No festivals today or in the next 14 days. 🎉
Uddhava Gita - Chapter 4 (उद्धवगीता - चतुर्थोऽध्यायः)
उद्धवगीता - चतुर्थोऽध्यायः (Uddhava Gita - Chapter 4)
अथ चतुर्थोऽध्यायः ।
राजा उवाच ।
यानि यानि इह कर्माणि यैः यैः स्वच्छंदजन्मभिः ।
चक्रे करोति कर्ता वा हरिः तानि ब्रुवंतु नः ॥ 1॥
द्रुमिलः उवाच ।
यः वा अनंतस्य गुणान् अनंतान्
अनुक्रमिष्यन् सः तु बालबुद्धिः ।
रजांसि भूमेः गणयेत् कथंचित्
कालेन न एव अखिलशक्तिधाम्नः ॥ 2॥
भूतैः यदा पंचभिः आत्मसृष्टैः
पुरं विराजं विरचय्य तस्मिन् ।
स्वांशेन विष्टः पुरुषाभिधान
मवाप नारायणः आदिदेवः ॥ 3॥
यत् कायः एषः भुवनत्रयसंनिवेशः
यस्य इंद्रियैः तनुभृतां उभयैंद्रियाणि ।
ज्ञानं स्वतः श्वसनतः बलं ओजः ईहा
सत्त्वादिभिः स्थितिलयौद्भवः आदिकर्ता ॥ 4॥
आदौ अभूत् शतधृती रजस अस्य सर्गे
विष्णु स्थितौ क्रतुपतिः द्विजधर्मसेतुः ।
रुद्रः अपि अयाय तमसा पुरुषः सः आद्यः
इति उद्भवस्थितिलयाः सततं प्रजासु ॥ 5॥
धर्मस्य दक्षदुहितर्यजनिष्टः मूर्त्या
नारायणः नरः ऋषिप्रवरः प्रशांतः ।
नैष्कर्म्यलक्षणं उवाच चचार कर्म
यः अद्य अपि च आस्त ऋषिवर्यनिषेवितांघ्रिः ॥ 6॥
इंद्रः विशंक्य मम धाम जिघृक्षति इति
कामं न्ययुंक्त सगणं सः बदरिउपाख्यम् ।
गत्वा अप्सरोगणवसंतसुमंदवातैः
स्त्रीप्रेक्षण इषुभिः अविध्यतत् महिज्ञः ॥ 7॥
विज्ञाय शक्रकृतं अक्रमं आदिदेवः
प्राह प्रहस्य गतविस्मयः एजमानान् ।
मा भैष्ट भो मदन मारुत देववध्वः
गृह्णीत नः बलिं अशून्यं इमं कुरुध्वम् ॥ 8॥
इत्थं ब्रुवति अभयदे नरदेव देवाः
सव्रीडनम्रशिरसः सघृणं तं ऊचुः ।
न एतत् विभो त्वयि परे अविकृते विचित्रम्
स्वारामधीः अनिकरानतपादपद्मे ॥ 9॥
त्वां सेवतां सुरकृता बहवः अंतरायाः
स्वौको विलंघ्य परमं व्रजतां पदं ते ।
न अन्यस्य बर्हिषि बलीन् ददतः स्वभागान्
धत्ते पदं त्वं अविता यदि विघ्नमूर्ध्नि ॥ 10॥
क्षुत् तृट्त्रिकालगुणमारुतजैव्ह्यशैश्न्यान्
अस्मान् अपारजलधीन् अतितीर्य केचित् ।
क्रोधस्य यांति विफलस्य वश पदे गोः
मज्जंति दुश्चरतपः च वृथा उत्सृजंति ॥ 11॥
इति प्रगृणतां तेषां स्त्रियः अति अद्भुतदर्शनाः ।
दर्शयामास शुश्रूषां स्वर्चिताः कुर्वतीः विभुः ॥ 12॥
ते देव अनुचराः दृष्ट्वा स्त्रियः श्रीः इव रूपिणीः ।
गंधेन मुमुहुः तासां रूप औदार्यहतश्रियः ॥ 13॥
तान् आह देवदेव ईशः प्रणतान् प्रहसन् इव ।
आसां एकतमां वृंग्ध्वं सवर्णां स्वर्गभूषणाम् ॥
14॥
ॐ इति आदेशं आदाय नत्वा तं सुरवंदिनः ।
उर्वशीं अप्सरःश्रेष्ठां पुरस्कृत्य दिवं ययुः ॥ 15॥
इंद्राय आनम्य सदसि श्रुण्वतां त्रिदिवौकसाम् ।
ऊचुः नारायणबलं शक्रः तत्र आस विस्मितः ॥ 16॥
हंसस्वरूपी अवददत् अच्युतः आत्मयोगम्
दत्तः कुमार ऋषभः भगवान् पिता नः ।
विष्णुः शिवाय जगतां कलया अवतीर्णः
तेन आहृताः मधुभिदा श्रुतयः हयास्ये ॥ 17॥
गुप्तः अपि अये मनुः इला ओषधयः च मात्स्ये
