No festivals today or in the next 14 days. 🎉
Shrimad Bhagwad Gita Parayaan - Chapter 5 (श्रीमद्भगवद्गीता पारायण - पंचमोऽध्यायः)
श्रीमद्भगवद्गीता पारायण - पंचमोऽध्यायः (Shrimad Bhagwad Gita Parayaan - Chapter 5)
ॐ श्री परमात्मने नमः
अथ पंचमोऽध्यायः
कर्मसन्न्यासयोगः
अर्जुन उवाच
सन्न्यासं कर्मणां कृष्ण पुनर्योगं च शंससि ।
यच्छ्रेय एतयोरेकं तन्मे ब्रूहि सुनिश्चितम् ॥1॥
श्री भगवानुवाच
सन्न्यासः कर्मयोगश्च निश्श्रेयसकरावुभौ ।
तयोस्तु कर्मसन्न्यासात् कर्मयोगो विशिष्यते ॥2॥
ज्ञेयः स नित्यसन्न्यासी यो न द्वेष्टि न कांक्षति ।
निर्द्वंद्वो हि महाबाहो सुखं बंधात्प्रमुच्यते ॥3॥
सांख्ययोगौ पृथग्बालाः प्रवदंति न पंडिताः ।
एकमप्यास्थितः सम्यक् उभयोर्विंदते फलम् ॥4॥
यत्सांख्यैः प्राप्यते स्थानं तद्योगैरपि गम्यते ।
एकं सांख्यं च योगं च यः पश्यति स पश्यति ॥5॥
सन्न्यासस्तु महाबाहो दुःखमाप्तुमयोगतः ।
योगयुक्तो मुनिर्ब्रह्म नचिरेणाधिगच्छति ॥6॥
योगयुक्तो विशुद्धात्मा विजितात्मा जितेंद्रियः ।
सर्वभूतात्मभूतात्मा कुर्वन्नपि न लिप्यते ॥7॥
नैव किंचित्करोमीति युक्तो मन्येत तत्त्ववित् ।
पश्यन्शृण्वन्स्पृशंजिघ्रन् अश्नन्गच्छन्स्वपन्श्वसन् ॥8॥
प्रलपन्विसृजन्गृह्णन् उन्मिषन्निमिषन्नपि ।
इंद्रियाणींद्रियार्थेषु वर्तंत इति धारयन् ॥9॥
ब्रह्मण्याधाय कर्माणि संगं त्यक्त्वा करोति यः ।
लिप्यते न स पापेन पद्मपत्रमिवांभसा ॥10॥
कायेन मनसा बुद्ध्या केवलैरिंद्रियैरपि ।
योगिनः कर्म कुर्वंति संगं त्यक्त्वात्मशुद्धये ॥11॥
युक्तः कर्मफलं त्यक्त्वा शांतिमाप्नोति नैष्ठिकीम् ।
अयुक्तः कामकारेण फले सक्तो निबध्यते ॥12॥
सर्वकर्माणि मनसा सन्न्यस्यास्ते सुखं वशी ।
नवद्वारे पुरे देही नैव कुर्वन्न कारयन् ॥13॥
न कर्तृत्वं न कर्माणि लोकस्य सृजति प्रभुः ।
न कर्मफलसंयोगं स्वभावस्तु प्रवर्तते ॥14॥
नादत्ते कस्यचित्पापं न चैव सुकृतं विभुः ।
अज्ञानेनावृतं ज्ञानं तेन मुह्यंति जंतवः ॥15॥
ज्ञानेन तु तदज्ञानं येषां नाशितमात्मनः ।
तेषामादित्यवज्ज्ञानं प्रकाशयति तत्परम् ॥16॥
तद्बुद्धयस्तदात्मानः तन्निष्ठास्तत्परायणाः ।
गच्छंत्यपुनरावृत्तिं ज्ञाननिर्धूतकल्मषाः ॥17॥
विद्याविनयसंपन्ने ब्राह्मणे गवि हस्तिनि ।
शुनि चैव श्वपाके च पंडिताः समदर्शिनः ॥18॥
इहैव तैर्जितः सर्गः येषां साम्ये स्थितं मनः ।
निर्दोषं हि समं ब्रह्म तस्मात् ब्रह्मणि ते स्थिताः ॥19॥
न प्रहृष्येत्प्रियं प्राप्य नोद्विजेत्प्राप्य चाप्रियम् ।
स्थिरबुद्धिरसम्मूढः ब्रह्मवित् ब्रह्मणि स्थितः ॥20॥
बाह्यस्पर्शेष्वसक्तात्मा विंदत्यात्मनि यत्सुखम् ।
स ब्रह्मयोगयुक्तात्मा सुखमक्षयमश्नुते ॥21॥
ये हि संस्पर्शजा भोगाः दुःखयोनय एव ते ।
आद्यंतवंतः कौंतेय न तेषु रमते बुधः ॥22॥
शक्नोतीहैव यः सोढुं प्राक्शरीरविमोक्षणात् ।
कामक्रोधोद्भवं वेगं स युक्तः स सुखी नरः ॥23॥
योऽंतःसुखोऽंतरारामः तथांतर्ज्योतिरेव यः ।
स योगी ब्रह्मनिर्वाणं ब्रह्मभूतोऽधिगच्छति ॥24॥
लभंते ब्रह्मनिर्वाणम् ऋषयः क्षीणकल्मषाः ।
छिन्नद्वैधा यतात्मानः सर्वभूतहिते रताः ॥25॥
कामक्रोधवियुक्तानां यतीनां यतचेतसाम् ।
अभितो ब्रह्मनिर्वाणं वर्तते विदितात्मनाम् ॥26॥
स्पर्शान्कृत्वा बहिर्बाह्यान् चक्षुश्चैवांतरे भ्रुवोः
