ हैं। विज्ञान ‘कैसे’ (how) के सिवाय ‘क्यो’ (why) का उत्तर एक सीमा तक ही दे सकता है । उस सीमा तक पहुँचने के पश्चात प्रकृतिके नियम (Law of nature) का बहाना बना कर प्रश्नो को सीमीत कर दिया जाता है । ऐसे चमत्कार ‘क्यों’ होते है, कौन सी अदृश्य, अलोकिक शक्ति कारण रूप से सबके भीतर निहित रह कर प्रकृति के नियमों को निर्धारित करती है, इसका पता विज्ञान अभी तक नही लगा पाया। परंतु अध्यात्मशास्त्र (Philosophy) को यह ज्ञान प्राप्त है । स्थूल सूक्ष्म प्रकृति की लीला को विज्ञान और कारण प्रकृति के अलौकिक रहस्यको अध्यात्मविद्या प्रकट करती है ।
सनातन धर्म मे ‘विज्ञान’ शब्द के अनेक प्रकार के लक्षण ओर अर्थ बताए गये हैं । उपनिषदादि शास्त्रों में अनुभवगम्य विद्या तथा पराविद्याके अर्थमें ‘विज्ञान’ शब्दका प्रयोग इस प्रकार देखने में आता है:
‘विज्ञानमानन्दं ब्रह्म’ – बृहदारण्यक्र उपनिषद ।।
‘विज्ञानसारथिर्यस्तु मनः प्रग्रहवान् नरः’ – कठोपनिषत् ।
‘विज्ञार्न प्रज्ञानम्’ – ऐतरेय आरण्यक ।
‘विज्ञानेन वा ऋग्वेद विजानाति’ – छान्दोग्य उपनिषद ।
‘श्रज्ञानेनाष्टृतं लोकं विज्ञानं तेन मुह्यति’ ।
‘विज्ञार्न निर्मल सूक्ष्र्म निर्विकल्पं यदव्ययम्। – कूर्म पुराण द्वितीय अध्याय ।
इन प्रकार सनातन धर्म में ‘विज्ञान’ शब्द का प्रयोग आत्मोपलब्धिमूलक ज्ञान, वर्तमान से अतीत शुद्ध निर्विकल्प ज्ञान यही अर्थ प्रतिपादित किया गया है। ‘ज्ञान तेऽहं सविश्ञानमिव वह्न्यायशेपतः’ ( गीता ७।२ ) ऐसा कह कर श्रीभगवान ने गीतामें अनुभवात्मक ज्ञान को ही ‘विज्ञान’ कहा है । अत: स्थूल और सूक्ष्म दोनों अर्थों में ही ‘विज्ञान’ शब्द का प्रयोग होता है यह स्पष्ट है परंतु वर्तमान समय में लोग केवल पाश्चात्य विज्ञान में ही विज्ञान की परिभाषा को सीमित करते हैं।
Herbert Spencer (27 April 1820 – 8 December 1903) an English philosopher, biologist anthropologist, sociologist and prominent classical liberal political theorist of the Victorian era has said
Science is partially unified knowledge and philosophy is completely unified knowledge ‘
अर्थात विज्ञान एक असम्पूर्ण ज्ञान है परंतु पूर्ण ज्ञान करानेवाला दर्शन शास्त्र ही है।
इसी प्रकार प्रख्यात वैज्ञानिक John Tyndall whose initial scientific fame arose in the 1850s from his study of diamagnetism and later he made discoveries in the realms of infrared radiation and the physical properties of air has said:
Science understands much of the intermediate phase of things that we call nature, of which it is the product, but science knows nothing of the origin or destiny of nature Who or what made the sun and gave his rays their alleged power ? Who of what made and bestowed upon the ultimate particles of matter their wondrous power of varied interaction ? Science does not know the mystery, though pushed back, remains unaltered (Fragments of Science Vol II )
अर्थात प्रकृति के कुछ हिस्सों को विज्ञान प्रकट कर सकता है, परंतु प्रकृति के आदि अनंत का विज्ञान को कोई ज्ञान नही है। सूर्य कैसे और किसने उत्पन्न किया। सूर्य की किरणो को असीम शक्ति किसने दी । अणु परमाणुओं को किसने बनाया और उनको अद्भुत असीम शक्ति किसने दी , यह सब प्रश्न विज्ञान में अनुत्तरित है। कुछ वैज्ञानिकों ने कुछ निष्कर्ष निकाला है परंतु यथार्थ से वह अभी भी दूर है। केवल ऐसा हो सकता है पर विचार किया गया है।
इसी प्रकार Herbert Spencer ने भी विज्ञान और धर्म के विषय में कहा है- if the religion and science are to be reconciled, the basis of reconciliation must be this deepest, widest and certain of all facts – that the power that the universe manifests to us is utterly inscrutable.
