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Govindashtakam: गोविन्दाष्टकम् | 8 Divine Verses Praising Lord Krishna as Govinda
Govindashtakam (गोविन्दाष्टकम्)
आदि शंकराचार्य ने भगवान गोविंद की स्तुति में यह आठ श्लोकों वाला "अष्टकम" रचा। गोविंद का अर्थ है - गायों के रक्षक, पृथ्वी के रक्षक। एक अन्य अर्थ भी है, "गोविदां पतिः / Govidaam pathih" - अर्थात अच्छे वचन बोलने वालो के स्वामी। गोविंद वही हैं जो हमें वाणी (वाणी/vaani) प्रदान करते हैं। ये गोविंद के कई अर्थों में से कुछ प्रमुख हैं।गोविन्दाष्टकम्
चिदानन्दाकारं श्रुतिसरससारं समरसं निराधाराधारं भवजलधिपारं परगुणम् ।
रमाग्रीवाहारं व्रजवनविहारं हरनुतं सदा तं गोविन्दं परमसुखकन्दं भजत रे ॥ १ ॥
महाम्भोधिस्थानं स्थिरचरनिदानं दिविजपं सुधाधारापानं विहगपतियानं यमरतम् ।
मनोज्ञं सुज्ञानं मुनिजननिधानं ध्रुवपदं । सदा० ॥ २ ॥
धिया धीरैर्येयं श्रवणपुटपेयं यतिवरैर्महावाक्यैज्ञेयं त्रिभुवनविधेयं विधिपरम् ।
मनोमानामेयं सपदि हृदि नेयं नवतनुं । सदा० ॥ ३ ॥
महामायाजालं विमलवनमालं मलहरं सुभालं गोपालं निहतशिशुपालं शशिमुखम् ।
कलातीतं कालं गतिहतमरालं मुररिपुं । सदा० ॥ ४ ॥
नभोबिम्बस्फीतं निगमगणगीतं समगति सुरौधैः सम्प्रीतं दितिजविपरीतं पुरिशयम् ।
गिरां मार्गातीतं स्वदितनवनीतं नयकरं । सदा० ॥ ५ ॥
परेशं पद्मशं शिवकमलजेशं शिवकरं द्विजेशं देवेशं तनुकुटिलकेशं कलिहरम् ।
खगेशं नागेशं निखिलभुवनेशं नगधरं । सदा० ॥ ६ ॥
रमाकान्तं कान्तं भवभयभयान्तं भवसुखं
दुराशान्तं शान्तं निखिलहृदि भान्तं भुवनपम् ।
विवादान्तं दान्तं दनुजनिचयान्तं सुचरितं । सदा० ॥ ७ ॥
जगज्ज्येष्ठं श्रेष्ठं सुरपतिकनिष्ठं क्रतुपतिं बलिष्ठं भूयिष्ठं त्रिभुवनवरिष्ठं वरवहम् ।
स्वनिष्ठं धर्मिष्ठं गुरुगुणगरिष्ठं गुरुवरं । सदा० ॥ ८ ॥
गदापाणेरेतदुरितदलनं दुःखशमनं विशुद्धात्मा स्तोत्रं पठति मनुजो यस्तु सततम् ।
स भुक्त्वा भोगौघं चिरमिह ततोऽपास्तवृजिनः परं
विष्णोः स्थानं व्रजति खलु वैकुण्ठभुवनम् ॥ ९ ॥
इति श्रीपरमहंसस्वामिब्रह्मानन्दविरचितं गोविन्दाष्टकं सम्पूर्णम् ।
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