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Vasudeva Stotram (Mahabharatam) || वासुदेव स्तोत्रम् (महाभारतम्) : The Divine Vasudeva Stotram from Mahabharatam,Full Lyrics
Vasudeva Stotram (Mahabharatam) (वासुदेव स्तोत्रम् (महाभारतम्))
Vasudeva Stotram भगवान Krishna की महिमा और कृपा का वर्णन करता है, जो "Lord of Universe" और "Supreme Protector" के रूप में पूजित हैं। इस स्तोत्र का पाठ भक्तों को भगवान की "Divine Grace" प्राप्त करने और सभी प्रकार के कष्टों से मुक्ति पाने में सहायक होता है। इसमें भगवान Vasudeva के गुण, शक्ति और उनकी लीलाओं का विस्तार से उल्लेख किया गया है। यह स्तोत्र "Krishna Devotional Hymn" और "Divine Protector Prayer" के रूप में प्रसिद्ध है। इसके नियमित पाठ से जीवन में शांति, सकारात्मकता और सफलता प्राप्त होती है। Vasudeva Stotram को "Spiritual Energy Chant" और "Hymn for Lord Krishna" के रूप में पढ़ने से भक्त का आत्मिक बल और विश्वास बढ़ता है।वासुदेव स्तोत्रम् (महाभारतम्)
(Vasudeva Stotram (Mahabharatam))
(श्रीमहाभारते भीष्मपर्वणि पंचषष्टितमोऽध्याये श्लो: 47)
विश्वावसुर्विश्वमूर्तिर्विश्वेशो
विष्वक्सेनो विश्वकर्मा वशी च ।
विश्वेश्वरो वासुदेवोऽसि तस्मा-
-द्योगात्मानं दैवतं त्वामुपैमि ॥ 47 ॥
जय विश्व महादेव जय लोकहितेरत ।
जय योगीश्वर विभो जय योगपरावर ॥ 48 ॥
पद्मगर्भ विशालाक्ष जय लोकेश्वरेश्वर ।
भूतभव्यभवन्नाथ जय सौम्यात्मजात्मज ॥ 49 ॥
असंख्येयगुणाधार जय सर्वपरायण ।
नारायण सुदुष्पार जय शार्ङ्गधनुर्धर ॥ 50 ॥
जय सर्वगुणोपेत विश्वमूर्ते निरामय ।
विश्वेश्वर महाबाहो जय लोकार्थतत्पर ॥ 51 ॥
महोरगवराहाद्य हरिकेश विभो जय ।
हरिवास दिशामीश विश्वावासामिताव्यय ॥ 52 ॥
व्यक्ताव्यक्तामितस्थान नियतेंद्रिय सत्क्रिय ।
असंख्येयात्मभावज्ञ जय गंभीरकामद ॥ 53 ॥
अनंतविदित ब्रह्मन् नित्यभूतविभावन ।
कृतकार्य कृतप्रज्ञ धर्मज्ञ विजयावह ॥ 54 ॥
गुह्यात्मन् सर्वयोगात्मन् स्फुट संभूत संभव ।
भूताद्य लोकतत्त्वेश जय भूतविभावन ॥ 55 ॥
आत्मयोने महाभाग कल्पसंक्षेपतत्पर ।
उद्भावनमनोभाव जय ब्रह्मजनप्रिय ॥ 56 ॥
निसर्गसर्गनिरत कामेश परमेश्वर ।
अमृतोद्भव सद्भाव मुक्तात्मन् विजयप्रद ॥ 57 ॥
प्रजापतिपते देव पद्मनाभ महाबल ।
आत्मभूत महाभूत सत्वात्मन् जय सर्वदा ॥ 58 ॥
पादौ तव धरा देवी दिशो बाहु दिवं शिरः ।
मूर्तिस्तेऽहं सुराः कायश्चंद्रादित्यौ च चक्षुषी ॥ 59 ॥
बलं तपश्च सत्यं च कर्म धर्मात्मजं तव ।
तेजोऽग्निः पवनः श्वास आपस्ते स्वेदसंभवाः ॥ 60 ॥
अश्विनौ श्रवणौ नित्यं देवी जिह्वा सरस्वती ।
वेदाः संस्कारनिष्ठा हि त्वयीदं जगदाश्रितम् ॥ 61 ॥
न संख्या न परीमाणं न तेजो न पराक्रमम् ।
न बलं योगयोगीश जानीमस्ते न संभवम् ॥ 62 ॥
त्वद्भक्तिनिरता देव नियमैस्त्वां समाश्रिताः ।
अर्चयामः सदा विष्णो परमेशं महेश्वरम् ॥ 63 ॥
ऋषयो देवगंधर्वा यक्षराक्षसपन्नगाः ।
पिशाचा मानुषाश्चैव मृगपक्षिसरीसृपाः ॥ 64 ॥
एवमादि मया सृष्टं पृथिव्यां त्वत्प्रसादजम् ।
पद्मनाभ विशालाक्ष कृष्ण दुःखप्रणाशन ॥ 65 ॥
त्वं गतिः सर्वभूतानां त्वं नेता त्वं जगद्गुरुः ।
त्वत्प्रसादेन देवेश सुखिनो विबुधाः सदा ॥ 66 ॥
पृथिवी निर्भया देव त्वत्प्रसादात्सदाऽभवत् ।
तस्माद्भव विशालाक्ष यदुवंशविवर्धनः ॥ 67 ॥
धर्मसंस्थापनार्थाय दैत्यानां च वधाय च ।
जगतो धारणार्थाय विज्ञाप्यं कुरु मे प्रभो ॥ 68 ॥
यत्तत्परमकं गुह्यं त्वत्प्रसादादिदं विभो ।
वासुदेव तदेतत्ते मयोद्गीतं यथातथम् ॥ 69 ॥
सृष्ट्वा संकर्षणं देवं स्वयमात्मानमात्मना ।
कृष्ण त्वमात्मनो साक्षी प्रद्युम्नं चात्मसंभवम् ॥ 70 ॥
प्रद्युम्नादनिरुद्धं त्वं यं विदुर्विष्णुमव्ययम् ।
अनिरुद्धोऽसृजन्मां वै ब्रह्माणं लोकधारिणम् ॥ 71 ॥
वासुदेवमयः सोऽहं त्वयैवास्मि विनिर्मितः ।
[तस्माद्याचामि लोकेश चतुरात्मानमात्मना।]
विभज्य भागशोऽऽत्मानं व्रज मानुषतां विभो ॥ 72 ॥
तत्रासुरवधं कृत्वा सर्वलोकसुखाय वै ।
धर्मं प्राप्य यशः प्राप्य योगं प्राप्स्यसि तत्त्वतः ॥ 73 ॥
त्वां हि ब्रह्मर्षयो लोके देवाश्चामितविक्रम ।
तैस्तैर्हि नामभिर्युक्ता गायंति परमात्मकम् ॥ 74 ॥
स्थिताश्च सर्वे त्वयि भूतसंघाः
कृत्वाश्रयं त्वां वरदं सुबाहो ।
अनादिमध्यांतमपारयोगं
लोकस्य सेतुं प्रवदंति विप्राः ॥ 75 ॥
इति श्रीमहाभारते भीष्मपर्वणि पंचषष्टितमोऽध्याये वासुदेव स्तोत्रम् ।
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