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Narayaniyam Dashaka 37 (नारायणीयं दशक 37)
नारायणीयं दशक 37 (Narayaniyam Dashaka 37)
सांद्रानंदतनो हरे ननु पुरा दैवासुरे संगरे
त्वत्कृत्ता अपि कर्मशेषवशतो ये ते न याता गतिम् ।
तेषां भूतलजन्मनां दितिभुवां भारेण दूरार्दिता
भूमिः प्राप विरिंचमाश्रितपदं देवैः पुरैवागतैः ॥1॥
हा हा दुर्जनभूरिभारमथितां पाथोनिधौ पातुका-
मेतां पालय हंत मे विवशतां संपृच्छ देवानिमान् ।
इत्यादिप्रचुरप्रलापविवशामालोक्य धाता महीं
देवानां वदनानि वीक्ष्य परितो दध्यौ भवंतं हरे ॥2॥
ऊचे चांबुजभूरमूनयि सुराः सत्यं धरित्र्या वचो
नन्वस्या भवतां च रक्षणविधौ दक्षो हि लक्ष्मीपतिः ।
सर्वे शर्वपुरस्सरा वयमितो गत्वा पयोवारिधिं
नत्वा तं स्तुमहे जवादिति ययुः साकं तवाकेतनम् ॥3॥
ते मुग्धानिलशालिदुग्धजलधेस्तीरं गताः संगता
यावत्त्वत्पदचिंतनैकमनसस्तावत् स पाथोजभूः ।
त्वद्वाचं हृदये निशम्य सकलानानंदयन्नूचिवा-
नाख्यातः परमात्मना स्वयमहं वाक्यं तदाकर्ण्यताम् ॥4॥
जाने दीनदशामहं दिविषदां भूमेश्च भीमैर्नृपै-
स्तत्क्षेपाय भवामि यादवकुले सोऽहं समग्रात्मना ।
देवा वृष्णिकुले भवंतु कलया देवांगनाश्चावनौ
मत्सेवार्थमिति त्वदीयवचनं पाथोजभूरूचिवान् ॥5॥
श्रुत्वा कर्णरसायनं तव वचः सर्वेषु निर्वापित-
स्वांतेष्वीश गतेषु तावककृपापीयूषतृप्तात्मसु ।
विख्याते मधुरापुरे किल भवत्सान्निध्यपुण्योत्तरे
धन्यां देवकनंदनामुदवहद्राजा स शूरात्मजः ॥6॥
उद्वाहावसितौ तदीयसहजः कंसोऽथ सम्मानय-
न्नेतौ सूततया गतः पथि रथे व्योमोत्थया त्वद्गिरा ।
अस्यास्त्वामतिदुष्टमष्टमसुतो हंतेति हंतेरितः
संत्रासात् स तु हंतुमंतिकगतां तन्वीं कृपाणीमधात् ॥7॥
गृह्णानश्चिकुरेषु तां खलमतिः शौरेश्चिरं सांत्वनै-
र्नो मुंचन् पुनरात्मजार्पणगिरा प्रीतोऽथ यातो गृहान् ।
आद्यं त्वत्सहजं तथाऽर्पितमपि स्नेहेन नाहन्नसौ
दुष्टानामपि देव पुष्टकरुणा दृष्टा हि धीरेकदा ॥8॥
तावत्त्वन्मनसैव नारदमुनिः प्रोचे स भोजेश्वरं
यूयं नन्वसुराः सुराश्च यदवो जानासि किं न प्रभो ।
मायावी स हरिर्भवद्वधकृते भावी सुरप्रार्थना-
दित्याकर्ण्य यदूनदूधुनदसौ शौरेश्च सूनूनहन् ॥9॥
प्राप्ते सप्तमगर्भतामहिपतौ त्वत्प्रेरणान्मायया
नीते माधव रोहिणीं त्वमपि भोःसच्चित्सुखैकात्मकः ।
देवक्या जठरं विवेशिथ विभो संस्तूयमानः सुरैः
स त्वं कृष्ण विधूय रोगपटलीं भक्तिं परां देहि मे ॥10॥
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Narayaniyam Dashaka 22 (नारायणीयं दशक 22)
नारायणीयं दशक 22 में भगवान नारायण की स्तुति की गई है। यह दशक भक्तों को भगवान के महिमा और प्रेम के लिए प्रेरित करता है।Narayaniyam-Dashaka
Narayaniyam Dashaka 80 (नारायणीयं दशक 80)
नारायणीयं का अस्सीवां दशक भगवान विष्णु के अद्वितीय स्वरूप और उनकी असीम शक्तियों का वर्णन करता है। इस दशक में, भगवान की अनंत शक्तियों और उनके द्वारा किए गए अद्भुत कार्यों की महिमा की गई है। भक्त भगवान की महिमा और उनकी असीम कृपा का अनुभव करते हैं।Narayaniyam-Dashaka
Narayaniyam Dashaka 10 (नारायणीयं दशक 10)
नारायणीयं दशक 10 में भगवान नारायण की कृपा और आशीर्वाद की अपेक्षा है। यह दशक भक्तों को भगवान के दिव्य समर्थन और संजीवनी शक्ति की विशेषता को समझाता है।Narayaniyam-Dashaka
Shri Deenbandhu Ashtakam (श्री दीनबन्धु अष्टकम्)
