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Narayan Suktam (नारायण सूक्तम्)
नारायण सूक्तम्
(Narayan Suktam)
ॐ सह नाववतु । सह नौ भुनक्तु । सह वीर्यं करवावहै ।
तेजस्विनावधीतमस्तु मा विद्विषावहै ॥
ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः ॥
सहस्रशीरषं देवम् विश्वाक्षं विश्वशंभुवम् ।
विश्वं नारायणं देवम् अक्षरं परमं पदम् ॥
विश्वतः परमं नित्यम् विश्वं नारायणं हरिम् ।
विश्वमेवेदं पुरुषः तद्विश्वम् उपजीवति ॥
पतिं विश्वस्य आत्मेश्वरं शाश्वतं शिवम् अच्युतम् ।
नारायणं महाज्ञेयं विश्वात्मानं परायणम् ॥
नारायणः परो ज्योतिः आत्मा नारायणः परः ।
नारायणः परं ब्रह्म तत्त्वं नारायणः परः ॥
नारायणः परो ध्याता ध्यानं नारायणः परः ।
यत् किंचित् जगत्सर्वं दृश्यते श्रूयते अपि वा ॥
अन्तर्बहिः च तत्सर्वं व्याप्य नारायणः स्थितः ।
अनन्तम् अव्ययं कविम् समुद्रे अन्तं विश्वशंभुवम् ॥
पद्मकोश-प्रतीकाशं हृदयम् च अपि अधोमुखम् ।
अधो निष्ठ्या वितस्यान्ते नाभ्याम् उपरि तिष्ठति ॥
ज्वालामालाकुलं भाति विश्वस्यायतनं महत् ।
संततं शिलाभिः तु लम्बति आकोशसन्निभम् ॥
तस्य अन्ते सुषिरं सूक्ष्मं तस्मिन् सर्वं प्रतिष्ठितम् ।
तस्य मध्ये महानग्निः विश्वार्चिः विश्वतोमुखः ॥
सः अग्रभुः विभजं तिष्ठन् आहारम् अजरः कविः ।
तिर्त्यक् ऊर्ध्वम् अधः शायी रश्मयः तस्य संतताः ॥
संतापयति स्वं देहम् आपादतलम् अस्तकः ।
तस्य मध्ये वह्निशिखा अणीयोः उर्ध्वा व्यवस्थितः ॥
नीलतोयद मध्यस्था विद्युल्लेखा इव भास्वरा ।
नीवारशूकवत् तन्वी पीता भास्वती अणूपमा ॥
तस्याः शिखायां मध्ये परमात्मा व्यवस्थितः ।
सः ब्रह्म सः शिवः सः हरिः सः इन्द्रः सः अक्षरः परमः स्वराट् ॥
ऋतं सत्यम् परं ब्रह्म पुरुषं कृष्ण पिंगलम् ।
ऊर्ध्वरेतं विरूपाक्षं विश्वरूपाय वै नमः नमः ॥
ॐ नारायणाय विद्महे वासुदेवाय धीमहि ।
तन्नः विष्णुः प्रचोदयात् ॥
ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः ॥
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