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Shri Durga Nakshatra Malika Stuti || श्री दुर्गा नक्षत्र मालिका स्तुति : Sacred Chant with Powerful Benefits for Health, Wealth, and Spiritual Growth
Shri Durga Nakshatra Malika Stuti (श्री दुर्गा नक्षत्र मालिका स्तुति)
Shri Durga Nakshatra Malika Stuti देवी Durga की महिमा और शक्ति का वर्णन करती है, जो "Goddess of Power" और "Protector from Evil" के रूप में पूजित हैं। यह स्तुति देवी के 27 नक्षत्रों के माध्यम से उनकी "Divine Energies" का आह्वान करती है। नक्षत्र माला स्तुति को पढ़ने से व्यक्ति को नकारात्मक ऊर्जाओं से मुक्ति, शांति और समृद्धि प्राप्त होती है। यह स्तुति "Durga Devotional Chant" और "Positive Energy Prayer" के रूप में प्रसिद्ध है। इसके पाठ से मानसिक बल, आत्मविश्वास और आध्यात्मिक जागरूकता बढ़ती है। Shri Durga Nakshatra Malika Stuti को "Goddess Durga Hymn for Protection" और "Spiritual Awakening Prayer" के रूप में पढ़ने से जीवन में सफलता और शुभता आती है।श्री दुर्गा नक्षत्र मालिका स्तुति
(Shri Durga Nakshatra Malika Stuti)
विराटनगरं रम्यं गच्छमानो युधिष्ठिरः ।
अस्तुवन्मनसा देवीं दुर्गां त्रिभुवनेश्वरीम् ॥ 1 ॥
यशोदागर्भसंभूतां नारायणवरप्रियाम् ।
नंदगोपकुलेजातां मंगल्यां कुलवर्धनीम् ॥ 2 ॥
कंसविद्रावणकरीं असुराणां क्षयंकरीम् ।
शिलातटविनिक्षिप्तां आकाशं प्रतिगामिनीम् ॥ 3 ॥
वासुदेवस्य भगिनीं दिव्यमाल्य विभूषिताम् ।
दिव्यांबरधरां देवीं खड्गखेटकधारिणीम् ॥ 4 ॥
भारावतरणे पुण्ये ये स्मरंति सदाशिवाम् ।
तान्वै तारयते पापात् पंकेगामिव दुर्बलाम् ॥ 5 ॥
स्तोतुं प्रचक्रमे भूयो विविधैः स्तोत्रसंभवैः ।
आमंत्र्य दर्शनाकांक्षी राजा देवीं सहानुजः ॥ 6 ॥
नमोऽस्तु वरदे कृष्णे कुमारि ब्रह्मचारिणि ।
बालार्क सदृशाकारे पूर्णचंद्रनिभानने ॥ 7 ॥
चतुर्भुजे चतुर्वक्त्रे पीनश्रोणिपयोधरे ।
मयूरपिंछवलये केयूरांगदधारिणि ॥ 8 ॥
भासि देवि यदा पद्मा नारायणपरिग्रहः ।
स्वरूपं ब्रह्मचर्यं च विशदं तव खेचरि ॥ 9 ॥
कृष्णच्छविसमा कृष्णा संकर्षणसमानना ।
बिभ्रती विपुलौ बाहू शक्रध्वजसमुच्छ्रयौ ॥ 10 ॥
पात्री च पंकजी कंठी स्त्री विशुद्धा च या भुवि ।
पाशं धनुर्महाचक्रं विविधान्यायुधानि च ॥ 11 ॥
कुंडलाभ्यां सुपूर्णाभ्यां कर्णाभ्यां च विभूषिता ।
चंद्रविस्पार्धिना देवि मुखेन त्वं विराजसे ॥ 12 ॥
मुकुटेन विचित्रेण केशबंधेन शोभिना ।
भुजंगाऽभोगवासेन श्रोणिसूत्रेण राजता ॥ 13 ॥
भ्राजसे चावबद्धेन भोगेनेवेह मंदरः ।
ध्वजेन शिखिपिंछानां उच्छ्रितेन विराजसे ॥ 14 ॥
कौमारं व्रतमास्थाय त्रिदिवं पावितं त्वया ।
तेन त्वं स्तूयसे देवि त्रिदशैः पूज्यसेऽपि च ॥ 15 ॥
त्रैलोक्य रक्षणार्थाय महिषासुरनाशिनि ।
