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Shata Rudriyam || शत रुद्रीयम् : Powerful Vedic Hymn Dedicated to Lord Shiva
Shata Rudriyam (शत रुद्रीयम्)
Shata Rudriyam भगवान शिव के "Divine Glory" और "Supreme Power" का आह्वान करता है, जिन्हें "Lord of the Universe" और "Destroyer of Evil" के रूप में पूजा जाता है। यह अत्यंत शक्तिशाली मंत्र भगवान शिव की "Cosmic Energy" और "Divine Protection" को प्राप्त करने का एक विशेष उपाय है। Shata Rudriyam का जाप "Divine Blessings Prayer" और "Shiva Worship Chant" के रूप में किया जाता है। यह मंत्र भगवान शिव की "Grace and Mercy" को आकर्षित करता है, जो जीवन में "Positive Energy" और "Protection from Negativity" का संचार करता है। Shata Rudriyam से भगवान शिव की "Divine Protection" प्राप्त होती है, जिससे भक्तों को हर प्रकार की कठिनाई और संकट से मुक्ति मिलती है।शत रुद्रीयम्
(Shata Rudriyam)
व्यास उवाच
प्रजा पतीनां प्रथमं तेजसां पुरुषं प्रभुम् ।
भुवनं भूर्भुवं देवं सर्वलोकेश्वरं प्रभुम्॥ 1
ईशानां वरदं पार्थ दृष्णवानसि शङ्करम् ।
तं गच्च शरणं देवं वरदं भवनेश्वरम् ॥ 2
महादेवं महात्मान मीशानं जटिलं शिवम् ।
त्य्रक्षं महाभुजं रुद्रं शिखिनं चीरवासनम् ॥ 3
महादेवं हरं स्थाणुं वरदं भवनेश्वरम् ।
जगत्र्पाधानमधिकं जगत्प्रीतमधीश्वरम् ॥ 4
जगद्योनिं जगद्द्वीपं जयनं जगतो गतिम् ।
विश्वात्मानं विश्वसृजं विश्वमूर्तिं यशस्विनम् ॥ 5
विश्वेश्वरं विश्ववरं कर्माणामीश्वरं प्रभुम् ।
शम्भुं स्वयम्भुं भूतेशं भूतभव्यभवोद्भवम् ॥ 6
योगं योगेश्वरं शर्वं सर्वलोकेश्वरेश्वरम् ।
सर्वश्रेष्टं जगच्छ्रेष्टं वरिष्टं परमेष्ठिनम् ॥ 7
लोकत्रय विधातारमेकं लोकत्रयाश्रयम् ।
सुदुर्जयं जगन्नाथं जन्ममृत्यु जरातिगम् ॥ 8
ज्ञानात्मानां ज्ञानगम्यं ज्ञानश्रेष्ठं सुदर्विदम् ।
दातारं चैव भक्तानां प्रसादविहितान् वरान् ॥ 9
तस्य पारिषदा दिव्यारूपै र्नानाविधै र्विभोः ।
वामना जटिला मुण्डा ह्रस्वग्रीव महोदराः ॥ 10
महाकाया महोत्साहा महाकर्णास्तदा परे ।
आननैर्विकृतैः पादैः पार्थवेषैश्च वैकृतैः ॥ 11
ईदृशैस्स महादेवः पूज्यमानो महेश्वरः ।
सशिवस्तात तेजस्वी प्रसादाद्याति तेऽग्रतः ॥ 12
तस्मिन् घोरे सदा पार्थ सङ्ग्रामे रोमहर्षिणे ।
द्रौणिकर्ण कृपैर्गुप्तां महेष्वासैः प्रहारिभिः ॥ 13
कस्तां सेनां तदा पार्ध मनसापि प्रधर्षयेत् ।
ऋते देवान्महेष्वासाद्बहुरूपान्महेश्वरात् ॥ 14
प्थातुमुत्सहते कश्चिन्नतस्मिन्नग्रतः स्थिते ।
