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Maa Durga Kavacha Path || माँ दुर्गा कवच पाठ : श्री दुर्गा रक्षा कवच with Full Lyrics in Sanskrit
Maa Durga Kavacha Path (माँ दुर्गा कवच पाठ)
माँ दुर्गा कवच पाठ का यह शक्तिशाली मंत्र हमारे आसपास की नकारात्मक ऊर्जा का क्षय कर एक सकारात्मक ऊर्जा की कवच के रूप में कार्य करता है। जिससे हमारे आसपास सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है। मंत्रो में नकारात्मक ऊर्जा को सकारात्मक ऊर्जा में परिवर्तित कर देने की असीम क्षमता होती है। ऐसा अनुभव किया गया है कि जो व्यक्ति पूरी आस्था, श्रद्धा एवं भक्ति से, शुद्ध उच्चारण में, नियमित रूप से देवी कवच का पाठ करता है, वह सभी प्रकार की बुराइयों पर विजय प्राप्त कर लेता है। नवरात्रि के समय देवी कवच का पाठ करना अत्यंत ही शुभ तथा फलदायी माना गया है।माँ दुर्गा कवच पाठ (Maa Durga Kavacha Path)
॥माँ दुर्गा कवच पाठ संस्कृत ॥
मार्कण्डेय उवाचः
ॐ यद्गुह्यं परमं लोके सर्वरक्षाकरं नृणाम् ।
यन्न कस्यचिदाख्यातं तन्मे ब्रूहि पितामह ।
ब्रम्हो उवाचः
अस्ति गुह्यतमं विप्र सर्वभूतोपकारकम् ।
देव्यास्तु कवचं पुण्यं तच्छृनुष्व महामुने ।
अथ दुर्गा कवचः
प्रथमं शैलपुत्री च द्वितीयं ब्रह्मचारिणी ।
तृतीयंचन्द्रघण्टेति कूष्माण्डेति चतुर्थकम् ॥
पञ्चमं स्कन्दमातेति षष्ठं कात्यायनीति च ।
सप्तमं कालरात्रीति महागौरीति चाष्टमम् ॥
नवमं सिद्धिदात्री च नवदुर्गाः प्रकीर्तिताः ।
नामानि ब्रह्मणैव महात्मना ॥
अग्निना दह्यमानस्तु शत्रुमध्ये गतो रणे।
विषमे दुर्गमे चैव भयार्ताः शरणं गताः ॥
न तेषां जायते किंचिदशुभं रणसंकटे ।
नापदं तस्य पश्यामि शोकदुःख भयं न हि ॥
यैस्तु भक्त्या स्मृता नूनं तेषां वृद्धिः प्रजायते।
येत्वां स्मरन्ति देवेशि रक्षसे तन्न संशयः ॥
प्रेतसंस्था तु चामुन्डा वाराही महिषासना।
ऐन्द्री गजासमारुढा वैष्णवी गरुडासना ॥
माहेश्वरी वृषारुढा कौमारी शिखिवाहना।
लक्ष्मीः पद्मासना देवी पद्महस्ता हरिप्रिया ॥
श्वेतरुपधरा देवी ईश्वरी वृषवाहना।
ब्राह्मी हंससमारुढा सर्वाभरणभूषिता ॥
इत्येता मतरः सर्वाः सर्वयोगसमन्विताः ।
नानाभरणशोभाढ्या नानारत्नोपशोभिताः ॥
दृश्यन्ते रथमारुढा देव्यः क्रोधसमाकुलाः।
शङ्खचक्रगदां शक्ति हलं च मुसलायुधम् ॥
खेटकं तोमरं चैव परशुं पाशमेव च।
कुन्तायुधं त्रिशूलं च शार्ङ्गमायुधमुत्तमम् ॥
दैत्यानां देहनाशाय भक्तानामभयाय च।
धरयन्त्यायुधानीत्थं देवानां च हिताय वै ॥
नमस्तेऽस्तु महारौद्रे महाघोरपराक्रमे।
महाबले महोत्साहे महाभ्यविनाशिनि ।
त्राहि मां देवि दुष्प्रेक्ष्ये शत्रूणां भयवर्धिनि।