प्राणापानौ समौ कृत्वा नासाभ्यंतरचारिणौ ॥27॥
यतेंद्रियमनोबुद्धिः मुनिर्मोक्षपरायणः ।
विगतेच्छाभयक्रोधः यः सदा मुक्त एव सः ॥28॥
भोक्तारं यज्ञतपसां सर्वलोकमहेश्वरम् ।
सुहृदं सर्वभूतानां ज्ञात्वा मां शांतिमृच्छति ॥29॥
॥ ॐ तत्सदिति श्रीमद्भगवद्गीतासु उपनिषत्सु ब्रह्मविद्यायां
योगशास्त्रे श्रीकृष्णार्जुनसंवादे कर्मसन्न्यासयोगो नाम पंचमोऽध्यायः ॥
Related to Krishna
Bhagavad Gita Thirteenth Chapter (भगवद गीता तेरहवाँ अध्याय)
भगवद गीता तेरहवाँ अध्याय "क्षेत्र-क्षेत्रज्ञ विवेक योग" है। इसमें श्रीकृष्ण ने क्षेत्र (शरीर) और क्षेत्रज्ञ (आत्मा) के बीच के अंतर को समझाया है। वे बताते हैं कि शरीर नश्वर है, जबकि आत्मा अमर और शाश्वत है। यह अध्याय "आत्मा और शरीर", "अध्यात्म का विज्ञान", और "सत्य ज्ञान" की महत्ता को प्रकट करता है।Bhagwat-Gita
Bhagavad Gita sixth chapter (भगवद गीता छठा अध्याय)
भगवद गीता छठा अध्याय "ध्यान योग" के रूप में जाना जाता है। इस अध्याय में भगवान कृष्ण ध्यान और आत्म-संयम के महत्व पर जोर देते हैं। वे कहते हैं कि जो व्यक्ति मन और इंद्रियों को वश में रखकर ध्यान करता है, वही सच्चा योगी है। यह अध्याय हमें "ध्यान योग", "मन का नियंत्रण", और "आध्यात्मिक उन्नति" के मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित करता है।Bhagwat-Gita
Shrimad Bhagwad Gita Parayaan - Chapter 1 (श्रीमद्भगवद्गीता पारायण - प्रथमोऽध्यायः)
श्रीमद्भगवद्गीता पारायण के प्रथमोऽध्याय में अर्जुन और भगवान कृष्ण के बीच का संवाद प्रारंभ होता है। यह अध्याय धर्म और युद्ध के नैतिक दायित्वों पर ध्यान केंद्रित करता है।Shrimad-Bhagwad-Gita-Parayaan
Shrimad Bhagwad Gita Parayaan - Chapter 8 (श्रीमद्भगवद्गीता पारायण - अष्टमोऽध्यायः)
श्रीमद्भगवद्गीता पारायण के अष्टमोऽध्याय में कृष्ण ने अर्जुन को आत्मा की अजर-अमरता और जीवन के सत्य के बारे में समझाया है।Shrimad-Bhagwad-Gita-Parayaan
Shri Govindashtakam (श्रीगोविन्दाष्टकम्)
ये श्लोक भगवान श्री कृष्ण, जो भगवान विष्णु के अवतार हैं, की स्तुति में लिखे गए हैं। यहां मंत्रों के हिंदी और अंग्रेजी पाठ के साथ उनका अर्थ (in English) भी दिया गया है। गोविंदाष्टकम में 8 श्लोक हैं और इसे आदि शंकराचार्य द्वारा रचा गया था।Stotra
Govinda Damodara Stotram (गोविंद दामोदर स्तोत्रम्)
गोविंद दामोदर स्तोत्रम् भगवान श्रीकृष्ण की महिमा का वर्णन करने वाला एक महत्वपूर्ण स्तोत्र है। यह स्तोत्र भक्तों को गोविंद, दामोदर और माधव के नामों की महिमा का अनुभव करने में मदद करता है।Stotra
Shrimad Bhagwad Gita Parayaan - Chapter 16 (श्रीमद्भगवद्गीता पारायण - षोडशोऽध्यायः)
श्रीमद्भगवद्गीता का षोडशो अध्याय दैवासुर संपद्विभाग योग के नाम से जाना जाता है, जिसमें भगवान कृष्ण दैवी और आसुरी गुणों की व्याख्या करते हैं।Shrimad-Bhagwad-Gita-Parayaan
Shrimad Bhagwad Gita Parayaan - Chapter 6 (श्रीमद्भगवद्गीता पारायण - षष्ठोऽध्यायः)
श्रीमद्भगवद्गीता पारायण के षष्ठोऽध्याय में कृष्ण ने अर्जुन को ध्यान योग की महत्ता समझाई है।Shrimad-Bhagwad-Gita-Parayaan