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Narayaniyam Dashaka 60 (नारायणीयं दशक 60)
नारायणीयं दशक 60 (Narayaniyam Dashaka 60)
मदनातुरचेतसोऽन्वहं भवदंघ्रिद्वयदास्यकाम्यया ।
यमुनातटसीम्नि सैकतीं तरलाक्ष्यो गिरिजां समार्चिचन् ॥1॥
तव नामकथारताः समं सुदृशः प्रातरुपागता नदीम् ।
उपहारशतैरपूजयन् दयितो नंदसुतो भवेदिति ॥2॥
इति मासमुपाहितव्रतास्तरलाक्षीरभिवीक्ष्य ता भवान् ।
करुणामृदुलो नदीतटं समयासीत्तदनुग्रहेच्छया ॥3॥
नियमावसितौ निजांबरं तटसीमन्यवमुच्य तास्तदा ।
यमुनाजलखेलनाकुलाः पुरतस्त्वामवलोक्य लज्जिताः ॥4॥
त्रपया नमिताननास्वथो वनितास्वंबरजालमंतिके ।
निहितं परिगृह्य भूरुहो विटपं त्वं तरसाऽधिरूढवान् ॥5॥
इह तावदुपेत्य नीयतां वसनं वः सुदृशो यथायथम् ।
इति नर्ममृदुस्मिते त्वयि ब्रुवति व्यामुमुहे वधूजनैः ॥6॥
अयि जीव चिरं किशोर नस्तव दासीरवशीकरोषि किम् ।
प्रदिशांबरमंबुजेक्षणेत्युदितस्त्वं स्मितमेव दत्तवान् ॥7॥
अधिरुह्य तटं कृतांजलीः परिशुद्धाः स्वगतीर्निरीक्ष्य ताः ।
वसनान्यखिलान्यनुग्रहं पुनरेवं गिरमप्यदा मुदा ॥8॥
विदितं ननु वो मनीषितं वदितारस्त्विह योग्यमुत्तरम् ।
यमुनापुलिने सचंद्रिकाः क्षणदा इत्यबलास्त्वमूचिवान् ॥9॥
उपकर्ण्य भवन्मुखच्युतं मधुनिष्यंदि वचो मृगीदृशः ।
प्रणयादयि वीक्ष्य वीक्ष्य ते वदनाब्जं शनकैर्गृहं गताः ॥10॥
इति नन्वनुगृह्य वल्लवीर्विपिनांतेषु पुरेव संचरन् ।
करुणाशिशिरो हरे हर त्वरया मे सकलामयावलिम् ॥11॥
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