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Narayaniyam Dashaka 19 (नारायणीयं दशक 19)
नारायणीयं दशक 19 (Narayaniyam Dashaka 19)
पृथोस्तु नप्ता पृथुधर्मकर्मठः
प्राचीनबर्हिर्युवतौ शतद्रुतौ ।
प्रचेतसो नाम सुचेतसः सुता-
नजीजनत्त्वत्करुणांकुरानिव ॥1॥
पितुः सिसृक्षानिरतस्य शासनाद्-
भवत्तपस्याभिरता दशापि ते
पयोनिधिं पश्चिममेत्य तत्तटे
सरोवरं संददृशुर्मनोहरम् ॥2॥
तदा भवत्तीर्थमिदं समागतो
भवो भवत्सेवकदर्शनादृतः ।
प्रकाशमासाद्य पुरः प्रचेतसा-
मुपादिशत् भक्ततमस्तव स्तवम् ॥3॥
स्तवं जपंतस्तममी जलांतरे
भवंतमासेविषतायुतं समाः ।
भवत्सुखास्वादरसादमीष्वियान्
बभूव कालो ध्रुववन्न शीघ्रता ॥4॥
तपोभिरेषामतिमात्रवर्धिभिः
स यज्ञहिंसानिरतोऽपि पावितः ।
पिताऽपि तेषां गृहयातनारद-
प्रदर्शितात्मा भवदात्मतां ययौ ॥5॥
कृपाबलेनैव पुरः प्रचेतसां
प्रकाशमागाः पतगेंद्रवाहनः ।
विराजि चक्रादिवरायुधांशुभि-
र्भुजाभिरष्टाभिरुदंचितद्युतिः ॥6॥
प्रचेतसां तावदयाचतामपि
त्वमेव कारुण्यभराद्वरानदाः ।
भवद्विचिंताऽपि शिवाय देहिनां
भवत्वसौ रुद्रनुतिश्च कामदा ॥7॥
अवाप्य कांतां तनयां महीरुहां
तया रमध्वं दशलक्षवत्सरीम् ।
सुतोऽस्तु दक्षो ननु तत्क्षणाच्च मां
प्रयास्यथेति न्यगदो मुदैव तान् ॥8॥
ततश्च ते भूतलरोधिनस्तरून्
क्रुधा दहंतो द्रुहिणेन वारिताः ।
द्रुमैश्च दत्तां तनयामवाप्य तां
त्वदुक्तकालं सुखिनोऽभिरेमिरे ॥9॥
अवाप्य दक्षं च सुतं कृताध्वराः
प्रचेतसो नारदलब्धया धिया ।
अवापुरानंदपदं तथाविध-
स्त्वमीश वातालयनाथ पाहि माम् ॥10॥
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