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Kanakdhara Stotram (कनकधारा स्तोत्रम्)
कनकधारा स्तोत्रम्
(Kanakdhara Stotram)
वन्दे वन्दारु मन्दारमिन्दिरानन्दकन्दलम् ।
अमन्दानन्दसन्दोह बन्धुरं सिन्धुराननम् ॥
अङ्गं हरेः पुलकभूषणमाश्रयन्ती
भृङ्गाङ्गनेव मुकुलाभरणं तमालम् ।
अङ्गीकृताखिलविभूतिरपाङ्गलीला
माङ्गल्यदास्तु मम मङ्गलदेवतायाः ॥ 1 ॥
मुग्धा मुहुर्विदधती वदने मुरारेः
प्रेमत्रपाप्रणिहितानि गतागतानि ।
माला दृशोर्मधुकरीव महोत्पले या
सा मे श्रियं दिशतु सागरसम्भवायाः ॥ 2 ॥
आमीलिताक्षमधिगम्य मुदा मुकुन्दम्-
आनन्दकन्दमनिमेषमनङ्गतन्त्रम् ।
आकेकरस्थितकनीनिकपक्ष्मनेत्रं
भूत्यै भवेन्मम भुजङ्गशयाङ्गनायाः ॥ 3 ॥
बाह्वन्तरे मधुजितः श्रितकौस्तुभे या
हारावलीव हरिनीलमयी विभाति ।
कामप्रदा भगवतोऽपि कटाक्षमाला
कल्याणमावहतु मे कमलालयायाः ॥ 4 ॥
कालाम्बुदालिललितोरसि कैटभारेः
धाराधरे स्फुरति या तटिदङ्गनेव ।
मातुस्समस्तजगतां महनीयमूर्तिः
भद्राणि मे दिशतु भार्गवनन्दनायाः ॥ 5 ॥
प्राप्तं पदं प्रथमतः खलु यत्प्रभावात्
माङ्गल्यभाजि मधुमाथिनि मन्मथेन ।
मय्यापतेत्तदिह मन्थरमीक्षणार्धं
मन्दालसं च मकरालयकन्यकायाः ॥ 6 ॥
विश्वामरेन्द्रपदविभ्रमदानदक्षं
आनन्दहेतुरधिकं मुरविद्विषोऽपि ।
ईषन्निषीदतु मयि क्षणमीक्षणार्थं
इन्दीवरोदरसहोदरमिन्दिरायाः ॥ 7 ॥
इष्टा विशिष्टमतयोऽपि यया दयार्द्र
दृष्ट्या त्रिविष्टपपदं सुलभं लभन्ते ।
दृष्टिः प्रहृष्ट कमलोदरदीप्तिरिष्टां
पुष्टिं कृषीष्ट मम पुष्करविष्टरायाः ॥ 8 ॥
दद्याद्दयानुपवनो द्रविणाम्बुधारा-
मस्मिन्न किञ्चन विहङ्गशिशौ विषण्णे ।
दुष्कर्मघर्ममपनीय चिराय दूरं
नारायणप्रणयिनीनयनाम्बुवाहः ॥ 9 ॥
गीर्देवतेति गरुडध्वजसुन्दरीति
शाकम्भरीति शशिशेखरवल्लभेति ।
सृष्टिस्थितिप्रलयकेलिषु संस्थितायै
तस्यै नमस्त्रिभुवनैकगुरोस्तरुण्यै ॥ 10 ॥
श्रुत्यै नमोऽस्तु शुभकर्मफलप्रसूत्यै
रत्यै नमोऽस्तु रमणीयगुणार्णवायै ।
शक्त्यै नमोऽस्तु शतपत्रनिकेतनायै
पुष्ट्यै नमोऽस्तु पुरुषोत्तमवल्लभायै ॥ 11 ॥
नमोऽस्तु नालीकनिभाननायै
नमोऽस्तु दुग्धोदधिजन्मभूम्यै ।
नमोऽस्तु सोमामृतसोदरायै
नमोऽस्तु नारायणवल्लभायै ॥ 12 ॥
नमोऽस्तु हेमाम्बुजपीठिकायै
नमोऽस्तु भूमण्डलनायिकायै ।
नमोऽस्तु देवादिदयापरायै
नमोऽस्तु शार्ङ्गायुधवल्लभायै ॥ 13 ॥
नमोऽस्तु देव्यै भृगुनन्दनायै
नमोऽस्तु विष्णोरुरसिस्थितायै ।
नमोऽस्तु लक्ष्म्यै कमलालयायै
नमोऽस्तु दामोदरवल्लभायै ॥ 14 ॥
नमोऽस्तु कान्त्यै कमलेक्षणायै
नमोऽस्तु भूत्यै भुवनप्रसूत्यै ।
नमोऽस्तु देवादिभिरर्चितायै
नमोऽस्तु नन्दात्मजवल्लभायै ॥ 15 ॥
सम्पत्कराणि सकलेन्द्रियनन्दनानि
साम्राज्यदानविभवानि सरोरुहाक्षि ।
त्वद्वन्दनानि दुरितोद्धरणोद्यतानि
मामेव मातरनिशं कलयन्तु नान्ये ॥ 16 ॥
यत्कटाक्षसमुपासनाविधिः
सेवकस्य सकलार्थसम्पदः ।
सन्तनोति वचनाङ्गमानसैः
त्वां मुरारिहृदयेश्वरीं भजे ॥ 17 ॥
सरसिजनिलये सरोजहस्ते
धवलतमांशुकगन्धमाल्यशोभे ।
भगवति हरिवल्लभे मनोज्ञे
त्रिभुवनभूतिकरि प्रसीद मह्यम् ॥ 18 ॥
दिग्घस्तिभिः कनककुम्भमुखावसृष्ट
स्वर्वाहिनी विमलचारुजलप्लुताङ्गीम् ।
प्रातर्नमामि जगतां जननीमशेष
लोकाधिनाथगृहिणीममृताब्धिपुत्रीम् ॥ 19 ॥
कमले कमलाक्षवल्लभे त्वं
करुणापूरतरङ्गितैरपाङ्गैः ।
अवलोकय मामकिञ्चनानां
प्रथमं पात्रमकृत्रिमं दयायाः ॥ 20 ॥
स्तुवन्ति ये स्तुतिभिरमूभिरन्वहं
त्रयीमयीं त्रिभुवनमातरं रमाम् ।
गुणाधिका गुरुतरभाग्यभागिनो
भवन्ति ते भुवि बुधभाविताशयाः ॥ 21 ॥
सुवर्णधारास्तोत्रं यच्छङ्कराचार्य निर्मितम् ।
त्रिसन्ध्यं यः पठेन्नित्यं स कुबेरसमो भवेत् ॥
इति श्रीमत्परमहंसपरिव्राजकाचार्यस्य श्रीगोविन्दभगवत्पूज्यपादशिष्यस्य श्रीमच्छङ्करभगवतः कृतौ कनकधारास्तोत्रं सम्पूर्णम् ।
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