Rama Ekadashi (रमा एकादशी) Date:- 2024-10-28

Rama Ekadashi on Monday, October 28, 2024 (सोमवार, 28 अक्टूबर 2024 को रमा एकादशी) On 29th Oct, Parana Time - 05:56 AM to 08:11 AM On Parana Day Dwadashi End Moment - 10:31 AM एकादशी तिथि प्रारम्भ -27 अक्टूबर, 2024 को 05:23 AM एकादशी तिथि समाप्त -28 अक्टूबर, 2024 को सुबह 07:50 AM एकादशी व्रत का भोजन एकादशी व्रत का प्रकार व्यक्ति की इच्छा शक्ति और शारीरिक क्षमता के अनुसार तय किया जा सकता है। धार्मिक ग्रंथों में चार प्रमुख प्रकार के एकादशी व्रत बताए गए हैं: जलाहार व्रत: इस व्रत में केवल जल का सेवन किया जाता है। अधिकांश भक्त निर्जला एकादशी पर इस व्रत का पालन करते हैं, लेकिन इसे सभी एकादशी व्रतों पर रखा जा सकता है। क्षीरभोजी व्रत: इस व्रत में दूध और दूध से बने सभी उत्पादों का सेवन किया जाता है। इसमें दूध, घी, दही, माखन आदि शामिल हैं। फलाहारी व्रत: इस व्रत में केवल फलाहार किया जाता है, जैसे कि आम, अंगूर, केला, बादाम, पिस्ता आदि। पत्तेदार सब्जियां और अन्य खाद्य पदार्थ वर्जित होते हैं। नक्तभोजी व्रत: इस व्रत में सूर्यास्त से ठीक पहले दिन में एक बार भोजन किया जाता है, जिसमें अनाज या अनाज से बने खाद्य पदार्थ नहीं होते, जैसे सेम, गेहूं, चावल और दालें। ### नक्तभोजी व्रत के लिए मुख्य आहार एकादशी व्रत के दौरान नक्तभोजी व्रत के लिए मुख्य आहार में शामिल हैं: साबूदाना: साबूदाने की खिचड़ी या खीर। सिंघाड़ा: पानी के कैल्ट्रोप और चेस्टनट के रूप में भी जाना जाता है। शकरकंदी: शकरकंदी की सब्जी या चाट। आलू: आलू के विभिन्न प्रकार के व्यंजन। मूंगफली: मूंगफली की चटनी या शकरकंदी के साथ। ### विवादित आहार कुट्टू आटा (बकव्हीट आटा) और सामक (बाजरा चावल) भी एकादशी के भोजन में शामिल होते हैं। हालांकि, इनकी वैधता पर विवाद है, क्योंकि इन्हें अर्ध-अनाज या छद्म अनाज माना जाता है। इसलिए उपवास के दौरान इनसे बचना बेहतर माना जाता है। इस प्रकार, एकादशी व्रत का पालन करते समय इन विविध प्रकार के व्रतों और आहार का ध्यान रखना चाहिए, जिससे धार्मिक नियमों का सटीक पालन हो सके।रमा एकादशी कब और कैसे मनाई जाती है? रमा एकादशी कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि को मनाई जाती है। यह व्रत विशेष रूप से भगवान विष्णु को समर्पित होता है और इसे करने से व्यक्ति को सभी पापों से मुक्ति मिलती है। इस दिन व्रती उपवास रखते हैं और भगवान विष्णु की विशेष पूजा-अर्चना करते हैं। रमा एकादशी का पौराणिक महत्व क्या है? रमा एकादशी का पौराणिक महत्व भगवान विष्णु और उनकी पत्नी देवी लक्ष्मी से जुड़ा है। यह माना जाता है कि इस दिन व्रत रखने से देवी लक्ष्मी की कृपा प्राप्त होती है और व्यक्ति के जीवन में सुख-समृद्धि आती है। इस व्रत को करने से व्यक्ति को विष्णु लोक की प्राप्ति होती है। रमा एकादशी की तैयारी कैसे होती है? रमा एकादशी की तैयारी में लोग अपने घरों को साफ-सुथरा रखते हैं और विशेष पूजा सामग्री का प्रबंध करते हैं। पूजा की थाली में तिल, जल, पुष्प, धूप, दीपक, और भगवान विष्णु की मूर्ति या चित्र शामिल होते हैं। इस दिन लोग ब्रह्म मुहूर्त में स्नान करके व्रत का संकल्प लेते हैं। रमा एकादशी का उत्सव कैसे मनाया जाता है? रमा एकादशी के दिन लोग उपवास रखते हैं और भगवान विष्णु की विशेष पूजा-अर्चना करते हैं। इस दौरान विष्णु सहस्रनाम का पाठ किया जाता है और विष्णु मंत्रों का जाप किया जाता है। शाम को दीपदान किया जाता है और भगवान विष्णु को भोग लगाया जाता है। व्रतधारी रात को जागरण करते हैं और भगवान का स्मरण करते हैं। रमा एकादशी का समग्र महत्व क्या है? रमा एकादशी केवल एक धार्मिक पर्व नहीं है, बल्कि यह भारतीय संस्कृति और परंपराओं का एक अभिन्न हिस्सा है। यह पर्व धार्मिक और सांस्कृतिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है और समाज में धार्मिक और सांस्कृतिक मूल्यों को बढ़ावा देता है।

