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Shri Shiv Aparadh Kshamapan Stotram || श्री शिवापराध क्षमापण स्तोत्रम् : Full Lyrics in Sanskrit
Shri Shiv Aparadh Kshamapan Stotram (श्री शिवापराध क्षमापण स्तोत्रम्)
Shiv Apradh Kshamapan Stotra(शिव अपराध क्षमापन स्तोत्र) आदि Adi Shankaracharya द्वारा रचित एक दिव्य Sacred Stotra है, जिसे Lord Shiva की पूजा में Forgiveness Prayer के लिए गाया जाता है 🙏। यह Hindu Devotional Stotra पूजा और Worship के दौरान हुई भूलों के लिए Apology Request करने का सर्वोत्तम साधन है। इस Powerful Hymn का नियमित पाठ Sadhak को Goddess Durga’s Blessings और Lord Shiva’s Infinite Grace प्रदान करता है। इस Shiva Stotra में भक्त Lord Shiva से हाथ, पैर, वाणी, शरीर, मन और हृदय से किए गए Sins and Mistakes की क्षमा मांगते हैं। वे अपने Past and Future Sins के लिए भी Mercy Request करते हैं 🕉️। इस Divine Chanting का पाठ Lord Shiva को Pleased करता है, जो Trinity Destroyer माने जाते हैं और करोड़ों Hindu Devotees द्वारा मुख्य Deity रूप में पूजे जाते हैं। Shiva Worship के बाद Shiv Apradh Kshamapan Stotra का पाठ करना अत्यंत लाभकारी माना जाता है। Lord Shiva’s Sacred Panchakshar Mantra "Na Ma Si Va Ya" इस Stotra में विशेष रूप से प्रतिष्ठित है, जिससे Sadhak के जीवन में Positive Transformation आता है और वह Spiritually Elevated होता है 🚩।श्री शिवापराध क्षमापण स्तोत्रम्
(Shri Shiv Aparadh Kshamapan Stotram)
आदौ कर्मप्रसंगात्कलयति कलुषं मातृकुक्षौ स्थितं मां
विण्मूत्रामेध्यमध्ये क्वथयति नितरां जाठरो जातवेदाः ।
यद्यद्वै तत्र दुःखं व्यथयति नितरां शक्यते केन वक्तुं
क्षंतव्यो मेऽपराधः शिव शिव शिव भो श्रीमहादेव शंभो ॥ 1॥
बाल्ये दुःखातिरेको मललुलितवपुः स्तन्यपाने पिपासा
नो शक्तश्चेंद्रियेभ्यो भवगुणजनिताः जंतवो मां तुदंति ।
नानारोगादिदुःखाद्रुदनपरवशः शंकरं न स्मरामि
क्षंतव्यो मेऽपराधः शिव शिव शिव भो श्रीमहादेव शंभो ॥ 2॥
प्रौढोऽहं यौवनस्थो विषयविषधरैः पंचभिर्मर्मसंधौ
दष्टो नष्टो विवेकः सुतधनयुवतिस्वादुसौख्ये निषण्णः ।
शैवीचिंताविहीनं मम हृदयमहो मानगर्वाधिरूढं
क्षंतव्यो मेऽपराधः शिव शिव शिव भो श्रीमहादेव शंभो ॥ 3॥
वार्धक्ये चेंद्रियाणां विगतगतिमतिश्चाधिदैवादितापैः
पापै रोगैर्वियोगैस्त्वनवसितवपुः प्रौढहीनं च दीनम् ।
मिथ्यामोहाभिलाषैर्भ्रमति मम मनो धूर्जटेर्ध्यानशून्यं
क्षंतव्यो मेऽपराधः शिव शिव शिव भो श्रीमहादेव शंभो ॥ 4॥
स्नात्वा प्रत्यूषकाले स्नपनविधिविधौ नाहृतं गांगतोयं
