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Narayaniyam Dashaka 82 (नारायणीयं दशक 82)
नारायणीयं दशक 82 (Narayaniyam Dashaka 82)
प्रद्युम्नो रौक्मिणेयः स खलु तव कला शंबरेणाहृतस्तं
हत्वा रत्या सहाप्तो निजपुरमहरद्रुक्मिकन्यां च धन्याम् ।
तत्पुत्रोऽथानिरुद्धो गुणनिधिरवहद्रोचनां रुक्मिपौत्रीं
तत्रोद्वाहे गतस्त्वं न्यवधि मुसलिना रुक्म्यपि द्यूतवैरात् ॥1॥
बाणस्य सा बलिसुतस्य सहस्रबाहो-
र्माहेश्वरस्य महिता दुहिता किलोषा ।
त्वत्पौत्रमेनमनिरुद्धमदृष्टपूर्वं
स्वप्नेऽनुभूय भगवन् विरहातुराऽभूत् ॥2॥
योगिन्यतीव कुशला खलु चित्रलेखा
तस्याः सखी विलिखती तरुणानशेषान् ।
तत्रानिरुद्धमुषया विदितं निशाया-
मानेष्ट योगबलतो भवतो निकेतात् ॥3॥
कन्यापुरे दयितया सुखमारमंतं
चैनं कथंचन बबंधुषि शर्वबंधौ ।
श्रीनारदोक्ततदुदंतदुरंतरोषै-
स्त्वं तस्य शोणितपुरं यदुभिर्न्यरुंधाः ॥4॥
पुरीपालश्शैलप्रियदुहितृनाथोऽस्य भगवान्
समं भूतव्रातैर्यदुबलमशंकं निरुरुधे ।
महाप्राणो बाणो झटिति युयुधानेनयुयुधे
गुहः प्रद्युम्नेन त्वमपि पुरहंत्रा जघटिषे ॥5॥
निरुद्धाशेषास्त्रे मुमुहुषि तवास्त्रेण गिरिशे
द्रुता भूता भीताः प्रमथकुलवीराः प्रमथिताः ।
परास्कंद्त् स्कंदः कुसुमशरबाणैश्च सचिवः
स कुंभांडो भांडं नवमिव बलेनाशु बिभिदे ॥6॥
चापानां पंचशत्या प्रसभमुपगते छिन्नचापेऽथ बाणे
व्यर्थे याते समेतो ज्वरपतिरशनैरज्वरि त्वज्ज्वरेण ।
ज्ञानी स्तुत्वाऽथ दत्वा तव चरितजुषां विज्वरं स ज्वरोऽगात्
प्रायोऽंतर्ज्ञानवंतोऽपि च बहुतमसा रौद्रचेष्टा हि रौद्राः ॥7॥
बाणं नानायुधोग्रं पुनरभिपतितं दर्पदोषाद्वितन्वन्
निर्लूनाशेषदोषं सपदि बुबुधुषा शंकरेणोपगीतः ।
तद्वाचा शिष्टबाहुद्वितयमुभयतो निर्भयं तत्प्रियं तं
मुक्त्वा तद्दत्तमानो निजपुरमगमः सानिरुद्धः सहोषः ॥8॥
मुहुस्तावच्छक्रं वरुणमजयो नंदहरणे
यमं बालानीतौ दवदहनपानेऽनिलसखम् ।
विधिं वत्सस्तेये गिरिशमिह बाणस्य समरे
विभो विश्वोत्कर्षी तदयमवतारो जयति ते ॥9॥
द्विजरुषा कृकलासवपुर्धरं नृगनृपं त्रिदिवालयमापयन् ।
निजजने द्विजभक्तिमनुत्तमामुपदिशन् पवनेश्वर् पाहि माम् ॥10॥
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