Recommendations

Ganesh Kavacha (विध्नविनाशक गणेश कवचम्‌)

गणेश कवच (Ganesh Kavach): श्री गणेश जी को प्रथम पूजनीय माना गया है। किसी भी कार्य को शुरू करने से पहले गणेश कवच का पाठ करना बहुत शुभ माना जाता है। जैसे नई वस्तु खरीदना, व्यवसाय शुरू करना, इंटरव्यू के लिए जाना आदि। गणेश कवच का पाठ करने से सबसे बड़ी समस्याएं भी दूर होने लगती हैं, धन हानि रुक जाती है, कर्ज समाप्त हो जाते हैं, बुरी नजर और तांत्रिक बाधाओं से सुरक्षा मिलती है। यदि गणेश कवच का 11 दिनों तक 108 बार पाठ किया जाए, तो व्यापार और पारिवारिक कार्यों में आने वाली सभी बाधाएं धीरे-धीरे समाप्त होने लगती हैं।
Kavacha

Bhagavad Gita Fourteenth Chapter (भगवत गीता चौदहवाँ अध्याय)

भगवद गीता चौदहवाँ अध्याय "गुणत्रय विभाग योग" के रूप में जाना जाता है। इसमें भगवान श्रीकृष्ण सत्व, रजस, और तमस नामक तीन गुणों का विस्तार से वर्णन करते हैं। वे बताते हैं कि इन गुणों का संतुलन ही व्यक्ति के जीवन को नियंत्रित करता है। यह अध्याय "गुणों का प्रभाव", "सत्वगुण की महिमा", और "आध्यात्मिक उन्नति" पर आधारित है।
Bhagwat-Gita

Durga Saptashati(दुर्गासप्तशती) 3 Chapter (तीसरा अध्याय)

दुर्गा सप्तशती एक हिंदू धार्मिक ग्रंथ है जिसमें 700 श्लोक हैं, जिन्हें 13 अध्यायों में व्यवस्थित किया गया है। दुर्गा सप्तशती का अनुष्ठानिक पाठ देवी दुर्गा के सम्मान में नवरात्रि (अप्रैल और अक्टूबर के महीनों में पूजा के नौ दिन) समारोह का हिस्सा है। यह शाक्त परंपरा का आधार और मूल है। दुर्गा सप्तशती का तीसरा अध्याय " महिषासुर वध " पर आधारित है ।
Durga-Saptashati

Bhagavad Gita Eleventh Chapter (भगवद गीता ग्यारहवाँ अध्याय)

भगवद गीता ग्यारहवां अध्याय "विश्व रूप दर्शन योग" है। इस अध्याय में श्रीकृष्ण ने अर्जुन को अपना विश्वरूप दिखाया, जिसमें उन्होंने अपने संपूर्ण ब्रह्मांडीय स्वरूप का दर्शन कराया। यह अध्याय भगवान की महानता और असीम शक्ति को प्रकट करता है।
Bhagwat-Gita

Bhagavad Gita second chapter (भगवद गीता दूसरा अध्याय)

भगवद गीता के दूसरे अध्याय का नाम "सांख्य योग" या "ज्ञान का योग" है। यह अध्याय गीता का सबसे महत्वपूर्ण अध्याय माना जाता है, क्योंकि इसमें भगवान कृष्ण अर्जुन को जीवन, कर्तव्य और आत्मा के गूढ़ रहस्यों का ज्ञान देते हैं। श्रीकृष्ण अर्जुन को आत्मा की अमरता, कर्मयोग का महत्व और समभाव बनाए रखने की शिक्षा देते हैं। यह अध्याय जीवन में सही दृष्टिकोण अपनाने और अपने धर्म का पालन करने के लिए प्रेरित करता है।
Bhagwat-Gita

Bhagavad Gita sixth chapter (भगवद गीता छठा अध्याय)

भगवद गीता छठा अध्याय "ध्यान योग" के रूप में जाना जाता है। इस अध्याय में भगवान कृष्ण ध्यान और आत्म-संयम के महत्व पर जोर देते हैं। वे कहते हैं कि जो व्यक्ति मन और इंद्रियों को वश में रखकर ध्यान करता है, वही सच्चा योगी है। यह अध्याय हमें "ध्यान योग", "मन का नियंत्रण", और "आध्यात्मिक उन्नति" के मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित करता है।
Bhagwat-Gita

Shri Ganpati-Vandan (श्रीगणपति-वन्दन)

श्री गणपति जी की आरती भगवान गणेश की वंदना और स्मरण का पवित्र गीत है। भगवान गणेश को विघ्नहर्ता, सिद्धिदाता, और बुद्धि के देवता माना जाता है। उनकी आरती गाने से सभी बाधाएं दूर होती हैं और सुख, शांति व समृद्धि प्राप्त होती है।
Vandana

Sarvrup Bhagwan Arti (सर्वरूप भगवान्‌ आरती)

सर्वरूप भगवान की आरती में भगवान के सभी रूपों की आराधना और वंदना की जाती है। यह आरती भगवान को उनकी सर्वशक्तिमानता, कृपा, और संपूर्णता के लिए समर्पित है। Sarvaroop Bhagwan Aarti में ईश्वर को उनके सृष्टि रचयिता, पालनहार, और संहारक रूपों के लिए पूजा जाता है। यह आरती गाने से भक्तों को आध्यात्मिक बल, शांति, और धार्मिक उत्थान की प्राप्ति होती है।
Arti