No festivals today or in the next 14 days. 🎉
Shri Krishna Kavacham (Trilokya Mangal Kavacham) श्री कृष्ण कवचं (त्रैलोक्य मङ्गल कवचम्)
श्री कृष्ण कवचं (त्रैलोक्य मङ्गल कवचम्)
[Shri Krishna Kavacham (Trilokya Mangal Kavacham)]
श्री नारद उवाच –
भगवन्सर्वधर्मज्ञ कवचं यत्प्रकाशितम् ।
त्रैलोक्यमङ्गलं नाम कृपया कथय प्रभो ॥ 1 ॥
सनत्कुमार उवाच –
शृणु वक्ष्यामि विप्रेन्द्र कवचं परमाद्भुतम् ।
नारायणेन कथितं कृपया ब्रह्मणे पुरा ॥ 2 ॥
ब्रह्मणा कथितं मह्यं परं स्नेहाद्वदामि ते ।
अति गुह्यतरं तत्त्वं ब्रह्ममन्त्रौघविग्रहम् ॥ 3 ॥
यद्धृत्वा पठनाद्ब्रह्मा सृष्टिं वितनुते ध्रुवम् ।
यद्धृत्वा पठनात्पाति महालक्ष्मीर्जगत्त्रयम् ॥ 4 ॥
पठनाद्धारणाच्छम्भुः संहर्ता सर्वमन्त्रवित् ।
त्रैलोक्यजननी दुर्गा महिषादिमहासुरान् ॥ 5 ॥
वरतृप्तान् जघानैव पठनाद्धारणाद्यतः ।
एवमिन्द्रादयः सर्वे सर्वैश्वर्यमवाप्नुयुः ॥ 6 ॥
इदं कवचमत्यन्तगुप्तं कुत्रापि नो वदेत् ।
शिष्याय भक्तियुक्ताय साधकाय प्रकाशयेत् ॥ 7 ॥
शठाय परशिष्याय दत्वा मृत्युमवाप्नुयात् ।
त्रैलोक्यमङ्गलस्याऽस्य कवचस्य प्रजापतिः ॥ 8 ॥
ऋषिश्छन्दश्च गायत्री देवो नारायणस्स्वयम् ।
धर्मार्थकाममोक्षेषु विनियोगः प्रकीर्तितः ॥ 9 ॥
प्रणवो मे शिरः पातु नमो नारायणाय च ।
फालं मे नेत्रयुगलमष्टार्णो भुक्तिमुक्तिदः ॥ 10 ॥
क्लीं पायाच्छ्रोत्रयुग्मं चैकाक्षरः सर्वमोहनः ।
क्लीं कृष्णाय सदा घ्राणं गोविन्दायेति जिह्विकाम् ॥ 11 ॥
गोपीजनपदवल्लभाय स्वाहाऽननं मम ।
अष्टादशाक्षरो मन्त्रः कण्ठं पातु दशाक्षरः ॥ 12 ॥
गोपीजनपदवल्लभाय स्वाहा भुजद्वयम् ।
क्लीं ग्लौं क्लीं श्यामलाङ्गाय नमः स्कन्धौ रक्षाक्षरः ॥ 13 ॥
क्लीं कृष्णः क्लीं करौ पायात् क्लीं कृष्णायां गतोऽवतु ।
हृदयं भुवनेशानः क्लीं कृष्णः क्लीं स्तनौ मम ॥ 14 ॥
गोपालायाग्निजायातं कुक्षियुग्मं सदाऽवतु ।
क्लीं कृष्णाय सदा पातु पार्श्वयुग्ममनुत्तमः ॥ 15 ॥
कृष्ण गोविन्दकौ पातु स्मराद्यौजेयुतौ मनुः ।
अष्टाक्षरः पातु नाभिं कृष्णेति द्व्यक्षरोऽवतु ॥ 16 ॥
पृष्ठं क्लीं कृष्णकं गल्ल क्लीं कृष्णाय द्विरान्तकः ।
सक्थिनी सततं पातु श्रीं ह्रीं क्लीं कृष्णठद्वयम् ॥ 17 ॥
ऊरू सप्ताक्षरं पायात् त्रयोदशाक्षरोऽवतु ।
श्रीं ह्रीं क्लीं पदतो गोपीजनवल्लभपदं ततः ॥ 18 ॥
श्रिया स्वाहेति पायू वै क्लीं ह्रीं श्रीं सदशार्णकः ।
जानुनी च सदा पातु क्लीं ह्रीं श्रीं च दशाक्षरः ॥ 19 ॥
त्रयोदशाक्षरः पातु जङ्घे चक्राद्युदायुधः ।
अष्टादशाक्षरो ह्रीं श्रीं पूर्वको विंशदर्णकः ॥ 20 ॥
सर्वाङ्गं मे सदा पातु द्वारकानायको बली ।
नमो भगवते पश्चाद्वासुदेवाय तत्परम् ॥ 21 ॥
ताराद्यो द्वादशार्णोऽयं प्राच्यां मां सर्वदाऽवतु ।
श्रीं ह्रीं क्लीं च दशार्णस्तु क्लीं ह्रीं श्रीं षोडशार्णकः ॥ 22 ॥
गदाद्युदायुधो विष्णुर्मामग्नेर्दिशि रक्षतु ।
ह्रीं श्रीं दशाक्षरो मन्त्रो दक्षिणे मां सदाऽवतु ॥ 23 ॥
