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Parvati Vallabha Neelkantha Ashtakam || पार्वतीवल्लभ नीलकण्ठाष्टकम् : Full Lyrics with Benefits
Parvati Vallabha Neelkantha Ashtakam (पार्वतीवल्लभ नीलकण्ठाष्टकम्)
Shri Parvati Vallabha Ashtakam (पार्वतीवल्लभ नीलकण्ठाष्टकम्) का पाठ calm mind और devotion के साथ करने से wealth, prosperity, और fame में वृद्धि होती है। ऐसी मान्यता है कि यदि कोई व्यक्ति regularly इस ashtakam का पाठ करता है, तो उसके sorrows और problems समाप्त हो जाते हैं। यह भी कहा जाता है कि इस divine stotra का पाठ करने से Goddess Parvati और Lord Shiva की divine blessings प्राप्त होती हैं। यदि घर में happiness और prosperity बनाए रखना चाहते हैं, तो daily recitation अत्यंत beneficial सिद्ध हो सकता है। इसके माध्यम से mental और spiritual strength का विकास होता है, जिससे जीवन में positive changes आने लगते हैं। Shri Parvati Vallabha Ashtakam का regular chanting व्यक्ति के भीतर new courage उत्पन्न करता है, जिससे fear of failure कम होकर success की संभावनाएं बढ़ती हैं। ऐसा कहा जाता है कि यह sacred hymn bad luck को दूर कर negative energy को खत्म कर देता है, जिससे व्यक्ति के जीवन में peace और harmony बनी रहती है।॥ पार्वतीवल्लभ नीलकण्ठाष्टकम् ॥
(Parvati Vallabha Neelkantha Ashtakam)
नमो भूतनाथं नमो देवदेवं
नमः कालकालं नमो दिव्यतेजः ।
नमः कामभस्मं नमश्शान्तशीलं
भजे पार्वतीवल्लभं नीलकण्ठम् ॥ १॥
सदा तीर्थसिद्धं सदा भक्तरक्षं
सदा शैवपूज्यं सदा शुभ्रभस्मम् ।
सदा ध्यानयुक्तं सदा ज्ञानतल्पं
भजे पार्वतीवल्लभं नीलकण्ठम् ॥ २॥
श्मशाने शयानं महास्थानवासं
शरीरं गजानं सदा चर्मवेष्टम् ।
पिशाचादिनाथं पशूनां प्रतिष्ठं
भजे पार्वतीवल्लभं नीलकण्ठम् ॥ ३॥
फणीनागकण्ठे भुजङ्गाद्यनेकं
गले रुण्डमालं महावीर शूरम् ।
कटिव्याघ्रचर्मं चिताभस्मलेपं
भजे पार्वतीवल्लभं नीलकण्ठम् ॥ ४॥
शिरश्शुद्धगङ्गा शिवावामभागं
बृहद्दीर्घकेशं सदा मां त्रिनेत्रम् ।
फणीनागकर्णं सदा भालचन्द्रं
भजे पार्वतीवल्लभं नीलकण्ठम् ॥ ५॥
करे शूलधारं महाकष्टनाशं
सुरेशं परेशं महेशं जनेशम् ।
धनेशस्तुतेशं ध्वजेशं गिरीशं
भजे पार्वतीवल्लभं नीलकण्ठम् ॥ ६॥
उदानं सुदासं सुकैलासवासं
धरा निर्धरं संस्थितं ह्यादिदेवम् ।
अजं हेमकल्पद्रुमं कल्पसेव्यं
भजे पार्वतीवल्लभं नीलकण्ठम् ॥ ७॥
मुनीनां वरेण्यं गुणं रूपवर्णं
द्विजानं पठन्तं शिवं वेदशास्त्रम् ।
अहो दीनवत्सं कृपालुं शिवं तं
भजे पार्वतीवल्लभं नीलकण्ठम् ॥ ८॥
सदा भावनाथं सदा सेव्यमानं
सदा भक्तिदेवं सदा पूज्यमानम् ।
मया तीर्थवासं सदा सेव्यमेकं
भजे पार्वतीवल्लभं नीलकण्ठम् ॥ ९॥
इति पार्वतीवल्लभनीलकण्ठाष्टकं सम्पूर्णम् ।
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