Shri Deenbandhu Ashtakam (श्री दीनबन्धु अष्टकम्): श्री दीनबंधु अष्टकम् का नियमित पाठ करने से सभी दुख, दरिद्रता आदि दूर हो जाते हैं। सुख और समृद्धि की प्राप्ति होती है। श्री दीनबंधु अष्टकम् को किसी भी शुक्ल पक्ष की पंचमी से शुरू करके अगले शुक्ल पक्ष तक प्रत्येक दिन चार मण्यों के साथ तुलसी की माला से दीप जलाकर करना चाहिए। दीनबंधु वह अष्टक है जो गरीबों की नम्रता को हराता है। इस स्तोत्र का पाठ तुलसी की माला से दीप जलाकर और अगले चंद्र मास के शुक्ल पक्ष से प्रारंभ करने से सभी प्रकार के दुख, दरिद्रता, और दुःख समाप्त होते हैं और हर प्रकार की सुख-समृद्धि की प्राप्ति होती है। श्री दीनबंधु अष्टकम् उन भक्तों के लिए है जिन्होंने प्रपत्ति की है और प्रपन्न बन गए हैं, और साथ ही उन लोगों के लिए भी जो प्रपत्ति की इच्छा रखते हैं। भगवान की त्वरा (जल्दी से मदद करने की क्षमता) का उल्लेख पहले और आखिरी श्लोकों में किया गया है, जो संकट में फंसे लोगों की रक्षा के लिए है। इस अष्टकम् में, रचनाकार भगवान के ऐश्वर्य, मोक्ष-प्रदाता होने, आदि का उल्लेख करते हुए हमें भगवान के पास जाने की प्रेरणा देते हैं, और बताते हैं कि भगवान के अलावा किसी और से मोक्ष की प्राप्ति संभव नहीं है। यह एक ऐसा अष्टकम् है जिसमें पूर्ण आत्मसमर्पण (प्रपत्ति) और इसके प्रभाव को बहुत संक्षेप में आठ श्लोकों में प्रस्तुत किया गया है। पहले श्लोक में, रचनाकार हमारे जीवन की तुलना उस व्यक्ति से करते हैं जिसे हमारी इंद्रियां चारों ओर से हमला कर रही हैं और जो उन्हें अपनी ओर खींच रही हैं, जैसे कि वह किसी जंगली मगरमच्छ द्वारा खींचा जा रहा हो, और भगवान की कृपा और रक्षा की प्रार्थना करते हैं। दूसरे श्लोक में, रचनाकार हमें यह महसूस करने की आवश्यकता बताते हैं कि हम हमेशा भगवान के निर्भर हैं और हम उनसे स्वतंत्र नहीं हैं। यह प्रपत्ति के अंगों में से एक अंग है – कर्पण्य। जब हम प्रपत्ति के अंगों का पालन करते हैं, तब भगवान हमें अपने चरणों में समर्पण करने की इच्छा देते हैं, जो भगवान को प्राप्त करने का अगला कदम है। तीसरे श्लोक में, रचनाकार भगवान की महानता का गुणगान करते हैं, जो निम्नतम प्राणियों के साथ भी सहजता से मिल जाते हैं। हम सभी उनके द्वारा दी गई पाड़ा-पूजा की याद कर सकते हैं, जिसमें महालक्ष्मी जल का कलश लेकर उनके चरणों की पूजा करती हैं और फिर उस जल को भगवान और महालक्ष्मी के सिर पर छिड़कती हैं। इस प्रकार, प्रत्येक श्लोक में दीनबंधु की महानता का वर्णन किया गया है और इसके पाठ के प्रभावों का भी उल्लेख किया गया है।Ashtakam
Achyutashtakam (अच्युताष्टकम्)
Achyutashtakam भगवान Lord Vishnu की अष्टकशरण स्तुति है, जो उनके दिव्य रूप और Divine Qualities का वर्णन करती है। इस Hindu Devotional Stotra का Chanting करने से भक्तों को Spiritual Growth, Protection, और Blessings मिलती है। Lord Vishnu Worship से जीवन में Peace, Prosperity, और Positive Transformation आती है। इस Sacred Hymn के पाठ से Divine Grace प्राप्त होती है और हर संकट से मुक्ति मिलती है। Achyutashtakam का पाठ करने से भक्तों को Inner Peace और Happiness प्राप्त होती है। यह Auspicious Stotra भक्तों के Spiritual Journey को उन्नति की ओर ले जाता है।Ashtakam
