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Narayaniyam Dashaka 40 (नारायणीयं दशक 40)
नारायणीयं दशक 40 (Narayaniyam Dashaka 40)
तदनु नंदममंदशुभास्पदं नृपपुरीं करदानकृते गतम्।
समवलोक्य जगाद भवत्पिता विदितकंससहायजनोद्यमः ॥1॥
अयि सखे तव बालकजन्म मां सुखयतेऽद्य निजात्मजजन्मवत् ।
इति भवत्पितृतां व्रजनायके समधिरोप्य शशंस तमादरात् ॥2॥
इह च संत्यनिमित्तशतानि ते कटकसीम्नि ततो लघु गम्यताम् ।
इति च तद्वचसा व्रजनायको भवदपायभिया द्रुतमाययौ ॥3॥
अवसरे खलु तत्र च काचन व्रजपदे मधुराकृतिरंगना ।
तरलषट्पदलालितकुंतला कपटपोतक ते निकटं गता ॥4॥
सपदि सा हृतबालकचेतना निशिचरान्वयजा किल पूतना ।
व्रजवधूष्विह केयमिति क्षणं विमृशतीषु भवंतमुपाददे ॥5॥
ललितभावविलासहृतात्मभिर्युवतिभिः प्रतिरोद्धुमपारिता ।
स्तनमसौ भवनांतनिषेदुषी प्रददुषी भवते कपटात्मने ॥5॥
समधिरुह्य तदंकमशंकितस्त्वमथ बालकलोपनरोषितः ।
महदिवाम्रफलं कुचमंडलं प्रतिचुचूषिथ दुर्विषदूषितम् ॥7॥
असुभिरेव समं धयति त्वयि स्तनमसौ स्तनितोपमनिस्वना ।
निरपतद्भयदायि निजं वपुः प्रतिगता प्रविसार्य भुजावुभौ ॥8॥
भयदघोषणभीषणविग्रहश्रवणदर्शनमोहितवल्लवे ।
व्रजपदे तदुरःस्थलखेलनं ननु भवंतमगृह्णत गोपिकाः ॥9॥
भुवनमंगलनामभिरेव ते युवतिभिर्बहुधा कृतरक्षणः ।
त्वमयि वातनिकेतननाथ मामगदयन् कुरु तावकसेवकम् ॥10॥
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