पूजार्थं वा कदाचिद्बहुतरगहनात्खंडबिल्वीदलानि ।
नानीता पद्ममाला सरसि विकसिता गंधधूपैः त्वदर्थं
क्षंतव्यो मेऽपराधः शिव शिव शिव भो श्रीमहादेव शंभो ॥ 5॥
दुग्धैर्मध्वाज्ययुक्तैर्दधिसितसहितैः स्नापितं नैव लिंगं
नो लिप्तं चंदनाद्यैः कनकविरचितैः पूजितं न प्रसूनैः ।
धूपैः कर्पूरदीपैर्विविधरसयुतैर्नैव भक्ष्योपहारैः
क्षंतव्यो मेऽपराधः शिव शिव शिव भो श्रीमहादेव शंभो ॥ 6॥
नो शक्यं स्मार्तकर्म प्रतिपदगहनप्रत्यवायाकुलाख्यं
श्रौते वार्ता कथं मे द्विजकुलविहिते ब्रह्ममार्गानुसारे । वर् ब्रह्ममार्गे सुसारे
ज्ञातो धर्मो विचारैः श्रवणमननयोः किं निदिध्यासितव्यं
क्षंतव्यो मेऽपराधः शिव शिव शिव भो श्रीमहादेव शंभो ॥ 7॥
ध्यात्वा चित्ते शिवाख्यं प्रचुरतरधनं नैव दत्तं द्विजेभ्यो
हव्यं ते लक्षसंख्यैर्हुतवहवदने नार्पितं बीजमंत्रैः ।
नो तप्तं गांगातीरे व्रतजपनियमैः रुद्रजाप्यैर्न वेदैः
क्षंतव्यो मेऽपराधः शिव शिव शिव भो श्रीमहादेव शंभो ॥ 8॥
नग्नो निःसंगशुद्धस्त्रिगुणविरहितो ध्वस्तमोहांधकारो
नासाग्रे न्यस्तदृष्टिर्विदितभवगुणो नैव दृष्टः कदाचित् ।
उन्मन्याऽवस्थया त्वां विगतकलिमलं शंकरं न स्मरामि
क्षंतव्यो मेऽपराधः शिव शिव शिव भो श्रीमहादेव शंभो ॥ 9॥
स्थित्वा स्थाने सरोजे प्रणवमयमरुत्कुंभके (कुंडले) सूक्ष्ममार्गे
शांते स्वांते प्रलीने प्रकटितविभवे ज्योतिरूपेऽपराख्ये ।
लिंगज्ञे ब्रह्मवाक्ये सकलतनुगतं शंकरं न स्मरामि
क्षंतव्यो मेऽपराधः शिव शिव शिव भो श्रीमहादेव शंभो ॥ 10॥
हृद्यं वेदांतवेद्यं हृदयसरसिजे दीप्तमुद्यत्प्रकाशं
सत्यं शांतस्वरूपं सकलमुनिमनःपद्मषंडैकवेद्यम् ।
जाग्रत्स्वप्ने सुषुप्तौ त्रिगुणविरहितं शंकरं न स्मरामि
क्षंतव्यो मेऽपराधः शिव शिव शिव भो श्रीमहादेव शंभो ॥ 11॥
चंद्रोद्भासितशेखरे स्मरहरे गंगाधरे शंकरे
सर्पैर्भूषितकंठकर्णविवरे नेत्रोत्थवैश्वानरे । युगले
दंतित्वक्कृतसुंदरांबरधरे त्रैलोक्यसारे हरे
मोक्षार्थं कुरु चित्तवृत्तिमचलामन्यैस्तु किं कर्मभिः ॥ 12॥
किं वाऽनेन धनेन वाजिकरिभिः प्राप्तेन राज्येन किं
किं वा पुत्रकलत्रमित्रपशुभिर्देहेन गेहेन किम् ।
ज्ञात्वैतत्क्षणभंगुरं सपदि रे त्याज्यं मनो दूरतः
स्वात्मार्थं गुरुवाक्यतो भज मन श्रीपार्वतीवल्लभम् ॥ 13॥
पौरोहित्यं रजनिचरितं ग्रामणीत्वं नियोगो
माठापत्यं ह्यनृतवचनं साक्षिवादः परान्नम् ।
ब्रह्मद्वेषः खलजनरतिः प्राणिनां निर्दयत्वं
मा भूदेवं मम पशुपते जन्मजन्मांतरेषु ॥ 14॥
आयुर्नश्यति पश्यतां प्रतिदिनं याति क्षयं यौवनं
प्रत्यायांति गताः पुनर्न दिवसाः कालो जगद्भक्षकः ।
लक्ष्मीस्तोयतरंगभंगचपला विद्युच्चलं जीवितं
तस्मात्त्वां शरणागतं शरणद त्वं रक्ष रक्षाधुना ॥ 15॥ तस्मान्मां