धर्म और विज्ञान यदि इन दोनोकी यदि एकता करनी ही तो एकता का यह स्तर होना होनी चाहिये कि समस्त विश्व मे गूढ़ रूपसे निहित और समस्त विश्वमे प्रकाशमान समस्त विश्वके हेतुभूत कारण शक्ति को हम जान ही नही सकते । अर्थात इस शक्ति को जानना विज्ञान के बस से बाहर है, इसका वर्णन केवल धर्म ही कर सकता है।
पश्चिम देशों में केवल विज्ञान का ही प्रचार हुआ है, अध्यात्मविद्या या धर्म का नही । धर्म के नाम पर पाश्चात्य संस्कृति केवल एक ही पुस्तक का अनुमोदन करती है। परंतु सनातन धर्म में प्राचीन महर्षियो ने विज्ञान तथा अध्यात्मविद्या दोनो का प्रसार किया। इसी कारण सनातन धर्म शास्त्रों में लौकिक प्रकृतिराज्य तथा अलौकिक ब्रह्मराज्य दोनो का तत्व ज्ञान निरूपण उत्तम तथा पूर्ण रीतिसे किया जा सका है। आयुर्वेद, चिकित्साशास्त्र तथा वेदोक्त मंत्र इसके स्पष्ट प्रमाण हैं।
इस आधार पर परखा जाए तो केवल सनातनधर्म ही पूर्ण विज्ञानानुकूल (Scientific) धर्म है। क्योकि यह कोई दस-बीस नियमो से बना हुआ ‘ सम्प्रदाय’ या ‘मजहव’ नही है l इसके अनन्त नियम हैं। जीव जगत में जन्म लेकर परमात्मा मे लीन होने तक क्रमोन्नति के पथ मे चलनेके लिये मनुष्य अनेक जन्मों मे स्वभावतः जिन नियमोका आश्रय करता है, उन सभी को सनातन धर्म समाविष्ट करता है। ये नियम प्रकृति के निम्नस्तर में कुछ और है, मध्यस्तर मे कुछ और है और उच्च, उच्चतर, उच्चतम स्तरो मे कुछ विशेष ही होते है। ये सब प्रकृतिक नियम है और विज्ञान भी प्रकृति भी के नियम को ( Law of nature ) ही व्यक्त करता है । अतः सनातन धर्म विज्ञान अनुमोदित धर्म है । इसका प्रत्यक्ष प्रमाण विश्व भर में आयुर्वेद, चिकित्सा शास्त्र और योग की धूम है।
अतः उपरोक्त वर्णन से स्पष्ट प्रमाणित होता है कि विज्ञान धर्म से भिन्न या विपरीत नही है, किन्तु उसके एक अंश का प्रकाशक मात्र है।
प्रकृतिके स्थूल, सूक्ष्म, कारण और तुरीय ये चार विभाग होते है। इनमेंसे स्थूल विभाग का और सूक्ष्मके कुछ अंशका प्रकाशन विज्ञान के द्वारा होता है । बाकी सूक्ष्म, कारण, तुरीय इन तीनोंका प्रकाश करनेवाला अध्यात्मज्ञान या धर्म है।
जहां पर प्रकृति पुरुष मे विलीन है और पुरुषसे उसकी भिन्नना प्रतीत नही होती है, उसका नाम तुरीय दशा है।
जहां पर प्रकृति पुरुपकी शक्तिको पाकर ब्रह्मा-विष्णु-रुद्र क्रमसे अनन्तविश्वकी जननी वनती है वह उसकी कारण दशा है
सूक्ष्मदशामे विविध दैवीशक्ति, विद्युत्शक्ति आदि रूपसे प्रकृतिका कार्य देखनेमे आता है।