प्रसन्ना मे सुरश्रेष्ठे दयां कुरु शिवा भव ॥ 16 ॥
जया त्वं विजया चैव संग्रामे च जयप्रदा ।
ममाऽपि विजयं देहि वरदा त्वं च सांप्रतम् ॥ 17 ॥
विंध्ये चैव नगश्रेष्टे तव स्थानं हि शाश्वतम् ।
कालि कालि महाकालि सीधुमांस पशुप्रिये ॥ 18 ॥
कृतानुयात्रा भूतैस्त्वं वरदा कामचारिणि ।
भारावतारे ये च त्वां संस्मरिष्यंति मानवाः ॥ 19 ॥
प्रणमंति च ये त्वां हि प्रभाते तु नरा भुवि ।
न तेषां दुर्लभं किंचित् पुत्रतो धनतोऽपि वा ॥ 20 ॥
दुर्गात्तारयसे दुर्गे तत्वं दुर्गा स्मृता जनैः ।
कांतारेष्ववपन्नानां मग्नानां च महार्णवे ॥ 21 ॥
(दस्युभिर्वा निरुद्धानां त्वं गतिः परमा नृणाम)
जलप्रतरणे चैव कांतारेष्वटवीषु च ।
ये स्मरंति महादेवीं न च सीदंति ते नराः ॥ 22 ॥
त्वं कीर्तिः श्रीर्धृतिः सिद्धिः ह्रीर्विद्या संततिर्मतिः ।
संध्या रात्रिः प्रभा निद्रा ज्योत्स्ना कांतिः क्षमा दया ॥ 23 ॥
नृणां च बंधनं मोहं पुत्रनाशं धनक्षयम् ।
व्याधिं मृत्युं भयं चैव पूजिता नाशयिष्यसि ॥ 24 ॥
सोऽहं राज्यात्परिभ्रष्टः शरणं त्वां प्रपन्नवान् ।
प्रणतश्च यथा मूर्ध्ना तव देवि सुरेश्वरि ॥ 25 ॥
त्राहि मां पद्मपत्राक्षि सत्ये सत्या भवस्व नः ।
शरणं भव मे दुर्गे शरण्ये भक्तवत्सले ॥ 26 ॥
एवं स्तुता हि सा देवी दर्शयामास पांडवम् ।
उपगम्य तु राजानमिदं वचनमब्रवीत् ॥ 27 ॥
शृणु राजन् महाबाहो मदीयं वचनं प्रभो ।
भविष्यत्यचिरादेव संग्रामे विजयस्तव ॥ 28 ॥
मम प्रसादान्निर्जित्य हत्वा कौरव वाहिनीम् ।
राज्यं निष्कंटकं कृत्वा भोक्ष्यसे मेदिनीं पुनः ॥ 29 ॥
भ्रातृभिः सहितो राजन् प्रीतिं प्राप्स्यसि पुष्कलाम् ।
मत्प्रसादाच्च ते सौख्यं आरोग्यं च भविष्यति ॥ 30 ॥
ये च संकीर्तयिष्यंति लोके विगतकल्मषाः ।
तेषां तुष्टा प्रदास्यामि राज्यमायुर्वपुस्सुतम् ॥ 31 ॥
प्रवासे नगरे चापि संग्रामे शत्रुसंकटे ।
अटव्यां दुर्गकांतारे सागरे गहने गिरौ ॥ 32 ॥
ये स्मरिष्यंति मां राजन् यथाहं भवता स्मृता ।
न तेषां दुर्लभं किंचिदस्मिन् लोके भविष्यति ॥ 33 ॥
य इदं परमस्तोत्रं भक्त्या शृणुयाद्वा पठेत वा ।
तस्य सर्वाणि कार्याणि सिध्धिं यास्यंति पांडवाः ॥ 34 ॥
मत्प्रसादाच्च वस्सर्वान् विराटनगरे स्थितान् ।
न प्रज्ञास्यंति कुरवः नरा वा तन्निवासिनः ॥ 35 ॥
इत्युक्त्वा वरदा देवी युधिष्ठिरमरिंदमम् ।
रक्षां कृत्वा च पांडूनां तत्रैवांतरधीयत ॥ 38 ॥
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Durga Puja Vidhi (दुर्गा पूजा विधि)
