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वसंत पंचमी पर मां सरस्वती को गुलाल चढ़ाने का महत्व: परंपरा, श्रद्धा और आस्था का संगम

Basant Panchami: बसंत पंचमी के दिन मां सरस्वती को गुलाल चढ़ाना एक खूबसूरत और अर्थपूर्ण परंपरा है। यह हमें ज्ञान, सृजनशीलता, और खुशी का संदेश देता है। और वसंत पंचमी के दिन को इनके जन्मोत्सव के रूप में भी मनाते हैं।
बसंत पंचमी के दिन Goddess Saraswati को गुलाल चढ़ाने का एक गहरा religious और cultural महत्व है। यदि इसके significance पर नजर डालें तो गुलाल colors का प्रतीक है और spring season colors का मौसम होता है और गुलाल इसी vibrancy को दर्शाता है। Goddess Saraswati को गुलाल चढ़ाकर हम उनके grace और blessings को आमंत्रित करते हैं।
गुलाल का महत्व: मान्यता के अनुसार गुलाल knowledge और creativity का भी प्रतीक है। यह positivity और prosperity का भी symbol है। इसी कारण यह भी माना जाता है कि देवी मां Saraswati वसंत पंचमी पर गुलाल चढ़ाने से intelligence में वृद्धि होती है और creativity बढ़ती है।
बता दें कि Goddess Saraswati का वर्ण white है। इन्हें Sharada, Vani, Vagdevi आदि नामों से भी पुकारा जाता है। संगीत की उत्पत्ति करने के कारण यह Goddess of Music भी हैं। अत: मां Saraswati को pink, yellow या white color का गुलाल लगाना चाहिए, क्योंकि ये colors knowledge और purity का प्रतीक माने जाते हैं। साथ ही इन्हें गुलाल लगाने से surrounding environment purified होकर चारों तरफ positive energy का संचार होता है।
गुलाल happiness और celebration का प्रतीक है और Vasant Panchami का दिन joy और enthusiasm से भरा होता है। अत: इस अवसर पर Goddess Saraswati को गुलाल चढ़ाकर हम इस उत्सव को और अधिक special बनाते हैं। इसे इस तरह भी समझा जा सकता है कि मां Veena Vadini को हम गुलाल चढ़ाकर उन्हें उनकी birthday पर एक तरह से शुभकामनाएं देने जैसा है। यह एक शुभ संकेत भी है और यह दर्शाता है कि हम Goddess Saraswati से blessings चाहते हैं।
ऐसा भी माना जाता है कि Vasant Panchami के दिन Goddess Saraswati की पूजा करने से life में auspicious results तथा wisdom और art की प्राप्ति हो सकती है। और इस दिन मां Saraswati को गुलाल चढ़ाने से हमें special benefits प्राप्त होते हैं, क्योंकि इसी दिन से spring season का आरंभ होने के कारण यह life में prosperity, freshness और greenery का प्रतीक होने के कारण माता को गुलाल चढ़ाने से positive energy का संचार होकर अच्छा वातावरण निर्मित होता है, जो व्यक्ति को mental peace और strength देता है।
