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Narayaniyam Dashaka 75 (नारायणीयं दशक 75)
नारायणीयं दशक 75 (Narayaniyam Dashaka 75)
प्रातः संत्रस्तभोजक्षितिपतिवचसा प्रस्तुते मल्लतूर्ये
संघे राज्ञां च मंचानभिययुषि गते नंदगोपेऽपि हर्म्यम् ।
कंसे सौधाधिरूढे त्वमपि सहबलः सानुगश्चारुवेषो
रंगद्वारं गतोऽभूः कुपितकुवलयापीडनागावलीढम् ॥1॥
पापिष्ठापेहि मार्गाद्द्रुतमिति वचसा निष्ठुरक्रुद्धबुद्धे-
रंबष्ठस्य प्रणोदादधिकजवजुषा हस्तिना गृह्यमाणः ।
केलीमुक्तोऽथ गोपीकुचकलशचिरस्पर्धिनं कुंभमस्य
व्याहत्यालीयथास्त्वं चरणभुवि पुनर्निर्गतो वल्गुहासी ॥2॥
हस्तप्राप्योऽप्यगम्यो झटिति मुनिजनस्येव धावन् गजेंद्रं
क्रीडन्नापात्य भूमौ पुनरभिपततस्तस्य दंतं सजीवम् ।
मूलादुन्मूल्य तन्मूलगमहितमहामौक्तिकान्यात्ममित्रे
प्रादास्त्वं हारमेभिर्ललितविरचितं राधिकायै दिशेति ॥3॥
गृह्णानं दंतमंसे युतमथ हलिना रंगमंगाविशंतं
त्वां मंगल्यांगभंगीरभसहृतमनोलोचना वीक्ष्य लोकाः ।
हंहो धन्यो हि नंदो नहि नहि पशुपालांगना नो यशोदा
नो नो धन्येक्षणाः स्मस्त्रिजगति वयमेवेति सर्वे शशंसुः ॥4॥
पूर्णं ब्रह्मैव साक्षान्निरवधि परमानंदसांद्रप्रकाशं
गोपेशु त्वं व्यलासीर्न खलु बहुजनैस्तावदावेदितोऽभूः ।
दृष्ट्वाऽथ त्वां तदेदंप्रथममुपगते पुण्यकाले जनौघाः
पूर्णानंदा विपापाः सरसमभिजगुस्त्वत्कृतानि स्मृतानि ॥5॥
चाणूरो मल्लवीरस्तदनु नृपगिरा मुष्टिको मुष्टिशाली
त्वां रामं चाभिपेदे झटझटिति मिथो मुष्टिपातातिरूक्षम् ।
उत्पातापातनाकर्षणविविधरणान्यासतां तत्र चित्रं
मृत्योः प्रागेव मल्लप्रभुरगमदयं भूरिशो बंधमोक्षान् ॥6॥
हा धिक् कष्टं कुमारौ सुललितवपुषौ मल्लवीरौ कठोरौ
न द्रक्ष्यामो व्रजामस्त्वरितमिति जने भाषमाणे तदानीम् ।
चाणूरं तं करोद्भ्रामणविगलदसुं पोथयामासिथोर्व्यां
पिष्टोऽभून्मुष्टिकोऽपि द्रुतमथ हलिना नष्टशिष्टैर्दधावे ॥7॥
कंस संवार्य तूर्यं खलमतिरविदन् कार्यमार्यान् पितृंस्ता-
नाहंतुं व्याप्तमूर्तेस्तव च समशिषद्दूरमुत्सारणाय ।
रुष्टो दुष्टोक्तिभिस्त्वं गरुड इव गिरिं मंचमंचन्नुदंचत्-
खड्गव्यावल्गदुस्संग्रहमपि च हठात् प्राग्रहीरौग्रसेनिम् ॥8॥
सद्यो निष्पिष्टसंधिं भुवि नरपतिमापात्य तस्योपरिष्टा-
त्त्वय्यापात्ये तदैव त्वदुपरि पतिता नाकिनां पुष्पवृष्टिः ।
किं किं ब्रूमस्तदानीं सततमपि भिया त्वद्गतात्मा स भेजे
सायुज्यं त्वद्वधोत्था परम परमियं वासना कालनेमेः ॥9॥
तद्भ्रातृनष्ट पिष्ट्वा द्रुतमथ पितरौ सन्नमन्नुग्रसेनं
कृत्वा राजानमुच्चैर्यदुकुलमखिलं मोदयन् कामदानैः ।
भक्तानामुत्तमं चोद्धवममरगुरोराप्तनीतिं सखायं
लब्ध्वा तुष्टो नगर्यां पवनपुरपते रुंधि मे सर्वरोगान् ॥10॥
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