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महाकुम्भ 2025

कुम्भ का महत्व

पौराणिक महत्व

परम्परा-कुम्भ मेला के मूल को 8वी शताब्दी के महान दार्शनिक शंकर से जोड़ती है, जिन्होंने वाद विवाद एवं विवेचना हेतु विद्वान संन्यासीगण की नियमित सभा संस्थित की। कुम्भ मेला की आधारभूत किंवदंती पुराणों (किंवदंती एवं श्रुत का संग्रह) से अनुयोजित है, जो यह स्मरण कराती है कि कैसे अमृत के पवित्र कलश के लिए सुर एवं असुरों में संघर्ष हुआ जिससे समुद्र मंथन के अंतिम रत्न के रूप में अमृत प्राप्त हुआ तथा भगवान विष्णु ने मोहिनी रूप धारण कर अमृत कलश को अपने वाहन गरुड़ को दे दिया, गरुड़ उस अमृत कलश को लेकर असुरो से बचाते हुए पलायन किया, इस पलायन में अमृत की कुछ बूंदे हरिद्वार, नासिक, उज्जैन और प्रयाग में गिरी। सम्बन्धित नदियों के भूस्थैतिक गतिशीलता का अमृत के प्रभाव ने परिवर्तित कर दिया ऐसा विश्वास किया जाता है जिससे तीर्थयात्रीगण को पवित्रता, मांगलिकता और अमरत्व के भाव में स्नान करने का एक अनूठा अवसर प्राप्त होता है। शब्द कुम्भ पवित्र अमृत कलश से व्युत्पन्न हुआ है।

ज्योतिषीय महत्व

ज्योतिषाचार्यों द्वारा वृष राशि में गुरु मकर राशि में सूर्य तथा चंद्रमा माघ मास में अमावस्या के दिन कुम्भ पर्व की स्थिति देखी गयी है। इसलिए प्रयाग के कुम्भ पर्व के विषय में- "वृषराषिगतेजीवे" के समान ही "मेषराशिगतेजीवे" ऐसा उल्लेख मिलता है।
कुम्भ पर्वों का जो ग्रह योग प्राप्त होता है वह लगभग सभी जगह सामान्य रूप से बारहवे वर्ष प्राप्त होता है, परन्तु कभी-कभी ग्यारहवें वर्ष भी कुम्भ पर्व की स्थिति देखी जाती है। यह विषय अत्यन्त विचारणीय हैं, सामान्यतया सूर्य चंद्र की स्थिति प्रतिवर्ष चारोंं स्थलों में स्वतः बनती है। उसके लिए प्रयाग में कुम्भ पर्व के समय वृष के गुरु रहते हैं जिनका स्वामी शुक्र है। शुक्रग्रह ऐश्वर्य भोग एवं स्नेह का सम्वर्धक है। गुरु ग्रह के इस राशि में स्थित होने से मानव के वैचारिक भावों में परम सात्विकता का संचार होता है जिससे स्नेह, भोग एवं ऐश्वर्य की सम्प्राप्ति के विचार में जो सात्विकता प्रवाहित होती है उससे उनके रजोगुणी दोष स्वतः विलीन होते हैं। तथैव मकर राशिगत सूर्य समस्त क्रियाओं में पटुता एवमेव मकर राशिस्थ चंद्र परम ऐश्वर्य को प्राप्त कराता है। फलतः ज्ञान एवं भक्ति की धारा स्वरूप गंगा एवं यमुना के इस पवित्र संगम क्षेत्र में चारों पुरूषार्थों की सिद्धि अल्पप्रयास में ही श्रद्धालु मानव के समीपस्थ दिखाई देती है।
प्रत्येक ग्रह किसी विशिष्ट राशि में एक सुनिश्चित समय तक विद्यमान रहता है, जैसे सूर्य एक राशि में 30 दिन 26 घडी 17 पल 5 विपल का समय लेता है एवं चंद्रमा एक राशि में लगभग 2.5 दिन तक रहता है, तथैव बृहस्पति एक राशि का भोग 361 दिन 1 घडी 36 पल में करता है। स्थूल गणना के आधार पर वर्ष भर का काल बृहस्पति का मान लिया जाता है, किन्तु सौर वर्ष के अनुसार एक वर्ष में चार दिन 13 घडी एवं 55 पल का अन्तर बार्हस्पत्य वर्ष से होता है जो 12 वर्ष में 50 दिन 47 घडी का अन्तर पड़ता है और यही 84 वर्षों में 355 दिन 29 घडी का अन्तर बन जाता है। इसीलिए 50वें वर्ष जब कुम्भ पर्व आता है तब वह 11वें वर्ष ही पड़ जाता है।