यदि colors की बात करें तो गुलाल को vibrancy और joy का प्रतीक माने जाने के कारण इसे मां Saraswati पर अर्पित करने से life में नया enthusiasm और excitement की शुरुआत होना माना जाता है। इसीलिए Vasant Panchami के दिन Goddess Saraswati को गुलाल चढ़ाकर उनकी इस creativity का सम्मान किया जाता है ताकि हमारे जीवन में success, prosperity और positivity आ सके।

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इंद्राक्षी स्तोत्रम् (Indrakshi Stotram) नारद उवाच । इंद्राक्षीस्तोत्रमाख्याहि नारायण गुणार्णव । पार्वत्यै शिवसंप्रोक्तं परं कौतूहलं हि मे ॥ नारायण उवाच । इंद्राक्षी स्तोत्र मंत्रस्य माहात्म्यं केन वोच्यते । इंद्रेणादौ कृतं स्तोत्रं सर्वापद्विनिवारणम् ॥ तदेवाहं ब्रवीम्यद्य पृच्छतस्तव नारद । अस्य श्री इंद्राक्षीस्तोत्रमहामंत्रस्य, शचीपुरंदर ऋषिः, अनुष्टुप्छंदः, इंद्राक्षी दुर्गा देवता, लक्ष्मीर्बीजं, भुवनेश्वरी शक्तिः, भवानी कीलकं, मम इंद्राक्षी प्रसाद सिद्ध्यर्थे जपे विनियोगः । करन्यासः इंद्राक्ष्यै अंगुष्ठाभ्यां नमः । महालक्ष्म्यै तर्जनीभ्यां नमः । महेश्वर्यै मध्यमाभ्यां नमः । अंबुजाक्ष्यै अनामिकाभ्यां नमः । कात्यायन्यै कनिष्ठिकाभ्यां नमः । कौमार्यै करतलकरपृष्ठाभ्यां नमः । अंगन्यासः इंद्राक्ष्यै हृदयाय नमः । महालक्ष्म्यै शिरसे स्वाहा । महेश्वर्यै शिखायै वषट् । अंबुजाक्ष्यै कवचाय हुम् । कात्यायन्यै नेत्रत्रयाय वौषट् । कौमार्यै अस्त्राय फट् । भूर्भुवस्सुवरोमिति दिग्बंधः ॥ ध्यानम् नेत्राणां दशभिश्शतैः परिवृतामत्युग्रचर्मांबराम् । हेमाभां महतीं विलंबितशिखामामुक्तकेशान्विताम् ॥ घंटामंडितपादपद्मयुगलां नागेंद्रकुंभस्तनीम् । इंद्राक्षीं परिचिंतयामि मनसा कल्पोक्तसिद्धिप्रदाम् ॥ 1 ॥ इंद्राक्षीं द्विभुजां देवीं पीतवस्त्रद्वयान्विताम् । वामहस्ते वज्रधरां दक्षिणेन वरप्रदाम् ॥ इंद्राक्षीं सहयुवतीं नानालंकारभूषिताम् । प्रसन्नवदनांभोजामप्सरोगणसेविताम् ॥ 2 ॥ द्विभुजां सौम्यवदानां पाशांकुशधरां पराम् । त्रैलोक्यमोहिनीं देवीं इंद्राक्षी नाम कीर्तिताम् ॥ 3 ॥ पीतांबरां वज्रधरैकहस्तां नानाविधालंकरणां प्रसन्नाम् । त्वामप्सरस्सेवितपादपद्मां इंद्राक्षीं वंदे शिवधर्मपत्नीम् ॥ 4 ॥ पंचपूजा लं पृथिव्यात्मिकायै गंधं समर्पयामि । हं आकाशात्मिकायै पुष्पैः पूजयामि । यं वाय्वात्मिकायै धूपमाघ्रापयामि । रं अग्न्यात्मिकायै दीपं दर्शयामि । वं अमृतात्मिकायै अमृतं महानैवेद्यं निवेदयामि । सं सर्वात्मिकायै सर्वोपचारपूजां समर्पयामि ॥ दिग्देवता रक्ष इंद्र उवाच । इंद्राक्षी पूर्वतः पातु पात्वाग्नेय्यां तथेश्वरी । कौमारी दक्षिणे पातु नैरृत्यां पातु पार्वती ॥ 1 ॥ वाराही पश्चिमे पातु वायव्ये नारसिंह्यपि । उदीच्यां कालरात्री मां ऐशान्यां सर्वशक्तयः ॥ 2 ॥ भैरव्योर्ध्वं सदा पातु पात्वधो वैष्णवी तथा । एवं 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कामिनी स्तंभिनी मोहिनी वशंकरी कुक्षिरोग शिरोरोग नेत्ररोग क्षयापस्मार कुष्ठादि महारोगनिवारिणी मम सर्वरोगं नाशय नाशय ह्रां ह्रीं ह्रूं ह्रैं ह्रौं ह्रः हुं फट् स्वाहा ॥ 