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Shri Krishna Kavacham (Trilokya Mangal Kavacham) श्री कृष्ण कवचं (त्रैलोक्य मङ्गल कवचम्)
श्री कृष्ण कवचं (त्रैलोक्य मङ्गल कवचम्)
[Shri Krishna Kavacham (Trilokya Mangal Kavacham)]
श्री नारद उवाच –
भगवन्सर्वधर्मज्ञ कवचं यत्प्रकाशितम् ।
त्रैलोक्यमङ्गलं नाम कृपया कथय प्रभो ॥ 1 ॥
सनत्कुमार उवाच –
शृणु वक्ष्यामि विप्रेन्द्र कवचं परमाद्भुतम् ।
नारायणेन कथितं कृपया ब्रह्मणे पुरा ॥ 2 ॥
ब्रह्मणा कथितं मह्यं परं स्नेहाद्वदामि ते ।
अति गुह्यतरं तत्त्वं ब्रह्ममन्त्रौघविग्रहम् ॥ 3 ॥
यद्धृत्वा पठनाद्ब्रह्मा सृष्टिं वितनुते ध्रुवम् ।
यद्धृत्वा पठनात्पाति महालक्ष्मीर्जगत्त्रयम् ॥ 4 ॥
पठनाद्धारणाच्छम्भुः संहर्ता सर्वमन्त्रवित् ।
त्रैलोक्यजननी दुर्गा महिषादिमहासुरान् ॥ 5 ॥
वरतृप्तान् जघानैव पठनाद्धारणाद्यतः ।
एवमिन्द्रादयः सर्वे सर्वैश्वर्यमवाप्नुयुः ॥ 6 ॥
इदं कवचमत्यन्तगुप्तं कुत्रापि नो वदेत् ।
शिष्याय भक्तियुक्ताय साधकाय प्रकाशयेत् ॥ 7 ॥
शठाय परशिष्याय दत्वा मृत्युमवाप्नुयात् ।
त्रैलोक्यमङ्गलस्याऽस्य कवचस्य प्रजापतिः ॥ 8 ॥
ऋषिश्छन्दश्च गायत्री देवो नारायणस्स्वयम् ।
धर्मार्थकाममोक्षेषु विनियोगः प्रकीर्तितः ॥ 9 ॥
प्रणवो मे शिरः पातु नमो नारायणाय च ।
फालं मे नेत्रयुगलमष्टार्णो भुक्तिमुक्तिदः ॥ 10 ॥
क्लीं पायाच्छ्रोत्रयुग्मं चैकाक्षरः सर्वमोहनः ।
क्लीं कृष्णाय सदा घ्राणं गोविन्दायेति जिह्विकाम् ॥ 11 ॥
गोपीजनपदवल्लभाय स्वाहाऽननं मम ।
अष्टादशाक्षरो मन्त्रः कण्ठं पातु दशाक्षरः ॥ 12 ॥
गोपीजनपदवल्लभाय स्वाहा भुजद्वयम् ।
क्लीं ग्लौं क्लीं श्यामलाङ्गाय नमः स्कन्धौ रक्षाक्षरः ॥ 13 ॥
क्लीं कृष्णः क्लीं करौ पायात् क्लीं कृष्णायां गतोऽवतु ।
हृदयं भुवनेशानः क्लीं कृष्णः क्लीं स्तनौ मम ॥ 14 ॥
गोपालायाग्निजायातं कुक्षियुग्मं सदाऽवतु ।
क्लीं कृष्णाय सदा पातु पार्श्वयुग्ममनुत्तमः ॥ 15 ॥
कृष्ण गोविन्दकौ पातु स्मराद्यौजेयुतौ मनुः ।
अष्टाक्षरः पातु नाभिं कृष्णेति द्व्यक्षरोऽवतु ॥ 16 ॥
पृष्ठं क्लीं कृष्णकं गल्ल क्लीं कृष्णाय द्विरान्तकः ।
सक्थिनी सततं पातु श्रीं ह्रीं क्लीं कृष्णठद्वयम् ॥ 17 ॥
ऊरू सप्ताक्षरं पायात् त्रयोदशाक्षरोऽवतु ।
श्रीं ह्रीं क्लीं पदतो गोपीजनवल्लभपदं ततः ॥ 18 ॥
श्रिया स्वाहेति पायू वै क्लीं ह्रीं श्रीं सदशार्णकः ।
जानुनी च सदा पातु क्लीं ह्रीं श्रीं च दशाक्षरः ॥ 19 ॥
त्रयोदशाक्षरः पातु जङ्घे चक्राद्युदायुधः ।
अष्टादशाक्षरो ह्रीं श्रीं पूर्वको विंशदर्णकः ॥ 20 ॥
