No festivals today or in the next 14 days. 🎉
Gita Govindam Panchamah sargah - Sakanksh Pundarikakshah (गीतगोविन्दं पञ्चमः सर्गः - साकाङ्क्ष पुण्डरीकाक्षः)
गीतगोविन्दं पञ्चमः सर्गः - साकाङ्क्ष पुण्डरीकाक्षः
(Gita Govindam Panchamah sargah - Sakanksh Pundarikakshah)
॥ पञ्चमः सर्गः ॥
॥ साकाङ्क्षपुण्डरीकाक्षः ॥
अहमिह निवसामि याहि राधां अनुनय मद्वचनेन चानयेथाः ।
इति मधुरिपुणा सखी नियुक्ता स्वयमिदमेत्य पुनर्जगाद राधाम् ॥ 31 ॥
॥ गीतं 10 ॥
वहति मलयसमीरे मदनमुपनिधाय ।
स्फुटति कुसुमनिकरे विरहिहृदयदलनाय ॥
तव विरहे वनमाली सखि सीदति ॥ 1 ॥
दहति शिशिरमयूखे मरणमनुकरोति ।
पतति मदनविशिखे विलपति विकलतरोऽति ॥ 2 ॥
ध्वनति मधुपसमूहे श्रवणमपिदधाति ।
मनसि चलितविरहे निशि निशि रुजमुपयाति ॥ 3 ॥
वसति विपिनविताने त्यजति ललितधाम ।
लुठति धरणिशयने बहु विलपति तव नाम ॥ 4 ॥
रणति पिकसमवाये प्रतिदिशमनुयाति ।
हसति मनुजनिचये विरहमपलपति नेति ॥ 5 ॥
स्फुरति कलरवरावे स्मरति मणितमेव।
तवरतिसुखविभवे गणयति सुगुणमतीव ॥ 6 ॥
त्वदभिधशुभदमासं वदति नरि शृणोति ।
तमपि जपति सरसं युवतिषु न रतिमुपैति ॥ 7 ॥
भणति कविजयदेवे विरहविलसितेन ।
मनसि रभसविभवे हरिरुदयतु सुकृतेन ॥ 8 ॥
पूर्वं यत्र समं त्वया रतिपतेरासादितः सिद्धय-स्तस्मिन्नेव निकुञ्जमन्मथमहातीर्थे पुनर्माधवः ।
ध्यायंस्त्वामनिशं जपन्नपि तवैवालापमन्त्रावलीं भूयस्त्वत्कुचकुम्भनिर्भरपरीरम्भामृतं वाञ्छति ॥ 32 ॥
॥ गीतं 11 ॥
रतिसुखसारे गतमभिसारे मदनमनोहरवेशम् ।
न कुरु नितम्बिनि गमनविलम्बनमनुसर तं हृदयेशम् ॥
धीरसमीरे यमुनातीरे वसति वने वनमाली ॥ 1 ॥
नाम समेतं कृतसङ्केतं वादयते मृदुवेणुम् ।
बहु मनुते ननु ते तनुसङ्गतपवनचलितमपि रेणुम् ॥ 2 ॥
पतति पतत्रे विचलति पत्रे शङ्कितभवदुपयानम् ।
रचयति शयनं सचकितनयनं पश्यति तव पन्थानम् ॥ 3 ॥
मुखरमधीरं त्यज मञ्जीरं रिपुमिव केलिषुलोलम् ।
चल सखि कुञ्जं सतिमिरपुञ्जं शीलय नीलनिचोलम् ॥ 4 ॥
उरसि मुरारेरुपहितहारे घन इव तरलबलाके ।
तटिदिव पीते रतिविपरीते राजसि सुकृतविपाके ॥ 5 ॥
विगलितवसनं परिहृतरसनं घटय जघनमपिधानम् ।
किसलयशयने पङ्कजनयने निधिमिव हर्षनिदानम् ॥ 6 ॥
हरिरभिमानी रजनिरिदानीमियमपि याति विरामम् ।
कुरु मम वचनं सत्वररचनं पूरय मधुरिपुकामम् ॥ 7 ॥
श्रीजयदेवे कृतहरिसेवे भणति परमरमणीयम् ।
प्रमुदितहृदयं हरिमतिसदयं नमत सुकृतकमनीयम् ॥ 8 ॥
विकिरति मुहुः श्वासान्दिशः पुरो मुहुरीक्षते प्रविशति मुहुः कुञ्जं गुञ्जन्मुहुर्बहु ताम्यति ।