सामाजिक महत्व

प्राथमिक स्नान कर्म के अतिरिक्त पर्व का सामाजिक पक्ष विभिन्न यज्ञों का अनुष्ठान, वेद मंत्रों का उच्चारण, प्रवचन, नृत्य, भक्ति भाव के गीतों, आध्यात्मिक कथानकों पर आधारित कार्यक्रमों, प्रार्थनाओं, धार्मिक सभाओं के चारों ओर घूमता हैं, जहाँ प्रसिद्ध संतों एवं साधुओं के द्वारा विभिन्न सिद्धांतों पर वाद-विवाद एवं विचार-विमर्श करते हुए मानक स्वरूप प्रदान किया जाता है। पर्व पर गरीबों एवं वंचितों को अन्न एवं वस्त्र के दान का भी महत्त्व है। विभिन्न पर्वों पर तीर्थयात्रियों एवं श्रद्धालुओं के द्वारा संतों को आध्यात्मिक भाव के साथ गाय एवं स्वर्ण दान भी किया जाता है।
मानव मात्र का कल्याण, सम्पूर्ण विश्व में सभी मनुष्यों के मध्य वसुधैव कुटुम्बकम के रूप में अच्छा सम्बन्ध बनाये रखने के साथ आदर्श विचारों एवं गूढ़ ज्ञान का आदान प्रदान कुम्भ का मूल तत्त्व और संदेश है। कुम्भ भारत और विश्व के जन सामान्य को आदिकाल से आध्यात्मिक रूप से एक सूत्र में पिरोता रहा है और भविष्य में भी कुम्भ का यह स्वरुप विद्यमान रहेगा।

महाकुंभ 2025 स्नान की तिथियां

• महाकुंभ प्रथम स्नान तिथि : पौष शुक्ल एकादशी 10 जनवरी 2025 शुक्रवार
• महाकुंभ द्वितीया स्नान तिथि : पौष पूर्णिमा 13 जनवरी 2025 सोमवार
• महाकुंभ चतुर्थ स्नान तिथि : माघ कृष्ण एकादशी 25 जनवरी, 2025, शनिवार ।
• महाकुंभ पंचम स्नान तिथि : माघ कृष्ण त्रयोदशी 27 जनवरी, 2025 , सोमवार।
• महाकुंभ अष्टम स्नान तिथि : माघ शुक्ल सप्तमी (रथ सप्तमी)-4 फरवरी, 2025 ई., मंगलवार ।
• महाकुंभ नवम स्नान तिथि : माघ शुक्ल अष्टमी (भीष्माष्टमी) -5 फरवरी, 2025 ई., बुधवार।
• महाकुंभ दशम स्नान तिथि : माघ शुक्ल एकादशी (जया एकादशी) -8 फरवरी, 2025 ई., शनिवार।
• महाकुंभ एकादश स्नान तिथि : माघ शुक्ल त्रयोदशी (सोम प्रदोष व्रत) - 10 फरवरी, 2025, सोमवार ।
• महाकुंभ द्वादश स्नान तिथि : माघ पूर्णिमा, 12 फरवरी, 2025, बुधवार।
• महाकुंभ त्रयोदश स्नान तिथि : फाल्गुन कृष्ण एकादशी, 24 फरवरी, 2025, सोमवार।
• महाकुंभ चतुर्दश स्नान पर्व : महाशिवरात्रि, 26 फरवरी, 2025, बुधवार।
आस्था, विश्वास, सौहार्द एवं संस्कृतियों के मिलन का पर्व है “कुम्भ”। ज्ञान, चेतना और उसका परस्पर मंथन कुम्भ मेले का वो आयाम है जो आदि काल से ही हिन्दू धर्मावलम्बियों की जागृत चेतना को बिना किसी आमन्त्रण के खींच कर ले आता है। कुम्भ पर्व किसी इतिहास निर्माण के दृष्टिकोण से नहीं शुरू हुआ था अपितु इसका इतिहास समय के प्रवाह से साथ स्वयं ही बनता चला गया। वैसे भी धार्मिक परम्पराएं हमेशा आस्था एवं विश्वास के आधार पर टिकती हैं न कि इतिहास पर। यह कहा जा सकता है कि कुम्भ जैसा विशालतम् मेला संस्कृतियों को एक सूत्र में बांधे रखने के लिए ही आयोजित होता है।
धार्मिकता एवं ग्रह-दशा के साथ-साथ कुम्भ पर्व को तत्त्वमीमांसा की कसौटी पर भी कसा जा सकता है, जिससे कुम्भ की उपयोगिता सिद्ध होती है। कुम्भ पर्व का विश्लेषण करने पर ज्ञात होता है कि यह पर्व प्रकृति एवं जीव तत्त्व में सामंजस्य स्थापित कर उनमें जीवनदायी शक्तियों को समाविष्ट करता है। प्रकृति ही जीवन एवं मृत्यु का आधार है, ऐसे में प्रकृति से सामंजस्य अति-आवश्यक हो जाता है। कहा भी गया है “यद् पिण्डे तद् ब्रह्माण्डे” अर्थात् जो शरीर में है, वही ब्रह्माण्ड में है, इस लिए ब्रह्माण्ड की शक्तियों के साथ पिण्ड (शरीर) कैसे सामंजस्य स्थापित करे, उसे जीवनदायी शक्तियाँ कैसे मिले इसी रहस्य का पर्व है कुम्भ।