सर्वाङ्गं मे सदा पातु द्वारकानायको बली ।
नमो भगवते पश्चाद्वासुदेवाय तत्परम् ॥ 21 ॥
ताराद्यो द्वादशार्णोऽयं प्राच्यां मां सर्वदाऽवतु ।
श्रीं ह्रीं क्लीं च दशार्णस्तु क्लीं ह्रीं श्रीं षोडशार्णकः ॥ 22 ॥
गदाद्युदायुधो विष्णुर्मामग्नेर्दिशि रक्षतु ।
ह्रीं श्रीं दशाक्षरो मन्त्रो दक्षिणे मां सदाऽवतु ॥ 23 ॥
तारो नमो भगवते रुक्मिणीवल्लभाय च ।
स्वाहेति षोडशार्णोऽयं नैरृत्यां दिशि रक्षतु ॥ 24 ॥
क्लीं हृषीकेश वंशाय नमो मां वारुणोऽवतु ।
अष्टादशार्णः कामान्तो वायव्ये मां सदाऽवतु ॥ 25 ॥
श्रीं मायाकामतृष्णाय गोविन्दाय द्विको मनुः ।
द्वादशार्णात्मको विष्णुरुत्तरे मां सदाऽवतु ॥ 26 ॥
वाग्भवं कामकृष्णाय ह्रीं गोविन्दाय तत्परम् ।
श्रीं गोपीजनवल्लभाय स्वाहा हस्तौ ततः परम् ॥ 27 ॥
द्वाविंशत्यक्षरो मन्त्रो मामैशान्ये सदाऽवतु ।
कालीयस्य फणामध्ये दिव्यं नृत्यं करोति तम् ॥ 28 ॥
नमामि देवकीपुत्रं नृत्यराजानमच्युतम् ।
द्वात्रिंशदक्षरो मन्त्रोऽप्यधो मां सर्वदाऽवतु ॥ 29 ॥
कामदेवाय विद्महे पुष्पबाणाय धीमहि ।
तन्नोऽनङ्गः प्रचोदयादेषा मां पातुचोर्ध्वतः ॥ 30 ॥
इति ते कथितं विप्र ब्रह्ममन्त्रौघविग्रहम् ।
त्रैलोक्यमङ्गलं नाम कवचं ब्रह्मरूपकम् ॥ 31 ॥
ब्रह्मणा कथितं पूर्वं नारायणमुखाच्छ्रुतम् ।
तव स्नेहान्मयाऽख्यातं प्रवक्तव्यं न कस्यचित् ॥ 32 ॥
गुरुं प्रणम्य विधिवत्कवचं प्रपठेत्ततः ।
सकृद्द्विस्त्रिर्यथाज्ञानं स हि सर्वतपोमयः ॥ 33 ॥
मन्त्रेषु सकलेष्वेव देशिको नात्र संशयः ।
शतमष्टोत्तरं चास्य पुरश्चर्या विधिस्स्मृतः ॥ 34 ॥
हवनादीन्दशांशेन कृत्वा तत्साधयेद्ध्रुवम् ।
यदि स्यात्सिद्धकवचो विष्णुरेव भवेत्स्वयम् ॥ 35 ॥
मन्त्रसिद्धिर्भवेत्तस्य पुरश्चर्या विधानतः ।
स्पर्धामुद्धूय सततं लक्ष्मीर्वाणी वसेत्ततः ॥ 36 ॥
पुष्पाञ्जल्यष्टकं दत्वा मूलेनैव पठेत्सकृत् ।
दशवर्षसहस्राणि पूजायाः फलमाप्नुयात् ॥ 37 ॥
भूर्जे विलिख्य गुलिकां स्वर्णस्थां धारयेद्यदि ।
कण्ठे वा दक्षिणे बाहौ सोऽपि विष्णुर्न संशयः ॥ 38 ॥
अश्वमेधसहस्राणि वाजपेयशतानि च ।
महादानानि यान्येव प्रादक्षिण्यं भुवस्तथा ॥ 39 ॥
कलां नार्हन्ति तान्येव सकृदुच्चारणात्ततः ।
कवचस्य प्रसादेन जीवन्मुक्तो भवेन्नरः ॥ 40 ॥
त्रैलोक्यं क्षोभयत्येव त्रैलोक्यविजयी स हि ।
इदं कवचमज्ञात्वा यजेद्यः पुरुषोत्तमम् ।
शतलक्षप्रजप्तोऽपि न मन्त्रस्तस्य सिद्ध्यति ॥ 41 ॥
इति श्री नारदपाञ्चरात्रे ज्ञानामृतसारे त्रैलोक्यमङ्गलकवचम् ।
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