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Shri Jagannath Ashtakam || श्री जगन्नाथाष्टकम् : Full Lyrics in Sanskrit
Shri Jagannath Ashtakam (श्री जगन्नाथाष्टकम्)
Shri Jagannath Ashtakam (श्री जगन्नाथाष्टकम्) की रचना Adi Shankaracharya ने Lord Jagannath की स्तुति में की थी, जब वे Puri पहुंचे थे। यह one of the most important hymns मानी जाती है, जिसे Sri Chaitanya Mahaprabhu ने भी अपने Jagannath Temple visit के दौरान गाया था। ऐसा कहा जाता है कि यदि कोई व्यक्ति Shri Jagannath Ashtakam का श्रद्धा और भक्ति के साथ recitation करता है, तो वह sinless और pure-hearted हो जाता है और अंततः Vishnuloka को प्राप्त करता है। इस sacred Ashtakam के chanting से material existence की व्यर्थता समाप्त हो जाती है, और ocean of sins नष्ट हो जाता है। ऐसा निश्चित रूप से माना जाता है कि Lord Jagannath उन fallen souls पर अपनी divine grace बरसाते हैं, जिनका इस संसार में कोई shelter नहीं है, सिवाय उनके lotus feet के।॥ श्री जगन्नाथाष्टकम् ॥
(Shri Jagannath Ashtakam)
कदाचित्कालिन्दी तटविपिनसंगीत करबो
मुदविरि नारीवदनकमलास्वादमधुपः
रमाशम्भुब्रह्माऽमरपतिगणेशाऽर्चितपदो
जगन्नाथस्वामी नयनपथगामी भवतु मे ॥
भुजे सव्ये वेणुं शिरसि शिखिपिञ्छं कटितटे
दुकूलं नेत्रान्ते सहचरकटाक्षं विदधते
सदा श्रीमद्बृन्दावनवसतिलीलापरिचयो
जगन्नाथस्वामी नयनपथगामी भवतु मे ॥
महाम्भोधेस्तीरे कनकरुचिरे नीलशिखरे
वसन्प्रासादान्तः सहजबलभद्रेण बलिना
सुभद्रामध्यस्थः सकलसुरसेवावसरदो
जगन्नाथस्वामी नयनपथगामी भवतु मे ॥
कृपापारावारः सजलजलदश्रेणिरुचिरो
रमावाणीसोमस्फुरदमलपद्मोद्भवमुखैः
सुरेन्द्रैराराध्यः श्रुतिगणशिखागीतचरितो
जगन्नाथस्वामी नयनपथगामी भवतु मे ॥
रथारूढो गच्छन्पथि मिलितभूदेवपटलैः
स्तुतिप्रादुर्भावं प्रतिपदमुपाकर्ण्य सदयः
दयासिन्धुर्बन्धुः सकलजगतां सिन्धुसुतया
जगन्नाथस्वामी नयनपथगामी भवतु मे ॥
परब्रह्मापीडः कुवलयदलोत्फुल्लनयनो
निवासी नीलाद्रौ निहितचरणोऽनन्तशिरसि
रसानन्दो राधासरसवपुरालिङ्गनसुखो
जगन्नाथस्वामी नयनपथगामी भवतु मे ॥
न वै प्रार्थ्यं राज्यं न च कनकतां भोगविभवं
न याचेऽहं रम्यां निखिलजनकाम्यां वरवधूम्
सदा काले काले प्रमथपतिना गीतचरितो
जगन्नाथस्वामी नयनपथगामी भवतु मे ॥
हर त्वं संसारं द्रुततरमसारं सुरपते
हर त्वं पापानां विततिमपरां यादवपते
अहो दीनानाथं निहितमचलं निश्चितपदं
जगन्नाथस्वामी नयनपथगामी भवतु मे ॥
॥ इति श्री जगन्नाथाष्टकम् ॥
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