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Shri Shitalashtakam Stotram || श्री शीतला अष्टकम स्तोत्रम् : Full Lyrics in Sanskrit; ज्ञान और बुद्धि प्राप्ति मंत्र
Shri Shitalashtakam Stotram (श्री शीतला अष्टकम स्तोत्रम्)
श्री शीतलाष्टकम् स्तोत्रम् देवी Shitala Mata की स्तुति है, जो Hindu religion में disease healing और health goddess के रूप में पूजनीय हैं। इस स्तोत्र का पाठ smallpox और अन्य infectious diseases से protection पाने के लिए किया जाता है। इसे peace, prosperity और divine blessings प्राप्त करने का माध्यम माना गया है। Shitala Devi की पूजा से health, hygiene और spiritual energy का संचार होता है। यह स्तोत्र भक्तों को negativity से मुक्त कर सकारात्मकता प्रदान करता है।श्री शीतला अष्टकम स्तोत्रम् (Shri Shitalashtakam Stotram )
अस्य श्रीशीतलास्तोत्रस्य महादेव ऋषिः, अनुष्टुप् छन्दः, शीतला देवता,
लक्ष्मी बीजम्, भवानी शक्तिः, सर्व- विस्फोटकनिवृत्तये जपे विनियोगः ।
ईश्वर उवाच
वन्देऽहं शीतलां देवीं रासभस्थां दिगम्बराम् ।
मार्जनीकलशोपेतां शूर्पालङ्कृतमस्तकाम् ॥ १ ॥
वन्देऽहं शीतलां देवीं सर्वरोगभयापहाम्।
यामासाद्य निवर्तेत विस्फोटकभयं महत् ॥ २॥
शीतले शीतले चेति यो ब्रूयाद्दाहपीडितः ।
विस्फोटकभयं घोरं क्षिप्रं तस्य प्रणश्यति ॥ ३ ॥
यस्त्वामुदकमध्ये तु धृत्वा पूजयते नरः ।
विस्फोटकभयं घोरं गृहे तस्य न जायते ॥ ४॥
शीतले ज्वरदग्धस्य पूतिगन्धयुतस्य च ।
प्रणष्टचक्षुषः पुंसस्त्वामाहुर्जीवनौषधम् ॥ ५ ॥
शीतले तनुजान् रोगान्नृणां हरसि दुस्त्यजान्।
विस्फोटकविदीर्णानां त्वमेकामृतवर्षिणी ॥ ६ ॥
गलगण्डग्रहा रोगा ये चान्ये दारुणा नृणाम्।
vत्वदनुध्यानमात्रेण शीतले यान्ति संक्षयम् ॥ ७ ॥
न मन्त्रो नौषधं तस्य पापरोगस्य विद्यते।
त्वामेकां शीतले धात्रीं नान्यां पश्यामि देवताम् ॥ ८ ॥
मृणालतन्तुसदृशीं नाभिहृन्मध्यसंस्थिताम् ।
यस्त्वां संचिन्तयेद्देवि तस्य मृत्युर्न जायते ॥ ९ ॥
अष्टकं शीतलादेव्या यो नरः प्रपठेत्सदा ।
विस्फोटकभयं घोरं गृहे तस्य न जायते ॥ १० ॥
श्रोतव्यं पठितव्यं च श्रद्धाभक्तिसमन्वितैः ।
उपसर्गविनाशाय परं स्वस्त्ययनं महत् ॥ ११ ॥
शीतले त्वं जगन्माता शीतले त्वं जगत्पिता।
शीतले त्वं जगद्धात्री शीतलायै नमो नमः ॥ १२॥
रासभो गर्दभश्चैव खरो वैशाखनन्दनः ।
शीतलावाहनश्चैव दूर्वाकन्दनिकृन्तनः ॥ १३॥
एतानि खरनामानि शीतलाग्रे तु यः पठेत् ।
तस्य गेहे शिशूनां च शीतलारुङ् न जायते ॥ १४॥
शीतलाष्टकमेवेदं न देयं यस्य कस्यचित्।
दातव्यं च सदा तस्मै श्रद्धाभक्तियुताय वै ॥ १५॥
॥ इति श्रीस्कन्दमहापुराणे शीतलाष्टकं सम्पूर्णम् ॥
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