No festivals today or in the next 14 days. 🎉
Narayaniyam Dashaka 7 (नारायणीयं दशक 7)
नारायणीयं दशक 7 (Narayaniyam Dashaka 7)
एवं देव चतुर्दशात्मकजगद्रूपेण जातः पुन-
स्तस्योर्ध्वं खलु सत्यलोकनिलये जातोऽसि धाता स्वयम् ।
यं शंसंति हिरण्यगर्भमखिलत्रैलोक्यजीवात्मकं
योऽभूत् स्फीतरजोविकारविकसन्नानासिसृक्षारसः ॥1॥
सोऽयं विश्वविसर्गदत्तहृदयः संपश्यमानः स्वयं
बोधं खल्वनवाप्य विश्वविषयं चिंताकुलस्तस्थिवान् ।
तावत्त्वं जगतां पते तप तपेत्येवं हि वैहायसीं
वाणीमेनमशिश्रवः श्रुतिसुखां कुर्वंस्तपःप्रेरणाम् ॥2॥
कोऽसौ मामवदत् पुमानिति जलापूर्णे जगन्मंडले
दिक्षूद्वीक्ष्य किमप्यनीक्षितवता वाक्यार्थमुत्पश्यता ।
दिव्यं वर्षसहस्रमात्ततपसा तेन त्वमाराधित -
स्तस्मै दर्शितवानसि स्वनिलयं वैकुंठमेकाद्भुतम् ॥3॥
माया यत्र कदापि नो विकुरुते भाते जगद्भ्यो बहिः
शोकक्रोधविमोहसाध्वसमुखा भावास्तु दूरं गताः ।
सांद्रानंदझरी च यत्र परमज्योतिःप्रकाशात्मके
तत्ते धाम विभावितं विजयते वैकुंठरूपं विभो ॥4॥
यस्मिन्नाम चतुर्भुजा हरिमणिश्यामावदातत्विषो
नानाभूषणरत्नदीपितदिशो राजद्विमानालयाः ।
भक्तिप्राप्ततथाविधोन्नतपदा दीव्यंति दिव्या जना-
तत्ते धाम निरस्तसर्वशमलं वैकुंठरूपं जयेत् ॥5॥
नानादिव्यवधूजनैरभिवृता विद्युल्लतातुल्यया
विश्वोन्मादनहृद्यगात्रलतया विद्योतिताशांतरा ।
त्वत्पादांबुजसौरभैककुतुकाल्लक्ष्मीः स्वयं लक्ष्यते
यस्मिन् विस्मयनीयदिव्यविभवं तत्ते पदं देहि मे ॥6॥
तत्रैवं प्रतिदर्शिते निजपदे रत्नासनाध्यासितं
भास्वत्कोटिलसत्किरीटकटकाद्याकल्पदीप्राकृति ।
श्रीवत्सांकितमात्तकौस्तुभमणिच्छायारुणं कारणं
विश्वेषां तव रूपमैक्षत विधिस्तत्ते विभो भातु मे ॥7॥
कालांभोदकलायकोमलरुचीचक्रेण चक्रं दिशा -
मावृण्वानमुदारमंदहसितस्यंदप्रसन्नाननम् ।
राजत्कंबुगदारिपंकजधरश्रीमद्भुजामंडलं
स्रष्टुस्तुष्टिकरं वपुस्तव विभो मद्रोगमुद्वासयेत् ॥8॥
दृष्ट्वा संभृतसंभ्रमः कमलभूस्त्वत्पादपाथोरुहे
हर्षावेशवशंवदो निपतितः प्रीत्या कृतार्थीभवन् ।
जानास्येव मनीषितं मम विभो ज्ञानं तदापादय
द्वैताद्वैतभवत्स्वरूपपरमित्याचष्ट तं त्वां भजे ॥9॥
आताम्रे चरणे विनम्रमथ तं हस्तेन हस्ते स्पृशन्
बोधस्ते भविता न सर्गविधिभिर्बंधोऽपि संजायते ।
इत्याभाष्य गिरं प्रतोष्य नितरां तच्चित्तगूढः स्वयं
सृष्टौ तं समुदैरयः स भगवन्नुल्लासयोल्लाघताम् ॥10॥
Related to Vishnu
Narayaniyam Dashaka 13 (नारायणीयं दशक 13)
नारायणीयं दशक 13 में भगवान नारायण की स्तुति की गई है। यह दशक भक्तों को भगवान के महिमा और प्रेम के लिए प्रेरित करता है।Narayaniyam-Dashaka
Narayaniyam Dashaka 33 (नारायणीयं दशक 33)
नारायणीयं दशक 33 भगवान विष्णु के दिव्य कार्यों और उनकी कृपा का वर्णन करता है। यह अध्याय भगवान विष्णु की महिमा और उनके असीम अनुग्रह का वर्णन करता है।Narayaniyam-Dashaka
Narayaniyam Dashaka 82 (नारायणीयं दशक 82)
नारायणीयं का बयासीवां दशक भगवान विष्णु के अनंत रूपों और उनकी सर्वव्यापकता का वर्णन करता है। इस दशक में भगवान की सर्वव्यापकता और उनके विभिन्न रूपों के माध्यम से उनकी महिमा का गुणगान किया गया है। भक्त भगवान की अनंत कृपा और उनकी दिव्यता का अनुभव करते हैं।Narayaniyam-Dashaka
Narayaniyam Dashaka 22 (नारायणीयं दशक 22)
नारायणीयं दशक 22 में भगवान नारायण की स्तुति की गई है। यह दशक भक्तों को भगवान के महिमा और प्रेम के लिए प्रेरित करता है।Narayaniyam-Dashaka
Narayaniyam Dashaka 15 (नारायणीयं दशक 15)
नारायणीयं दशक 15 में भगवान नारायण की स्तुति की गई है। यह दशक भक्तों को भगवान के महिमा और प्रेम के लिए प्रेरित करता है।Narayaniyam-Dashaka
Narayaniyam Dashaka 14 (नारायणीयं दशक 14)
नारायणीयं दशक 14 में भगवान नारायण की स्तुति की गई है। यह दशक भक्तों को भगवान के महिमा और प्रेम के लिए प्रेरित करता है।Narayaniyam-Dashaka
Narayaniyam Dashaka 41 (नारायणीयं दशक 41)
नारायणीयं दशक 41 भगवान विष्णु की महिमा और उनकी कृपा का वर्णन करता है। यह अध्याय भगवान विष्णु के दिव्य गुणों और उनकी भक्तों के प्रति अनंत कृपा का वर्णन करता है।Narayaniyam-Dashaka
Narayaniyam Dashaka 40 (नारायणीयं दशक 40)
नारायणीयं दशक 40 भगवान विष्णु के अवतारों और उनकी कृपा का वर्णन करता है। यह अध्याय भगवान विष्णु की महिमा और उनके अनंत अनुग्रह का वर्णन करता है।Narayaniyam-Dashaka