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Durga Suktam (दुर्गा सूक्तम्)
दुर्गा सूक्तम्(Durga Suktam)
ओम् । जातवेदसे सुनवाम सोम मरातीयतो निदहाति वेदः ।
स नः पर्-षदति दुर्गाणि विश्वा नावेव सिन्धुं दुरितात्यग्निः ॥
तामग्निवर्णां तपसा ज्वलन्तीं वैरोचनीं कर्मफलेषु जुष्टाम् ।
दुर्गां देवीं शरणमहं प्रपद्ये सुतरसि तरसे नमः ॥
अग्ने त्वं पारया नव्यो अस्मान्थ् स्वस्तिभिरति दुर्गाणि विश्वा ।
पूश्च पृथ्वी बहुला न उर्वी भवातोकाय तनयाय शंयः ॥
विश्वानि नो दुर्गहा जातवेदः सिन्धुन्न नावा दुरितातिपर्षि ।
अग्ने अत्रिवन्मनसा गृणानोऽस्माकं बोध्यविता तनूनाम् ॥
पृतना जितंग सहमानमुग्रमग्निंग हुवेम परमाथ्सधस्थात् ।
स नः पर्-षदति दुर्गाणि विश्वा क्षामद्देवो अति दुरितात्यग्निः ॥
प्रत्नोषि कमीड्यो अध्वरेषु सनाच्च होता नव्यश्च सत्सि ।
स्वांचाऽग्ने तनुवं पिप्रयस्वास्मभ्यं च सौभगमायजस्व ॥
गोभिर्जुष्टमयुजो निषिक्तं तवेन्द्र विष्णोरनुसंचरेम ।
नाकस्य पृष्ठमभि संवंसानो वैष्णवीं लोक इह मादयंताम् ॥
ॐ कात्यायनाय विद्महे कन्यकुमारि धीमहि ।
तन्नो दुर्गिः प्रचोदयात् ॥
ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः ॥
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