वंदे देवमुमापतिं सुरगुरुं वंदे जगत्कारणं
वंदे पन्नगभूषणं मृगधरं वंदे पशूनां पतिम् ।
वंदे सूर्यशशांकवह्निनयनं वंदे मुकुंदप्रियं
वंदे भक्तजनाश्रयं च वरदं वंदे शिवं शंकरम् ॥16॥
गात्रं भस्मसितं सितं च हसितं हस्ते कपालं सितं वर् स्मितं च
खट्वांगं च सितं सितश्च वृषभः कर्णे सिते कुंडले ।
गंगा फेनसिता जटा पशुपतेश्चंद्रः सितो मूर्धनि
सोऽयं सर्वसितो ददातु विभवं पापक्षयं सर्वदा ॥ 17॥
करचरणकृतं वाक्कायजं कर्मजं वा
श्रवणनयनजं वा मानसं वाऽपराधम् ।
विहितमविहितं वा सर्वमेतत्क्ष्मस्व
शिव शिव करुणाब्धे श्रीमहादेव शंभो ॥ 18॥
॥ इति श्रीमद् शंकराचार्यकृत शिवापराधक्षमापणस्तोत्रं संपूर्णम् ॥
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Anand Lahari (आनन्द लहरि)
आनन्द लहरि एक आध्यात्मिक भजन है जो भगवान शिव की स्तुति में गाया जाता है, जो उनकी कृपा और आनंद को व्यक्त करता है।Lahari
Shri Shivaparadha Kshamapana Stotra
शिव अपराध क्षमापन स्तोत्र श्री आदि शंकराचार्य द्वारा रचित एक महत्वपूर्ण स्तोत्र है। यह स्तोत्र भगवान शिव की पूजा और आराधना के दौरान हुई त्रुटियों और अपराधों की क्षमा के लिए उच्चारित किया जाता है। इसे विशेष रूप से भगवान शिव के प्रति किए गए आध्यात्मिक दोष और उपासना में हुई गल्तियों के लिए माँगने के रूप में प्रस्तुत किया जाता है। शिव अपराध क्षमापन स्तोत्र के माध्यम से भक्त अपने गलत कार्यों को सुधारने और भगवान शिव के अद्वितीय और अचूक कृपा से जुड़ने का प्रयास करते हैं। इस स्तोत्र का उच्चारण भगवान शिव की उपासना के बाद करना चाहिए, ताकि आत्मा को शुद्धि और आध्यात्मिक उन्नति प्राप्त हो सके। इसका नियमित अभ्यास करने से साधक अपने जीवन में सकारात्मक परिवर्तन महसूस करता है। यह स्तोत्र भगवान शिव की दिव्य कृपा और माता दुर्गा की शक्तियों के साथ साधक को जोड़े रखता है।Stotra
Bhagwan Shri Shankar Arti (भगवान् श्री शंकर की आरती )
जयति जयति जग-निवास भगवान शंकर की सबसे प्रसिद्ध आरतियों में से एक है। इसमें Shankar या Shiva, जिन्हें Lord of the Universe कहा जाता है, के प्रति असीम भक्ति और उनके आशीर्वाद की प्रार्थना की जाती है।Arti
Shri Rudra Laghunyasam (श्री रुद्रं लघुन्यासम्)
श्री रुद्रं लघुन्यासम् एक पवित्र वैदिक मंत्र है जो भगवान शिव को समर्पित है। यह यजुर्वेद का हिस्सा है और इसे मन और आत्मा को शुद्ध करने, शांति और आशीर्वाद आमंत्रित करने के लिए माना जाता है।MahaMantra
Kashi Vishwanathashtakam (काशी विश्वनाथाष्टकम्)
