Guru Nanak Jayanti (गुरु नानक जयंती) Date:- 2024-11-15

Guru Nanak Jayanti (गुरु नानक जयंती) Date:- 2024-11-15गुरु नानक जयंती कब और कैसे मनाई जाती है? गुरु नानक जयंती कार्तिक मास की पूर्णिमा तिथि को मनाई जाती है। यह सिख धर्म के संस्थापक गुरु नानक देव जी की जयंती के रूप में मनाई जाती है और इसे "गुरु पर्व" या "प्रकाश पर्व" के नाम से भी जाना जाता है। यह पर्व मुख्यतः पंजाब, हरियाणा, और सिख समुदाय द्वारा पूरे विश्व में बड़े ही धूमधाम से मनाया जाता है। गुरु नानक जयंती का पौराणिक महत्व क्या है? गुरु नानक जयंती का पौराणिक महत्व गुरु नानक देव जी की शिक्षाओं और उनके जीवन से जुड़ा है। गुरु नानक जी ने समाज में भाईचारे, समानता, और धार्मिक सहिष्णुता का संदेश दिया था। उनकी जयंती पर उनकी शिक्षाओं को याद किया जाता है और उनका पालन करने का संकल्प लिया जाता है। गुरु नानक जयंती की तैयारी कैसे होती है? गुरु नानक जयंती की तैयारी में लोग अपने घरों और गुरुद्वारों को सजाते हैं। विशेष रूप से गुरुद्वारों में इस दिन कीर्तन और लंगर का आयोजन किया जाता है। लोग गुरुद्वारों में जाकर सेवा करते हैं और गुरु ग्रंथ साहिब का पाठ सुनते हैं। गुरु नानक जयंती का उत्सव कैसे मनाया जाता है? गुरु नानक जयंती के दिन लोग सुबह जल्दी उठकर स्नान करते हैं और गुरुद्वारों में जाकर अरदास करते हैं। इस दौरान विशेष कीर्तन, कथा, और भजन गाए जाते हैं। गुरुद्वारों में गुरु ग्रंथ साहिब का अखंड पाठ किया जाता है और लंगर का आयोजन होता है। इस दिन सिख समुदाय के लोग नगर कीर्तन भी निकालते हैं जिसमें गुरु नानक देव जी की पालकी सजाकर नगर में शोभायात्रा निकाली जाती है। गुरु नानक जयंती का समग्र महत्व क्या है? गुरु नानक जयंती केवल एक धार्मिक पर्व नहीं है, बल्कि यह भारतीय संस्कृति और परंपराओं का एक अभिन्न हिस्सा है। यह पर्व धार्मिक और सांस्कृतिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है और समाज में भाईचारे, समानता, और धार्मिक सहिष्णुता के मूल्यों को बढ़ावा देता है।

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रायणीयं दशक 8 में भगवान नारायण के गुणों का वर्णन है। यह दशक भक्तों को भगवान के दिव्य गुणों की अद्वितीयता को समझाता है।
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Shri Chhinnamasta Kavacham (श्री छिन्नमस्ता कवचम्)

माँ चिन्नमस्ता शक्ति का एक रूप हैं, जिन्हें अपने सिर को काटते हुए दिखाया जाता है। उनके गले से बहता हुआ खून, जो जीवन को बनाए रखने वाली प्राण शक्ति का प्रतीक है, तीन धाराओं में बहता है—एक धार उनके अपने मुँह में, यह दर्शाता है कि वह आत्मनिर्भर हैं, और बाकी दो धार उनकी दो महिला सहायक दकिणी और वर्णिनी के मुँह में बहती हैं, जो समस्त जीवन शक्ति का प्रतिनिधित्व करती हैं। कटा हुआ सिर मोक्ष का प्रतीक है। सिर को काटकर वह अपनी असली अवस्था में प्रकट होती हैं, जो अज्ञेय, अनंत और स्वतंत्र है। यह बंधन और व्यक्तिगतता से मुक्ति का प्रतीक है। उनका नग्न रूप उनकी स्वायत्तता को दर्शाता है, यह दिखाता है कि उन्हें किसी भी रूप में संकुचित नहीं किया जा सकता। खोपड़ी की माला (रुंडमाला) दिव्य सृजनात्मकता का प्रतीक है। वह काम और रति के मिलन करते जोड़े पर खड़ी होती हैं, यह दिखाता है कि उन्होंने यौन इच्छाओं पर विजय प्राप्त कर ली है। 'काम' यौन इच्छा का और 'रति' यौन संबंध का प्रतीक है। उनके गले से बहता खून तीन नाड़ियों – इडा, पिंगला और सुशुम्ना के माध्यम से चेतना के प्रवाह का प्रतीक है। काम और रति एक उत्तेजित कुंडलिनी का प्रतिनिधित्व करते हैं, जो सुशुम्ना में चढ़कर अज्ञानता को समाप्त करती है। कुंडलिनी द्वारा सहस्रार चक्र में उत्पन्न अद्वितीय ऊर्जा के कारण सिर उड़ जाता है। इसका मतलब है कि मुलाधार चक्र में शक्ति शिव से सहस्रार चक्र में मिलती है, जिससे आत्म-साक्षात्कार होता है। रति को प्रभुत्व में दिखाया गया है, जबकि काम को निष्क्रिय रूप में दिखाया गया है। माँ चिन्नमस्ता कवच का पाठ शत्रुओं से छुटकारा पाने और विजय प्राप्त करने के लिए किया जाता है। यह कवच अंधी शक्तियों और रुकावटों को दूर करने में मदद करता है। यह आध्यात्मिक उन्नति और संवेदनशीलता में वृद्धि करता है।
Kavacha