तारो नमो भगवते रुक्मिणीवल्लभाय च ।
स्वाहेति षोडशार्णोऽयं नैरृत्यां दिशि रक्षतु ॥ 24 ॥
क्लीं हृषीकेश वंशाय नमो मां वारुणोऽवतु ।
अष्टादशार्णः कामान्तो वायव्ये मां सदाऽवतु ॥ 25 ॥
श्रीं मायाकामतृष्णाय गोविन्दाय द्विको मनुः ।
द्वादशार्णात्मको विष्णुरुत्तरे मां सदाऽवतु ॥ 26 ॥
वाग्भवं कामकृष्णाय ह्रीं गोविन्दाय तत्परम् ।
श्रीं गोपीजनवल्लभाय स्वाहा हस्तौ ततः परम् ॥ 27 ॥
द्वाविंशत्यक्षरो मन्त्रो मामैशान्ये सदाऽवतु ।
कालीयस्य फणामध्ये दिव्यं नृत्यं करोति तम् ॥ 28 ॥
नमामि देवकीपुत्रं नृत्यराजानमच्युतम् ।
द्वात्रिंशदक्षरो मन्त्रोऽप्यधो मां सर्वदाऽवतु ॥ 29 ॥
कामदेवाय विद्महे पुष्पबाणाय धीमहि ।
तन्नोऽनङ्गः प्रचोदयादेषा मां पातुचोर्ध्वतः ॥ 30 ॥
इति ते कथितं विप्र ब्रह्ममन्त्रौघविग्रहम् ।
त्रैलोक्यमङ्गलं नाम कवचं ब्रह्मरूपकम् ॥ 31 ॥
ब्रह्मणा कथितं पूर्वं नारायणमुखाच्छ्रुतम् ।
तव स्नेहान्मयाऽख्यातं प्रवक्तव्यं न कस्यचित् ॥ 32 ॥
गुरुं प्रणम्य विधिवत्कवचं प्रपठेत्ततः ।
सकृद्द्विस्त्रिर्यथाज्ञानं स हि सर्वतपोमयः ॥ 33 ॥
मन्त्रेषु सकलेष्वेव देशिको नात्र संशयः ।
शतमष्टोत्तरं चास्य पुरश्चर्या विधिस्स्मृतः ॥ 34 ॥
हवनादीन्दशांशेन कृत्वा तत्साधयेद्ध्रुवम् ।
यदि स्यात्सिद्धकवचो विष्णुरेव भवेत्स्वयम् ॥ 35 ॥
मन्त्रसिद्धिर्भवेत्तस्य पुरश्चर्या विधानतः ।
स्पर्धामुद्धूय सततं लक्ष्मीर्वाणी वसेत्ततः ॥ 36 ॥
पुष्पाञ्जल्यष्टकं दत्वा मूलेनैव पठेत्सकृत् ।
दशवर्षसहस्राणि पूजायाः फलमाप्नुयात् ॥ 37 ॥
भूर्जे विलिख्य गुलिकां स्वर्णस्थां धारयेद्यदि ।
कण्ठे वा दक्षिणे बाहौ सोऽपि विष्णुर्न संशयः ॥ 38 ॥
अश्वमेधसहस्राणि वाजपेयशतानि च ।
महादानानि यान्येव प्रादक्षिण्यं भुवस्तथा ॥ 39 ॥
कलां नार्हन्ति तान्येव सकृदुच्चारणात्ततः ।
कवचस्य प्रसादेन जीवन्मुक्तो भवेन्नरः ॥ 40 ॥
त्रैलोक्यं क्षोभयत्येव त्रैलोक्यविजयी स हि ।
इदं कवचमज्ञात्वा यजेद्यः पुरुषोत्तमम् ।
शतलक्षप्रजप्तोऽपि न मन्त्रस्तस्य सिद्ध्यति ॥ 41 ॥
इति श्री नारदपाञ्चरात्रे ज्ञानामृतसारे त्रैलोक्यमङ्गलकवचम् ।
Related to Krishna
Chatushloki Stotra (चतुःश्लोकी)
चतु:श्लोकी स्तोत्र (Chatushloki Stotra): यह चार श्लोक (श्लोक) भगवद पुराण के सम्पूर्ण सार को प्रस्तुत करते हैं। इन चार श्लोकों का प्रतिदिन श्रद्धा और विश्वास के साथ पाठ और श्रवण करने से व्यक्ति के अज्ञान और अहंकार का नाश होता है, और उसे आत्म-ज्ञान की प्राप्ति होती है। जो व्यक्ति इन श्लोकों का पाठ करता है, वह अपने पापों से मुक्त हो जाता है और अपने जीवन में सत्य मार्ग का अनुसरण करता है। यह स्तोत्र न केवल आध्यात्मिक उन्नति के लिए महत्वपूर्ण है, बल्कि यह जीवन के वास्तविक उद्देश्य और उद्देश्य को जानने का भी मार्ग प्रशस्त करता है।Stotra
Uddhava Gita - Chapter 6 (उद्धवगीता - षष्ठोऽध्यायः)
