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Gita Govindam Shashtah sargah - Kunth Vaikunthah (गीतगोविन्दं षष्टः सर्गः - कुण्ठ वैकुण्ठः)
गीतगोविन्दं षष्टः सर्गः - कुण्ठ वैकुण्ठः
(Gita Govindam Shashtah sargah - Kunth Vaikunthah)
॥ षष्ठः सर्गः ॥
॥ कुण्ठवैकुण्ठः ॥
अथ तां गन्तुमशक्तां चिरमनुरक्तां लतागृहे दृष्ट्वा ।
तच्चरितं गोविन्दे मनसिजमन्दे सखी प्राह ॥ 37 ॥
॥ गीतं 12 ॥
पश्यति दिशि दिशि रहसि भवन्तम् ।
तदधरमधुरमधूनि पिबन्तम् ॥
नाथ हरे जगन्नाथ हरे सीदति राधा वासगृहे - ध्रुवम् ॥ 1 ॥
त्वदभिसरणरभसेन वलन्ती ।
पतति पदानि कियन्ति चलन्ती ॥ 2 ॥
विहितविशदबिसकिसलयवलया ।
जीवति परमिह तव रतिकलया ॥ 3 ॥
मुहुरवलोकितमण्डनलीला ।
मधुरिपुरहमिति भावनशीला ॥ 4 ॥
त्वरितमुपैति न कथमभिसारम् ।
हरिरिति वदति सखीमनुवारम् ॥ 5 ॥
श्लिष्यति चुम्बति जलधरकल्पम् ।
हरिरुपगत इति तिमिरमनल्पम् ॥ 6 ॥
भवति विलम्बिनि विगलितलज्जा ।
विलपति रोदिति वासकसज्जा ॥ 7 ॥
श्रीजयदेवकवेरिदमुदितम् ।
रसिकजनं तनुतामतिमुदितम् ॥ 8 ॥
विपुलपुलकपालिः स्फीतसीत्कारमन्त-र्जनितजडिमकाकुव्याकुलं व्याहरन्ती ।
तव कितव विधत्तेऽमन्दकन्दर्पचिन्तां रसजलधिनिमग्ना ध्यानलग्ना मृगाक्षी ॥ 38 ॥
अङ्गेष्वाभरणं करोति बहुशः पत्रेऽपि सञ्चारिणि प्राप्तं त्वां परिशङ्कते वितनुते शय्यां चिरं ध्यायति ।
इत्याकल्पविकल्पतल्परचनासङ्कल्पलीलाशत-व्यासक्तापि विना त्वया वरतनुर्नैषा निशां नेष्यति ॥ 39 ॥
किं विश्राम्यसि कृष्णभोगिभवने भाण्डीरभूमीरुहि भ्रात र्याहि नदृष्टिगोचरमितस्सानन्दनन्दास्पदम्।
रधायावचनं तदध्वगमुखान्नन्दान्तिकेगोपतो गोविन्दस्यजयन्ति सायमतिथिप्राशस्त्यगर्भागिरः॥ 40 ॥
॥ इति गीतगोविन्दे वासकसज्जावर्णने कुण्ठवैकुण्ठो नाम षष्ठः सर्गः ॥
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