No festivals today or in the next 14 days. 🎉
Narayaniyam Dashaka 36 (नारायणीयं दशक 36)
नारायणीयं दशक 36 (Narayaniyam Dashaka 36)
अत्रेः पुत्रतया पुरा त्वमनसूयायां हि दत्ताभिधो
जातः शिष्यनिबंधतंद्रितमनाः स्वस्थश्चरन् कांतया ।
दृष्टो भक्ततमेन हेहयमहीपालेन तस्मै वरा-
नष्टैश्वर्यमुखान् प्रदाय ददिथ स्वेनैव चांते वधम् ॥1॥
सत्यं कर्तुमथार्जुनस्य च वरं तच्छक्तिमात्रानतं
ब्रह्मद्वेषि तदाखिलं नृपकुलं हंतुं च भूमेर्भरम् ।
संजातो जमदग्नितो भृगुकुले त्वं रेणुकायां हरे
रामो नाम तदात्मजेष्ववरजः पित्रोरधाः सम्मदम् ॥2॥
लब्धाम्नायगणश्चतुर्दशवया गंधर्वराजे मना-
गासक्तां किल मातरं प्रति पितुः क्रोधाकुलस्याज्ञया ।
ताताज्ञातिगसोदरैः सममिमां छित्वाऽथ शांतात् पितु-
स्तेषां जीवनयोगमापिथ वरं माता च तेऽदाद्वरान् ॥3॥
पित्रा मातृमुदे स्तवाहृतवियद्धेनोर्निजादाश्रमात्
प्रस्थायाथ भृगोर्गिरा हिमगिरावाराध्य गौरीपतिम् ।
लब्ध्वा तत्परशुं तदुक्तदनुजच्छेदी महास्त्रादिकं
प्राप्तो मित्रमथाकृतव्रणमुनिं प्राप्यागमः स्वाश्रमम् ॥4॥
आखेटोपगतोऽर्जुनः सुरगवीसंप्राप्तसंपद्गणै-
स्त्वत्पित्रा परिपूजितः पुरगतो दुर्मंत्रिवाचा पुनः ।
गां क्रेतुं सचिवं न्ययुंक्त कुधिया तेनापि रुंधन्मुनि-
प्राणक्षेपसरोषगोहतचमूचक्रेण वत्सो हृतः ॥5॥
शुक्रोज्जीविततातवाक्यचलितक्रोधोऽथ सख्या समं
बिभ्रद्ध्यातमहोदरोपनिहितं चापं कुठारं शरान् ।
आरूढः सहवाहयंतृकरथं माहिष्मतीमाविशन्
वाग्भिर्वत्समदाशुषि क्षितिपतौ संप्रास्तुथाः संगरम् ॥6॥
पुत्राणामयुतेन सप्तदशभिश्चाक्षौहिणीभिर्महा-
सेनानीभिरनेकमित्रनिवहैर्व्याजृंभितायोधनः ।
सद्यस्त्वत्ककुठारबाणविदलन्निश्शेषसैन्योत्करो
भीतिप्रद्रुतनष्टशिष्टतनयस्त्वामापतत् हेहयः ॥7॥
लीलावारितनर्मदाजलवलल्लंकेशगर्वापह-
श्रीमद्बाहुसहस्रमुक्तबहुशस्त्रास्त्रं निरुंधन्नमुम् ।
चक्रे त्वय्यथ वैष्णवेऽपि विफले बुद्ध्वा हरिं त्वां मुदा
ध्यायंतं छितसर्वदोषमवधीः सोऽगात् परं ते पदम् ॥8॥
भूयोऽमर्षितहेहयात्मजगणैस्ताते हते रेणुका-
माघ्नानां हृदयं निरीक्ष्य बहुशो घोरां प्रतिज्ञां वहन् ।
ध्यानानीतरथायुधस्त्वमकृथा विप्रद्रुहः क्षत्रियान्
दिक्चक्रेषु कुठारयन् विशिखयन् निःक्षत्रियां मेदिनीम् ॥9॥
तातोज्जीवनकृन्नृपालककुलं त्रिस्सप्तकृत्वो जयन्
संतर्प्याथ समंतपंचकमहारक्तहृदौघे पितृन्
यज्ञे क्ष्मामपि काश्यपादिषु दिशन् साल्वेन युध्यन् पुनः
कृष्णोऽमुं निहनिष्यतीति शमितो युद्धात् कुमारैर्भवान् ॥10॥
न्यस्यास्त्राणि महेंद्रभूभृति तपस्तन्वन् पुनर्मज्जितां
गोकर्णावधि सागरेण धरणीं दृष्ट्वार्थितस्तापसैः ।
ध्यातेष्वासधृतानलास्त्रचकितं सिंधुं स्रुवक्षेपणा-
दुत्सार्योद्धृतकेरलो भृगुपते वातेश संरक्ष माम् ॥11॥
Related to Vishnu
Narayaniyam Dashaka 22 (नारायणीयं दशक 22)
नारायणीयं दशक 22 में भगवान नारायण की स्तुति की गई है। यह दशक भक्तों को भगवान के महिमा और प्रेम के लिए प्रेरित करता है।Narayaniyam-Dashaka
Narayan Suktam (नारायण सूक्तम्)
नारायण सूक्तम्: यह वेदों में भगवान नारायण को समर्पित एक सूक्त है।Sukt
Narayaniyam Dashaka 1 (नारायणीयं दशक 1)
नारायणीयं दशक 1 श्री नारायण की महिमा और महात्म्य को स्तुति करता है। यह दशक भक्तों को नारायण के प्रेम और भक्ति की अद्वितीयता को समझाता है।Narayaniyam-Dashaka
Narayaniyam Dashaka 33 (नारायणीयं दशक 33)
नारायणीयं दशक 33 भगवान विष्णु के दिव्य कार्यों और उनकी कृपा का वर्णन करता है। यह अध्याय भगवान विष्णु की महिमा और उनके असीम अनुग्रह का वर्णन करता है।Narayaniyam-Dashaka
Narayaniyam Dashaka 40 (नारायणीयं दशक 40)
नारायणीयं दशक 40 भगवान विष्णु के अवतारों और उनकी कृपा का वर्णन करता है। यह अध्याय भगवान विष्णु की महिमा और उनके अनंत अनुग्रह का वर्णन करता है।Narayaniyam-Dashaka
Narayaniyam Dashaka 31 (नारायणीयं दशक 31)
नारायणीयं दशक 31 भगवान विष्णु के विभिन्न अवतारों और उनके भक्तों को प्रदान की गई सहायता का वर्णन करता है। यह अध्याय भगवान विष्णु की महिमा और उनके अनंत अनुग्रह का वर्णन करता है।Narayaniyam-Dashaka
Narayaniyam Dashaka 25 (नारायणीयं दशक 25)
नारायणीयं का पच्चीसवां दशक भगवान विष्णु के विभिन्न अवतारों की कहानियों को दर्शाता है। इस दशक में, भगवान के विभिन्न अवतारों की लीला और उनके द्वारा किए गए अद्भुत कार्यों का वर्णन किया गया है। भक्त भगवान की महिमा और उनकी असीम कृपा का अनुभव करते हैं।Narayaniyam-Dashaka
Narayaniyam Dashaka 5 (नारायणीयं दशक 5)
नारायणीयं दशक 5 में भगवान नारायण के लीलाओं की विस्तृत व्याख्या की गई है। यह दशक भक्तों को भगवान के मार्गदर्शन और उनके विचारों को समझाता है।Narayaniyam-Dashaka