24 ॥ ॐ नमो भगवती माहेश्वरी महाचिंतामणी दुर्गे सकलसिद्धेश्वरी सकलजनमनोहारिणी कालकालरात्री महाघोररूपे प्रतिहतविश्वरूपिणी मधुसूदनी महाविष्णुस्वरूपिणी शिरश्शूल कटिशूल अंगशूल पार्श्वशूल नेत्रशूल कर्णशूल पक्षशूल पांडुरोग कामारादीन् संहर संहर नाशय नाशय वैष्णवी ब्रह्मास्त्रेण विष्णुचक्रेण रुद्रशूलेन यमदंडेन वरुणपाशेन वासववज्रेण सर्वानरीं भंजय भंजय राजयक्ष्म क्षयरोग तापज्वरनिवारिणी मम सर्वज्वरं नाशय नाशय य र ल व श ष स ह सर्वग्रहान् तापय तापय संहर संहर छेदय छेदय उच्चाटय उच्चाटय ह्रां ह्रीं ह्रूं फट् स्वाहा ॥ 25 ॥ उत्तरन्यासः करन्यासः इंद्राक्ष्यै अंगुष्ठाभ्यां नमः । महालक्ष्म्यै तर्जनीभ्यां नमः । महेश्वर्यै मध्यमाभ्यां नमः । अंबुजाक्ष्यै अनामिकाभ्यां नमः । कात्यायन्यै कनिष्ठिकाभ्यां नमः । कौमार्यै करतलकरपृष्ठाभ्यां नमः । अंगन्यासः इंद्राक्ष्यै हृदयाय नमः । महालक्ष्म्यै शिरसे स्वाहा । महेश्वर्यै शिखायै वषट् । अंबुजाक्ष्यै कवचाय हुम् । कात्यायन्यै नेत्रत्रयाय वौषट् । कौमार्यै अस्त्राय फट् । भूर्भुवस्सुवरोमिति दिग्विमोकः ॥ समर्पणं गुह्यादि गुह्य गोप्त्री त्वं गृहाणास्मत्कृतं जपम् । सिद्धिर्भवतु मे देवी त्वत्प्रसादान्मयि स्थिरान् ॥ 26 फलश्रुतिः नारायण उवाच । एतैर्नामशतैर्दिव्यैः स्तुता शक्रेण धीमता । आयुरारोग्यमैश्वर्यं अपमृत्युभयापहम् ॥ 27 ॥ क्षयापस्मारकुष्ठादि तापज्वरनिवारणम् । चोरव्याघ्रभयं तत्र शीतज्वरनिवारणम् ॥ 28 ॥ माहेश्वरमहामारी सर्वज्वरनिवारणम् । शीतपैत्तकवातादि सर्वरोगनिवारणम् ॥ 29 ॥ सन्निज्वरनिवारणं सर्वज्वरनिवारणम् । सर्वरोगनिवारणं सर्वमंगलवर्धनम् ॥ 30 ॥ शतमावर्तयेद्यस्तु मुच्यते व्याधिबंधनात् । आवर्तयन्सहस्रात्तु लभते वांछितं फलम् ॥ 31 ॥ एतत् स्तोत्रं महापुण्यं जपेदायुष्यवर्धनम् । विनाशाय च रोगाणामपमृत्युहराय च ॥ 32 ॥ द्विजैर्नित्यमिदं जप्यं भाग्यारोग्याभीप्सुभिः । नाभिमात्रजलेस्थित्वा सहस्रपरिसंख्यया ॥ 33 ॥ जपेत्स्तोत्रमिमं मंत्रं वाचां सिद्धिर्भवेत्ततः । अनेनविधिना भक्त्या मंत्रसिद्धिश्च जायते ॥ 34 ॥ संतुष्टा च भवेद्देवी प्रत्यक्षा संप्रजायते । सायं शतं पठेन्नित्यं षण्मासात्सिद्धिरुच्यते ॥ 35 ॥ चोरव्याधिभयस्थाने मनसाह्यनुचिंतयन् । संवत्सरमुपाश्रित्य सर्वकामार्थसिद्धये ॥ 36 ॥ राजानं वश्यमाप्नोति षण्मासान्नात्र संशयः । अष्टदोर्भिस्समायुक्ते नानायुद्धविशारदे ॥ 37 ॥ भूतप्रेतपिशाचेभ्यो रोगारातिमुखैरपि । नागेभ्यः विषयंत्रेभ्यः आभिचारैर्महेश्वरी ॥ 38 ॥ रक्ष मां रक्ष मां नित्यं प्रत्यहं पूजिता मया । सर्वमंगलमांगल्ये शिवे सर्वार्थसाधिके । शरण्ये त्र्यंबके देवी नारायणी नमोऽस्तु ते ॥ 39 ॥ वरं प्रदाद्महेंद्राय देवराज्यं च शाश्वतम् । इंद्रस्तोत्रमिदं पुण्यं महदैश्वर्यकारणम् ॥ 40 ॥ इति इंद्राक्षी स्तोत्रम् ।
Stotra

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