प्राच्यां रक्षतुमामैन्द्री आग्नेय्यामग्निदेवता ॥
दक्षिणेऽवतु वाराही नैऋत्यां खद्गधारिणी।
प्रतीच्यां वारुणी रक्षेद् वायाव्यां मृगावाहिनी ॥
उदीच्यां पातु कौबेरी ऐशान्यां शूलधारिणी।
ऊर्ध्वं ब्रह्माणी मे रक्षेदधस्ताद् वैष्णवी तथा
एवं दश दिशो रक्षेच्चामुण्डा शववाहना।
जयामे चाग्रतः पातु विजया पातु पृष्ठतः ॥
अजिता वामपार्श्वे तु क्षिणे चापराजिता।
शिखामुद्योति निरक्षेदुमा मूर्ध्नि व्यवस्थिता ॥
मालाधरी ललाटे च भ्रुवौ रक्षेद् यशस्विनी।
त्रिनेत्रा च ध्रुवोर्मध्ये यमघण्टा च नासिके ॥
शङ्खिनी चक्षुषोर्मध्ये श्रोत्रयोद्बरवासिनी।
कपौलौ कालिका रक्षेत्कर्णमूले तु शांकरी ॥
नासिकायां सुगन्धा च उत्तरोष्ठे च चर्चिका।
अधरे चामृतकला जिह्वायां च सरस्वती ॥
दन्तान् रक्षतु कौमारी कण्ठदेशे तु चण्डिका।
घण्टिकां चित्रघण्टा च महामाया च तालुके ॥
कामाक्षी चिबुकं रक्षेद् वाचं मे सर्वमङ्गला।
ग्रीवायां भद्रकाली च पृष्ठवंशे धनुर्धरी ॥
नीलग्रीवा बहिःकण्ठे नलिकां नलकूबरी।
स्कन्धयोः खङ्गिलनी रक्षेद् बाहू मे वज्रधारिणी ॥
हस्तयोर्दण्डिनी रक्षेदम्बिका चाङ्गुलीषु च।
नखाञ्छ्रुलेश्वरी रक्षेत्कक्षौ रक्षेत्कुलेश्वरी ॥
स्तनौ रक्षेन्महादेवी मनः शोकविनाशिनी।
हृदये ललिता देवी उदरे शूलधारिणी ॥
नाभौ च कामिनी रक्षेद् गुह्यं गुह्येश्वरी तथा।
पूतना कामिका मेढूं गुदे महिषवाहिनी ॥
कट्यां भगवती रक्षेज्जानुनी विन्ध्यवासिनी।
जडेघ महाबला रक्षेत्सर्वकामप्रदायिनी ॥
गुल्फयोर्नारसिंही च पादपृष्टे तु तैजसी।
पादाङ्गुलीषु श्री रक्षेत्पादाधस्तलवासिनी ॥
नखान् दंष्ट्राकराली च केशांश्चैवोर्ध्वकेशिनी।
रोमकूपेषु कौबेरी त्वचं वागीश्वरी तथा ॥
रक्तमज्जावसामांसान्यस्थिमेदांसि पार्वती।
अन्त्राणि कालरात्रिश्च पित्तं च मुकुटेश्वरी ॥
पद्मावती पद्मकोशे कफे चूडामणिस्तथा।
ज्वालामुखी नखज्वालामभेद्या सर्वसंधिषु ॥
शुक्रं ब्रम्हाणी मे रक्षेच्छायां छत्रेश्वरी तथा।
अहंकारं मनो बुध्दिं रक्षेन्मे धर्मधारिणी ॥
प्रणापानौ तथा व्याअनमुदानं च समानकम् ।
वज्रहस्ता च मे रक्षेत्प्राणं कल्याणशोभना ॥
रसे रुपे च गन्धे च शब्दे स्पर्शे च योगिनी।
सत्त्वं रजस्तमश्चैव रक्षेन्नारायणी सदा ॥
आयू रक्षतु वाराही धर्म रक्षतु वैष्णवी।
यशः कीर्तिचलक्ष्मींच धनं विद्यां च चक्रिणी ॥
गोत्रामिन्द्राणी मे रक्षेत्पशून्मे रक्ष चण्डिके।
पुत्रान् रक्षेन्महालक्ष्मीर्भार्यां रक्षतुभैरवी ॥
पन्थानं सुपथा रक्षेन्मार्ग क्षेमकरी तथा।
राजद्वारे महालक्ष्मीर्विजया सर्वतः स्थिता ॥
रक्षाहीनं तु यत्स्थानं वर्जितं कवचेन तु।
तत्सर्वं रक्ष मे देवि जयन्ती पापनाशिनी ॥
पदमेकं न गच्छेत्तु यदीच्छेच्छुभमात्मनः ।
