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Dashavatara Stotram (दशावतार स्तोत्रम्)
दशावतार स्तोत्रम् (वेदान्ताचार्य कृतम्)
(Dashavatara Stotram)
देवो नश्शुभमातनोतु दशधा निर्वर्तयन्भूमिकां
रङ्गे धामनि लब्धनिर्भररसैरध्यक्षितो भावुकैः ।
यद्भावेषु पृथग्विधेष्वनुगुणान्भावान्स्वयं बिभ्रती
यद्धर्मैरिह धर्मिणी विहरते नानाकृतिर्नायिका ॥ 1 ॥
निर्मग्नश्रुतिजालमार्गणदशादत्तक्षणैर्वीक्षणै-
रन्तस्तन्वदिवारविन्दगहनान्यौदन्वतीनामपाम् ।
निष्प्रत्यूहतरङ्गरिङ्खणमिथः प्रत्यूढपाथश्छटा-
डोलारोहसदोहलं भगवतो मात्स्यं वपुः पातु नः ॥ 2 ॥
अव्यासुर्भुवनत्रयीमनिभृतं कण्डूयनैरद्रिणा
निद्राणस्य परस्य कूर्मवपुषो निश्वासवातोर्मयः ।
यद्विक्षेपणसंस्कृतोदधिपयः प्रेङ्खोलपर्यङ्किका-
नित्यारोहणनिर्वृतो विहरते देवस्सहैव श्रिया ॥ 3 ॥
गोपायेदनिशं जगन्ति कुहनापोत्री पवित्रीकृत-
ब्रह्माण्डप्रलयोर्मिघोषगुरुभिर्घोणारवैर्घुर्घुरैः ।
यद्दंष्ट्राङ्कुरकोटिगाढघटनानिष्कम्पनित्यस्थिति-
र्ब्रह्मस्तम्बमसौदसौ भगवतीमुस्तेवविश्वम्भरा ॥ 4 ॥
प्रत्यादिष्टपुरातनप्रहरणग्रामःक्षणं पाणिजै-
रव्यात्त्रीणि जगन्त्यकुण्ठमहिमा वैकुण्ठकण्ठीरवः ।
यत्प्रादुर्भवनादवन्ध्यजठरायादृच्छिकाद्वेधसां-
या काचित्सहसा महासुरगृहस्थूणापितामह्यभृत् ॥ 5 ॥
व्रीडाविद्धवदान्यदानवयशोनासीरधाटीभट-
स्त्रैयक्षं मकुटं पुनन्नवतु नस्त्रैविक्रमो विक्रमः ।
यत्प्रस्तावसमुच्छ्रितध्वजपटीवृत्तान्तसिद्धान्तिभि-
स्स्रोतोभिस्सुरसिन्धुरष्टसुदिशासौधेषु दोधूयते ॥ 6 ॥
क्रोधाग्निं जमदग्निपीडनभवं सन्तर्पयिष्यन् क्रमा-
दक्षत्रामिह सन्ततक्ष य इमां त्रिस्सप्तकृत्वः क्षितिम् ।
दत्वा कर्मणि दक्षिणां क्वचन तामास्कन्द्य सिन्धुं वस-
न्नब्रह्मण्यमपाकरोतु भगवानाब्रह्मकीटं मुनिः ॥ 7 ॥
पारावारपयोविशोषणकलापारीणकालानल-
ज्वालाजालविहारहारिविशिखव्यापारघोरक्रमः ।
सर्वावस्थसकृत्प्रपन्नजनतासंरक्षणैकव्रती
धर्मो विग्रहवानधर्मविरतिं धन्वी सतन्वीतु नः ॥ 8 ॥
फक्कत्कौरवपट्टणप्रभृतयः प्रास्तप्रलम्बादय-
स्तालाङ्कास्यतथाविधा विहृतयस्तन्वन्तु भद्राणि नः ।
क्षीरं शर्करयेव याभिरपृथग्भूताः प्रभूतैर्गुणै-
राकौमारकमस्वदन्तजगते कृष्णस्य ताः केलयः ॥ 9 ॥
नाथायैव नमः पदं भवतु नश्चित्रैश्चरित्रक्रमै-
र्भूयोभिर्भुवनान्यमूनिकुहनागोपाय गोपायते ।
कालिन्दीरसिकायकालियफणिस्फारस्फटावाटिका-
रङ्गोत्सङ्गविशङ्कचङ्क्रमधुरापर्याय चर्यायते ॥ 10 ॥
भाविन्या दशयाभवन्निह भवध्वंसाय नः कल्पतां
कल्की विष्णुयशस्सुतः कलिकथाकालुष्यकूलङ्कषः ।
निश्शेषक्षतकण्टके क्षितितले धाराजलौघैर्ध्रुवं
धर्मं कार्तयुगं प्ररोहयति यन्निस्त्रिंशधाराधरः ॥ 11 ॥
इच्छामीन विहारकच्छप महापोत्रिन् यदृच्छाहरे
रक्षावामन रोषराम करुणाकाकुत्स्थ हेलाहलिन् ।
क्रीडावल्लव कल्किवाहन दशाकल्किन्निति प्रत्यहं
जल्पन्तः पुरुषाः पुनन्तु भुवनं पुण्यौघपण्यापणाः ॥
विद्योदन्वति वेङ्कटेश्वरकवौ जातं जगन्मङ्गलं
देवेशस्यदशावतारविषयं स्तोत्रं विवक्षेत यः ।
वक्त्रे तस्य सरस्वती बहुमुखी भक्तिः परा मानसे
शुद्धिः कापि तनौ दिशासु दशसु ख्यातिश्शुभा जृम्भते ॥
इति कवितार्किकसिंहस्य सर्वतन्त्रस्वतन्त्रस्य श्रीमद्वेङ्कटनाथस्य वेदान्ताचार्यस्य कृतिषु दशावतारस्तोत्रम् ।
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Shri Deenbandhu Ashtakam (श्री दीनबन्धु अष्टकम्)
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श्री नारायण अष्टकम्: हिंदू मान्यता के अनुसार, श्री नारायण अष्टकम का नियमित जाप भगवान विष्णु को प्रसन्न करने और उनकी कृपा प्राप्त करने का सबसे प्रभावी तरीका है। सर्वश्रेष्ठ परिणाम प्राप्त करने के लिए, श्री नारायण अष्टकम का पाठ सुबह स्नान के बाद भगवान विष्णु की मूर्ति या तस्वीर के सामने करना चाहिए। इसके प्रभाव को अधिकतम करने के लिए, पहले श्री नारायण अष्टकम का अर्थ हिंदी में समझना चाहिए।Ashtakam
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