Lohri (लोहड़ी) Date:- 2025-01-13

लोहड़ी समय सोमवार, जनवरी 13, 2025 को लोहड़ी संक्रान्ति का क्षण - 09:03 ए एम लोहड़ी 2025 लोहड़ी भारत का एक लोकप्रिय त्यौहार है। यह त्यौहार मुख्य रूप से सिख धर्म के पंजाबी लोगों द्वारा मनाया जाता है। इस पर्व को हिन्दु धर्म के लोग भी हर्षोल्लाष के साथ मनाते हैं। यूँ तो लोहड़ी मुख्य रूप से सिख त्यौहार है, किन्तु लोहड़ी का दिन हिन्दु कैलेण्डर के आधार पर ही निश्चित किया जाता है। लोहड़ी बहुत हद तक हिन्दु त्यौहार मकर संक्रान्ति से सम्बन्धित है। लोहड़ी का त्यौहार मकर संक्रान्ति से एक दिन पूर्व मनाया जाता है। लोहड़ी को लाल लोई के नाम से भी जाना जाता है। लोहड़ी का त्यौहार पंजाब का सबसे लोकप्रिय पर्व है जो वर्तमान समय में देश के अन्य हिस्सों में भी मनाये जाने लगा है। इस त्यौहार को दिल्ली, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश और जम्मू-कश्मीर में भी उत्साह के साथ मनाया जाता है। हर साल मकर सक्रांति से एक दिन पहले लोहड़ी को मनाया जाता है हर साल की तरह वर्ष 2025 मे लोहड़ी का पर्व 13 जनवरी को मनाया जाएगा। लोहड़ी का धार्मिक एवं आध्यात्मिक महत्व हिन्दू पंचांग के अनुसार, लोहड़ी का त्यौहार पौष या माघ के महीने में आता है जो सामान्यतः जनवरी माह में मनाया जाता है। यह पर्व शरद ऋतु के अंत में आता है और इसके बाद से ही रातें छोटी होने लगती है और दिन बड़े। इस त्यौहार को अधिकतर मकर संक्रांति से एक दिन पहले उसकी पूर्वसंध्या पर हर्षोउल्लास के साथ मनाते है। पारंपरिक तौर से ये त्यौहार फसल की बुआई और कटाई से जुड़ा हुआ है.और इसे लोग संध्या के समय अग्नि के चारों तरफ नाचते-गाते मनाते हैं। लोहड़ी की अग्नि में गुड़, तिल, रेवड़ी, गजक आदि डालने के बाद इन्हे अपने परिवार एवं रिश्तेदारों के साथ बांटने की परंपरा है, साथ ही तिल के लड्डू भी बांटे जाते हैं। पंजाब में फसल की कटाई के दौरान लोहड़ी को मनाने का विधान रहा है और यह मूल रूप से फसलों की कटाई का उत्सव है। इस दिन रबी की फसल को आग में समर्पित कर सूर्य देव और अग्नि का आभार प्रकट किया जाता है. आज के दिन किसान फसल की उन्नति की कामना करते हैं। लोहड़ी का पर्व मनाने के पीछे मान्यता है कि आने वाली पीढियां अपने रीति-रिवाजों एवं परम्पराओं को आगे ले