No festivals today or in the next 14 days. 🎉

स्तोत्रम || श्री राम रक्षा स्तोत्र: Shri Ram Raksha Strotam

स्तोत्र

स्तोत्र यानी की स्तुति। स्तोत्र का निर्माण ऋषि- मुनियों ने देव व देवियों की कृपा प्राप्त करने के लिए किया। स्तोत्र का पाठ कर हम अपने आराध्य की कृपा के पात्र बनते हैं। पंडितजी की माने तो स्तोत्र सामान्य आराधना से परे है। इसका पाठ करने से जातक को सामान्य पूजा - पाठ से अधिक फल मिलता है।

स्तोत्र क्या है?

स्तोत्र, यह एक संस्कृत शब्द है। इसे स्तोत्रम, स्तोत्रम् के नाम से भी जाना जाता है। इस शब्द है जिसका अर्थ होता है "स्तोत्र, स्तवन या स्तुति। यह भारतीय धार्मिक ग्रंथों की एक साहित्यिक शैली है, जिसे मधुर गायन के लिए तैयार किया गया है। स्तोत्र एक प्रार्थना है। जो एक काव्यात्मक संरचना के साथ है। यह एक कविता हो सकती है, उदाहरण के लिए किसी देवता की प्रशंसा और व्यक्तिगत भक्ति, या अंतर्निहित आध्यात्मिक और दार्शनिक सिद्धांतों वाली कविताएँ।
कई स्तोत्र देवों की प्रशंसा करते हैं, जैसे देवी, शिव या विष्णु। शब्द "स्तुति" से संबंधित है, एक ही संस्कृत मूल से आ रहा है स्तू- प्रशंसा करने के लिए, और मूल रूप से दोनों का अर्थ प्रशंसा है। उल्लेखनीय स्तोत्र है राम रक्षा स्तोत्र व शिव तांडव स्तोत्रम हैं, जो राम व शिव से कृपा प्राप्त करने के लिए है। इसी तरह से अन्य देवी व देवताओं की स्तोत्र है। स्तोत्र एक प्रकार का लोकप्रिय भक्ति साहित्य है।

स्तोत्र कैसे करें

हर कार्य को करने का एक तरीका होता है। उसी तरह से स्तोत्र का पाठ करने के लिए भी कुछ नियमों का पालन करना आवश्यक है। पंडितजी कहना है कि स्तोत्र का पाठ करने से पहले जातक शुद्ध हो, स्नान आदि कर अपने आप को भगवान की भक्ति के लिए तैयार कर लें। कुल मिलाकर स्तोत्र का पाठ करने की विधि की बात करें तो यह देव व देवी के अनुसार तय होता है। परंतु सामान्य विधि की बात करें तो हर एक स्तोत्र पाठ में अपनाया जाता है। सबसे पहले आपको स्तोत्र करने का स्थान तय करना होगा। इसके बाद आप आसन बिछा कर बैठ जाए। फिर आपको गणेश जी का ध्यान करें। फिर जिस भी देवी देवता के स्तोत्र का पाठ करना हो उसे शुरू करें। ध्यान रहें आपका ध्यान पाठ पर रहें। पूरी श्रद्धा से आप स्तोत्र का पाठ करें।पाठ पूर्ण होने के बाद जिस देव की स्तुति आप कर रहें थे उनका ध्यान करें। हुई भूल चूक क्षमा करने की याचना करें।

स्तोत्र करते समय क्या न करें?