Kashi Vishwanath Ashtakam भगवान शिव के काशी स्थित विश्वनाथ रूप की महिमा का वर्णन करता है, जिन्हें "Lord of the Universe" और "Supreme Divine Protector" माना जाता है। यह स्तोत्र काशी, जो "Spiritual Capital" और "Sacred City of Lord Shiva" के रूप में प्रसिद्ध है, उसकी महिमा और शक्ति को प्रणाम करता है। Kashi Vishwanath Ashtakam का पाठ "Shiva Devotional Chant" और "Divine Blessings Hymn" के रूप में किया जाता है। इसके नियमित जाप से व्यक्ति को "Spiritual Awakening" और "Inner Peace" प्राप्त होती है। यह स्तोत्र "Blessings of Lord Shiva" और "Cosmic Energy Prayer" के रूप में प्रभावी है। इसका जाप करने से जीवन में "Spiritual Protection" और "Positive Energy" का प्रवाह होता है। Kashi Vishwanath Ashtakam को "Divine Shiva Prayer" और "Blessings for Prosperity" के रूप में पढ़ने से सभी प्रकार की बाधाएं दूर होती हैं। काशी विश्वनाथ की कृपा से जीवन में शांति, समृद्धि और आत्मिक संतुलन आता है।Ashtakam
Nirvana Shatkam (निर्वाण षट्कम्)
निर्वाण षट्कम् आदि शंकराचार्य द्वारा रचित एक श्लोक है, जो आत्मा के शुद्ध स्वरूप और मोक्ष के विषय में जागरूकता लाता है।Shatakam
Totakashtakam (तोटकाष्टकम्)
Totakashtakam आदि शंकराचार्य के शिष्य Totakacharya द्वारा रचित एक प्रसिद्ध Vedantic Stotra है। इसमें Guru Bhakti और ज्ञान की महिमा का वर्णन किया गया है। इस Sacred Hymn के पाठ से भक्तों को आध्यात्मिक जागृति और Divine Knowledge प्राप्त होता है। Hindu Devotional Stotra का नियमित जाप करने से जीवन में शांति और सकारात्मकता आती है। यह Spiritual Chant गुरु के प्रति समर्पण और भक्ति का प्रतीक है। Guru Stotra का अभ्यास करने से मोक्ष का मार्ग सुगम होता है।Ashtakam
Brahmand Vijay Shri Shiva Kavacham (ब्रह्माण्डविजय श्री शिव कवचम्)
Shiva Kavach (शिव कवच) एक परम अद्भुत और ब्रह्माण्डविजय कवच है, जिसकी दस लाख जप से ही सिद्धि प्राप्त हो जाती है। यदि यह कवच सिद्ध हो जाए, तो साधक निश्चय ही रुद्र-तुल्य हो जाता है। यह काण्वशाखोक्त कवच अत्यंत गोपनीय और परम दुर्लभ है। सहस्रों Ashwamedha Yagya और सैकड़ों Rajasuya Yagya भी इस कवच की सोलहवीं कला के समान नहीं हो सकते। इस Shiva Kavach की कृपा से साधक Jeevanmukt, Sarvagya, Samppurna Siddhiyon Ka Swami और Man Ke Saman Vegshali हो जाता है। जो इस Shiva Kavach को बिना जाने Bhagwan Shankar का Bhajan करता है, उसे Ek Crore Jap करने पर भी Mantra Siddhi प्राप्त नहीं होती। अतः जो भी Shiva Bhakt जीवन में Victory, Power, Protection और Spiritual Growth चाहता है, उसे Shiva Kavach का विधिपूर्वक Jap और Sadhna करनी चाहिए।Kavacha