दुर्गा पूजा विधि (Durga Puja Vidhi) हम नवरात्रि के दौरान मनाई जाने वाली दुर्गा पूजा विधि का विस्तृत विवरण प्रस्तुत कर रहे हैं। दी गई पूजा विधि में षोडशोपचार (दुर्गा पूजा विधि) के सभी सोलह चरण शामिल हैं। (1.) ध्यान और आवाहन (Dhyana and Avahana) पूजा देवी दुर्गा के ध्यान और आह्वान से शुरू होनी चाहिए। देवी दुर्गा की मूर्ति के सामने आवाहन मुद्रा (दोनों हथेलियों को जोड़कर और दोनों अंगूठों को अंदर की ओर मोड़कर बनाई जाती है) दिखाकर निम्नलिखित मंत्र का उच्चारण करना चाहिए। सर्वमंगला मांगल्ये शिवे सर्वार्थ साधिके। शरण्ये त्र्यम्बके गौरी नारायणि नमोअस्तु ते॥ ब्रह्मरूपे सदानंदे परमानंद स्वरूपिणी। द्रुत सिद्धिप्रदे देवि नारायणी नमोअस्तु ते॥ शरणागतदिनर्तपरितानपरायणे। सर्वस्यार्तिहारे देवी नारायणी नमोअस्तु ते॥ ॐ भूर्भुवः स्वः दुर्गादेव्यै नमः आवाहनं समर्पयामि॥ (2.) आसन (Asana) देवी दुर्गा का आह्वान करने के बाद, अंजलि में पांच फूल लें (दोनों हाथों की हथेलियां जोड़कर) और उन्हें मूर्ति के सामने छोड़ दें तथा निम्नलिखित मंत्र का उच्चारण करते हुए देवी दुर्गा को आसन प्रदान करें। अनेक रत्नसंयुक्तं नानामणिगणान्वितम्। कर्तस्वरमयं दिव्यमासनाम् प्रतिगृह्यतम॥ ॐ भूर्भुवः स्वः दुर्गादेव्यै नमः आसनं समर्पयामि॥ (3.) पाद्य प्रक्षालन (Padya Prakshalana) देवी दुर्गा को आसन प्रदान करने के पश्चात, निम्नलिखित मंत्र का उच्चारण करते हुए उनके पैर धोने के लिए जल अर्पित करें। गङ्गादि सर्वतीर्थेभ्यो मया प्रार्थनायाहृतम्। तोयमेतत्सुखस्पर्श पाद्यार्थम् प्रतिगृह्यताम्॥ ॐ भूर्भुवः स्वः दुर्गादेव्यै नमः पद्यं समर्पयामि॥ (4.) अर्घ्य समर्पण (Arghya Samarpan) पाद्य अर्पण के पश्चात, निम्नलिखित मंत्र का उच्चारण करते हुए देवी दुर्गा को सुगंधित जल अर्पित करें। गंधपुष्पक्षतैरयुक्तमार्घ्यं संपादितं मया। गृहाणा त्वं महादेवी प्रसन्न भव सर्वदा॥ ॐ भूर्भुवः स्वः दुर्गादेव्यै नमः अर्घ्यं समर्पयामि॥ (5.) आचमन समर्पण (Achamana Samarpan) अर्घ्य देने के पश्चात, निम्नलिखित मंत्र का उच्चारण करते हुए देवी दुर्गा को आचमन हेतु जल अर्पित करें। अचम्यतम त्वया देवी भक्ति मे ह्याचलं कुरु। इप्सितं मे वरं देहि परतं च परम गतिम्॥ ॐ भूर्भुवः स्वः दुर्गादेव्यै नमः आचमनीयं जलं समर्पयामि॥ (6.) स्नान (Snana) आचमन के पश्चात, निम्नलिखित मंत्र का उच्चारण करते हुए देवी दुर्गा को स्नान के लिए जल अर्पित करें। पयोदधि घृतं क्षीरं सीताय च समन्वितम्। पंचामृतमनेनाद्य कुरु स्नानं दयानिधे॥ ॐ भूर्भुवः स्वः दुर्गादेव्यै नमः स्ननीयं जलं समर्पयामि॥ (7.) वस्त्र (Vastra) स्नान के बाद, निम्नलिखित मंत्र का उच्चारण करते हुए देवी दुर्गा को नए वस्त्र के रूप में मोली अर्पित करें। वस्त्रं च सोम दैवत्यं लज्जायस्तु निवारणम्। मया निवेदितं भक्त्या गृहाणा परमेश्वरी॥ ॐ भूर्भुवः स्वः दुर्गादेव्यै नमः वस्त्रं समर्पयामि॥ (8.) आभूषण समर्पण (Abhushana Samarpan) वस्त्रार्पण के बाद, निम्नलिखित मंत्र का उच्चारण करते हुए देवी दुर्गा को आभूषण अर्पित करें। हार कङ्कण केयूर मेखला कुण्डलादिभिः। रत्नाढ्यं कुण्डलोपेतं भूषणं प्रतिगृह्यताम्॥ ॐ भूर्भुवः स्वः दुर्गादेव्यै नमः आभूषणं समर्पयामि॥ (9.) चन्दन समर्पण (Chandan Samarpan) आभूषण अर्पित करने के बाद, निम्नलिखित मंत्र का उच्चारण करते हुए देवी दुर्गा को चंदन अर्पित करें। परमानन्द सौभाग्यं परिपूर्ण दिगन्तरे। गृहाण परमं गन्धं कृपया परमेश्वरि॥ ॐ भूर्भुवः स्वः दुर्गादेव्यै नमः चन्दनं समर्पयामि॥ (10.) रोली समर्पण (Roli Samarpan) अब, निम्नलिखित मंत्र का उच्चारण करते हुए देवी दुर्गा को अखंड सौभाग्य के प्रतीक के रूप में रोली (कुमकुम) अर्पित करें। कुमकुमम कांतिदं दिव्यं कामिनी काम संभवम्। कुमकुमेनार्चिते देवि प्रसिदा परमेश्वरी॥ ॐ भूर्भुवः स्वः दुर्गादेव्यै नमः कुमकुमं समर्पयामि॥ (11.) कज्जलार्पण (Kajjalarpan) कुमकुम अर्पित करने के बाद, निम्नलिखित मंत्र का उच्चारण करते हुए देवी दुर्गा को काजल अर्पित करें। कज्जलं कज्जलं रम्यं सुभगे शान्तिकारिके। कर्पूर ज्योतिरुत्पन्नं गृहाण परमेश्वरि॥ ॐ भूर्भुवः स्वः दुर्गादेव्यै नमः कज्जलं समर्पयामि॥ (12.) मङ्गल द्रव्यार्पण (A.) सौभाग्य सूत्र (Sugandhita Dravya) काजल चढ़ाने के बाद, निम्नलिखित मंत्र का उच्चारण करते हुए देवी दुर्गा को सौभाग्य सूत्र अर्पित करें। सौभाग्यसूत्रं वरदे सुवर्ण मणि संयुते। कण्ठे बध्नामि देवेशि सौभाग्यं देहि मे सदा॥ ॐ भूर्भुवः स्वः दुर्गादेव्यै नमः सौभाग्यसूत्रं समर्पयामि॥ (B.) सुगन्धित द्रव्य (Sugandhita Dravya) अब, निम्नलिखित मंत्र का उच्चारण करते हुए देवी दुर्गा को सुगंध अर्पित करें। चन्दनागारू कर्पूरैः संयुतं कुंकुमं तथा। कस्तुर्यादि सुगंधश्च सर्वांगेषु विलेपनम्॥ ॐ भूर्भुवः स्वः दुर्गादेव्यै नमः सुगंधिताद्रव्यं समर्पयामि॥ (C.) हरिद्रा समर्पण (Haridra Samarpan) अब, निम्नलिखित मंत्र का उच्चारण करते हुए देवी दुर्गा को हल्दी अर्पित करें। हरिद्रारञ्जिते देवि सुख सौभाग्यदायिनी। तस्मात्त्वां पूजयाम्यत्र सुखशान्तिं प्रयच्छ मे॥ ॐ भूर्भुवः स्वः दुर्गादेव्यै नमः हरिद्राचूर्णं समर्पयामि॥ (D.) अक्षत समर्पण (Akshata Samarpan) हरिद्रा अर्पण के बाद, निम्नलिखित मंत्र का उच्चारण करते हुए देवी दुर्गा को अक्षत (अखंडित चावल) अर्पित करें। रंजितः कंकुमुद्येन न अक्षतश्चतिशोभनः। ममैषा देवी दानेना प्रसन्न भव शोभने॥ ॐ भूर्भुवः स्वः दुर्गादेव्यै नमः अक्षतं समर्पयामि॥ (13.) पुष्पांजलि (Pushpanjali) अब निम्नलिखित मंत्र का उच्चारण करते हुए देवी दुर्गा को पुष्पांजलि अर्पित करें। मंदरा पारिजातादि पाटलि केतकनि च। जाति चंपका पुष्पाणि गृहणेमणि शोभने॥ ॐ भूर्भुवः स्वः दुर्गादेव्यै नमः पुष्पाञ्जलिं समर्पयामि॥ (14.) बिल्वपत्र (Bilvapatra) अब निम्नलिखित मंत्र का उच्चारण करते हुए देवी दुर्गा को बिल्वपत्र अर्पित करें। अमृतोद्भव श्रीवृक्षो महादेवी! प्रिया सदा. बिल्वपत्रं प्रयच्छमि पवित्रं ते सुरेश्वरी॥ ॐ भूर्भुवः स्वः दुर्गादेव्यै नमः बिल्वपत्राणि समर्पयामि॥ (15.)धूप समर्पण (Dhoop Samarpan) अब निम्नलिखित मंत्र का उच्चारण करते हुए देवी दुर्गा को धूप अर्पित करें। दशांग गुग्गुला धुपं चंदनगारू संयुतम। समर्पितं मया भक्त्या महादेवी! प्रतिगृह्यतम॥ ॐ भूर्भुवः स्वः दुर्गादेव्यै नमः धूपमाघ्घ्रापयमि समर्पयामि॥ (16.) दीप समर्पण (Deep Samarpan) अब निम्नलिखित मंत्र का उच्चारण करते हुए देवी दुर्गा को दीप अर्पित करें। घृतवर्त्तिसमायुक्तं महतेजो महोज्ज्वलम्। दीपं दास्यामि देवेषी! सुप्रीता भव सर्वदा॥ ॐ भूर्भुवः स्वः दुर्गादेव्यै नमः दीपं समर्पयामि॥ (17.) नैवेद्य (Naivedya) अब निम्नलिखित मंत्र का उच्चारण करते हुए देवी दुर्गा को नैवेद्य अर्पित करें। अन्नं चतुर्विधं स्वादु रसैः षडभिः समन्वितम्। नैवेद्य गृह्यतम देवि! भक्ति मे ह्यचला कुरु॥ ॐ भूर्भुवः स्वः दुर्गादेव्यै नमः नैवेद्यं निवेदयामि॥ (18.) ऋतुफला (Rituphala) अब निम्नलिखित मंत्र का उच्चारण करते हुए देवी दुर्गा को ऋतुफल अर्पित करें। द्राक्षाखर्जुरा कदलीफला समग्रकपीठकम। नारिकेलेक्षुजाम्बदि फलानि प्रतिगृह्यतम॥ ॐ भूर्भुवः स्वः दुर्गादेव्यै नमः ऋतुफलनि समर्पयामि॥ (19.) आचमन (Achamana) अब निम्नलिखित मंत्र का उच्चारण करते हुए देवी दुर्गा को आचमन के लिए जल अर्पित करें। कामारिवल्लभे देवि करवाचमनमम्बिके। निरंतररामहम वन्दे चरणौ तव चंडिके॥ ॐ भूर्भुवः स्वः दुर्गादेव्यै नमः आचमनीयं जलं समर्पयामि॥ (20.) नारिकेल समर्पण (Narikela Samarpan) अब निम्नलिखित मंत्र का उच्चारण करते हुए देवी दुर्गा को नारिकेल (नारियल) अर्पित करें। नारिकेलम च नारंगिम कलिंगमंजीरं त्वा। उर्वारुक च देवेषि फलन्येतानि गह्यताम्॥ ॐ भूर्भुवः स्वः दुर्गादेव्यै नमः नारिकेलं समर्पयामि॥ (21.) तंबुला (Tambula) अब निम्नलिखित मंत्र का उच्चारण करते हुए देवी दुर्गा को ताम्बूल (पान और सुपारी) अर्पित करें। एलालवंगं कस्तूरी कर्पूरैः पुष्पवसीतम। विटिकं मुखवसार्थ समर्पयामि सुरेश्वरी॥ ॐ भूर्भुवः स्वः दुर्गादेव्यै नमः ताम्बूलं समर्पयामि॥ (22.) दक्षिणा (Dakshina) अब निम्नलिखित मंत्र का उच्चारण करते हुए देवी दुर्गा को दक्षिणा (उपहार) अर्पित करें। पूजा फल समृद्धियर्था तवग्रे स्वर्णमीश्वरी। स्थापितम् तेन मे प्रीता पूर्णं कुरु मनोरथम्॥ ॐ भूर्भुवः स्वः दुर्गादेव्यै नमः दक्षिणं समर्पयामि॥ (23.) पुस्तक पूजा एवं कन्या पूजन (Book worship and girl worship) (A.) पुस्तक पूजा (Pustak) दक्षिणा अर्पित करने के पश्चात, अब निम्नलिखित मंत्र का उच्चारण करते हुए दुर्गा पूजा के दौरान उपयोग में आने वाली पुस्तकों की पूजा करें। नमो देव्यै महादेव्यै शिवायै सततं नमः। नमः प्रकृतियै भद्रयै नियतः प्रणतः स्मतम्॥ ॐ भूर्भुवः स्वः दुर्गादेव्यै नमः पुस्तक पूजयामि॥ (B.) दीप पूजा (Deep Puja) पुस्तकों की पूजा के पश्चात, निम्नलिखित मंत्र का उच्चारण करते हुए दुर्गा पूजा के दौरान दीप जलाएं और दीप देव की पूजा करें। शुभम् भवतु कल्याणमारोग्यं पुष्टिवर्धनम्। आत्मतत्त्व प्रबोधाय दीपज्योतिर्नमोअस्तु ते॥ ॐ भूर्भुवः स्वः दुर्गादेव्यै नमः दीपं पूजयामि॥ (C.) कन्या पूजन (Kanya Pujan) दुर्गा पूजा के दौरान कन्या पूजन का भी विशेष महत्व है। इसलिए दुर्गा पूजा के बाद कन्याओं को आमंत्रित कर उन्हें स्वादिष्ट भोजन कराया जाता है और दक्षिणा यानी उपहार दिए जाते हैं। कन्याओं को दक्षिणा देते समय निम्नलिखित मंत्र का उच्चारण करना चाहिए। सर्वस्वरूपे! सर्वेशे सर्वशक्ति स्वरूपिणी। पूजम गृहण कौमारी! जगन्मातरनमोअस्तु ते॥ ॐ भूर्भुवः स्वः दुर्गादेव्यै नमः कन्या पूजयामि॥ (24.) नीराजन (Nirajan) अब निम्नलिखित मंत्र का उच्चारण करने के पश्चात देवी दुर्गा की आरती करें। नीराजनं सुमंगल्यं कर्पूरेण समन्वितम्। चन्द्रार्कवह्नि सदृशं महादेवी! नमोअस्तु ते॥ ॐ भूर्भुवः स्वः दुर्गादेव्यै नमः कर्पूर निराजनं समर्पयामि॥ (25.) प्रदक्षिणा (Pradakshina) अब निम्नलिखित मंत्र का उच्चारण करते हुए फूलों से प्रतीकात्मक प्रदक्षिणा (देवी दुर्गा की बाएं से दाएं परिक्रमा) करें। प्रदक्षिणं त्रयं देवि प्रयत्नेन प्रकल्पितम्। पश्यद्य पावने देवि अम्बिकायै नमोअस्तु ते॥ ॐ भूर्भुवः स्वः दुर्गादेव्यै नमः प्रदक्षिणं समर्पयामि॥ (26.) क्षमापन (Kshamapan) अब निम्नलिखित मंत्र का उच्चारण करते हुए पूजा के दौरान हुई किसी भी ज्ञात-अज्ञात गलती के लिए देवी दुर्गा से क्षमा मांगें। अपराधा शतम् देवि मत्कृतम् च दीने दीने। क्षमायतम पावने देवी-देवेष नमोअस्तु ते॥Puja-Vidhi
Kanakdhara Stotram (कनकधारा स्तोत्रम्)
कनकधारा स्तोत्रम् आदि शंकराचार्य द्वारा रचित एक शक्तिशाली स्तोत्र है जो धन और समृद्धि के लिए देवी लक्ष्मी के आशीर्वादों को बुलाने के लिए है। इस स्तोत्र का जाप करने से प्रचुरता, सफलता और वित्तीय स्थिरता प्राप्त होती है।Stotra
Manidvipa Varnan - 2 (Devi Bhagavatam) मणिद्वीप वर्णन - 2 (देवी भागवतम्)
मणिद्वीप का वर्णन देवी भागवतम् के अनुसार। यह खंड देवी के स्वर्गीय निवास, मणिद्वीप की दिव्य और आध्यात्मिक महत्ता का अन्वेषण करता है। देवी की भक्ति और आध्यात्मिक ज्ञान चाहने वालों के लिए आदर्श।Manidvipa-Varnan
Navaratna Malika Stotram (नवरत्न मालिका स्तोत्रम्)
नवरत्न मालिका स्तोत्रम्: यह स्तोत्र नौ रत्नों की माला की प्रशंसा करता है।Stotra
Mundamala Tantra Stotra (मुण्डमाला तन्त्रोक्त महाविद्या स्तोत्र)