सबसे पहली बात जो ध्यान रखना है वो यह है कि आप अतंर्मन व बाहर से शुद्ध हो। इसके बाद आपको स्तोत्र को बीच में अधूरा नही छोड़ना है। ऐसा करने से आप कृपा के नहीं क्रोध के पात्र बन जाएंगे। जिसका आपको भारी अंजाम भुगतना पड़ सकता है। इसके साथ ही जहां तक हो सके स्तोत्र को शुद्धता के साथ पाठ करें। अशुद्ध उच्चारण आपको समस्या में डाल सकती है। कुल मिलाकर आपको स्तोत्र का पाठ पूरी आस्था व श्रद्धा के साथ करना चाहिए। भूल चूक की आप क्षमा मांग लें। चाहे भूल हो या न हों। ऐसा करना आपको लिए सही रहेगा।

श्री राम रक्षा स्तोत्र: Ram Raksha Strotam

Ram Raksha Strotam: श्री राम रक्षा स्तोत्र, जैसा कि नाम से ही पता चल रहा है कि यह भगवान श्रीराम का स्तोत्र है। श्री राम रक्षा स्तोत्र की रचना बुध कौशिक ऋषि द्वारा की गई है। यह संस्कृत निष्ठ श्री राम का स्तुति गान है। इसका पाठ करने से भय का अंत होता है। इसके साथ ही व्यक्तित्व में अद्वितीय बदलाव आता है। यदि आप भगवान श्री राम के भक्त हैं तो आपको इस स्तोत्र का पाठ जरूर करना चाहिए।
। श्रीगणेशायनम: ।
॥ श्रीरामरक्षास्तोत्रम्‌ ॥
अस्य श्रीरामरक्षास्तोत्रमन्त्रस्य ।
बुधकौशिक ऋषि: ।
श्रीसीतारामचंद्रोदेवता ।
अनुष्टुप्‌ छन्द: । सीता शक्ति: ।
श्रीमद्‌हनुमान्‌ कीलकम्‌ ।
श्रीसीतारामचंद्रप्रीत्यर्थे जपे विनियोग: ॥
ध्यायेदाजानुबाहुं धृतशरधनुषं बद्दद्पद्‌मासनस्थं ।
पीतं वासोवसानं नवकमलदलस्पर्धिनेत्रं प्रसन्नम्‌ ॥
वामाङ्‌कारूढसीता मुखकमलमिलल्लोचनं नीरदाभं ।
नानालङ्‌कारदीप्तं दधतमुरुजटामण्डनं रामचंद्रम्‌ ॥
॥ इति ध्यानम्‌ ॥
चरितं रघुनाथस्य शतकोटिप्रविस्तरम्‌ ।
एकैकमक्षरं पुंसां महापातकनाशनम्‌ ॥1॥
ध्यात्वा नीलोत्पलश्यामं रामं राजीवलोचनम्‌ ।
जानकीलक्ष्मणोपेतं जटामुकुटमण्डितम्‌ ॥2॥
सासितूणधनुर्बाणपाणिं नक्तं चरान्तकम्‌ ।
स्वलीलया जगत्त्रातुमाविर्भूतमजं विभुम्‌ ॥3॥
रामरक्षां पठॆत्प्राज्ञ: पापघ्नीं सर्वकामदाम्‌ ।
शिरो मे राघव: पातु भालं दशरथात्मज: ॥4॥
