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Narayaniyam Dashaka 5 (नारायणीयं दशक 5)
नारायणीयं दशक 5 (Narayaniyam Dashaka 5)
व्यक्ताव्यक्तमिदं न किंचिदभवत्प्राक्प्राकृतप्रक्षये
मायायां गुणसाम्यरुद्धविकृतौ त्वय्यागतायां लयम् ।
नो मृत्युश्च तदाऽमृतं च समभून्नाह्नो न रात्रेः स्थिति-
स्तत्रैकस्त्वमशिष्यथाः किल परानंदप्रकाशात्मना ॥1॥
कालः कर्म गुणाश्च जीवनिवहा विश्वं च कार्यं विभो
चिल्लीलारतिमेयुषि त्वयि तदा निर्लीनतामाययुः ।
तेषां नैव वदंत्यसत्त्वमयि भोः शक्त्यात्मना तिष्ठतां
नो चेत् किं गगनप्रसूनसदृशां भूयो भवेत्संभवः ॥2॥
एवं च द्विपरार्धकालविगतावीक्षां सिसृक्षात्मिकां
बिभ्राणे त्वयि चुक्षुभे त्रिभुवनीभावाय माया स्वयम् ।
मायातः खलु कालशक्तिरखिलादृष्टं स्वभावोऽपि च
प्रादुर्भूय गुणान्विकास्य विदधुस्तस्यास्सहायक्रियाम् ॥3॥
मायासन्निहितोऽप्रविष्टवपुषा साक्षीति गीतो भवान्
भेदैस्तां प्रतिबिंबतो विविशिवान् जीवोऽपि नैवापरः ।
कालादिप्रतिबोधिताऽथ भवता संचोदिता च स्वयं
माया सा खलु बुद्धितत्त्वमसृजद्योऽसौ महानुच्यते ॥4॥
तत्रासौ त्रिगुणात्मकोऽपि च महान् सत्त्वप्रधानः स्वयं
जीवेऽस्मिन् खलु निर्विकल्पमहमित्युद्बोधनिष्पाद्कः ।
चक्रेऽस्मिन् सविकल्पबोधकमहंतत्त्वं महान् खल्वसौ
संपुष्टं त्रिगुणैस्तमोऽतिबहुलं विष्णो भवत्प्रेरणात् ॥5॥
सोऽहं च त्रिगुणक्रमात् त्रिविधतामासाद्य वैकारिको
भूयस्तैजसतामसाविति भवन्नाद्येन सत्त्वात्मना
देवानिंद्रियमानिनोऽकृत दिशावातार्कपाश्यश्विनो
वह्नींद्राच्युतमित्रकान् विधुविधिश्रीरुद्रशारीरकान् ॥6॥
भूमन् मानसबुद्ध्यहंकृतिमिलच्चित्ताख्यवृत्त्यन्वितं
तच्चांतःकरणं विभो तव बलात् सत्त्वांश एवासृजत् ।
जातस्तैजसतो दशेंद्रियगणस्तत्तामसांशात्पुन-
स्तन्मात्रं नभसो मरुत्पुरपते शब्दोऽजनि त्वद्बलात् ॥7॥
श्ब्दाद्व्योम ततः ससर्जिथ विभो स्पर्शं ततो मारुतं
तस्माद्रूपमतो महोऽथ च रसं तोयं च गंधं महीम् ।
एवं माधव पूर्वपूर्वकलनादाद्याद्यधर्मान्वितं
भूतग्राममिमं त्वमेव भगवन् प्राकाशयस्तामसात् ॥8॥
एते भूतगणास्तथेंद्रियगणा देवाश्च जाताः पृथङ्-
नो शेकुर्भुवनांडनिर्मितिविधौ देवैरमीभिस्तदा ।
त्वं नानाविधसूक्तिभिर्नुतगुणस्तत्त्वान्यमून्याविशं-
श्चेष्टाशक्तिमुदीर्य तानि घटयन् हैरण्यमंडं व्यधाः ॥9॥
अंडं तत्खलु पूर्वसृष्टसलिलेऽतिष्ठत् सहस्रं समाः
निर्भिंदन्नकृथाश्चतुर्दशजगद्रूपं विराडाह्वयम् ।
साहस्रैः करपादमूर्धनिवहैर्निश्शेषजीवात्मको
निर्भातोऽसि मरुत्पुराधिप स मां त्रायस्व सर्वामयात् ॥10॥
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