इनमे से केवल विद्युत् शक्ति आदिके कार्य का पता विज्ञान को लगा है। पृथ्वी की अन्य शक्ति कैसे कार्य करती है वह विज्ञान बता सकता है किन्तु किस अचिन्त्य मौलिक शक्तिके प्रभावसे, क्यो इस प्रकारसे कार्य करती है, वह विज्ञान बताने में असमर्थ है। इसी कारण हमने कहा है कि सनातनधर्म आधुनिक विज्ञानसे विपरीत नही है। आधुनिक विज्ञान उसके एक अंशका प्रतिपादक है, वह एक अंश तथा प्रकृतिके अन्य तीन अंश और प्रकृति में विराजमान सत्-चित्-आनन्दरूप परमात्मा सभीका प्रतिपादक, पथभदर्शक श्रीसनातनधर्म है ।
इसी प्रकारसे आधुनिक विज्ञान और सनातनधर्म का चिरन्तन सम्बन्ध सिद्ध किया गया है और इस तथ्य को पश्चिम देश के विद्वानो ने स्वीकार भी किया है ।
” Religion and science are necessary co relatives. They stand respectively for those two antithetical modes of consciousness which cannot exists as under. – Spenser
धर्म और विज्ञान के भीतर आवश्यक सम्बंध विद्यमान है, वे याथक्रम ऐसी दो अनुभूति के उपाय रूप में रहते हैं जिनको प्रथक करना असम्भव है।
Science is a part of Religion, both astronomy and medicines received their first impulse from the evgencies of religious worship. The laws of phonetics were investigated because the wrath of the gods followed the wrong pronounciation of a single letter of the sacrificial formulas. Grammar and etymology had the task of securing the right understanding of the holy texts. Geometry was developed in India from the rules for the construction of alters.
Spencer’s Principles of Sociology Vol III
विज्ञान धर्म के एक अंश का प्रतिपादक है । ज्योतिष शास्त्रशास्त्र और चिकित्साशास्त्र रूपी दोनो की उत्पत्ति धार्मिक पूजा से ही है । ध्वनि विज्ञान की उत्पतिका कारण वैदिक यज्ञ मे वेद मन्त्र का ग़लत उच्चारण करके भगवान के क्रोध से बचना था । व्याकरण आदि शब्दशास्त्र धार्मिक पुस्तको के यथार्थ ज्ञान को व्याखित कराने के लिये ही बनाए गए हैं। यज्ञअधि निर्माणके नियमो के आधार पर ही जयमिति या रेखा गणित नामक विज्ञान शास्त्रकी उन्नति हुई है।
इस प्रकार पश्चिमी वैज्ञानिकों, विद्वानो ने भी विज्ञान को धर्म का एक अंश मात्र ही बताया है जिसकी व्याख्या वैज्ञानिक सिद्धांत करने में असमर्थ है उसकी व्याख्या धार्मिक अवधारणाएँ या सिद्धांत अत्यंत सरलता से कर सकते हैं।
आशा है की उपरोक्त लेख से विज्ञान से प्रेरित होकर धर्म पर प्रश्न उठाने वालों को कुछ सीख मिलेगी तथा धर्म से विपरीत प्रश्नो को कुछ विराम मिलेगा।
।।ॐ नमो भगवते वसुदेवाय:।।

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