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Mantra Pushpam (मंत्र पुष्पम् )
मंत्र पुष्पम् (Mantra Pushpam)
भद्रं कर्णेभिः शृणुयाम देवाः । भद्रं पश्येमाक्षभिर्यजत्राः । स्थिरैरंगैस्तुष्टुवाग्ंसस्तनूभिः । व्यशेम देवहितं यदायुः ॥ स्वस्ति न इंद्रो वृद्धश्रवाः । स्वस्ति नः पूषा विश्ववेदाः । स्वस्तिनस्तार्क्ष्यो अरिष्टनेमिः । स्वस्ति नो बृहस्पतिर्दधातु ॥ ॐ शांतिः शांतिः शांतिः ॥
योऽपां पुष्पं वेद पुष्पवान् प्रजावान् पशुमान् भवति । चंद्रमा वा अपां पुष्पम् । पुष्पवान् प्रजावान् पशुमान् भवति । य एवं वेद । योऽपामायतनं वेद । आयतनवान् भवति ।
अग्निर्वा अपामायतनम् । आयतनवान् भवति । योऽग्नेरायतनं वेद । आयतनवान् भवति । आपो वा अग्नेरायतनम् । आयतनवान् भवति । य एवं वेद । योऽपामायतनं वेद । आयतनवान् भवति ।
वायुर्वा अपामायतनम् । आयतनवान् भवति । यो वायोरायतनं वेद । आयतनवान् भवति । आपो वै वायोरायतनम् । आयतनवान् भवति । य एवं वेद । योऽपामायतनं वेद । आयतनवान् भवति ।
असौ वै तपन्नपामायतनम् । आयतनवान् भवति । योऽमुष्य तपत आयतनं वेद । आयतनवान् भवति । आपो वा अमुष्य तपत आयतनम् । आयतनवान् भवति । य एवं वेद । योऽपामायतनं वेद । आयतनवान् भवति ।
चंद्रमा वा अपामायतनम् । आयतनवान् भवति । यश्चंद्रमस आयतनं वेद । आयतनवान् भवति । आपो वै चंद्रमस आयतनम् । आयतनवान् भवति । य एवं वेद । योऽपामायतनं वेद । आयतनवान् भवति ।
नक्षत्राणि वा अपामायतनम् । आयतनवान् भवति । यो नक्षत्राणामायतनं वेद । आयतनवान् भवति । आपो वै नक्षत्राणामायतनम् । आयतनवान् भवति । य एवं वेद । योऽपामायतनं वेद । आयतनवान् भवति ।
पर्जन्यो वा अपामायतनम् । आयतनवान् भवति । यः पर्जन्यस्यायतनं वेद । आयतनवान् भवति । आपो वै पर्जन्यस्यायतनम् । आयतनवान् भवति । य एवं वेद । योऽपामायतनं वेद । आयतनवान् भवति ।
संवत्सरो वा अपामायतनम् । आयतनवान् भवति । यः संवत्सरस्यायतनं वेद । आयतनवान् भवति । आपो वै संवत्सरस्यायतनम् । आयतनवान् भवति । य एवं वेद । योऽफ्सु नावं प्रतिष्ठितां वेद । प्रत्येव तिष्ठति ।
ॐ राजाधिराजाय प्रसह्य साहिने । नमो वयं वैश्रवणाय कुर्महे । स मे कामान् काम कामाय मह्यम् । कामेश्वरो वैश्रवणो ददातु । कुबेराय वैश्रवणाय । महाराजाय नमः ।
ॐ तद्ब्रह्म । ॐ तद्वायुः । ॐ तदात्मा ।
ॐ तथ्सत्यम् । ॐ तत्सर्वम् । ॐ तत्पुरो नमः ॥
अंतश्चरति भूतेषु गुहायां विश्वरूपिषु ।
त्वं यज्ञस्त्वं वषट्कारस्त्वं इंद्रस्त्वं
रुद्रस्त्वं विष्णुस्त्वं ब्रह्मत्वं प्रजापतिः ।
त्वं तदापो ज्योतिरसोऽमृतं ब्रह्म भूर्भुवस्सुवरोम् ।
ईशानः सर्व विद्यानामीश्वरः सर्वभूतानां
ब्रह्माधिपतिः ब्रह्मणोऽधिपतिः ब्रह्मा शिवो मे अस्तु सदाशिवः ।
तद्विष्णोः परमं पदं सदा पश्यंति सूरयः । दिवीव चक्षुराततम् । तद्विप्रासो विपन्यवो जागृवां सस्समिंधते । विष्णोः यत्परमं पदम् ।
ऋतं सत्यं परं ब्रह्म पुरुषं कृष्णपिंगलम् ।
ऊर्ध्वरेतं विरूपाक्षं विश्वरूपाय वै नमो नमः ॥
ॐ नारायणाय विद्महे वासुदेवाय धीमहि ।
तन्नो विष्णुः प्रचोदयात् ॥
ॐ शांतिः शांतिः शांतिः ।
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