कवचेनावृतो नित्यं यत्र यत्रैव गच्छति ॥
तत्र तत्रार्थलाभश्च विजयः सार्वकामिकः ।
यं यं चिन्तयते कामं तं तं प्राप्नोतिनिश्चितम् ।
परमैश्वर्यमतुलं प्राप्स्यते तले पुमान् ॥
निर्भयो जायते मर्त्यः संग्रामेष्वपराजितः ।
त्रैलोक्येतु भवेत्पूज्यः कवचेनावृतः पुमान् ॥
इदं तु देव्याः कवचं देवानामपि दुर्लभम् ।
यंपठेत्प्रायतो नित्यं त्रिसन्ध्यम श्रद्धयान्वितः ॥
दैवी कला भवेत्तस्य त्रैलोक्येष्वप्राजितः ।
जीवेद् वर्षशतं साग्रमपमृत्युविवर्जितः ॥
नश्यन्ति व्याधयः सर्वे लूताविस्फोटकादयः ।
स्थावरं जङ्गमं चैव कृत्रिमं चापि यद्विषम् ॥
अभिचाराणि सर्वाणि मन्त्रयन्त्राणि भुतले।
भूचराः खेचराश्चेव जलजाश्चोपदेशिकाः ॥
सहजाः कुलजा माला डाकिनी शाकिनी तथा।
अन्तरिक्षचरा घोरा डाकिन्यश्च महाबलाः ॥
ग्रहभूतपिशाचाश्च्च यक्षगन्धर्वराक्षसाः।
ब्रम्हराक्षसवेतालाः कूष्माण्डा भैरवादयः ॥
नश्यति दर्शनात्तस्य कवचे हृदि संस्थिते।
मानोन्नतिर्भवेद् राज्ञस्तेजोवृद्धिकरं परम् ॥
यशसा वर्धते सोऽपि कीर्तिमण्डितभूतले ।
जपेत्सप्तशतीं चण्डीं कृत्वा तु कवचं पुरा ॥
यावभ्दूमण्डलं धत्ते सशैलवनकाननम्।
तावत्तिष्ठति मेदिन्यां संततिः पुत्रापौत्रिकी ॥
देहान्ते परमं स्थानं यत्सुरैरपि दुर्लभम् ।
प्राप्नोति पुरुषो नित्यं महामायाप्रसादतः ॥
लभते परम्म रुपं शिवेन सह मोदते ॥
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नवरात्रि में Navdurga Puja के दौरान Maa Durga के नौ स्वरूपों की पूजा होती है। हर दिन एक विशेष Goddess Durga का Mantra जपने से शक्ति और समृद्धि मिलती है। Shakti Puja करने से नकारात्मक ऊर्जा समाप्त होती है और Positive Energy बढ़ती है। Durga Chalisa और Navratri Bhajan का पाठ भक्तों को Spiritual Growth देता है। इस दौरान Hindu Festival में व्रत रखकर Divine Blessings प्राप्त की जाती हैं। नवरात्रि में Maa Durga Aarti और Jagran से भक्तों की सभी मनोकामनाएँ पूर्ण होती हैं।MahaMantra
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प्रिया सदा. बिल्वपत्रं प्रयच्छमि पवित्रं ते सुरेश्वरी॥ ॐ भूर्भुवः स्वः दुर्गादेव्यै नमः बिल्वपत्राणि समर्पयामि॥ (15.)धूप समर्पण (Dhoop Samarpan) अब निम्नलिखित मंत्र का उच्चारण करते हुए देवी दुर्गा को धूप अर्पित करें। दशांग गुग्गुला धुपं चंदनगारू संयुतम। समर्पितं मया भक्त्या महादेवी! प्रतिगृह्यतम॥ ॐ भूर्भुवः स्वः दुर्गादेव्यै नमः धूपमाघ्घ्रापयमि समर्पयामि॥ (16.) दीप समर्पण (Deep Samarpan) अब निम्नलिखित मंत्र का उच्चारण करते हुए देवी दुर्गा को दीप अर्पित करें। घृतवर्त्तिसमायुक्तं महतेजो महोज्ज्वलम्। दीपं दास्यामि देवेषी! सुप्रीता भव सर्वदा॥ ॐ भूर्भुवः स्वः दुर्गादेव्यै नमः दीपं समर्पयामि॥ (17.) नैवेद्य (Naivedya) अब निम्नलिखित मंत्र का उच्चारण करते हुए देवी दुर्गा को नैवेद्य अर्पित करें। अन्नं चतुर्विधं स्वादु रसैः षडभिः समन्वितम्। नैवेद्य गृह्यतम देवि! भक्ति मे ह्यचला कुरु॥ ॐ भूर्भुवः स्वः दुर्गादेव्यै नमः नैवेद्यं निवेदयामि॥ (18.) ऋतुफला (Rituphala) अब निम्नलिखित मंत्र का उच्चारण करते हुए देवी दुर्गा को ऋतुफल अर्पित करें। द्राक्षाखर्जुरा कदलीफला समग्रकपीठकम। नारिकेलेक्षुजाम्बदि फलानि प्रतिगृह्यतम॥ ॐ भूर्भुवः स्वः दुर्गादेव्यै नमः ऋतुफलनि समर्पयामि॥ (19.) आचमन (Achamana) अब निम्नलिखित मंत्र का उच्चारण करते हुए देवी दुर्गा को आचमन के लिए जल अर्पित करें। कामारिवल्लभे देवि करवाचमनमम्बिके। निरंतररामहम वन्दे चरणौ तव चंडिके॥ ॐ भूर्भुवः स्वः दुर्गादेव्यै नमः आचमनीयं जलं समर्पयामि॥ (20.) नारिकेल समर्पण (Narikela Samarpan) अब निम्नलिखित मंत्र का उच्चारण करते हुए देवी दुर्गा को नारिकेल (नारियल) अर्पित करें। नारिकेलम च नारंगिम कलिंगमंजीरं त्वा। उर्वारुक च देवेषि फलन्येतानि गह्यताम्॥ ॐ भूर्भुवः स्वः दुर्गादेव्यै नमः नारिकेलं समर्पयामि॥ (21.) तंबुला (Tambula) अब निम्नलिखित मंत्र का उच्चारण करते हुए देवी दुर्गा को ताम्बूल (पान और सुपारी) अर्पित करें। एलालवंगं कस्तूरी कर्पूरैः पुष्पवसीतम। विटिकं मुखवसार्थ समर्पयामि सुरेश्वरी॥ ॐ भूर्भुवः स्वः दुर्गादेव्यै नमः ताम्बूलं समर्पयामि॥ (22.) दक्षिणा (Dakshina) अब निम्नलिखित मंत्र का उच्चारण करते हुए देवी दुर्गा को दक्षिणा (उपहार) अर्पित करें। पूजा फल समृद्धियर्था तवग्रे स्वर्णमीश्वरी। स्थापितम् तेन मे प्रीता पूर्णं कुरु मनोरथम्॥ ॐ भूर्भुवः स्वः दुर्गादेव्यै नमः दक्षिणं समर्पयामि॥ (23.) पुस्तक पूजा एवं कन्या पूजन (Book worship and girl worship) (A.) पुस्तक पूजा (Pustak) दक्षिणा अर्पित करने के पश्चात, अब निम्नलिखित मंत्र का उच्चारण करते हुए दुर्गा पूजा के दौरान उपयोग में आने वाली पुस्तकों की पूजा करें। नमो देव्यै महादेव्यै शिवायै सततं नमः। नमः प्रकृतियै भद्रयै नियतः प्रणतः स्मतम्॥ ॐ भूर्भुवः स्वः दुर्गादेव्यै नमः पुस्तक पूजयामि॥ (B.) दीप पूजा (Deep Puja) पुस्तकों की पूजा के पश्चात, निम्नलिखित मंत्र का उच्चारण करते हुए दुर्गा पूजा के दौरान दीप जलाएं और दीप देव की पूजा करें। शुभम् भवतु कल्याणमारोग्यं पुष्टिवर्धनम्। आत्मतत्त्व प्रबोधाय दीपज्योतिर्नमोअस्तु ते॥ ॐ भूर्भुवः स्वः दुर्गादेव्यै नमः दीपं पूजयामि॥ (C.) कन्या पूजन (Kanya Pujan) दुर्गा पूजा के दौरान कन्या पूजन का भी विशेष महत्व है। इसलिए दुर्गा पूजा के बाद कन्याओं को आमंत्रित कर उन्हें स्वादिष्ट भोजन कराया जाता है और दक्षिणा यानी उपहार दिए जाते हैं। कन्याओं को दक्षिणा देते समय निम्नलिखित मंत्र का उच्चारण करना चाहिए। सर्वस्वरूपे! सर्वेशे सर्वशक्ति स्वरूपिणी। पूजम गृहण कौमारी! जगन्मातरनमोअस्तु ते॥ ॐ भूर्भुवः स्वः दुर्गादेव्यै नमः कन्या पूजयामि॥ (24.) नीराजन (Nirajan) अब निम्नलिखित मंत्र का उच्चारण करने के पश्चात देवी दुर्गा की आरती करें। नीराजनं सुमंगल्यं कर्पूरेण समन्वितम्। चन्द्रार्कवह्नि सदृशं महादेवी! नमोअस्तु ते॥ ॐ भूर्भुवः स्वः दुर्गादेव्यै नमः कर्पूर निराजनं समर्पयामि॥ (25.) प्रदक्षिणा (Pradakshina) अब निम्नलिखित मंत्र का उच्चारण करते हुए फूलों से प्रतीकात्मक प्रदक्षिणा (देवी दुर्गा की बाएं से दाएं परिक्रमा) करें। प्रदक्षिणं त्रयं देवि प्रयत्नेन प्रकल्पितम्। पश्यद्य पावने देवि अम्बिकायै नमोअस्तु ते॥ ॐ भूर्भुवः स्वः दुर्गादेव्यै नमः प्रदक्षिणं समर्पयामि॥ (26.) क्षमापन (Kshamapan) अब निम्नलिखित मंत्र का उच्चारण करते हुए पूजा के दौरान हुई किसी भी ज्ञात-अज्ञात गलती के लिए देवी दुर्गा से क्षमा मांगें। अपराधा शतम् देवि मत्कृतम् च दीने दीने। क्षमायतम पावने देवी-देवेष नमोअस्तु ते॥Puja-Vidhi
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shri Kamakhya kavachaShri Kamakhya Kavacha (श्री कामाख्या कवच) आज हर व्यक्ति उन्नति, यश, वैभव, कीर्ति और धन-संपदा प्राप्त करना चाहता है, वह भी बिना किसी बाधा के। Maa Kamakhya Devi का कवच पाठ करने से सभी Obstacles समाप्त हो जाते हैं, और साधक को Success तथा Prosperity प्राप्त होती है। यदि आप अपने जीवन में मनोकामना पूर्ति चाहते हैं, तो इस कवच का नियमित पाठ करें। यह Maa Kamakhya की Divine Protection प्रदान करता है और जीवन से Negative Energies तथा दुर्भाग्य को दूर करता है।Kavacha
Shri Shitalashtakam Stotram (श्री शीतला अष्टकम स्तोत्रम्)
श्री शीतलाष्टकम् स्तोत्रम् देवी Shitala Mata की स्तुति है, जो Hindu religion में disease healing और health goddess के रूप में पूजनीय हैं। इस स्तोत्र का पाठ smallpox और अन्य infectious diseases से protection पाने के लिए किया जाता है। इसे peace, prosperity और divine blessings प्राप्त करने का माध्यम माना गया है। Shitala Devi की पूजा से health, hygiene और spiritual energy का संचार होता है। यह स्तोत्र भक्तों को negativity से मुक्त कर सकारात्मकता प्रदान करता है।Devi-Stotra