Shri Hari Sharanashtakam (श्री हरि शरणाष्टकम् )
Hari Sharan Ashtakam (हरि शरण अष्टकम): हरी शरण अष्टकम Lord Hari या Mahavishnu को समर्पित एक Ashtakam है। Mahabharata के Vishnu Sahasranama Stotra में "Hari" नाम Vishnu का 650वां नाम है। संस्कृत शब्द 'Sharanam' का अर्थ है Shelter। यह मंत्र हमें Hari's Shelter में लाने की प्रार्थना करता है, जो Place of Refuge है। Hari's Protection का आशीर्वाद सभी Anxieties को दूर कर देता है। Hari Sharan Ashtakam Stotra Prahlad द्वारा Lord Hari की Praise में रचित और गाया गया था। यह प्रार्थना Vishnu को Hari के रूप में समर्पित है। Hari का अर्थ है वह जो आपको True Path दिखाते हैं और उस Illusion (Maya) को दूर करते हैं जिसमें आप जी रहे हैं। यदि इस Stotra का सच्चे मन और Devotion के साथ पाठ किया जाए, तो यह व्यक्ति को Moksha (Ultimate Liberation) के मार्ग पर स्थापित कर सकता है। Hari Vedas, Guru Granth Sahib, और South Asian Sacred Texts में Supreme Absolute का एक नाम है। Rigveda's Purusha Suktam (जो Supreme Cosmic Being की Praise करता है), में Hari God (Brahman) का पहला और सबसे महत्वपूर्ण नाम है। Yajurveda's Narayan Suktam के अनुसार, Hari और Purusha के बाद Supreme Being का वैकल्पिक नाम Narayan है। Hindu Tradition में, Hari और Vishnu को एक-दूसरे के समान माना जाता है। Vedas में, किसी भी Recitation के पहले "Hari Om" Mantra का उच्चारण करने का नियम है, ताकि यह घोषित किया जा सके कि हर Ritual उस Supreme Divine को समर्पित है, भले ही वह किसी भी Demi-God की Praise क्यों न हो। Hinduism में, किसी भी God's Praise Song को "Hari Kirtan" कहा जाता है और Storytelling को "Hari Katha" के रूप में जाना जाता है।Ashtakam
Narayan Suktam (नारायण सूक्तम्)
नारायण सूक्तम्: यह वेदों में भगवान नारायण को समर्पित एक सूक्त है।Sukt
Shri Vishnu Stotra (श्री विष्णु स्तोत्र)
Shri Vishnu Stotra (श्री विष्णु स्तोत्र): श्री विष्णु स्तोत्र हिंदू धर्म में सबसे प्रतिष्ठित पवित्र स्तोत्रों (sacred chants) में से एक है। यह एक शक्तिशाली और लोकप्रिय माध्यम (powerful and popular medium) है जो लक्ष्य (goal) और मुक्ति (salvation) प्राप्त करने का मार्ग दिखाता है। इस स्तोत्र का पाठ (chanting) मानव समस्याओं (human problems) से छुटकारा पाने का समाधान है। भगवान (God) की महिमा महान है। वे सद्गुणों (virtues), ज्ञान (knowledge) और वैराग्य (dispassion) से संपन्न हैं। भगवान की आराधना (worship) करने से हमें संसार से लगाव (obsessions with the world) से मुक्ति मिलती है और हम एक प्रकार की मुक्ति (freedom) का अनुभव करते हैं। जैसे नदी समुद्र (sea) में विलीन हो जाती है और उसकी पहचान समाप्त हो जाती है, उसी प्रकार जब हम परमात्मा (Almighty) से एक हो जाते हैं, तो हमें परम आत्मा (supreme self) की प्राप्ति होती है। भगवान के दिव्य रूपों (divine forms) का चिंतन करने और उनके पवित्र नाम (sacred name) का जप करने से हमारी इंद्रियां (senses) उच्च स्तर (higher level) पर पहुंच जाती हैं। इससे हम आध्यात्मिकता (spirituality) की राह पर आगे बढ़ते हैं और अपनी यात्रा (journey) शुरू करते हैं।Stotra