कौसल्येयो दृशौ पातु विश्वामित्रप्रिय: श्रुती ।
घ्राणं पातु मखत्राता मुखं सौमित्रिवत्सल: ॥5॥
जिव्हां विद्दानिधि: पातु कण्ठं भरतवंदित: ।
स्कन्धौ दिव्यायुध: पातु भुजौ भग्नेशकार्मुक: ॥6॥
करौ सीतपति: पातु हृदयं जामदग्न्यजित्‌ ।
मध्यं पातु खरध्वंसी नाभिं जाम्बवदाश्रय: ॥7॥
सुग्रीवेश: कटी पातु सक्थिनी हनुमत्प्रभु: ।
ऊरू रघुत्तम: पातु रक्ष:कुलविनाशकृत्‌ ॥8॥
जानुनी सेतुकृत्पातु जङ्‌घे दशमुखान्तक: ।
पादौ बिभीषणश्रीद: पातु रामोSखिलं वपु: ॥9॥
एतां रामबलोपेतां रक्षां य: सुकृती पठॆत्‌ ।
स चिरायु: सुखी पुत्री विजयी विनयी भवेत्‌ ॥10॥
पातालभूतलव्योम चारिणश्छद्‌मचारिण: ।
न द्र्ष्टुमपि शक्तास्ते रक्षितं रामनामभि: ॥11॥
रामेति रामभद्रेति रामचंद्रेति वा स्मरन्‌ ।
नरो न लिप्यते पापै भुक्तिं मुक्तिं च विन्दति ॥12॥
जगज्जेत्रैकमन्त्रेण रामनाम्नाभिरक्षितम्‌ ।
य: कण्ठे धारयेत्तस्य करस्था: सर्वसिद्द्दय: ॥13॥
वज्रपंजरनामेदं यो रामकवचं स्मरेत्‌ ।
अव्याहताज्ञ: सर्वत्र लभते जयमंगलम्‌ ॥14॥
आदिष्टवान्यथा स्वप्ने रामरक्षामिमां हर: ।
तथा लिखितवान्‌ प्रात: प्रबुद्धो बुधकौशिक: ॥15॥
आराम: कल्पवृक्षाणां विराम: सकलापदाम्‌ ।
अभिरामस्त्रिलोकानां राम: श्रीमान्‌ स न: प्रभु: ॥16॥
तरुणौ रूपसंपन्नौ सुकुमारौ महाबलौ ।
पुण्डरीकविशालाक्षौ चीरकृष्णाजिनाम्बरौ ॥17॥
फलमूलशिनौ दान्तौ तापसौ ब्रह्मचारिणौ ।
पुत्रौ दशरथस्यैतौ भ्रातरौ रामलक्ष्मणौ ॥18॥
शरण्यौ सर्वसत्वानां श्रेष्ठौ सर्वधनुष्मताम्‌ ।
रक्ष:कुलनिहन्तारौ त्रायेतां नो रघुत्तमौ ॥19॥
आत्तसज्जधनुषा विषुस्पृशा वक्षया शुगनिषङ्‌ग सङि‌गनौ ।
रक्षणाय मम रामलक्ष्मणा वग्रत: पथि सदैव गच्छताम्‌ ॥20॥
संनद्ध: कवची खड्‌गी चापबाणधरो युवा ।
गच्छन्‌मनोरथोSस्माकं राम: पातु सलक्ष्मण: ॥21॥
रामो दाशरथि: शूरो लक्ष्मणानुचरो बली ।
काकुत्स्थ: पुरुष: पूर्ण: कौसल्येयो रघुत्तम: ॥22॥
वेदान्तवेद्यो यज्ञेश: पुराणपुरुषोत्तम: ।
