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Narayaniyam Dashaka 30 (नारायणीयं दशक 30)
नारायणीयं दशक 30 (Narayaniyam Dashaka 30)
शक्रेण संयति हतोऽपि बलिर्महात्मा
शुक्रेण जीविततनुः क्रतुवर्धितोष्मा ।
विक्रांतिमान् भयनिलीनसुरां त्रिलोकीं
चक्रे वशे स तव चक्रमुखादभीतः ॥1॥
पुत्रार्तिदर्शनवशाददितिर्विषण्णा
तं काश्यपं निजपतिं शरणं प्रपन्ना ।
त्वत्पूजनं तदुदितं हि पयोव्रताख्यं
सा द्वादशाहमचरत्त्वयि भक्तिपूर्णा ॥2॥
तस्यावधौ त्वयि निलीनमतेरमुष्याः
श्यामश्चतुर्भुजवपुः स्वयमाविरासीः ।
नम्रां च तामिह भवत्तनयो भवेयं
गोप्यं मदीक्षणमिति प्रलपन्नयासीः ॥3॥
त्वं काश्यपे तपसि सन्निदधत्तदानीं
प्राप्तोऽसि गर्भमदितेः प्रणुतो विधात्रा ।
प्रासूत च प्रकटवैष्णवदिव्यरूपं
सा द्वादशीश्रवणपुण्यदिने भवंतम् ॥4॥
पुण्याश्रमं तमभिवर्षति पुष्पवर्षै-
र्हर्षाकुले सुरगणे कृततूर्यघोषे ।
बध्वाऽंजलिं जय जयेति नुतः पितृभ्यां
त्वं तत्क्षणे पटुतमं वटुरूपमाधाः ॥5॥
तावत्प्रजापतिमुखैरुपनीय मौंजी-
दंडाजिनाक्षवलयादिभिरर्च्यमानः ।
देदीप्यमानवपुरीश कृताग्निकार्य-
स्त्वं प्रास्थिथा बलिगृहं प्रकृताश्वमेधम् ॥6॥
गात्रेण भाविमहिमोचितगौरवं प्रा-
ग्व्यावृण्वतेव धरणीं चलयन्नायासीः ।
छत्रं परोष्मतिरणार्थमिवादधानो
दंडं च दानवजनेष्विव सन्निधातुम् ॥7॥
तां नर्मदोत्तरतटे हयमेधशाला-
मासेदुषि त्वयि रुचा तव रुद्धनेत्रैः ।
भास्वान् किमेष दहनो नु सनत्कुमारो
योगी नु कोऽयमिति शुक्रमुखैश्शशंके ॥8॥
आनीतमाशु भृगुभिर्महसाऽभिभूतै-
स्त्वां रम्यरूपमसुरः पुलकावृतांगः ।
भक्त्या समेत्य सुकृती परिणिज्य पादौ
तत्तोयमन्वधृत मूर्धनि तीर्थतीर्थम् ॥9॥
प्रह्लादवंशजतया क्रतुभिर्द्विजेषु
विश्वासतो नु तदिदं दितिजोऽपि लेभे ।
यत्ते पदांबु गिरिशस्य शिरोभिलाल्यं
स त्वं विभो गुरुपुरालय पालयेथाः ॥10॥
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