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Bhagwat geeta Chapter 2 Benefits: श्रीमद्भगवद्गीता के दूसरे अध्याय
Bhagavad Gita second chapter (भगवद गीता दूसरा अध्याय)
भगवद गीता के दूसरे अध्याय का नाम "सांख्य योग" या "ज्ञान का योग" है। यह अध्याय गीता का सबसे महत्वपूर्ण अध्याय माना जाता है, क्योंकि इसमें भगवान कृष्ण अर्जुन को जीवन, कर्तव्य और आत्मा के गूढ़ रहस्यों का ज्ञान देते हैं। श्रीकृष्ण अर्जुन को आत्मा की अमरता, कर्मयोग का महत्व और समभाव बनाए रखने की शिक्षा देते हैं। यह अध्याय जीवन में सही दृष्टिकोण अपनाने और अपने धर्म का पालन करने के लिए प्रेरित करता है।Page no.
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Bhagwat Gita third chapter (भगवद गीता तीसरा अध्याय)
भगवद गीता के इस अध्याय में भगवान श्रीकृष्ण कर्म के महत्व को समझाते हैं और बताते हैं कि मनुष्य को क्यों और कैसे संसार में कार्य करना चाहिए। वे कहते हैं कि सही ढंग से कर्म करने से मन और बुद्धि शुद्ध होती हैं और मिथ्या आसक्तियों से मुक्त हो जाती हैं। इससे आत्मज्ञान प्राप्त करने की क्षमता विकसित होती है, जिसकी शिक्षा पिछले अध्याय में दी गई थी।Bhagwat-Gita
Shrimad Bhagwad Gita Parayaan - Chapter 16 (श्रीमद्भगवद्गीता पारायण - षोडशोऽध्यायः)
श्रीमद्भगवद्गीता का षोडशो अध्याय दैवासुर संपद्विभाग योग के नाम से जाना जाता है, जिसमें भगवान कृष्ण दैवी और आसुरी गुणों की व्याख्या करते हैं।Shrimad-Bhagwad-Gita-Parayaan
Uddhava Gita - Chapter 5 (उद्धवगीता - पंचमोऽध्यायः)
उद्धवगीता के पंचमोऽध्याय में उद्धव और कृष्ण की वार्ता में भक्ति के महत्व और भगवान की महिमा पर चर्चा होती है।Uddhava-Gita
Bhagwan Natwar Ji Arti (भगवान नटवर जी की आरती)
भगवान नटवर जी की आरती श्रीकृष्ण के नटखट और मनमोहक स्वरूप की महिमा का गुणगान करती है। इस आरती में भगवान श्रीकृष्ण (Lord Krishna) को नटवर (Divine Performer) और मुरलीधर (Flute Player) के रूप में पूजित किया गया है, जो भक्तों (Devotees) के कष्ट हरने वाले और आनंद (Joy) प्रदान करने वाले हैं। भगवान नटवर जी की यह आरती उनकी लीलाओं (Divine Pastimes) और सर्वशक्तिमान स्वरूप (Omnipotent Form) का स्मरण कराती है। यह आरती भगवान कृष्ण के प्रेम (Love), भक्ति (Devotion) और करुणा (Compassion) को व्यक्त करती है, जो जीवन के हर पहलू को आध्यात्मिक प्रकाश (Spiritual Light) से भर देती है। भगवान नटवर जी की आरती में उनकी मुरली (Flute) और उनके नटखट स्वभाव (Playful Nature) का विशेष वर्णन किया गया है, जो भक्तों को भगवान के साथ गहरा आध्यात्मिक संबंध स्थापित करने में मदद करता है।Arti
Bhagavad Gita Thirteenth Chapter (भगवद गीता तेरहवाँ अध्याय)
भगवद गीता तेरहवाँ अध्याय "क्षेत्र-क्षेत्रज्ञ विवेक योग" है। इसमें श्रीकृष्ण ने क्षेत्र (शरीर) और क्षेत्रज्ञ (आत्मा) के बीच के अंतर को समझाया है। वे बताते हैं कि शरीर नश्वर है, जबकि आत्मा अमर और शाश्वत है। यह अध्याय "आत्मा और शरीर", "अध्यात्म का विज्ञान", और "सत्य ज्ञान" की महत्ता को प्रकट करता है।Bhagwat-Gita
Uddhava Gita - Chapter 3 (उद्धवगीता - तृतीयोऽध्यायः)
उद्धवगीता के तृतीयोऽध्याय में उद्धव और कृष्ण की वार्ता में कर्मयोग और उसकी महत्ता पर चर्चा होती है।Uddhava-Gita
Krishna Raksha Kavacha (श्रीकृष्णरक्षाकवचम्)
श्री कृष्ण रक्षा कवचम् एक दिव्य protective shield है, जो भगवान Shri Krishna की कृपा से सभी संकटों से बचाव करता है। यह divine armor नकारात्मक ऊर्जा, शत्रुओं और बुरी शक्तियों से protection प्रदान करता है। इस कवच का पाठ करने से spiritual energy बढ़ती है और जीवन में positive vibrations आती हैं। श्रीकृष्ण के भक्त इसे अपनाकर divine blessings प्राप्त कर सकते हैं। यह sacred mantra जीवन की सभी बाधाओं को दूर करने में सहायक है।Kavacha
Shrimad Bhagwad Gita Parayaan - Chapter 6 (श्रीमद्भगवद्गीता पारायण - षष्ठोऽध्यायः)
श्रीमद्भगवद्गीता पारायण के षष्ठोऽध्याय में कृष्ण ने अर्जुन को ध्यान योग की महत्ता समझाई है।Shrimad-Bhagwad-Gita-Parayaan