जानकीवल्लभ: श्रीमानप्रमेय पराक्रम: ॥23॥
इत्येतानि जपेन्नित्यं मद्‌भक्त: श्रद्धयान्वित: ।
अश्वमेधाधिकं पुण्यं संप्राप्नोति न संशय: ॥24॥
रामं दूर्वादलश्यामं पद्‌माक्षं पीतवाससम्‌ ।
स्तुवन्ति नामभिर्दिव्यैर्न ते संसारिणो नर: ॥25॥
रामं लक्शमण पूर्वजं रघुवरं सीतापतिं सुंदरम्‌ ।
काकुत्स्थं करुणार्णवं गुणनिधिं विप्रप्रियं धार्मिकम्‌
राजेन्द्रं सत्यसंधं दशरथनयं श्यामलं शान्तमूर्तिम्‌ ।
वन्दे लोकभिरामं रघुकुलतिलकं राघवं रावणारिम्‌ ॥26॥
रामाय रामभद्राय रामचंद्राय वेधसे ।
रघुनाथाय नाथाय सीताया: पतये नम: ॥27॥
श्रीराम राम रघुनन्दन राम राम ।
श्रीराम राम भरताग्रज राम राम ।
श्रीराम राम रणकर्कश राम राम ।
श्रीराम राम शरणं भव राम राम ॥28॥
श्रीरामचन्द्रचरणौ मनसा स्मरामि ।
श्रीरामचन्द्रचरणौ वचसा गृणामि ।
श्रीरामचन्द्रचरणौ शिरसा नमामि ।
श्रीरामचन्द्रचरणौ शरणं प्रपद्ये ॥29॥
माता रामो मत्पिता रामचंन्द्र: ।
स्वामी रामो मत्सखा रामचंद्र: ।
सर्वस्वं मे रामचन्द्रो दयालु ।
नान्यं जाने नैव जाने न जाने ॥30॥
दक्षिणे लक्ष्मणो यस्य वामे तु जनकात्मजा ।
पुरतो मारुतिर्यस्य तं वन्दे रघुनंदनम्‌ ॥31॥
लोकाभिरामं रनरङ्‌गधीरं राजीवनेत्रं रघुवंशनाथम्‌ ।
कारुण्यरूपं करुणाकरंतं श्रीरामचंद्रं शरणं प्रपद्ये ॥32॥
वातात्मजं वानरयूथमुख्यं श्रीरामदूतं शरणं प्रपद्ये ॥33॥
कूजन्तं रामरामेति मधुरं मधुराक्षरम्‌ ।
आरुह्य कविताशाखां वन्दे वाल्मीकिकोकिलम्‌ ॥34॥
आपदामपहर्तारं दातारं सर्वसंपदाम्‌ ।
लोकाभिरामं श्रीरामं भूयो भूयो नमाम्यहम्‌ ॥35॥
भर्जनं भवबीजानामर्जनं सुखसंपदाम्‌ ।
तर्जनं यमदूतानां रामरामेति गर्जनम्‌ ॥36॥
रामो राजमणि: सदा विजयते रामं रमेशं भजे ।
रामेणाभिहता निशाचरचमू रामाय तस्मै नम: ।
रामान्नास्ति परायणं परतरं रामस्य दासोSस्म्यहम्‌ ।
रामे चित्तलय: सदा भवतु मे भो राम मामुद्धर ॥37॥
राम रामेति रामेति रमे रामे मनोरमे ।
सहस्रनाम तत्तुल्यं रामनाम वरानने ॥38॥
। इति श्रीराम रक्षा स्तोत्र समाप्त ।

