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भीष्म अष्टमी व्रत कब और कैसे किया जाता है, जानें पर्व के शुभ मुहूर्त, महत्व और पूजा विधि

Bhishma Ashtami Puja:- भीष्म अष्टमी को Bhishma Tarpan Divas के रूप में भी जाना जाता है। यह दिन Bhishma Pitamah को समर्पित है, जिन्होंने Mahabharata War में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। अत: इस दिन को Bhishma Tarpan Day के रूप में विशेष तौर पर मनाया जाता है। इस दिन Pitru Tarpan करने से उन्हें शांति मिलती है और उनका आशीर्वाद प्राप्त होता है।
Bhishma Ashtami Date and Significance
Bhishma Ashtami 2025: प्रतिवर्ष Magha Month Shukla Paksha Ashtami Tithi को Bhishma Ashtami Festival मनाया जाता है। यह दिन Bhishma Tarpan Day के रूप में मनाया जाता है, जो कि हर साल Magha Month Shukla Paksha Ashtami तिथि पर पड़ता है।
धार्मिक मान्यता के अनुसार इस दिन विशेषकर Bhishma Pitamah तथा Pitrus का तर्पण किया जाता है। यह दिन Mahabharata Warrior Bhishma Pitamah को समर्पित है। इस दिन Charity and Punya करने का भी विशेष महत्व है। धर्मग्रंथों के अनुसार, इसी तिथि पर Bhishma Pitamah Death Anniversary मनाई जाती है और उन्हें Ichha Mrityu Vardaan प्राप्त था। अत: इसे Bhishma Ashtami Festival के तौर पर मनाया जाता है।
Bhishma Ashtami 2025 Date & Muhurat
वर्ष 2025 में यह तिथि 05 फरवरी, बुधवार को पड़ रही है। मान्यतानुसार इस दिन Pitru Tarpan Rituals करने से पितरों को शांति मिलती है। कहा जाता है कि Bhishma Pitamah, अपने पिता की आज्ञा का पालन करते हुए आजीवन Brahmacharya Vrat में रहे। इसलिए उन्हें Pitru Bhakt माना जाता है। अत: इस दिन Bhishma Pitamah Tarpan करने से Pitru Rina Mukti मिलती है। यह दिन Great Warrior of Mahabharata Bhishma Pitamah को समर्पित है।
Bhishma Ashtami 2025 Puja Muhurat
Bhishma Ashtami: 5th February 2025 (Wednesday)
Madhyahna Puja Time: 11:30 AM to 01:41 PM (Duration: 2 Hours 11 Minutes)
Ashtami Tithi Start: February 5, 2025, at 02:30 AM
Ashtami Tithi End: February 6, 2025, at 12:35 AM
Bhishma Ashtami Vrat and Puja Vidhi
1. Bhishma Ashtami Vrat के दिन प्रातः जल्दी उठकर Sacred Bath करें और साफ वस्त्र धारण करें।
2. Puja Thali में Til, Jau, Kusha, and Water रखें।
3. Pitru Puja करें और जल अर्पित करें।
4. Bhishma Pitamah Puja के लिए उनकी तस्वीर या मूर्ति को स्थापित करें।
5. फिर Bhishma Pitamah Meditation करें और जल अर्पित करें।
6. Flowers, Akshat, Dhoop, Deep अर्पित करें।
7. बहुत से लोग इस दिन Fasting on Bhishma Ashtami रखते हैं।
8. ॐ भीष्माय नमः Mantra Chanting करें।
9. Bhishma Pitamah Katha पढ़ें या सुनें।
10. इस दिन Feeding Brahmins and Charity to Poor करना शुभ माना जाता है।
इस दिन Bhishma Ashtami Puja और Pitru Tarpan करने से Pitra Dosha Nivaran होता है और Pitra Kripa प्राप्त होती है।

