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Narayaniyam Dashaka 66 (नारायणीयं दशक 66)
नारायणीयं दशक 66 (Narayaniyam Dashaka 66)
उपयातानां सुदृशां कुसुमायुधबाणपातविवशानाम् ।
अभिवांछितं विधातुं कृतमतिरपि ता जगाथ वाममिव ॥1॥
गगनगतं मुनिनिवहं श्रावयितुं जगिथ कुलवधूधर्मम् ।
धर्म्यं खलु ते वचनं कर्म तु नो निर्मलस्य विश्वास्यम् ॥2॥
आकर्ण्य ते प्रतीपां वाणीमेणीदृशः परं दीनाः ।
मा मा करुणासिंधो परित्यजेत्यतिचिरं विलेपुस्ताः ॥3॥
तासां रुदितैर्लपितैः करुणाकुलमानसो मुरारे त्वम् ।
ताभिस्समं प्रवृत्तो यमुनापुलिनेषु काममभिरंतुम् ॥4॥
चंद्रकरस्यंदलसत्सुंदरयमुनातटांतवीथीषु ।
गोपीजनोत्तरीयैरापादितसंस्तरो न्यषीदस्त्वम् ॥5॥
सुमधुरनर्मालपनैः करसंग्रहणैश्च चुंबनोल्लासैः ।
गाढालिंगनसंगैस्त्वमंगनालोकमाकुलीचकृषे ॥6॥
वासोहरणदिने यद्वासोहरणं प्रतिश्रुतं तासाम् ।
तदपि विभो रसविवशस्वांतानां कांत सुभ्रुवामदधाः ॥7॥
कंदलितघर्मलेशं कुंदमृदुस्मेरवक्त्रपाथोजम् ।
नंदसुत त्वां त्रिजगत्सुंदरमुपगूह्य नंदिता बालाः ॥8॥
विरहेष्वंगारमयः शृंगारमयश्च संगमे हि त्वम् नितरामंगारमयस्तत्र पुनस्संगमेऽपि चित्रमिदम् ॥9॥
राधातुंगपयोधरसाधुपरीरंभलोलुपात्मानम् ।
आराधये भवंतं पवनपुराधीश शमय सकलगदान् ॥10॥
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