जा सकें। जनवरी माह में काफ़ी ठंड होती है ऐसे में आग जलाने से शरीर को गर्मी मिलती है वहीं गुड़, तिल, गजक, मूंगफली आदि के खाने से शरीर को कई पौष्टिक तत्व मिलते हैं। लोहड़ी शब्द की उत्पति तीन शब्दों से मिलकर हुई है, इसमें ‘ल’ से लकड़ी, ओ से उपले, और डी से रबड़ी यह तीनों ही इस पर्व का मुख्य आकर्षण होते हैं। लोहड़ी के अवसर पर नवजात शिशु और नव विवाहित महिलाओं को आशीष दिया जाता हैं। लोहड़ी सम्बंधित रीति-रिवाज एवं परंपराएं लोहड़ी पंजाब एवं हरियाणा का प्रसिद्ध त्यौहार है, लेकिन अब इस पर्व को देश के अन्य हिस्सों में भी हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। इस दिन किसान ईश्वर के प्रति अपना आभार प्रकट करते हैं, जिससे फसल के उत्पादन में वृद्धि हो। इस दिन पंजाब के कुछ भागों में पतंगें उड़ाने का भी रिवाज है। लोहड़ी उत्सव के दौरान बच्चे घर-घर जाकर लोकगीत गाते हैं और लोग उन्हें मिठाई और पैसे देते हैं। ऐसी मान्यता है कि इस दिन बच्चों को खाली हाथ लौटाना उचित नहीं माना गया है, इसलिए उन्हें चीनी, गजक, गुड़, मूँगफली तथा मक्का आदि दिया जाता है, इसे ही लोहड़ी कहते है। इसके पश्चात संध्या के समय सभी लोग एकत्र होकर आग जलाते है और लोहड़ी को सभी में बांटेते हैं। संगीत और नृत्य के साथ लोहड़ी का जश्न मनाते हैं। रात को सरसों का साग,मक्के की रोटी और खीर आदि सांस्कृतिक भोजन को खाकर लोहड़ी की रात का लुत्फ़ लिया जाता है। लोहड़ी की कथा लोहड़ी के पर्व से सम्बंधित एक पौराणिक कथा प्रसिद्द है। लोहड़ी के दिन गाये जाने वाले लोकगीतों में दुल्ला भट्टी के नाम का जिक्र किया जाता है। ऐसा माना जाता है कि एक बार पंजाब में मुगल बादशाह अकबर के शासनकाल में दुल्ला भट्टी नाम का लुटेरा रहता था। वह अमीर लोगों से धन लूटकर गरीबों में बांट देता था। इसके साथ ही उसका एक अभियान ओर था कि ऐसी गरीब हिन्दू, सिख लड़कियों के विवाह में मदद करना जिनके ऊपर शाही ज़मीदारों तथा शासकों की बुरी नज़र होती थी, जिन्हे अगवा करके लोग गुलाम बनाकर दासों के बाजार में बेच दिया जाता था। ऐसी लड़कियों के लिए दुल्ला भट्टी वर ढूंढता था और उनका कन्यादान करता था। एक दिन दुल्ला भट्टी को सुंदरी और मुंदरी नाम की दो गरीब और रूपवान बहनों के बारे में पता चला जिन्हें ज़मीदार