उद्धवगीता के षष्ठोऽध्याय में उद्धव और कृष्ण की वार्ता में आत्म-साक्षात्कार और मुक्ति पर चर्चा होती है।Uddhava-Gita
Bhagavad Gita Sixteenth Chapter (भगवत गीता सोलहवाँ अध्याय)
भगवद गीता सोलहवाँ अध्याय "दैवासुर सम्पद विभाग योग" है। इसमें भगवान श्रीकृष्ण दैवी (सद्गुण) और आसुरी (दुर्गुण) स्वभाव का वर्णन करते हैं। वे बताते हैं कि दैवी गुण से व्यक्ति मोक्ष प्राप्त करता है और आसुरी गुण से बंधन में फंसता है। यह अध्याय "सद्गुणों की महिमा", "दुर्गुणों का परित्याग", और "सही जीवनशैली" पर आधारित है।Bhagwat-Gita
Bhagavad Gita 17 Chapter (भगवत गीता सातवाँ अध्याय)
भगवद्गीता का 17वां अध्याय "श्रद्धात्रयविभाग योग" (The Yoga of Threefold Faith) है, जो श्रद्धा (Faith) के तीन प्रकारों – सात्त्विक (Pure), राजसिक (Passionate), और तामसिक (Ignorant) – का वर्णन करता है। श्रीकृष्ण (Lord Krishna) अर्जुन (Arjuna) को बताते हैं कि व्यक्ति की श्रद्धा उसके स्वभाव (Nature) और गुणों (Qualities) पर आधारित होती है। इस अध्याय में भोजन (Food), यज्ञ (Sacrifice), तप (Austerity), और दान (Charity) को सात्त्विक, राजसिक, और तामसिक श्रेणियों में विभाजित कर उनके प्रभावों का वर्णन किया गया है। श्रीकृष्ण बताते हैं कि केवल सात्त्विक कर्म (Pure Actions) और श्रद्धा से ही आध्यात्मिक प्रगति (Spiritual Progress) और मोक्ष (Liberation) प्राप्त किया जा सकता है। यह अध्याय व्यक्ति को सद्गुणों (Virtues) और धर्म (Righteousness) के मार्ग पर चलने की प्रेरणा देता है।Bhagwat-Gita
Santana Gopala Stotram (संतान गोपाल स्तोत्रम्)
संतान गोपाल स्तोत्रम् भगवान कृष्ण की स्तुति करने वाला एक विशेष स्तोत्र है। यह स्तोत्र विशेष रूप से संतान की प्राप्ति के लिए गाया जाता है और भक्तों को गोपाल की कृपा का अनुभव करने में मदद करता है।Stotra
Krishna Janmashtami Puja Vidhi (कृष्ण जन्माष्टमी पूजा विधि)
यह पृष्ठ कृष्ण जन्माष्टमी के समय की जाने वाली श्री कृष्ण पूजा के सभी चरणों का वर्णन करता है। इस पृष्ठ पर दी गयी पूजा में षोडशोपचार पूजा के सभी १६ चरणों का समावेश किया गया है और सभी चरणों का वर्णन वैदिक मन्त्रों के साथ दिया गया है। जन्माष्टमी के दौरान की जाने वाली श्री कृष्ण पूजा में यदि षोडशोपचार पूजा के सोलह (१६) चरणों का समावेश हो तो उसे षोडशोपचार जन्माष्टमी पूजा विधि के रूप में जाना जाता है।Puja-Vidhi
Shrimad Bhagwad Gita Parayaan - Chapter 9 (श्रीमद्भगवद्गीता पारायण - नवमोऽध्यायः)
श्रीमद्भगवद्गीता पारायण के नवमोऽध्याय में कृष्ण ने अर्जुन को भक्ति योग और आत्मा की दिव्यता के बारे में समझाया है।Shrimad-Bhagwad-Gita-Parayaan
Uddhava Gita - Chapter 8 (उद्धवगीता - अस्श्टमोऽध्यायः)
उद्धवगीता के अष्टमोऽध्याय में उद्धव और कृष्ण की वार्ता में प्रकृति और पुरुष के संबंध पर चर्चा होती है।Uddhava-Gita