मुण्डमाला तन्त्रोक्त महाविद्या स्तोत्र एक अत्यंत शक्तिशाली स्तोत्र (powerful hymn) है, जो देवी महाकाली (Goddess Mahakali) की स्तुति करता है। इसका पाठ (recitation) करने से व्यक्ति को भय (fear) से मुक्ति मिलती है और नकारात्मक ऊर्जा (negative energy) का नाश होता है। यह स्तोत्र तंत्र विद्या (Tantric practices) के माध्यम से मानसिक और आध्यात्मिक शक्ति (spiritual power) प्रदान करता है। इसका नियमित पाठ (regular recitation) करने से जीवन की बाधाएं (obstacles in life) दूर होती हैं और व्यक्ति को सफलता (success) प्राप्त होती है। मुण्डमाला स्तोत्र (Mundamala Stotra) व्यक्ति को आत्मबल (inner strength) और साहस (courage) प्रदान करता है। यह स्तोत्र देवी के भक्तों (devotees of Goddess) को बुरी नजर (evil eye) और काले जादू (black magic) से भी सुरक्षा प्रदान करता है।10-Mahavidya
Maa Durga Shabar Mantra (माँ दुर्गा शाबर मंत्र)
श्री Maa Durga Shabar Mantra अद्भुत divine power से युक्त है, जो हर संकट को दूर करता है और तुरंत प्रभाव देता है। यह spiritual mantra साधक को साहस, आत्मविश्वास और सुरक्षा प्रदान करता है। Goddess Durga blessings पाने के लिए इस मंत्र का जाप नवरात्रि, अष्टमी, दशहरा या किसी भी auspicious occasion पर करना अत्यंत फलदायी होता है। यह miraculous chant नकारात्मक ऊर्जा, बुरी नजर और बाधाओं को दूर करता है। Protection and success के लिए इस मंत्र का जाप विशेष रूप से किया जाता है। इसे किसी भी समस्या के समाधान के लिए प्रयोग किया जाता है, जिससे instant results प्राप्त होते हैं। Sacred vibrations उत्पन्न करने वाला यह मंत्र जीवन में शक्ति, समृद्धि और सकारात्मकता लाता है। ध्यान और साधना के समय इस powerful mantra का जाप करने से आत्मबल बढ़ता है।MahaMantra
Durga Saptashati Chapter 12 (दुर्गा सप्तशति द्वादशोऽध्यायः) देवी माहात्म्यं
दुर्गा सप्तशति द्वादशोऽध्यायः: यह देवी दुर्गा के माहात्म्य का वर्णन करने वाला बारहवां अध्याय है।Durga-Saptashati-Sanskrit
Shri Durga Mata Stuti (श्री दुर्गा माता स्तुति)
Durga Stuti: धार्मिक ग्रंथों के अनुसार तीनों काल को जानने वाले महर्षि वेद व्यास ने Maa Durga Stuti को लिखा था, उनकी Durga Stuti को Bhagavati Stotra नाम से जानते हैं। कहा जाता है कि महर्षि वेदव्यास ने अपनी Divine Vision से पहले ही देख लिया था कि Kaliyuga में Dharma का महत्व कम हो जाएगा। इस कारण Manushya नास्तिक, कर्तव्यहीन और अल्पायु हो जाएंगे। इसके कारण उन्होंने Veda का चार भागों में विभाजन भी कर दिया ताकि कम बुद्धि और कम स्मरण-शक्ति रखने वाले भी Vedas का अध्ययन कर सकें। इन चारों वेदों का नाम Rigveda, Yajurveda, Samaveda और Atharvaveda रखा। इसी कारण Vyasaji Ved Vyas के नाम से विख्यात हुए। उन्होंने ही Mahabharata की भी रचना की थी।Stuti