अगवाकर अपने साथ ले आया, उस समय उनका चाचा उनकी रक्षा करने में असमर्थ था। ऐसी स्थिति में दुल्ला ने अनेक कठिनाइयों के बावजूद भी उनके लिए वर ढूंढे और लोहड़ी के दिन जंगल मे लकड़ी इकट्ठा करके अग्नि के चारों और चक्कर काटकर उनका विवाह कराया व कन्यादान किया। इस घटना के बाद से ही पूरे पंजाब में दुल्ला भट्टी को नायक की उपाधि दी गई। तब से लेकर आजतक पंजाब के नायक को याद करके ‘सुंदर मुंदरिए’ लोकगीत गाया जाता है। लोहड़ी: सुंदर मुंदरिए और दुल्ला भट्टी की लोक परंपरा लोहड़ी, पंजाब और उत्तर भारत का एक प्रमुख लोक त्योहार है, जो मकर संक्रांति से एक दिन पहले मनाया जाता है। इस अवसर पर जलते अलाव के चारों ओर लोग इकट्ठा होते हैं और पारंपरिक गीत गाते हैं। लोहड़ी के गीतों में ऐतिहासिक नायक दुल्ला भट्टी का जिक्र होता है, जिसने मुगल काल में लड़कियों की शादी में मदद कर उन्हें समाज में इज्जत दिलाई। "सुंदर मुंदरिए हो" लोहड़ी का एक प्रसिद्ध गीत है, जिसमें समाज और संस्कृति के कई रंग देखने को मिलते हैं। सुंदर मुंदरिए हो! तेरा कौन विचारा हो? दुल्ला भट्टी वाला हो! दुल्ले ने धी ब्याही हो, सेर शक्कर पाई हो। कुड़ी दे बोझे पाई हो, कुड़ी दा लाल पटाका हो, कुड़ी दा शालू पाटा हो। शालू कौन समेटे हो? चाचा गाली देसे हो, चाचे चूरी कुट्टी हो। जमींदारां लुट्टी हो, जमींदारा सदाए हो, गिन-गिन पोले लाए हो। इक पोला घिस गया, जमींदार वोट्टी लै के नस्स गया हो! पा नी माई पाथी, तेरा पुत्त चढ़ेगा हाथी। हाथी उत्ते जौं, तेरे पुत्त पोत्रे नौ! नौंवां दी कमाई, तेरी झोली विच पाई। टेर नी माँ टेर नी, लाल चरखा फेर नी! बुड्ढी साँस लैंदी है, उत्तों रात पैंदी है। अंदर बट्टे ना खड़काओ, सान्नू दूरों ना डराओ! चारक दाने खिल्लां दे, पाथी लैके हिल्लांगे। कोठे उत्ते मोर, सान्नू पाथी देके तोर! कंडा कंडा नी लकड़ियो, कंडा सी। इस कंडे दे नाल कलीरा सी। जुग जीवे नी भाबो, तेरा वीरा नी। पा माई पा, काले कुत्ते नूं वी पा। काला कुत्ता दवे वदाइयाँ, तेरियां जीवन मझियाँ गाईयाँ। मझियाँ गाईयाँ दित्ता दूध, तेरे जीवन सके पुत्त। सक्के पुत्तां दी वदाई, वोटी छम-छम करदी आई। साड़े पैरां हेठ रोड, सानूं छेती-छेती तोर! साड़े पैरां हेठ दहीं, असीं मिलना वी नईं। साड़े पैरां हेठ परात, सानूं उत्तों पै गई रात!