रचयति मुहुः शय्यां पर्याकुलं मुहुरीक्षते मदनकदनक्लान्तः कान्ते प्रियस्तव वर्तते ॥ 33 ॥
त्वद्वाम्येन समं समग्रमधुना तिग्मांशुरस्तं गतो गोविन्दस्य मनोरथेन च समं प्राप्तं तमः सान्द्रताम् ।
कोकानां करुणस्वनेन सदृशी दीर्घा मदभ्यर्थना तन्मुग्धे विफलं विलम्बनमसौ रम्योऽभिसारक्षणः ॥ 34 ॥
आश्लेषादनु चुम्बनादनु नखोल्लेखादनु स्वान्तज-प्रोद्बोधादनु सम्भ्रमादनु रतारम्भादनु प्रीतयोः ।
अन्यार्थं गतयोर्भ्रमान्मिलितयोः सम्भाषणैर्जानतो-र्दम्पत्योरिह को न को न तमसि व्रीडाविमिश्रो रसः ॥ 35 ॥
सभयचकितं विन्यस्यन्तीं दृशौ तिमिरे पथि प्रतितरु मुहुः स्थित्वा मन्दं पदानि वितन्वतीम् ।
कथमपि रहः प्राप्तामङ्गैरनङ्गतरङ्गिभिः सुमुखि सुभगः पश्यन्स त्वामुपैतु कृतार्थताम् ॥ 36 ॥
राधामुग्धमुखारविन्दमधुपस्त्रैलोक्यमौलिस्थली नेपथ्योचितनीलरत्नमवनीभारावतारान्तकः।
स्वच्छन्दं व्रजसुब्दरीजनमनस्तोषप्रदोषोदयः कंसध्वंसनधूमकेतुरवतु त्वां देवकीनन्दनः॥ 36 + 1 ॥
॥ इति श्रीगीतगोविन्देऽभिसारिकवर्णने साकाङ्क्षपुण्डरीकाक्षो नाम पञ्चमः सर्गः ॥
Related to Krishna
Shrimad Bhagwad Gita Parayaan - Chapter 7 (श्रीमद्भगवद्गीता पारायण - सप्तमोऽध्यायः)
श्रीमद्भगवद्गीता पारायण के सप्तमोऽध्याय में कृष्ण ने अर्जुन को भक्ति योग और ईश्वर की अद्वितीयता के बारे में समझाया है।Shrimad-Bhagwad-Gita-Parayaan
Sudarshan Ashtakam (सुदर्शन अष्टकम्)
सुदर्शन अष्टकम् भगवान विष्णु के दिव्य चक्र सुदर्शन की महिमा का वर्णन करता है, जो बुराई का नाश करता है और भक्तों को सुरक्षा प्रदान करता है।Ashtakam
Bhagavad Gita Thirteenth Chapter (भगवद गीता तेरहवाँ अध्याय)
भगवद गीता तेरहवाँ अध्याय "क्षेत्र-क्षेत्रज्ञ विवेक योग" है। इसमें श्रीकृष्ण ने क्षेत्र (शरीर) और क्षेत्रज्ञ (आत्मा) के बीच के अंतर को समझाया है। वे बताते हैं कि शरीर नश्वर है, जबकि आत्मा अमर और शाश्वत है। यह अध्याय "आत्मा और शरीर", "अध्यात्म का विज्ञान", और "सत्य ज्ञान" की महत्ता को प्रकट करता है।Bhagwat-Gita
Chatushloki Stotra (चतुःश्लोकी)
चतु:श्लोकी स्तोत्र (Chatushloki Stotra): यह चार श्लोक (श्लोक) भगवद पुराण के सम्पूर्ण सार को प्रस्तुत करते हैं। इन चार श्लोकों का प्रतिदिन श्रद्धा और विश्वास के साथ पाठ और श्रवण करने से व्यक्ति के अज्ञान और अहंकार का नाश होता है, और उसे आत्म-ज्ञान की प्राप्ति होती है। जो व्यक्ति इन श्लोकों का पाठ करता है, वह अपने पापों से मुक्त हो जाता है और अपने जीवन में सत्य मार्ग का अनुसरण करता है। यह स्तोत्र न केवल आध्यात्मिक उन्नति के लिए महत्वपूर्ण है, बल्कि यह जीवन के वास्तविक उद्देश्य और उद्देश्य को जानने का भी मार्ग प्रशस्त करता है।Stotra
