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कोलकाता का कालीघाट मंदिर: 51 शक्तिपीठों में शामिल, मां काली की सोने से बनी है जीभ

Kalighat Shaktipeeth Kolkata: चैत्र नवरात्रि की शुरूआत होने वाली है। Hindu Religion में Navratri Festival का विशेष महत्व होता है। Navratri पर देवी दुर्गा के नौ अलग-अलग स्वरूपों की विशेष रूप से पूजा की जाती है। भारत के अलावा Nepal और Bangladesh में मां के कई प्राचीन मंदिर हैं। Devi Bhagavata Purana में 108, Kalika Purana में 26, Shiva Charitra में 51, Durga Saptashati और Tantra Chudamani में Shakti Peeth की संख्या 52 बताई गई है। सामान्यतः 51 Shakti Peeth माने जाते हैं। Tantra Chudamani में लगभग 52 Shakti Peeths के बारे में बताया गया है।
इस आलेख में हम आपको माता सती के Kalighat Shaktipeeth के बारे में जानकारी दे रहे हैं जो Kolkata, West Bengal में स्थित है।
Kalighat Kolkata Kalika Shaktipeeth: मां काली को देवी दुर्गा की Das Mahavidya में से एक माना जाता है। मां काली के चार रूप हैं - Dakshina Kali, Shamshan Kali, Matri Kali और Mahakali। West Bengal Kolkata के Kalighat में माता के बाएं पैर का अंगूठा गिरा था। इसकी शक्ति है Kalika और भैरव को Nakuleshwar कहते हैं। इसे Dakshineshwar Kali Temple भी कहते हैं। यहां पर देवी काली की चांदी से बनी मूर्ति है। Kalighat Temple में स्थापित मां काली की मूर्ति की जीभ सोने की बनी हुई है।
Ramakrishna Paramhansa की आराध्या देवी मां कालिका का Kolkata में विश्व प्रसिद्ध मंदिर है। कुछ की मान्यता अनुसार इस स्थान पर Sati's Right Foot Fingers गिरी थीं। इसलिए यह सती के 51 Shakti Peeths में शामिल है। इस स्थान पर 1847 में Jan Bazaar Queen Rani Rashmoni ने मंदिर का निर्माण करवाया था। 25 एकड़ क्षेत्र में फैले इस मंदिर का निर्माण कार्य सन् 1855 पूरा हुआ। Kalighat Area कोलकाता के उत्तर में Vivekananda Bridge के पास स्थित है।
मंदिर का समय
कालीघाट मंदिर के द्वार भक्तों के लिए सुबह 5:00 बजे से रात 10:30 बजे तक खुले रहते हैं। वहीँ शनिवार और रविवार को मंदिर देर रात तक खुला रहता है और मंदिर के दरवाजे रात 11:30 बजे बंद होते हैं। इसी के साथ त्योहारों और विशेष दिनों के दौरान कालीघाट काली मंदिर के दर्शन का समय बदल दिया जाता है। दुर्गा अष्टमी के दिन यहां बहुत बड़े स्तर पर पूजा का आयोजन किया जाता है। सामान्य दिनों में पूजा, सुबह 5:30 से 7:00 बजे तक, भोग राग, दोपहर 2:00 बजे से 3:00 बजे तक और शाम को आरती, 6:30 से 7:00 बजे तक होती है।
कैसे बने शक्तिपीठ : पौराणिक कथा के अनुसार जब महादेव शिवजी की पत्नी सती अपने पिता राजा दक्ष के यज्ञ में अपने पति का अपमान सहन नहीं कर पाई तो उसी यज्ञ में कूदकर भस्म हो गई। शिवजी जो जब यह पता चला तो उन्होंने अपने गण वीरभद्र को भेजकर यज्ञ स्थल को उजाड़ दिया और राजा दक्ष का सिर काट दिया। बाद में शिवजी अपनी पत्नी सती की जली हुई लाश लेकर विलाप करते हुए सभी ओर घूमते रहे। जहां-जहां माता के अंग और आभूषण गिरे वहां-वहां शक्तिपीठ निर्मित हो गए। हालांकि पौराणिक आख्यायिका के अनुसार देवी देह के अंगों से इनकी उत्पत्ति हुई, जो भगवान विष्णु के चक्र से विच्छिन्न होकर 108 स्थलों पर गिरे थे, जिनमें में 51 का खास महत्व है।

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