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Sarawati Suktam (सरस्वती सूक्तम्)

सरस्वती सूक्तम् (Sarawati Suktam) (ऋ.वे. 6.61) इयम् ददाद्रभसमृणच्युतं दिवोदासं वँद्र्यश्वाय दाशुषे । या शश्वंतमाचखशदावसं पणिं ता ते दात्राणि तविषा सरस्वति ॥ 1 ॥ इयं शुष्मेभिर्बिसखा इवारुजत्सानु गिरीणां तविषेभिरूर्मिभिः । पारावतघ्नीमवसे सुवृक्तिभिस्सरस्वती मा विवासेम धीतिेभिः ॥ 2 ॥ सरस्वति देवनिदो नि बर्हय प्रजां-विंश्यस्य बृसयस्य मायिनः । उत क्षितिभ्योऽवनीरविंदो विषमेभ्यो अस्रवो वाजिनीवति ॥ 3 ॥ प्रणो देवी सरस्वती वाजेभिर्वाजिनीवती । धीनामवित्र्यवतु ॥ 4 ॥ यस्त्वा देवी सरस्वत्युपब्रूते धने हिते । इंद्रं न वृत्रतूर्ये ॥ 5 ॥ त्वं देवी सरस्वत्यवा वाजेषु वाजिनि । रदा पूषेव नः सनिम् ॥ 6 ॥ उत स्या नः सरस्वती घोरा हिरण्यवर्तनिः । वृत्रघ्नी वष्टि सुष्टुतिम् ॥ 7 ॥ यस्या अनंतो अह्रुतस्त्वेषश्चरिष्णुरर्णवः । अमश्चरति रोरुवत् ॥ 8 ॥ सा नो विश्वा अति द्विषः स्वसृरन्या ऋतावरी । अतन्नहेव सूर्यः ॥ 9 ॥ उत नः प्रिया प्रियासु सप्तस्वसा सुजुष्टा । सरस्वती स्तोम्या भूत् ॥ 10 ॥ आपप्रुषी पार्थिवान्युरु रजो अंतरिक्षम् । सरस्वती निदस्पातु ॥ 11 ॥ त्रिषधस्था सप्तधातुः पंच जाता वर्धयंती । वाजेवाजे हव्या भूत् ॥ 12 ॥ प्र या महिम्ना महिनासु चेकिते द्युम्नेभिरन्या अपसामपस्तमा । रथ इव बृहती विभ्वने कृतोपस्तुत्या चिकितुषा सरस्वती ॥ 13 ॥ सरस्वत्यभि नो नेषि वस्यो माप स्फरीः पयसा मा न आ धक् । जुषस्व नः सख्या वेश्या च मा त्वत क्षेत्राण्यारणानि गन्म ॥ 14 ॥ **(ऋ.वे. 7.95)** प्र क्षोदसा धायसा सस्र एषा सरस्वती धरुणमायसी पूः । प्रबाबधाना रथ्येव याति विश्वा अपो महिना सिंधुरन्याः ॥ 15 ॥ एकाचेतत्सरस्वती नदीनां शुचिर्यती गिरिभ्य आ समुद्रात् । रायश्चेतंती भुवनस्य भूरेर्घृतं पयो दुदुहे नाहुषाय ॥ 16 ॥ स वावृधे नर्यो योषणासु वृषा शिशुर्वृषभो यज्ञियासु । स वाजिनं मघवद्भ्यो दधाति वि सातये तन्वं मामृजीत ॥ 17 ॥ उत स्या नः सरस्वती जुषाणोप श्रवत्सुभगा यज्ञे अस्मिन्न् । मितज्ञुभिर्नमस्यैरियाना राय युजा चिदुत्तरा सखिभ्यः ॥ 18 ॥ इमा जुह्वाना युष्मदा नमोभिः प्रति स्तोमं सरस्वति जुषस्व । तव शर्मन्प्रियतमे दधानाः उप स्थेयाम शरणं न वृक्षम् ॥ 19 ॥ अयमु ते सरस्वति वसिष्ठो द्वारावृतस्य सुभगे व्यावः । वर्ध शुभ्रे स्तुवते रासि वाजान्यूयं पात स्वस्तिभिः सदा नः ॥ 20 ॥ **(ऋ.वे. 7.96)** बृहदु गायिषे वचोऽसुर्या नदीनाम् । सरस्वतीमिन्महया सुवृक्तिभिस्स्तोमैरवसिष्ठ रोदसी ॥ 21 ॥ उभे यत्ते महिना शुभ्रे अंधसी अधिक्षियांति पूरवः । सा नो बोध्यवित्री मरुत्सखा चोद राधो मघोनाम् ॥ 22 ॥ भद्रमिद्भद्रा कृणवत्सरस्वत्यकवारी चेतति वाजिनीवती । गृणााना जमदग्निवत्स्तुवाना च वसिष्ठवत् ॥ 23 ॥ जनीयंतो न्वग्रवः पुत्रीयंतः सुदानवः । सरस्वंतं हवामहे ॥ 24 ॥ ये ते सरस्व ऊर्मयो मधुमंतो घृतश्चुतः । तेभिर्नोऽविता भव ॥ 25 ॥ पीपिवांसं सरस्वतः स्तनं-योँ विश्वदर्शतः । भक्षीमहि प्रजामिषम् ॥ 26 ॥ **(ऋ.वे. 2.41.16)** अंबितमे नदीतमे देवितमे सरस्वति । अप्रशस्ता इव स्मसि प्रशस्तिमंब नस्कृधि ॥ 27 ॥ त्वे विश्वा सरस्वति श्रितायूंषि देव्यम् । शुनहोत्रेषु मत्स्व प्रजां देवि दिदिड्ढि नः ॥ 28 ॥ इमा ब्रह्म सरस्वति जुशस्व वाजिनीवति । या ते मन्म गृत्समदा ऋतावरी प्रिया देवेषु जुह्वति ॥ 29 ॥ **(ऋ.वे. 1.3.10)** पावका नः सरस्वती वाजेभिर्वाजिनीवती । यज्ञं-वष्टु धियावसुः ॥ 30 ॥ चोदयित्री सूनृतानां चेतंती सुमतीनाम् । यज्ञं दधे सरस्वती ॥ 31 ॥ महो अर्णः सरस्वती प्र चेतयति केतुना । धियो विश्वा वि राजति ॥ 32 ॥ **(ऋ.वे. 10.17.7)** सरस्वतीं देवयंतो हवंते सरस्वतीमध्वरे तायमाने । सरस्वतीं सुकृतो अह्वयंत सरस्वती दाशुषे वार्यं दात् ॥ 33 ॥ सरस्वति या सरथं-यँयाथ स्वधाभिर्देवि पितृभिर्मदंती । आसद्यास्मिन्बर्हिषि मादयस्वानमीवा इष आ धेह्यस्मे ॥ 34 ॥ सरस्वतीं-यां पितरो हवंते दक्षिणा यज्ञमभिनक्षमाणाः । सहस्रार्घमिलो अत्र भागं रायस्पोषं-यँजमानेषु धेहि ॥ 35 ॥ **(ऋ.वे. 5.43.11)** आ नो दिवो बृहतः पर्वतादा सरस्वती यजता गंतु यज्ञम् । हवं देवी जुजुषाणा घृताची शग्मां नो वाचमुशती शृणोतु ॥ 36 ॥ **(ऋ.वे. 2.32.4)** राकामहं सुहवां सुष्टुती हुवे शृणोतु नः सुभगा बोधतु त्मना । सीव्यत्वपः सूच्याच्छिद्यमानया ददातु वीरं शतदायमुक्थ्यम् ॥ 37 ॥ यास्ते राके सुमतयः सुपेशसो याभिर्ददासि दाशुषे वसूनि । ताभिर्नो अद्य सुमनाः उपागहि सहस्रपोषं सुभगे रराणा ॥ 38 ॥ सिनीवाली पृथु्ष्टुके या देवानामसि स्वसा । जुषस्व हव्य माहुतं प्रजां देवि दिदिड्ढि नः ॥ 39 ॥ या सुबाहुः स्वंगुरिः सुषूमा बहुसूवरी । तस्यै विश्पत्न्यै हविः सिनीवाल्यै जुहोतन ॥ 40 ॥ या गुंगूर्या सिनीवाली या राका या सरस्वती । इंद्राणीमह्व ऊतये वरुणानीं स्वस्तये ॥ 41 ॥ ॐ शांति: शांति: शांति:
Sukt