Mukunda Mala Stotram (मुकुंदमाला स्तोत्रम्)
संत राजा कुलशेखर की प्रार्थनाएं भगवान श्रीकृष्ण से उनकी सेवा का वरदान मांगती हैं। Mukunda-mala-stotra, जिसे राजा कुलशेखर ने एक हजार वर्ष पूर्व लिखा था, आज भी truth की ताजगी के साथ हमें संबोधित करता है। यह एक realized soul की आवाज़ है, जो अत्यंत sincerity के साथ Lord Krishna और हमसे संवाद करता है। राजा कुलशेखर सभी से disease of birth and death का उपचार सुनने का आह्वान करते हैं। Mukunda-mala-stotra उनके devotion to Krishna और इस शुभ अनुभव को सभी के साथ साझा करने की eagerness का सीधा और सरल expression है।Stotra
Shri Krishna Ashtottara Sata Nama Stotram (श्री कृष्ण अष्टोत्तर शतनामस्तोत्रम्)
श्री कृष्ण अष्टोत्तर शतनाम स्तोत्रम् (Shri Krishna Ashtottara Sata Nama Stotram) भगवान श्री कृष्ण (Lord Krishna) के 108 पवित्र नामों का वर्णन करता है, जो भक्तों (devotees) को सुख, शांति और समृद्धि (happiness, peace, and prosperity) प्रदान करता है। यह स्तोत्रम् असुर शक्तियों (evil forces) से बचाने और नकारात्मक ऊर्जा (negative energy) को दूर करने में सहायक है। गोविंद, मुकुंद, माधव (Govinda, Mukunda, Madhava) जैसे पवित्र नामों का जप करने से आध्यात्मिक उन्नति (spiritual growth) और पापों से मुक्ति (freedom from sins) प्राप्त होती है। यह ईश्वरीय अनुग्रह (divine grace) पाने और जीवन में सफलता (success in life) के लिए अत्यंत फलदायी है। श्री हरि विष्णु (Shri Hari Vishnu) के नाम स्मरण से कलियुग के दोषों (Kali Yuga Dosha) से मुक्ति मिलती है और मोक्ष का मार्ग प्रशस्त होता है।Stotra
Uddhava Gita - Chapter 7 (उद्धवगीता - सप्तमोऽध्यायः)
उद्धवगीता के सप्तमोऽध्याय में उद्धव और कृष्ण की वार्ता में धर्म, अर्थ, काम, और मोक्ष के महत्व पर चर्चा होती है।Uddhava-Gita
Shrimad Bhagwad Gita Parayaan - Chapter 8 (श्रीमद्भगवद्गीता पारायण - अष्टमोऽध्यायः)
श्रीमद्भगवद्गीता पारायण के अष्टमोऽध्याय में कृष्ण ने अर्जुन को आत्मा की अजर-अमरता और जीवन के सत्य के बारे में समझाया है।Shrimad-Bhagwad-Gita-Parayaan