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Sri Vishnu Shata Nama Stotram (Vishnu Purana) || श्री विष्णु शत नाम स्तोत्रम् (विष्णु पुराण) : Full Lyrics and Benefits
Sri Vishnu Shata Nama Stotram (Vishnu Purana) (श्री विष्णु शत नाम स्तोत्रम् (विष्णु पुराण))
Sri Vishnu Shata Naam Stotram भगवान Vishnu के 100 पवित्र नामों का संगीतमय संग्रह है, जो "Preserver of Creation" और "Supreme God" के रूप में पूजित हैं। इस स्तोत्र का पाठ भक्तों को भगवान विष्णु की कृपा, शांति और सुरक्षा प्राप्त करने में सहायक होता है। हर नाम भगवान विष्णु की "Divine Qualities" और "Cosmic Power" का वर्णन करता है। यह स्तोत्र "100 Sacred Names of Vishnu" और "Positive Energy Chant" के रूप में प्रसिद्ध है। इसके नियमित जाप से भक्त को मानसिक शांति, आत्मिक बल और नकारात्मक ऊर्जा से मुक्ति मिलती है। इसे "Hymn for Lord Vishnu" और "Vishnu Devotional Prayer" के रूप में पढ़ने से जीवन में सफलता और शुभता आती है।श्री विष्णु शत नाम स्तोत्रम् (विष्णु पुराण)
(Sri Vishnu Shata Naam Stotram (Vishnu Purana))
॥ श्री विष्णु अष्टोत्तर शतनामस्तोत्रम् ॥
वासुदेवं हृषीकेशं वामनं जलशायिनम् ।
जनार्दनं हरिं कृष्णं श्रीवक्षं गरुडध्वजम् ॥ 1 ॥
वाराहं पुंडरीकाक्षं नृसिंहं नरकांतकम् ।
अव्यक्तं शाश्वतं विष्णुमनंतमजमव्ययम् ॥ 2 ॥
नारायणं गदाध्यक्षं गोविंदं कीर्तिभाजनम् ।
गोवर्धनोद्धरं देवं भूधरं भुवनेश्वरम् ॥ 3 ॥
वेत्तारं यज्ञपुरुषं यज्ञेशं यज्ञवाहनम् ।
चक्रपाणिं गदापाणिं शंखपाणिं नरोत्तमम् ॥ 4 ॥
वैकुंठं दुष्टदमनं भूगर्भं पीतवाससम् ।
त्रिविक्रमं त्रिकालज्ञं त्रिमूर्तिं नंदकेश्वरम् ॥ 5 ॥
रामं रामं हयग्रीवं भीमं रऽउद्रं भवोद्भवम् ।
श्रीपतिं श्रीधरं श्रीशं मंगलं मंगलायुधम् ॥ 6 ॥
दामोदरं दमोपेतं केशवं केशिसूदनम् ।
वरेण्यं वरदं विष्णुमानंदं वासुदेवजम् ॥ 7 ॥
हिरण्यरेतसं दीप्तं पुराणं पुरुषोत्तमम् ।
सकलं निष्कलं शुद्धं निर्गुणं गुणशाश्वतम् ॥ 8 ॥
हिरण्यतनुसंकाशं सूर्यायुतसमप्रभम् ।
मेघश्यामं चतुर्बाहुं कुशलं कमलेक्षणम् ॥ 9 ॥
ज्योतीरूपमरूपं च स्वरूपं रूपसंस्थितम् ।
सर्वज्ञं सर्वरूपस्थं सर्वेशं सर्वतोमुखम् ॥ 10 ॥
ज्ञानं कूटस्थमचलं ज्ञ्हानदं परमं प्रभुम् ।
योगीशं योगनिष्णातं योगिसंयोगरूपिणम् ॥ 11 ॥
ईश्वरं सर्वभूतानां वंदे भूतमयं प्रभुम् ।
इति नामशतं दिव्यं वैष्णवं खलु पापहम् ॥ 12 ॥
व्यासेन कथितं पूर्वं सर्वपापप्रणाशनम् ।
यः पठेत् प्रातरुत्थाय स भवेद् वैष्णवो नरः ॥ 13 ॥
सर्वपापविशुद्धात्मा विष्णुसायुज्यमाप्नुयात् ।
चांद्रायणसहस्राणि कन्यादानशतानि च ॥ 14 ॥
गवां लक्षसहस्राणि मुक्तिभागी भवेन्नरः ।
अश्वमेधायुतं पुण्यं फलं प्राप्नोति मानवः ॥ 15 ॥
॥ इति श्रीविष्णुपुराणे श्री विष्णु अष्टोत्तर शतनास्तोत्रम् ॥
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