न हि भूतं समं तेन त्रिषु लोकेषु विद्यते ॥ 15
गन्धे नापि हि सङ्ग्रामे तस्य कृद्दस्य शत्रवः ।
विसञ्ज्ञा हत भूयिष्टा वेपन्तिच पतन्ति च ॥ 16
तस्मै नमस्तु कुर्वन्तो देवा स्तिष्ठन्ति वैदिवि ।
ये चान्ये मानवा लोके येच स्वर्गजितो नराः ॥ 17
ये भक्ता वरदं देवं शिवं रुद्रमुमापतिम् ।
इह लोके सुखं प्राप्यते यान्ति परमां गतिम् ॥ 18
नमस्कुरुष्व कौन्तेय तस्मै शान्ताय वै सदा ।
रुद्राय शितिकण्ठाय कनिष्ठाय सुवर्चसे ॥ 19
कपर्दिने करलाय हर्यक्षवरदायच ।
याम्यायरक्तकेशाय सद्वृत्ते शङ्करायच ॥ 20
काम्याय हरिनेत्राय स्थाणुवे पुरुषायच ।
हरिकेशाय मुण्डाय कनिष्ठाय सुवर्चसे ॥ 21
भास्कराय सुतीर्थाय देवदेवाय रंहसे ।
बहुरूपाय प्रियाय प्रियवाससे ॥ 22
उष्णीषिणे सुवक्त्राय सहस्राक्षाय मीडुषे ।
गिरीशीय सुशान्ताय पतये चीरवाससे ॥ 23
हिरण्यबाहवे राजन्नुग्राय पतयेदिशाम् ।
पर्जन्यपतयेचैव भूतानां पतये नमः ॥ 24
वृक्षाणां पतयेचैव गवां च पतये तथा ।
वृक्षैरावृत्तकायाय सेनान्ये मध्यमायच ॥ 25
स्रुवहस्ताय देवाय धन्विने भार्गवाय च ।
बहुरूपाय विश्वस्य पतये मुञ्जवाससे ॥ 26
सहस्रशिरसे चैव सहस्र नयनायच ।
सहस्रबाहवे चैव सहस्र चरणाय च ॥ 27
शरणं गच्छ कौन्तेय वरदं भुवनेश्वरम् ।
उमापतिं विरूपाक्षं दक्षं यज्ञनिबर्हणम् ॥ 28
प्रजानां पतिमव्यग्रं भूतानां पतिमव्ययम् ।
कपर्दिनं वृषावर्तं वृषनाभं वृषध्वजम् ॥ 29
वृषदर्पं वृषपतिं वृषशृङ्गं वृषर्षभम् ।
वृषाकं वृषभोदारं वृषभं वृषभेक्षणम् ॥ 30
वृषायुधं वृषशरं वृषभूतं महेश्वरम् ।
महोदरं महाकायं द्वीपचर्मनिवासिनम् ॥ 31
लोकेशं वरदं मुण्डं ब्राह्मण्यं ब्राह्मणप्रियम् ।
त्रिशूलपाणिं वरदं खड्गचर्मधरं शुभम् ॥ 32
पिनाकिनं खड्गधरं लोकानां पतिमीश्वरम् ।
प्रपद्ये शरणं देवं शरण्यं चीरवासनम् ॥ 33
नमस्तस्मै सुरेशाय यस्य वैश्रवणस्सखा ।
सुवाससे नमो नित्यं सुव्रताय सुधन्विने ॥ 34
धनुर्धराय देवाय प्रियधन्वाय धन्विने ।
धन्वन्तराय धनुषे धन्वाचार्याय ते नमः ॥ 35
उग्रायुधाय देवाय नमस्सुरवराय च ।
नमोऽस्तु बहुरूपाय नमस्ते बहुदन्विने ॥ 36
नमोऽस्तु स्थाणवे नित्यन्नमस्तस्मै सुधन्विने ।
नमोऽस्तु त्रिपुरघ्नाय भवघ्नाय च वै नमः ॥ 37
वनस्पतीनां पतये नराणां पतये नमः ।
मातॄणां पतये चैव गणानां पतये नमः ॥ 38
गवां च पतये नित्यं यज्ञानां पतये नमः ।
अपां च पतये नित्यं देवानां पतये नमः ॥ 39
पूष्णो दन्तविनाशाय त्र्यक्षाय वरदायच ।
हराय नीलकण्ठाय स्वर्णकेशाय वै नमः ॥ 40
ॐ शान्तिः ॐ शान्तिः ॐ शान्तिः
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