Shri Saraswati Dawadash Naam Mantra (श्री सरस्वती दादश नाम मंत्र)

मां सरस्वती को विद्या की देवी कहा जाता है। इनकी पूजा करने से व्यक्ति के मन और मस्तिष्क में बुद्धि का संचरण होता है। ऐसा कहा जाता है कि जहां मां सरस्वती विराजमान रहती हैं, उस जगह मां लक्ष्मी अवश्य वास करती हैं। दैविक काल में सर्वप्रथम भगवान श्रीकृष्ण जी ने मां शारदे की पूजा आराधना की थी। इन्हें संगीत की देवी भी कहा जाता है। हिंदी पंचांग के अनुसार, माघ महीने में वसंत पंचमी के दिन सरस्वती पूजा मनाई जाती है। इस दिन मां शारदे का आह्वान किया जाता है। खासकर विद्यार्थी सरस्वती पूजा को उत्सव की तरह मनाते हैं। बंगाल और बिहार समेत देश के कई राज्यों में सरस्वती पूजा धूमधाम से मनाई जाती है। विद्यार्थी वर्ग को प्रतिदिन विद्या प्राप्ति के लिए इन मंत्रों का जाप करना चाहिए।
Mantra

Shri Vaishno Devi Chalisa (श्री वैष्णो देवी चालीसा)

श्री वैष्णो देवी चालीसा देवी माता वैष्णो देवी की महिमा का वर्णन करती है। इसका पाठ करने से सुरक्षा, मनोवांछित फल, और आध्यात्मिक शांति प्राप्त होती है। भक्तगण इस चालीसा का उपयोग वैष्णो देवी यात्रा, भक्ति मार्ग, और शक्ति आराधना के लिए करते हैं।
Chalisa

Shri Hanuman Mahamantra (श्री हनुमान महामंत्र)

श्री Hanuman Mahamantra अद्भुत divine power से भरपूर है, जो हर संकट को दूर करता है। यह spiritual mantra मन को शांति, शक्ति और साहस प्रदान करता है। Bhakti energy से ओतप्रोत यह मंत्र नकारात्मक ऊर्जा को हटाकर सकारात्मकता लाता है। इसे मंगलवार, शनिवार या किसी भी auspicious festival जैसे राम नवमी, हनुमान जयंती और दिवाली पर जपना अत्यंत फलदायी होता है। Lord Hanuman blessings प्राप्त करने के लिए इसे सुबह या संकट के समय जपना चाहिए। यह divine chant बुरी नजर, भय और बाधाओं को दूर करने में मदद करता है। साधक को इसमें spiritual vibrations का अनुभव होता है जो आत्मा को शुद्ध करता है। यह मंत्र Success, Protection, और Courage बढ़ाने के लिए जाना जाता है। Positive aura creation के लिए ध्यान के साथ जपने से यह अधिक प्रभावी होता है।
MahaMantra

Devi Aparajita Stotram (देवी अपराजिता स्तोत्रम्)

देवी अपराजिता स्तोत्रम्: यह स्तोत्र देवी अपराजिता को समर्पित है, जो सभी बाधाओं को दूर करती हैं।
Stotra

Shri Durga Mata Stuti (श्री दुर्गा माता स्तुति)

Durga Stuti: धार्मिक ग्रंथों के अनुसार तीनों काल को जानने वाले महर्षि वेद व्यास ने Maa Durga Stuti को लिखा था, उनकी Durga Stuti को Bhagavati Stotra नाम से जानते हैं। कहा जाता है कि महर्षि वेदव्यास ने अपनी Divine Vision से पहले ही देख लिया था कि Kaliyuga में Dharma का महत्व कम हो जाएगा। इस कारण Manushya नास्तिक, कर्तव्यहीन और अल्पायु हो जाएंगे। इसके कारण उन्होंने Veda का चार भागों में विभाजन भी कर दिया ताकि कम बुद्धि और कम स्मरण-शक्ति रखने वाले भी Vedas का अध्ययन कर सकें। इन चारों वेदों का नाम Rigveda, Yajurveda, Samaveda और Atharvaveda रखा। इसी कारण Vyasaji Ved Vyas के नाम से विख्यात हुए। उन्होंने ही Mahabharata की भी रचना की थी।
Stuti

Ganesh Kavacha (विध्नविनाशक गणेश कवचम्‌)

गणेश कवच (Ganesh Kavach): श्री गणेश जी को प्रथम पूजनीय माना गया है। किसी भी कार्य को शुरू करने से पहले गणेश कवच का पाठ करना बहुत शुभ माना जाता है। जैसे नई वस्तु खरीदना, व्यवसाय शुरू करना, इंटरव्यू के लिए जाना आदि। गणेश कवच का पाठ करने से सबसे बड़ी समस्याएं भी दूर होने लगती हैं, धन हानि रुक जाती है, कर्ज समाप्त हो जाते हैं, बुरी नजर और तांत्रिक बाधाओं से सुरक्षा मिलती है। यदि गणेश कवच का 11 दिनों तक 108 बार पाठ किया जाए, तो व्यापार और पारिवारिक कार्यों में आने वाली सभी बाधाएं धीरे-धीरे समाप्त होने लगती हैं।
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