क्रौडे हतः दितिजः उद्धरता अंभसः क्ष्माम् ।
कौर्मे धृतः अद्रिः अमृत उन्मथने स्वपृष्ठे
ग्राहात् प्रपन्नमिभराजं अमुंचत् आर्तम् ॥ 18॥
संस्तुन्वतः अब्धिपतितान् श्रमणान् ऋषीं च
शक्रं च वृत्रवधतः तमसि प्रविष्टम् ।
देवस्त्रियः असुरगृहे पिहिताः अनाथाः
जघ्ने असुरेंद्रं अभयाय सतां नृसिंहे ॥ 19॥
देव असुरे युधि च दैत्यपतीन् सुरार्थे
हत्वा अंतरेषु भुवनानि अदधात् कलाभिः ।
भूत्वा अथ वामनः इमां अहरत् बलेः क्ष्माम्
यांचाच्छलेन समदात् अदितेः सुतेभ्यः ॥ 20॥
निःक्षत्रियां अकृत गां च त्रिःसप्तकृत्वः
रामः तु हैहयकुल अपि अयभार्गव अग्निः ।
सः अब्धिं बबंध दशवक्त्रं अहन् सलंकम्
सीतापतिः जयति लोकं अलघ्नकीर्तिः ॥ 21॥
भूमेः भर अवतरणाय यदुषि अजन्मा जातः
करिष्यति सुरैः अपि दुष्कराणि ।
वादैः विमोहयति यज्ञकृतः अतदर्हान्
शूद्रां कलौ क्षितिभुजः न्यहनिष्यदंते ॥ 22॥
एवंविधानि कर्माणि जन्मानि च जगत् पतेः ।
भूरीणि भूरियशसः वर्णितानि महाभुज ॥ 23॥
इति श्रीमद्भगवते महापुराणे पारमहंस्यां
संहितायामेकादशस्कंधे निमिजायंतसंवादे
चतुर्थोऽध्यायः ॥
Related to Krishna
Bhagavad Gita seventh chapter (भगवद गीता सातवाँ अध्याय)
भगवद गीता सातवां अध्याय "ज्ञान-विज्ञान योग" के नाम से जाना जाता है। इसमें भगवान श्रीकृष्ण ज्ञान (सिद्धांत) और विज्ञान (व्यावहारिक अनुभव) के महत्व को समझाते हैं। वे कहते हैं कि सभी प्रकृति और जीव उनके ही अंश हैं। यह अध्याय "भक्ति", "ज्ञान", और "प्रकृति और पुरुष" के संबंध को विस्तार से समझाता है।Bhagwat-Gita
Gita Govindam Chaturthah Sargah - Snigdh Madhusudanah (गीतगोविन्दं चतुर्थः सर्गः - स्निग्ध मधुसूदनः)
गीतगोविन्दं के चतुर्थ सर्ग में स्निग्ध मधुसूदन का वर्णन किया गया है। यह खंड राधा और कृष्ण के प्रेम और स्नेह को दर्शाता है।Gita-Govindam
Uddhava Gita - Chapter 7 (उद्धवगीता - सप्तमोऽध्यायः)
उद्धवगीता के सप्तमोऽध्याय में उद्धव और कृष्ण की वार्ता में धर्म, अर्थ, काम, और मोक्ष के महत्व पर चर्चा होती है।Uddhava-Gita
Shri Nandakumar Ashtakam (श्री नन्दकुमार अष्टकम् )
Nandkumar Ashtakam (नन्दकुमार अष्टकम): Shri Nandkumar Ashtakam का पाठ विशेष रूप से भगवान श्री कृष्ण के Janmashtami या भगवान श्री कृष्ण से संबंधित अन्य festivals पर किया जाता है। Shri Nandkumar Ashtakam का नियमित recitation करने से भगवान श्री कृष्ण की teachings से व्यक्ति प्रसन्न होते हैं। श्री वल्लभाचार्य Shri Nandkumar Ashtakam के composer हैं। ‘Ashtakam’ शब्द संस्कृत के ‘Ashta’ से लिया गया है, जिसका अर्थ है "eight"। Poetry रचनाओं के संदर्भ में, 'Ashtakam' एक विशेष काव्य रूप को दर्शाता है, जो आठ verses में लिखा जाता है। Shri Krishna का नाम स्वयं में यह दर्शाता है कि वह हर किसी को attract करने में सक्षम हैं। कृष्ण नाम