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Narayaniyam Dashaka 39 (नारायणीयं दशक 39)
नारायणीयं दशक 39 (Narayaniyam Dashaka 39)
भवंतमयमुद्वहन् यदुकुलोद्वहो निस्सरन्
ददर्श गगनोच्चलज्जलभरां कलिंदात्मजाम् ।
अहो सलिलसंचयः स पुनरैंद्रजालोदितो
जलौघ इव तत्क्षणात् प्रपदमेयतामाययौ ॥1॥
प्रसुप्तपशुपालिकां निभृतमारुदद्बालिका-
मपावृतकवाटिकां पशुपवाटिकामाविशन् ।
भवंतमयमर्पयन् प्रसवतल्पके तत्पदा-
द्वहन् कपटकन्यकां स्वपुरमागतो वेगतः ॥2॥
ततस्त्वदनुजारवक्षपितनिद्रवेगद्रवद्-
भटोत्करनिवेदितप्रसववार्तयैवार्तिमान् ।
विमुक्तचिकुरोत्करस्त्वरितमापतन् भोजरा-
डतुष्ट इव दृष्टवान् भगिनिकाकरे कन्यकाम् ॥3॥
ध्रुवं कपटशालिनो मधुहरस्य माया भवे-
दसाविति किशोरिकां भगिनिकाकरालिंगिताम् ।
द्विपो नलिनिकांतरादिव मृणालिकामाक्षिप-
न्नयं त्वदनुजामजामुपलपट्टके पिष्टवान् ॥4॥
ततः भवदुपासको झटिति मृत्युपाशादिव
प्रमुच्य तरसैव सा समधिरूढरूपांतरा ।
अधस्तलमजग्मुषी विकसदष्टबाहुस्फुर-
न्महायुधमहो गता किल विहायसा दिद्युते ॥5॥
नृशंसतर कंस ते किमु मया विनिष्पिष्टया
बभूव भवदंतकः क्वचन चिंत्यतां ते हितम् ।
इति त्वदनुजा विभो खलमुदीर्य तं जग्मुषी
मरुद्गणपणायिता भुवि च मंदिराण्येयुषी ॥6॥
प्रगे पुनरगात्मजावचनमीरिता भूभुजा
प्रलंबबकपूतनाप्रमुखदानवा मानिनः ।
भवन्निधनकाम्यया जगति बभ्रमुर्निर्भयाः
कुमारकविमारकाः किमिव दुष्करं निष्कृपैः ॥7॥
ततः पशुपमंदिरे त्वयि मुकुंद नंदप्रिया-
प्रसूतिशयनेशये रुदति किंचिदंचत्पदे ।
विबुध्य वनिताजनैस्तनयसंभवे घोषिते
मुदा किमु वदाम्यहो सकलमाकुलं गोकुलम् ॥8॥
अहो खलु यशोदया नवकलायचेतोहरं
भवंतमलमंतिके प्रथममापिबंत्या दृशा ।
पुनः स्तनभरं निजं सपदि पाययंत्या मुदा
मनोहरतनुस्पृशा जगति पुण्यवंतो जिताः ॥9॥
भवत्कुशलकाम्यया स खलु नंदगोपस्तदा
प्रमोदभरसंकुलो द्विजकुलाय किन्नाददात् ।
तथैव पशुपालकाः किमु न मंगलं तेनिरे
जगत्त्रितयमंगल त्वमिह पाहि मामामयात् ॥10॥
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