श्री राम रक्षा स्तोत्र के लाभ

श्री राम रक्षा स्तोत्र (sri ram raksha strotam) का पाठ करने के लाभों की बात करें तो ये इस प्रकार हैं – यदि आपका न्यायालय में कोई मामला लटका है तो इससे आपको लाभ होगा। ज्योतिषाचार्यों इसे लेकर उपाय भी बता बतलाएं हैं। ज्योतिष विदों की माने तो श्री राम रक्षा स्तोत्र का पाठ करते समय सरसों के कुछ दानों को कटोरी में रखकर उसमें अंगूली घुमाएं और पाठ खत्म हो जाने के बाद जेब में डालकर ले जायें। जहां विपक्षी बैठा हो उसके सम्मुख इन दानों को फेंक दें। आप किसी प्रतियोगी परीक्षा, खेल, या फिर साक्षात्कार आदि के लिये जा रहे हैं तो भी अपनी जेब में इन दानों को रखकर जायें। किसी अनिष्ठ की आशंका आपको हो तो भी आप सिद्ध सरसों को अपने साथ रख सकते हैं। आपके कार्य सिद्ध होंगे।

श्री राम रक्षा स्तोत्र पाठ विधि

श्री राम रक्षा स्तोत्र का पाठ करने के लिए आप प्रात:काल उठकर नित्य कर्म कर स्नान कर लें और स्वच्छ वस्त्र धारण कर पूजा गृह को शुद्ध कर लें। इसके बाद सभी सामग्रियों को एकत्रित कर आसन पर बैठ जाएं। चौकी अथवा लकड़ी के पटरे पर लाल वस्त्र बिछायें। उस पर श्री राम जी की मूर्ति स्थापित करें। हो सके तो साथ में श्रीराम दरबार की फोटो भी लगाएं। श्रीराम जी का पूरा दरबार जिसमें चारों भाई के साथ हनुमान जी भी दिखाई दें। इसके बाद श्री गणेश का आह्वाहन करें। क्योंकि गणेश पूजा के बिना कोई भी कार्य पूर्ण नहीं माना जाता है। इसके बाद आप श्री राम रक्षा स्तोत्र (Ram Raksha Strotam in Hindi) का पाठ करें। इसके बाद आप आरती कर प्रसाद बांट दें। आपको लाभ होगा।

Related Blogs

Saraswati Praarthan Ghanapathah (सरस्वती प्रार्थन घनपाठः)

सरस्वती प्रार्थन घनपाठः: यह प्रार्थना देवी सरस्वती को समर्पित है, जो ज्ञान और संगीत की देवी हैं।
MahaMantra

Shri Ganga Chalisa (श्री गंगा चालीसा)

गंगा चालीसा एक भक्ति गीत है जो गंगा माता पर आधारित है। Ganga को हिन्दू धर्म में पवित्रता और मोक्षदायिनी के रूप में पूजा जाता है। Ganga Chalisa का पाठ पापों को मिटाता है और जीवन को पवित्रता और शांति से भर देता है।
Chalisa

Shri Sita Kavacham (श्री सीता कवचम्)

श्री सीता कवचम् एक अद्भुत वैदिक स्तोत्र है, जो देवी सीता की महिमा और सुरक्षा प्रदान करने वाले गुणों का वर्णन करता है। यह कवच भगवान श्रीराम की परम प्रिया और त्याग, धैर्य, एवं निष्ठा की प्रतीक माता सीता की स्तुति करता है। यह कवच भक्तों को देवी सीता के समान साहस और धैर्य प्रदान करने में सहायक है। यह स्तोत्र उनके आशीर्वाद के साथ जीवन में सफलता, शांति और समृद्धि लाने की शक्ति रखता है। इस कवच का पाठ जीवन में "positivity", "spiritual growth" और "divine blessings" लाने के लिए अत्यंत लाभकारी माना गया है। "Protection mantra", "Hindu scriptures", और "devotional hymns" जैसे विषयों से जुड़ने वाले पाठकों के लिए यह कवच अत्यंत प्रभावी है।
Kavacha

Brahmasukti (ब्रह्मसूक्ति )

ब्रह्मसुक्ति एक दिव्य ग्रंथ है जो ब्रह्मा (Creator God) की सृष्टि की शक्ति (Creative Power) और ज्ञान का वर्णन करता है। इसमें ब्रह्मा की भूमिका को सृष्टि के रचनाकार (Cosmic Creator) के रूप में प्रस्तुत किया गया है, जो वेदों (Vedas) और ज्ञान के स्रोत (Source of Wisdom) के प्रतीक हैं। यह ग्रंथ व्यक्ति को आध्यात्मिक जागृति (Spiritual Awakening) और जीवन के मूल उद्देश्य (Purpose of Life) को समझने की प्रेरणा देता है। ब्रह्मसुक्ति में ब्रह्मा के मंत्रों (Mantras), उनकी कृपा (Divine Grace), और सत्कर्मों (Righteous Deeds) के महत्व को बताया गया है, जो व्यक्ति को सफलता (Success) और आत्मिक संतुलन (Inner Balance) की ओर ले जाते हैं।
Sukti

Bhagavad Gita fifth chapter (भगवद गीता पांचवां अध्याय)

