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Shri Durga Nakshatra Malika Stuti || श्री दुर्गा नक्षत्र मालिका स्तुति : Sacred Chant with Powerful Benefits for Health, Wealth, and Spiritual Growth
Shri Durga Nakshatra Malika Stuti (श्री दुर्गा नक्षत्र मालिका स्तुति)
Shri Durga Nakshatra Malika Stuti देवी Durga की महिमा और शक्ति का वर्णन करती है, जो "Goddess of Power" और "Protector from Evil" के रूप में पूजित हैं। यह स्तुति देवी के 27 नक्षत्रों के माध्यम से उनकी "Divine Energies" का आह्वान करती है। नक्षत्र माला स्तुति को पढ़ने से व्यक्ति को नकारात्मक ऊर्जाओं से मुक्ति, शांति और समृद्धि प्राप्त होती है। यह स्तुति "Durga Devotional Chant" और "Positive Energy Prayer" के रूप में प्रसिद्ध है। इसके पाठ से मानसिक बल, आत्मविश्वास और आध्यात्मिक जागरूकता बढ़ती है। Shri Durga Nakshatra Malika Stuti को "Goddess Durga Hymn for Protection" और "Spiritual Awakening Prayer" के रूप में पढ़ने से जीवन में सफलता और शुभता आती है।श्री दुर्गा नक्षत्र मालिका स्तुति
(Shri Durga Nakshatra Malika Stuti)
विराटनगरं रम्यं गच्छमानो युधिष्ठिरः ।
अस्तुवन्मनसा देवीं दुर्गां त्रिभुवनेश्वरीम् ॥ 1 ॥
यशोदागर्भसंभूतां नारायणवरप्रियाम् ।
नंदगोपकुलेजातां मंगल्यां कुलवर्धनीम् ॥ 2 ॥
कंसविद्रावणकरीं असुराणां क्षयंकरीम् ।
शिलातटविनिक्षिप्तां आकाशं प्रतिगामिनीम् ॥ 3 ॥
वासुदेवस्य भगिनीं दिव्यमाल्य विभूषिताम् ।
दिव्यांबरधरां देवीं खड्गखेटकधारिणीम् ॥ 4 ॥
भारावतरणे पुण्ये ये स्मरंति सदाशिवाम् ।
तान्वै तारयते पापात् पंकेगामिव दुर्बलाम् ॥ 5 ॥
स्तोतुं प्रचक्रमे भूयो विविधैः स्तोत्रसंभवैः ।
आमंत्र्य दर्शनाकांक्षी राजा देवीं सहानुजः ॥ 6 ॥
नमोऽस्तु वरदे कृष्णे कुमारि ब्रह्मचारिणि ।
बालार्क सदृशाकारे पूर्णचंद्रनिभानने ॥ 7 ॥
चतुर्भुजे चतुर्वक्त्रे पीनश्रोणिपयोधरे ।
मयूरपिंछवलये केयूरांगदधारिणि ॥ 8 ॥
भासि देवि यदा पद्मा नारायणपरिग्रहः ।
स्वरूपं ब्रह्मचर्यं च विशदं तव खेचरि ॥ 9 ॥
कृष्णच्छविसमा कृष्णा संकर्षणसमानना ।
बिभ्रती विपुलौ बाहू शक्रध्वजसमुच्छ्रयौ ॥ 10 ॥
पात्री च पंकजी कंठी स्त्री विशुद्धा च या भुवि ।
पाशं धनुर्महाचक्रं विविधान्यायुधानि च ॥ 11 ॥
कुंडलाभ्यां सुपूर्णाभ्यां कर्णाभ्यां च विभूषिता ।
चंद्रविस्पार्धिना देवि मुखेन त्वं विराजसे ॥ 12 ॥
मुकुटेन विचित्रेण केशबंधेन शोभिना ।
भुजंगाऽभोगवासेन श्रोणिसूत्रेण राजता ॥ 13 ॥
भ्राजसे चावबद्धेन भोगेनेवेह मंदरः ।
ध्वजेन शिखिपिंछानां उच्छ्रितेन विराजसे ॥ 14 ॥
कौमारं व्रतमास्थाय त्रिदिवं पावितं त्वया ।
तेन त्वं स्तूयसे देवि त्रिदशैः पूज्यसेऽपि च ॥ 15 ॥
