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Shri Panchayudha Stotram (श्री पञ्चायुध स्तोत्रम्)
श्री पञ्चायुध स्तोत्रम्
(Shri Panchayudha Stotram)
स्फुरत्सहस्रारशिखातितीव्रं
सुदर्शनं भास्करकोटितुल्यम् ।
सुरद्विषां प्राणविनाशि विष्णोः
चक्रं सदाऽहं शरणं प्रपद्ये ॥ 1 ॥
विष्णोर्मुखोत्थानिलपूरितस्य
यस्य ध्वनिर्दानवदर्पहन्ता ।
तं पाञ्चजन्यं शशिकोटिशुभ्रं
शङ्खं सदाऽहं शरणं प्रपद्ये ॥ 2 ॥
हिरण्मयीं मेरुसमानसारां
कौमोदकीं दैत्यकुलैकहन्त्रीम् ।
वैकुण्ठवामाग्रकराग्रमृष्टां
गदां सदाऽहं शरणं प्रपद्ये ॥ 3 ॥
यज्ज्यानिनादश्रवणात्सुराणां
चेतांसि निर्मुक्तभयानि सद्यः ।
भवन्ति दैत्याशनिबाणवर्षैः
शार्ङ्गं सदाऽहं शरणं प्रपद्ये ॥ 4 ॥
रक्षोऽसुराणां कठिनोग्रकण्ठ-
-च्छेदक्षरत्क्षोणित दिग्धसारम् ।
तं नन्दकं नाम हरेः प्रदीप्तं
खड्गं सदाऽहं शरणं प्रपद्ये ॥ 5 ॥
इमं हरेः पञ्चमहायुधानां
स्तवं पठेद्योऽनुदिनं प्रभाते ।
समस्त दुःखानि भयानि सद्यः
पापानि नश्यन्ति सुखानि सन्ति ॥ 6 ॥
वने रणे शत्रु जलाग्निमध्ये
यदृच्छयापत्सु महाभयेषु ।
पठेत्विदं स्तोत्रमनाकुलात्मा
सुखीभवेत्तत्कृत सर्वरक्षः ॥ 7 ॥
यच्चक्रशङ्खं गदखड्गशार्ङ्गिणं
पीताम्बरं कौस्तुभवत्सलाञ्छितम् ।
श्रियासमेतोज्ज्वलशोभिताङ्गं
विष्णुं सदाऽहं शरणं प्रपद्ये ॥
जले रक्षतु वाराहः स्थले रक्षतु वामनः ।
अटव्यां नारसिंहश्च सर्वतः पातु केशवः ॥
इति पञ्चायुध स्तोत्रम् ॥
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