का अर्थ है ultimate truth। वह भगवान Vishnu के आठवें और सबसे प्रसिद्ध avatar हैं, जो truth, love, dharma, और courage का सर्वोत्तम उदाहरण माने जाते हैं। Ashtakam से जुड़ी परंपराएँ अपनी literary history में 2500 वर्षों से अधिक की यात्रा पर विकसित हुई हैं। Ashtakam writers में से एक प्रसिद्ध नाम Adi Shankaracharya का है, जिन्होंने एक Ashtakam cycle तैयार किया, जिसमें Ashtakam के समूह को एक विशेष देवता की worship में व्यवस्थित किया गया था, और इसे एक साथ एक काव्य कार्य के रूप में पढ़ने के लिए डिज़ाइन किया गया था। उन्होंने विभिन्न देवताओं की stuti में 30 से अधिक Ashtakam रचे थे। Nandkumar Ashtakam Adi Shankaracharya द्वारा भगवान श्री कृष्ण की praise में रचित है। Nandkumar Ashtakam का पाठ भगवान श्री कृष्ण से संबंधित अधिकांश अवसरों पर किया जाता है, जिसमें Krishna Janmashtami भी शामिल है। यह इतना लोकप्रिय है कि इसे नियमित रूप से homes और विभिन्न Krishna temples में chant किया जाता है। Ashtakam में कई बार, quatrains (चार पंक्तियों का समूह) अचानक समाप्त हो जाती है या अन्य मामलों में, एक couplet (दो पंक्तियाँ) के साथ समाप्त होती है। Body में चौकड़ी में कवि एक theme स्थापित करता है और फिर उसे अंतिम पंक्तियों में समाधान कर सकता है, जिन्हें couplet कहा जाता है, या इसे बिना हल किए छोड़ सकता है। कभी-कभी अंत का couplet कवि की self-identification भी हो सकता है। संरचना meter rules द्वारा भी बंधी होती है, ताकि recitation और classical singing के लिए उपयुक्त हो। हालांकि, कई Ashtakam ऐसे भी हैं जो नियमित संरचना का पालन नहीं करते।Ashtakam
Shrimad Bhagwad Gita Parayaan - Chapter 16 (श्रीमद्भगवद्गीता पारायण - षोडशोऽध्यायः)
श्रीमद्भगवद्गीता का षोडशो अध्याय दैवासुर संपद्विभाग योग के नाम से जाना जाता है, जिसमें भगवान कृष्ण दैवी और आसुरी गुणों की व्याख्या करते हैं।Shrimad-Bhagwad-Gita-Parayaan
Shrimad Bhagwad Gita Parayaan - Chapter 12 (श्रीमद्भगवद्गीता पारायण - द्वादशोऽध्यायः)
श्रीमद्भगवद्गीता पारायण के द्वादशोऽध्याय में कृष्ण ने अर्जुन को भक्ति योग की महत्ता और इसके साधनों के बारे में समझाया है।Shrimad-Bhagwad-Gita-Parayaan
Uddhava Gita - Chapter 1 (उद्धवगीता - प्रथमोऽध्यायः)
उद्धवगीता के प्रथमोऽध्याय में उद्धव और भगवान कृष्ण के बीच की वार्ता का प्रारंभ होता है। यह अध्याय आध्यात्मिक ज्ञान और भक्ति के महत्व को दर्शाता है।Uddhava-Gita
Shrimad Bhagwad Gita Parayaan - Chapter 7 (श्रीमद्भगवद्गीता पारायण - सप्तमोऽध्यायः)
श्रीमद्भगवद्गीता पारायण के सप्तमोऽध्याय में कृष्ण ने अर्जुन को भक्ति योग और ईश्वर की अद्वितीयता के बारे में समझाया है।Shrimad-Bhagwad-Gita-Parayaan