भगवद गीता पांचवां अध्याय "कर्म-वैराग्य योग" कहलाता है। इसमें श्रीकृष्ण बताते हैं कि त्याग और कर्म के माध्यम से आत्मज्ञान प्राप्त किया जा सकता है। वे सिखाते हैं कि जब व्यक्ति फल की इच्छा छोड़े बिना कर्म करता है, तो उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है। यह अध्याय हमें "कर्मयोग" और "सन्यास" के बीच संतुलन बनाने का मार्ग दिखाता है।
Bhagwat-Gita

Tantroktam Devi Suktam (तन्त्रोक्तम् देवीसूक्तम्)

तन्त्रोक्तम् देवीसूक्तम् एक पवित्र स्तोत्र (sacred hymn) है, जो देवी दुर्गा (Goddess Durga) की महिमा का वर्णन करता है। इसका पाठ (recitation) करने से व्यक्ति को नकारात्मक ऊर्जा (negative energy) और बुरी नजर (evil eye) से सुरक्षा मिलती है। यह स्तोत्र साधकों (spiritual seekers) के लिए विशेष रूप से उपयोगी है, जो आध्यात्मिक शक्ति (spiritual power) और आत्मबल (inner strength) प्राप्त करना चाहते हैं। इस स्तोत्र में देवी के शक्तिशाली (powerful) और रक्षात्मक (protective) रूप का वर्णन है, जो भक्तों को भय (fear) और बाधाओं (obstacles) से मुक्ति प्रदान करता है। तन्त्रोक्तम् देवीसूक्तम् का पाठ जीवन में शांति (peace) और समृद्धि (prosperity) लाने में सहायक है। यह स्तोत्र देवी के क्रोधमयी (fierce) और दयालु (compassionate) रूप की आराधना करता है। देवीसूक्तम् का नियमित पाठ (regular recitation) करने से व्यक्ति को सफलता (success) और सुख (happiness) प्राप्त होता है। यह स्तोत्र देवी के आशीर्वाद (blessings of Goddess) को आकर्षित करता है और जीवन में शक्ति (strength) और स्थिरता (stability) प्रदान करता है। भक्त इसे तंत्र साधना (Tantric practices) के माध्यम से जीवन के सभी कष्टों (hardships) से मुक्ति पाने के लिए करते हैं।
Sukt

Bhagavad Gita Twelveth Chapter (भगवद गीता बारहवाँ अध्याय)

भगवद गीता बारहवाँ अध्याय "भक्ति योग" के नाम से प्रसिद्ध है। इसमें भगवान श्रीकृष्ण भक्ति को सबसे सरल और श्रेष्ठ मार्ग बताते हैं। वे कहते हैं कि जो भक्त पूर्ण श्रद्धा और प्रेम के साथ उनकी आराधना करता है, वह उनका प्रिय होता है। यह अध्याय "भक्ति की महिमा", "ईश्वर के प्रति प्रेम", और "सच्चे भक्त के गुण" का वर्णन करता है।
Bhagwat-Gita

Bhagavad Gita Sixteenth Chapter (भगवत गीता सोलहवाँ अध्याय)

भगवद गीता सोलहवाँ अध्याय "दैवासुर सम्पद विभाग योग" है। इसमें भगवान श्रीकृष्ण दैवी (सद्गुण) और आसुरी (दुर्गुण) स्वभाव का वर्णन करते हैं। वे बताते हैं कि दैवी गुण से व्यक्ति मोक्ष प्राप्त करता है और आसुरी गुण से बंधन में फंसता है। यह अध्याय "सद्गुणों की महिमा", "दुर्गुणों का परित्याग", और "सही जीवनशैली" पर आधारित है।
Bhagwat-Gita

Today Panchang

07 November 2025 (Friday)

Sunrise07:15 AM
Sunset05:43 PM
Moonrise03:00 PM
Moonset05:52 AM, Jan 12
Shaka Samvat1946 Krodhi
Vikram Samvat2081 Pingala