त्रैलोक्य रक्षणार्थाय महिषासुरनाशिनि ।
प्रसन्ना मे सुरश्रेष्ठे दयां कुरु शिवा भव ॥ 16 ॥
जया त्वं विजया चैव संग्रामे च जयप्रदा ।
ममाऽपि विजयं देहि वरदा त्वं च सांप्रतम् ॥ 17 ॥
विंध्ये चैव नगश्रेष्टे तव स्थानं हि शाश्वतम् ।
कालि कालि महाकालि सीधुमांस पशुप्रिये ॥ 18 ॥
कृतानुयात्रा भूतैस्त्वं वरदा कामचारिणि ।
भारावतारे ये च त्वां संस्मरिष्यंति मानवाः ॥ 19 ॥
प्रणमंति च ये त्वां हि प्रभाते तु नरा भुवि ।
न तेषां दुर्लभं किंचित् पुत्रतो धनतोऽपि वा ॥ 20 ॥
दुर्गात्तारयसे दुर्गे तत्वं दुर्गा स्मृता जनैः ।
कांतारेष्ववपन्नानां मग्नानां च महार्णवे ॥ 21 ॥
(दस्युभिर्वा निरुद्धानां त्वं गतिः परमा नृणाम)
जलप्रतरणे चैव कांतारेष्वटवीषु च ।
ये स्मरंति महादेवीं न च सीदंति ते नराः ॥ 22 ॥
त्वं कीर्तिः श्रीर्धृतिः सिद्धिः ह्रीर्विद्या संततिर्मतिः ।
संध्या रात्रिः प्रभा निद्रा ज्योत्स्ना कांतिः क्षमा दया ॥ 23 ॥
नृणां च बंधनं मोहं पुत्रनाशं धनक्षयम् ।
व्याधिं मृत्युं भयं चैव पूजिता नाशयिष्यसि ॥ 24 ॥
सोऽहं राज्यात्परिभ्रष्टः शरणं त्वां प्रपन्नवान् ।
प्रणतश्च यथा मूर्ध्ना तव देवि सुरेश्वरि ॥ 25 ॥
त्राहि मां पद्मपत्राक्षि सत्ये सत्या भवस्व नः ।
शरणं भव मे दुर्गे शरण्ये भक्तवत्सले ॥ 26 ॥
एवं स्तुता हि सा देवी दर्शयामास पांडवम् ।
उपगम्य तु राजानमिदं वचनमब्रवीत् ॥ 27 ॥
शृणु राजन् महाबाहो मदीयं वचनं प्रभो ।
भविष्यत्यचिरादेव संग्रामे विजयस्तव ॥ 28 ॥
मम प्रसादान्निर्जित्य हत्वा कौरव वाहिनीम् ।
राज्यं निष्कंटकं कृत्वा भोक्ष्यसे मेदिनीं पुनः ॥ 29 ॥
भ्रातृभिः सहितो राजन् प्रीतिं प्राप्स्यसि पुष्कलाम् ।
मत्प्रसादाच्च ते सौख्यं आरोग्यं च भविष्यति ॥ 30 ॥
ये च संकीर्तयिष्यंति लोके विगतकल्मषाः ।
तेषां तुष्टा प्रदास्यामि राज्यमायुर्वपुस्सुतम् ॥ 31 ॥
प्रवासे नगरे चापि संग्रामे शत्रुसंकटे ।
अटव्यां दुर्गकांतारे सागरे गहने गिरौ ॥ 32 ॥
ये स्मरिष्यंति मां राजन् यथाहं भवता स्मृता ।
न तेषां दुर्लभं किंचिदस्मिन् लोके भविष्यति ॥ 33 ॥
य इदं परमस्तोत्रं भक्त्या शृणुयाद्वा पठेत वा ।
तस्य सर्वाणि कार्याणि सिध्धिं यास्यंति पांडवाः ॥ 34 ॥
मत्प्रसादाच्च वस्सर्वान् विराटनगरे स्थितान् ।
न प्रज्ञास्यंति कुरवः नरा वा तन्निवासिनः ॥ 35 ॥
इत्युक्त्वा वरदा देवी युधिष्ठिरमरिंदमम् ।
रक्षां कृत्वा च पांडूनां तत्रैवांतरधीयत ॥ 38 ॥
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Devi Mahatayam Suktam (देवी माहात्म्यं देवी सूक्तम्)