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सर्वशत्रुसंहारिणी अनले अभये अजिते अपराजिते महासिंहवाहिनी महिषासुरमर्दिनी हन हन मर्दय मर्दय मारय मारय शोषय शोषय दाहय दाहय महाग्रहान् संहर संहर यक्षग्रह राक्षसग्रह स्कंदग्रह विनायकग्रह बालग्रह कुमारग्रह चोरग्रह भूतग्रह प्रेतग्रह पिशाचग्रह कूष्मांडग्रहादीन् मर्दय मर्दय निग्रह निग्रह धूमभूतान्संत्रावय संत्रावय भूतज्वर प्रेतज्वर पिशाचज्वर उष्णज्वर पित्तज्वर वातज्वर श्लेष्मज्वर कफज्वर आलापज्वर सन्निपातज्वर माहेंद्रज्वर कृत्रिमज्वर कृत्यादिज्वर एकाहिकज्वर द्वयाहिकज्वर त्रयाहिकज्वर चातुर्थिकज्वर पंचाहिकज्वर पक्षज्वर मासज्वर षण्मासज्वर संवत्सरज्वर ज्वरालापज्वर सर्वज्वर सर्वांगज्वरान् नाशय नाशय हर हर हन हन दह दह पच पच ताडय ताडय आकर्षय आकर्षय विद्वेषय विद्वेषय स्तंभय स्तंभय मोहय मोहय उच्चाटय उच्चाटय हुं फट् स्वाहा ॥ 23 ॥ ॐ ह्रीं ॐ नमो भगवती त्रैलोक्यलक्ष्मी सर्वजनवशंकरी सर्वदुष्टग्रहस्तंभिनी कंकाली कामरूपिणी कालरूपिणी घोररूपिणी परमंत्रपरयंत्र प्रभेदिनी प्रतिभटविध्वंसिनी परबलतुरगविमर्दिनी शत्रुकरच्छेदिनी शत्रुमांसभक्षिणी सकलदुष्टज्वरनिवारिणी भूत प्रेत पिशाच ब्रह्मराक्षस यक्ष यमदूत शाकिनी डाकिनी कामिनी स्तंभिनी मोहिनी वशंकरी कुक्षिरोग शिरोरोग नेत्ररोग क्षयापस्मार कुष्ठादि महारोगनिवारिणी मम सर्वरोगं नाशय नाशय ह्रां ह्रीं ह्रूं ह्रैं ह्रौं ह्रः हुं फट् स्वाहा ॥ 24 ॥ ॐ नमो भगवती माहेश्वरी महाचिंतामणी दुर्गे सकलसिद्धेश्वरी सकलजनमनोहारिणी कालकालरात्री महाघोररूपे प्रतिहतविश्वरूपिणी मधुसूदनी महाविष्णुस्वरूपिणी शिरश्शूल कटिशूल अंगशूल पार्श्वशूल नेत्रशूल कर्णशूल पक्षशूल पांडुरोग कामारादीन् संहर संहर नाशय नाशय वैष्णवी ब्रह्मास्त्रेण विष्णुचक्रेण रुद्रशूलेन यमदंडेन वरुणपाशेन वासववज्रेण सर्वानरीं भंजय भंजय राजयक्ष्म क्षयरोग तापज्वरनिवारिणी मम सर्वज्वरं नाशय नाशय य र ल व श ष स ह सर्वग्रहान् तापय तापय संहर संहर छेदय छेदय उच्चाटय उच्चाटय ह्रां ह्रीं ह्रूं फट् स्वाहा ॥ 25 ॥ उत्तरन्यासः करन्यासः इंद्राक्ष्यै अंगुष्ठाभ्यां नमः । महालक्ष्म्यै तर्जनीभ्यां नमः । महेश्वर्यै मध्यमाभ्यां नमः । अंबुजाक्ष्यै अनामिकाभ्यां नमः । कात्यायन्यै कनिष्ठिकाभ्यां नमः । कौमार्यै करतलकरपृष्ठाभ्यां नमः । अंगन्यासः इंद्राक्ष्यै हृदयाय नमः । महालक्ष्म्यै शिरसे स्वाहा । महेश्वर्यै शिखायै वषट् । अंबुजाक्ष्यै कवचाय हुम् । कात्यायन्यै नेत्रत्रयाय वौषट् । कौमार्यै अस्त्राय फट् । भूर्भुवस्सुवरोमिति दिग्विमोकः ॥ समर्पणं गुह्यादि गुह्य गोप्त्री त्वं गृहाणास्मत्कृतं जपम् । सिद्धिर्भवतु मे देवी त्वत्प्रसादान्मयि स्थिरान् ॥ 26 फलश्रुतिः नारायण उवाच । एतैर्नामशतैर्दिव्यैः स्तुता शक्रेण धीमता । आयुरारोग्यमैश्वर्यं अपमृत्युभयापहम् ॥ 27 ॥ क्षयापस्मारकुष्ठादि तापज्वरनिवारणम् । चोरव्याघ्रभयं तत्र शीतज्वरनिवारणम् ॥ 28 ॥ माहेश्वरमहामारी सर्वज्वरनिवारणम् । शीतपैत्तकवातादि सर्वरोगनिवारणम् ॥ 29 ॥ सन्निज्वरनिवारणं सर्वज्वरनिवारणम् । सर्वरोगनिवारणं सर्वमंगलवर्धनम् ॥ 30 ॥ शतमावर्तयेद्यस्तु मुच्यते व्याधिबंधनात् । आवर्तयन्सहस्रात्तु लभते वांछितं फलम् ॥ 31 ॥ एतत् स्तोत्रं महापुण्यं जपेदायुष्यवर्धनम् । विनाशाय च रोगाणामपमृत्युहराय च ॥ 32 ॥ द्विजैर्नित्यमिदं जप्यं भाग्यारोग्याभीप्सुभिः । नाभिमात्रजलेस्थित्वा सहस्रपरिसंख्यया ॥ 33 ॥ जपेत्स्तोत्रमिमं मंत्रं वाचां सिद्धिर्भवेत्ततः । अनेनविधिना भक्त्या मंत्रसिद्धिश्च जायते ॥ 34 ॥ संतुष्टा च भवेद्देवी प्रत्यक्षा संप्रजायते । सायं शतं पठेन्नित्यं षण्मासात्सिद्धिरुच्यते ॥ 35 ॥ 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