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Chatushloki Stotra: चतुःश्लोकी स्तोत्र | Four Powerful Devotional Verses of Wisdom
Chatushloki Stotra (चतुःश्लोकी)
चतु:श्लोकी स्तोत्र (Chatushloki Stotra): यह चार श्लोक (श्लोक) भगवद पुराण के सम्पूर्ण सार को प्रस्तुत करते हैं। इन चार श्लोकों का प्रतिदिन श्रद्धा और विश्वास के साथ पाठ और श्रवण करने से व्यक्ति के अज्ञान और अहंकार का नाश होता है, और उसे आत्म-ज्ञान की प्राप्ति होती है। जो व्यक्ति इन श्लोकों का पाठ करता है, वह अपने पापों से मुक्त हो जाता है और अपने जीवन में सत्य मार्ग का अनुसरण करता है। यह स्तोत्र न केवल आध्यात्मिक उन्नति के लिए महत्वपूर्ण है, बल्कि यह जीवन के वास्तविक उद्देश्य और उद्देश्य को जानने का भी मार्ग प्रशस्त करता है।चतुःश्लोकी
सदा सर्वात्मभावेन भजनीयो व्रजेश्वरः ।
करिष्यति स एवास्मदैहिकं पारलौकिकम् ॥ १ ॥
अन्याश्रयो न कर्तव्यः सर्वथा बाधकस्तु सः ।
स्वकीये स्वात्मभावश्च कर्तव्यः सर्वथा सदा ॥ २ ॥
सदा सर्वात्मना कृष्णः सेव्यः कालादिदोषनुत् ।
तद्भक्तेषु च निर्दोषभावेन स्थेयमादरात् ॥ ३ ॥
भगवत्येव सततं स्थापनीयं मनः स्वयम् ।
कालोऽयं कठिनोऽपि श्रीकृष्णभक्तान्न बाधते ॥ ४ ॥
इति श्रीविट्ठलेश्वरोक्ता (द्वितीया) चतुःश्लोकी समाप्ता ।
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