देवी माहात्म्यं देवी सूक्तम् (Devi Mahatayam Suktam) ॐ अहं रुद्रेभिर्वसुभिश्चराम्यहमादित्यैरुत विश्वदेवैः । अहं मित्रावरुणोभा बिभर्म्यहमिन्द्राग्नी अहमश्विनोभा ॥1॥ अहं सोममाहनसं बिभर्म्यहं त्वष्टारमुत पूषणं भगम् । अहं दधामि द्रविणं हविष्मते सुप्राव्ये यजमानाय सुन्वते ॥2॥ अहं राष्ट्री संगमनी वसूनां चिकितुषी प्रथमा यज्ञियानाम् । तां मा देवा व्यदधुः पुरुत्रा भूरिस्थात्रां भूर्यावेशयंतीम् ॥3॥ मया सो अन्नमत्ति यो विपश्यति यः प्राणिति य ईं शृणोत्युक्तम् । अमन्तवोमांत उपक्षियंति श्रुधि श्रुतं श्रद्धिवं ते वदामि ॥4॥ अहमेव स्वयमिदं वंदामि जुष्टं देवेभिरुत मानुषेभिः । यं कामये तं तमुग्रं कृणोमि तं ब्रह्माणं तमृषिं तं सुमेधाम् ॥5॥ अहं रुद्राय धनुरातनोमि ब्रह्मद्विषे शरवे हंत वा उ । अहं जनाय समदं कृणोम्यहं द्यावापृथिवी आविवेश ॥6॥ अहं सुवे पितरमस्य मूर्धन् मम योनिरप्स्वंतः समुद्रे । ततो वितिष्ठे भुवनानु विश्वोतामूं द्यां वर्ष्मणोप स्पृशामि ॥7॥ अहमेव वात इव प्रवाम्यारभमाणा भुवनानि विश्वा । परो दिवापर एना पृथिव्यैतावती महिना संबभूव ॥8॥ ॐ शांतिः शांतिः शांतिः ॥ ॥ इति ऋग्वेदोक्तं देवीसूक्तं समाप्तम् ॥ ॥तत् सत्॥Sukt
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दुर्गा सहस्रनाम देवी दुर्गा (Goddess Durga) के एक हजार नामों (1000 names) का संग्रह है। दुर्गा सहस्रनाम स्तोत्र (Durga Sahasranama Stotra) वास्तव में एक ऐसा स्तोत्र (hymn) है, जिसमें देवी की महिमा का गुणगान (eulogizing) किया जाता है और उनके हजार नामों का पाठ (recitation) किया जाता है। नवरात्रि (Navaratri) के पावन अवसर पर, दुर्गा सहस्रनाम का श्रद्धा (devotion) और समर्पण (dedication) के साथ जप करने से देवी की कृपा (blessings) और वरदान (boons) प्राप्त होते हैं। दुर्गा सहस्रनाम में नामों को ऐसे क्रम में लिखा गया है कि कोई नाम दोहराया नहीं गया है। संस्कृत में "दुर्गा" का अर्थ है "जो समझ से परे (incomprehensible) या पहुंचने में कठिन (difficult to reach)" है। देवी दुर्गा शक्ति (Shakti) का ऐसा रूप हैं, जिनकी पूजा उनकी सौम्य (gracious) और उग्र (terrifying) दोनों रूपों में की जाती है। वह ब्रह्मांड (Universe) की माता हैं और अनंत शक्ति (infinite power) का प्रतिनिधित्व करती हैं। ऐसा कहा जाता है कि देवी दुर्गा का प्रकट होना उनके निराकार स्वरूप (formless essence) से होता है, और ये दोनों स्वरूप अभिन्न (inseparable) हैं। ऐसा माना जाता है कि जो भक्त देवी दुर्गा (Durga Sahasranama) की प्रार्थना (pray) करते हैं, वे शुरू में बाधाओं (obstacles) का सामना करते हैं, लेकिन समय के साथ, ये बाधाएं सूर्य की गर्मी से पिघलती हुई बर्फ की तरह समाप्त हो जाती हैं। मां दुर्गा सहस्रनाम की कृपा (grace) का वर्णन शब्दों से परे है।Sahasranama-Stotram