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Ratri Suktam (रात्रि सूक्तम)

रात्रि सूक्तम् देवी दुर्गा (Goddess Durga) का एक प्रसिद्ध स्तोत्र है और यह देवी की स्तुति करता है। रात्रि सूक्तम् वास्तव में नारायण (Narayan) और हर साधक (Sadhak) में स्थित गुप्त ऊर्जा (latent energy) की प्रशंसा है। इस सूक्त का उपयोग उस ऊर्जा को जागृत करने और मानसिक शक्ति (mind powers) को बढ़ाने के लिए किया जाता है। रात्रि सूक्तम् नींद संबंधी विकारों (sleep disorders) से पीड़ित लोगों द्वारा भी उपयोग किया जाता है। इसका नियमित पाठ (regular recitation) मन को जल्दी सोने के लिए तैयार करता है और शरीर में ऊर्जा (energy level) को संतुलित करता है। इसे सोने से पहले 2-3 बार पढ़ने की सलाह दी जाती है। रात्रि सूक्तम् ऋग्वेद (Rig Veda) से लिया गया है। ऋग्वेद चारों वेदों में प्रमुख स्थान रखता है और यह संभवतः सभी मानव जाति के लिए देवी काली (Divine Mother Kali) को समर्पित सबसे प्राचीन प्रार्थना है। रात्रि सूक्तम् देवी से अज्ञान (ignorance) और आंतरिक शत्रुओं (inner nocturnal enemies) जैसे अनिद्रा (sleeplessness) और वासनाओं (lust) को दूर करने की प्रार्थना करता है। ऋग्वेद संहिता में रात्रि और तंत्र में वर्णित देवी महात्म्य का सर्वोच्च ब्रह्म (Supreme Absolute Brahman) एक ही है। यह संस्कृत में लिखा गया सूक्तम् (Sanskrit hymn) है। सप्तशती पाठ (SaptaShati Patha) के दौरान रात्रि सूक्तम् और उसके बाद अगरला स्तोत्र (Agarla Stotra) व कुंजिका स्तोत्र (Kunjika Stotra) का पाठ किया जाता है। रात्रि सूक्तम् देवी मां की शक्तियों और उनके भक्तों के लिए उनकी कृपा का वर्णन करता है। यह दर्शाता है कि देवी मां हमें वह सबकुछ देने में सक्षम हैं जिसकी हम कामना करते हैं। ऋग्वेद के इस स्तोत्र में रात्रि का अर्थ ‘देने वाली’ (giver) से लिया गया है, जो आनंद (bliss), शांति (peace) और सुख (happiness) प्रदान करती है। वैदिक सूक्त दो प्रकार की रातों का उल्लेख करता है - एक जो नश्वर प्राणियों के लिए होती है और दूसरी जो दिव्य प्राणियों के लिए होती है। पहली रात में अस्थायी गतिविधियां रुक जाती हैं, जबकि दूसरी रात में दिव्यता की गतिविधियां भी स्थिर हो जाती हैं। "काल" (Kala) का अर्थ समय (time) है, और यह पूर्ण रात्रि विनाश की रात्रि है। मां काली (Mother Kali) का नाम इसी शब्द से लिया गया है।
Sukt

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