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Narayaniyam Dashaka 84 (नारायणीयं दशक 84)
नारायणीयं दशक 84 (Narayaniyam Dashaka 84)
क्वचिदथ तपनोपरागकाले पुरि निदधत् कृतवर्मकामसूनू ।
यदुकुलमहिलावृतः सुतीर्थं समुपगतोऽसि समंतपंचकाख्यम् ॥1॥
बहुतरजनताहिताय तत्र त्वमपि पुनन् विनिमज्य तीर्थतोयम् ।
द्विजगणपरिमुक्तवित्तराशिः सममिलथाः कुरुपांडवादिमित्रैः ॥2॥
तव खलु दयिताजनैः समेता द्रुपदसुता त्वयि गाढभक्तिभारा ।
तदुदितभवदाहृतिप्रकारैः अतिमुमुदे सममन्यभामिनीभिः ॥3॥
तदनु च भगवन् निरीक्ष्य गोपानतिकुतुकादुपगम्य मानयित्वा।
चिरतरविरहातुरांगरेखाः पशुपवधूः सरसं त्वमन्वयासीः ॥4॥
सपदि च भवदीक्षणोत्सवेन प्रमुषितमानहृदां नितंबिनीनाम् ।
अतिरसपरिमुक्तकंचुलीके परिचयहृद्यतरे कुचे न्यलैषीः ॥5॥
रिपुजनकलहैः पुनः पुनर्मे समुपगतैरियती विलंबनाऽभूत् ।
इति कृतपरिरंभणेत्वयि द्राक् अतिविवशा खलु राधिका निलिल्ये ॥6॥
अपगतविरहव्यथास्तदा ता रहसि विधाय ददाथ तत्त्वबोधम् ।
परमसुखचिदात्मकोऽहमात्मेत्युदयतु वः स्फुटमेव चेतसीति ॥7॥
सुखरसपरिमिश्रितो वियोगः किमपि पुराऽभवदुद्धवोपदेशैः ।
समभवदमुतः परं तु तासां परमसुखैक्यमयी भवद्विचिंता ॥8॥
मुनिवरनिवहैस्तवाथ पित्रा दुरितशमाय शुभानि पृच्छ्यमानैः ।
त्वयि सति किमिदं शुभांतरैः रित्युरुहसितैरपि याजितस्तदाऽसौ ॥9॥
सुमहति यजने वितायमाने प्रमुदितमित्रजने सहैव गोपाः ।
यदुजनमहितास्त्रिमासमात्रं भवदनुषंगरसं पुरेव भेजु ः ॥10॥
व्यपगमसमये समेत्य राधां दृढमुपगूह्य निरीक्ष्य वीतखेदाम् ।
प्रमुदितहृदयः पुरं प्रयातः पवनपुरेश्वर पाहि मां गदेभ्यः ॥11॥
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Narayaniyam Dashaka 92 (नारायणीयं दशक 92)
नारायणीयं दशक 92 भगवान विष्णु की कृपा और उनके भक्तों के प्रति उनकी करुणा का वर्णन करता है। यह अध्याय भगवान के अनंत प्रेम और करुणा को दर्शाता है।Narayaniyam-Dashaka
Shri Deenbandhu Ashtakam (श्री दीनबन्धु अष्टकम्)
Shri Deenbandhu Ashtakam (श्री दीनबन्धु अष्टकम्): श्री दीनबंधु अष्टकम् का नियमित पाठ करने से सभी दुख, दरिद्रता आदि दूर हो जाते हैं। सुख और समृद्धि की प्राप्ति होती है। श्री दीनबंधु अष्टकम् को किसी भी शुक्ल पक्ष की पंचमी से शुरू करके अगले शुक्ल पक्ष तक प्रत्येक दिन चार मण्यों के साथ तुलसी की माला से दीप जलाकर करना चाहिए। दीनबंधु वह अष्टक है जो गरीबों की नम्रता को हराता है। इस स्तोत्र का पाठ तुलसी की माला से दीप जलाकर और अगले चंद्र मास के शुक्ल पक्ष से प्रारंभ करने से सभी प्रकार के दुख, दरिद्रता, और दुःख समाप्त होते हैं और हर प्रकार की सुख-समृद्धि की प्राप्ति होती है। श्री दीनबंधु अष्टकम् उन भक्तों के लिए है जिन्होंने प्रपत्ति की है और प्रपन्न बन गए हैं, और साथ ही उन लोगों के लिए भी जो प्रपत्ति की इच्छा रखते हैं। भगवान की त्वरा (जल्दी से मदद करने की क्षमता) का उल्लेख पहले और आखिरी श्लोकों में किया गया है, जो संकट में फंसे लोगों की रक्षा के लिए है। इस अष्टकम् में, रचनाकार भगवान के ऐश्वर्य, मोक्ष-प्रदाता होने, आदि का उल्लेख करते हुए हमें भगवान के पास जाने की प्रेरणा देते हैं, और बताते हैं कि भगवान के अलावा किसी और से मोक्ष की प्राप्ति संभव नहीं है। यह एक ऐसा अष्टकम् है जिसमें पूर्ण आत्मसमर्पण (प्रपत्ति) और इसके प्रभाव को बहुत संक्षेप में आठ श्लोकों में प्रस्तुत किया गया है। पहले श्लोक में, रचनाकार हमारे जीवन की तुलना उस व्यक्ति से करते हैं जिसे हमारी इंद्रियां चारों ओर से हमला कर रही हैं और जो उन्हें अपनी ओर खींच रही हैं, जैसे कि वह किसी जंगली मगरमच्छ द्वारा खींचा जा रहा हो, और भगवान की कृपा और रक्षा की प्रार्थना करते हैं। दूसरे श्लोक में, रचनाकार हमें यह महसूस करने की आवश्यकता बताते हैं कि हम हमेशा भगवान के निर्भर हैं और हम उनसे स्वतंत्र नहीं हैं। यह प्रपत्ति के अंगों में से एक अंग है – कर्पण्य। जब हम प्रपत्ति के अंगों का पालन करते हैं, तब भगवान हमें अपने चरणों में समर्पण करने की इच्छा देते हैं, जो भगवान को प्राप्त करने का अगला कदम है। तीसरे श्लोक में, रचनाकार भगवान की महानता का गुणगान करते हैं, जो निम्नतम प्राणियों के साथ भी सहजता से मिल जाते हैं। हम सभी उनके द्वारा दी गई पाड़ा-पूजा की याद कर सकते हैं, जिसमें महालक्ष्मी जल का कलश लेकर उनके चरणों की पूजा करती हैं और फिर उस जल को भगवान और महालक्ष्मी के सिर पर छिड़कती हैं। इस प्रकार, प्रत्येक श्लोक में दीनबंधु की महानता का वर्णन किया गया है और इसके पाठ के प्रभावों का भी उल्लेख किया गया है।Ashtakam
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Shri Badrinathji Arti (भगवान् श्री बदरीनाथ जी की आरती)
भगवान श्री बद्रीनाथ जी की आरती हिंदू धर्म में भगवान विष्णु के बद्रीनारायण स्वरूप की वंदना है। बद्रीनाथ धाम, जो चारधाम यात्रा का महत्वपूर्ण हिस्सा है, को मोक्ष और दिव्यता का स्थान माना जाता है। इस आरती में भगवान विष्णु की कृपा, शांति, संपत्ति, और मोक्ष का गुणगान किया गया है। Badrinath Ji Aarti गाने से भक्तों को धार्मिक शुद्धि, आत्मिक शांति, और जीवन में स्थिरता की प्राप्ति होती है।Arti