Tripurasundari Ashtakam (त्रिपुरसुंदरी अष्टकम)

Tripurasundari Ashtakam (त्रिपुरासुंदरी अष्टकम्) माँ Tripurasundari को समर्पित एक अत्यंत शक्तिशाली स्तोत्र है। माँ Tripurasundari, जिन्हें Lalita Devi, Shodashi और Srividya के रूप में भी जाना जाता है, समस्त सौंदर्य, ज्ञान और दिव्यता की अधिष्ठात्री देवी हैं। इस अष्टकम के नियमित पाठ से साधक को आध्यात्मिक उन्नति, विजय, सौंदर्य, ऐश्वर्य और सर्वसिद्धि प्राप्त होती है। माँ Tripurasundari की कृपा से सभी मनोकामनाएँ पूर्ण होती हैं और जीवन में शांति तथा सुख की प्राप्ति होती है। यदि कोई साधक जीवन में सौंदर्य, समृद्धि, आध्यात्मिक जागरण और शक्ति चाहता है, तो उसे माँ Tripurasundari की उपासना कर इस Tripurasundari Ashtakam का नित्य पाठ अवश्य करना चाहिए।
Ashtakam

Shri Ramachandrastuti (श्रीरामचन्द्रस्तुतिः)

Ram Stuti भगवान श्री राम जी को समर्पित है। नियमित रूप से Ram Stuti का पाठ करने से साधक के घर, ऑफिस और व्यवसाय के सभी कार्यों में सफलता मिलती है। इसे करने से भगवान Shri Hanuman Ji को धन्यवाद देना भी बहुत सरल हो जाता है। इसलिए, जब भी भगवान Hanuman Ji की पूजा से पहले भगवान राम की स्तुति की जाती है, तो Shri Hanuman Ji का आशीर्वाद प्राप्त होता है। strong>Ram Stuti शब्दों और अक्षरों का एक अनूठा संयोजन है, जिसमें छुपी हुई शक्तिशाली और रहस्यमयी ऊर्जा होती है, जो इसे एक विशेष विधि से जपने पर वांछित परिणाम प्रदान करती है। श्री राम नवमी, विजय दशमी, सुंदरकांड, रामचरितमानस कथा, श्री हनुमान जन्मोत्सव और अखंड रामायण के पाठ में प्रमुखता से वाचन किया जाने वाली वंदना।
Stuti

Durga Saptashati(दुर्गा सप्तशती) 6 Chapter (छठा अध्याय)

दुर्गा सप्तशती एक हिंदू धार्मिक ग्रंथ है जिसमें राक्षस महिषासुर पर देवी दुर्गा की विजय का वर्णन किया गया है। दुर्गा सप्तशती को देवी महात्म्यम, चंडी पाठ (चण्डीपाठः) के नाम से भी जाना जाता है और इसमें 700 श्लोक हैं, जिन्हें 13 अध्यायों में व्यवस्थित किया गया है। दुर्गा सप्तशती का छठा अध्याय " धूम्रलोचन के वध " पर आधारित है ।
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Bhagavad Gita Fourteenth Chapter (भगवत गीता चौदहवाँ अध्याय)

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Bhagwat-Gita

Shri Durga Chalisa (श्री दुर्गा चालीसा)

दुर्गा चालीसा एक भक्ति गीत है जो माँ दुर्गा पर आधारित है। दुर्गा माता को शक्ति, महिषासुरमर्दिनी, और सर्वमंगल के रूप में जाना जाता है। Durga mantra for strength जैसे "ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे" का जाप दुर्गा चालीसा पाठ के साथ करना भक्तों को शक्ति और साहस प्रदान करता है। Durga Chalisa benefits में मानसिक शांति, सुरक्षा और इच्छाओं की पूर्ति शामिल हैं।
Chalisa

Vishnu Ji Mantra (विष्णु मंत्र)

भगवान विष्णु के मंत्र इतने शक्तिशाली हैं कि जो इन मंत्रों का जाप करता है उस व्यक्ति के चारों ओर एक शक्तिशाली सकारात्मक ऊर्जा उत्पन्न करते हैं और वह जातक चमत्कारी परिवर्तनों को महसूस कर सकता है।
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Shri Pitar Chalisa (श्री पितर चालीसा)

श्री पितर चालीसा एक भक्ति गीत है जो श्री पितर पर आधारित है। पितर को पितृ, यानी परिवार के पूर्वजों के रूप में पूजा जाता है। Shradh mantra for ancestors का जाप पितरों को संतुष्ट करता है और परिवार में शांति एवं समृद्धि लाता है। श्राद्ध पक्ष के दौरान पितर चालीसा का पाठ करना ancestral blessings प्राप्त करने का एक प्रभावी तरीका है।
Chalisa